समीर- तू जरूर किसी दिन मुझे मरवायेगी।
नेहा- “मरें आपके दुश्मन..” और नेहा ने समीर को हग कर लिया।
इस हालत में नेहा का समीर से कोली भरना, किसी बुड्ढे का भी लण्ड खड़ा हो जाय। समीर तो एक जवान लड़का शायद पूरे मुहल्ले में ऐसी बाडी किसी की हो। आज तक जिसने कभी मूठ तक नहीं मारी, आज उसके लण्ड ने पहली बार झटका मार ही दिया। सीने से चिपटी हुई नेहा की चूचियां समीर को महसूस हुई तो समीर एक झटके से अलग हो गया।
समीर- नेहा मेरी बहन ये सब तू क्या कर रही है? ये सब गलत है।
नेहा- भइया मेरा दिल ये सब करना चाहता है।
समीर- “अच्छा तू बैठ मेरे पास, में तुझे समझाता हूँ। इस उमर में ऐसा हो जाता है। तू अपना मन पढ़ाई में लगा। ये सब करने का तेरा भी वक्त आयेगा। जब तेरी शादी होगी, तब अपने पति से रात दिन प्यार करना। चल अब मेरी फाइल भी कंप्लीट हो गई है। मुझे इंटरव्यू के लिए जाना है…”
नेहा अपना सिर झुकाये समीर की बातें सुनती रही, जैसे समीर भइया सही कह रहे हों।
समीर- “जा जाकर कपड़े चेंज कर ले। मम्मी ने इस हालत में तुझे देख लिया, तो बड़ी डाँट मिलेगी। मैं भी कंपनी जा रहा हैं। एक टाय कंपनी में मैनेजर की नौकरी का ओफर मिला था समीर को। उसी की फाइल कम्प्लीट करके कंपनी चला गया। इस कंपनी की मलिक का नाम संजना कपूर था।
संजना 35 साल की शादीशुदा औरत थी, जिसके पति की किडनी खराब हो चुकी थी। अभी तक कोई वारिश नहीं था, और ना ही कोई उम्मीद थी। बस संजना की एक छोटी बहन थी दिव्या, वही साथ रहती थी। संजना ने आज अपनी कंपनी को बहुत ऊंचे लेवेल पर पहुँचा दिया था। समीर इंटरव्यू के लिए आफिस में मेडम के सामने बैठा था।
संजना मेडम- “हाँ तो समीर, तुम्हें कितना अनुभव है?”
समीर- “मेडम में पहली बार जाब के लिए आया हूँ। मगर मुझे अपने पर इतना कान्फिडेंट है की आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी। मुझे इस जाब पर एक महीना रखकर देखिये..”
संजना को समीर की बातों में दम लग रहा था, और फिर समीर था भी ऐसा की जो एक बार देखे वो उसकी तरफ खिंचता चला जाता है। संजना बोली- “तो फिर हम भी तुम्हें अपनी कंपनी में रख लेते हैं। तुम कल से कंपनी जान कर सकते हो…”
समीर- “थॅंक यू मेडम…” और समीर ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर संजना से हाथ मिलाया, और फिर एक मिठाई की दुकान से मिठाई लेकर घर पहुंचा।
शाम के 7:00 बज चुके थे। पापा भी घर पर थे। पापा ने ये खुशखबरी सुनकर अपने गले से लगा लिया, और मम्मी भी बहुत खुश थी। मम्मी ने पहले मिठाई का टुकड़ा मेरे मुँह में डाला उसके बाद पापा को खिलाई। मुझे नेहा नजर नहीं आई।
समीर- मम्मी नेहा कहां है?
अंजली- इस लड़की का मन ही नहीं लगता घर में। टीना के पास जा रही हैं, बोलकर गई है।
समीर- “मम्मी इस साल इसका फाइनल साल है। कोई अच्छा सा रिश्ता देखकर इसकी शादी कर दो..”
अंजली- “बेटा, मैं तो सोच रही हूँ दोनों की शादी एक साथ करूंगी। कैसी लड़की चाहिए तुझे बोल?”
समीर- “क्या मम्मी तुम भी ना… मैं नेहा को कह रहा हूँ और तुम मेरे पीछे ही पड़ गई..”
अंजली- “बता दे… फिर अगर हमने पसंद कर लिया किसी को तो फिर तेरी पसंद का मोका नहीं मिलेगा, या कोई लड़की है तेरी नजर में?”
समीर- मम्मी, मैं अभी दो साल शादी नहीं करूँगा। पहले कछ बन तो जाऊँ, अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊँ… अच्छा मम्मी, मैं नेहा को मिठाई टीना के यही खिला आऊँ?”
अंजली- हाँ बेटा चले जाओ।
समीर टीना के घर या। समीर ने डोरबेल बजाई। टीना ने दरवाजा खोला। समीर को एक और जोर का झटका लगा। टीना ने ट्रांसपेरेंट नाइटी पहनी हुई थी।
टीना- आओ समीर भइया, कैसे हो?
समीर- अंकल आंटी कहा हैं?
टीना- एक पार्टी में गये हुए हैं।
समीर- नेहा कहां है?
टीना- मेरे बेडरूम में है, क्यों क्या हुआ?
समीर- और ये कैसी ड्रेस पहनती हो तुम?
टीना- क्या भइया, तुम भी कौन सी दुनियां में जी रहे हो? ये तो आजकल आम सा फैशन है।
समीर- तुम और तुम्हारा फैशन। बस इस फैशन को नेहा से दूर ही रखो। मैं ये मिठाई खिलाने आया था, मेरी नौकरी लग गई है…” तभी नेहा भी रूम से बाहर आ गई।
नेहा- भइया आप… और ये मिठाई कैसी है?
समीर- मेरी नौकरी लग गई है।
नेहा- वाउ… भइया ये तो बड़ी खुशी की बात है। हमें तो पार्टी चाहिए।
समीर- हाँ हाँ क्यों नहीं?
टीना- भइया मुझे तो मूवी देखनी है,
समीर- ओके ओके… जैसी चाहो ले लेना पार्टी। चल नेहा घर पर मम्मी पापा डिनर पर इंतेजार करते होंगे।
टीना- “यही रुक जाओ आज भइया…” ललचाई नजरों से देखकर।
समीर- “नहीं, मुझे सुबह कंपनी जाय्न करनी है। मेरा कल पहला दिन है..”
समीर जानता था की अगर आज रात टीना के घर रुक गया तो इज्जत लुट सकती है, और नेहा और समीर अपने घर के लिए निकल गये।
समीर- नेहा
नेहा- जी भइया।
समीर- तू नेहा का साथ छोड़ दे। मुझे ये लड़की सही नहीं लगती।
नेहा- “क्या भइया, तुम हमेशा ये मत करो, वो मत करो, इससे मत मिलो। क्या मेरी लाइफ मेरी नहीं है? मैं अपनी जिंदगी आजादी से नहीं जी सकती? मेरे अंदर भी फीलिंग्स आती हैं। तुम क्या चाहते हो? क्या मैं उनका गला घोटती रहूँ? मैं कोई घर का समान हूँ जिसे जैसा चाहा इश्तेमाल कर लिया? क्या आपने कालेज में, पार्क में, रेस्टोरेंट में कभी लड़के लड़कियों को नहीं देखा की किस तरह चिपके रहते हैं? क्या उनके भाई नहीं हैं?”
समीर- नेहा, मेरा मतलब तुझे हार्ट करने का नहीं है।
नेहा- बस रहने दो। तुम चाहते हो की मैं घर के किसी कोने में दुबकी छुपी बैठी रहूँ? किसी की नजर भी मुझे पे ना पड़ जाय।
समीर को अपनी गलती लगने लगी, शायद कुछ ज्यादा ही कह दिया। समीर बोला- “ओहह… मेरी प्यारी बहना सारी… यार माफ कर दे अपने भाई को…”
नेहा- एक शर्त पर माफी मिलेगी। मेरी शर्त पूरी करो पहले। .
समीर- “चल ठीक है। मैं तेरी शर्त पूरी करने को तैयार हूँ..” और बातें करते हुए दोनों घर आ गये।
सबने मिलकर डिनर किया। समीर अपने बेड पर लेटा नेहा के बारे में सोच रहा था- “क्या मेरा नेहा को रोकना गलत है? क्या सचमच नेहा जवान हो गई है? कहीं ऐसा तो नहीं की नेहा और टीना में समलैंगिंग संबंध हों? मुझे ही नेहा को इस जंजाल से निकलना होगा, और उसके लिए मुझे पहले टीना की आग ठंडी करनी पड़ेगी…”
और पता नहीं कब समीर को नींद ने अपनी आगोश में ले लिया।
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सुबह समीर कंपनी चला गया।
अजय तो आज कुछ ज्यादा ही खुश नजर आ रहा था। आज बाथरूम में नहाने के साथ अपने लण्ड के बाल भी साफ किए और आज जीन्स और टी-शर्ट पहन ली। आज अजय ऐसे तैयार हो रहे थे, जैसे दूल्हा तैयार होता है।
अंजली- क्या बात है, आज कहां की तैयारी हो रही है?
अजय ने जैसे सोच रखा था की अंजली जरूर टोकेगी। अजय ने कहा- “आज हमारे बेटे की नौकरी लगी है। इसी खुशी में आज तो तुम्हें भी खुशियां मनानी चाहिए। शाम को छोटी सी डिनर पार्टी कर लो…”
अंजली- ठीक है जैसा आप चाहें।
अजय- “तुम शाम की तैयारी करो..” और अजय दुकान के लिए निकल गया। पहले विजय के पास जाकर शाम का प्रोग्राम बताया की सबको डिनर साथ करना है, और अपनी दुकान पर आ गया।
अजय एक-एक पल किरण से मिलने को तड़प रहा था, और फिर किरण का नंबर मिला दिया।
अजय- हेलो किरण कैसी हो?
किरण- हेलो भाई साहब मैं तो अच्छी हूँ। बस आपकी सब्जी तैयार कर रही हूँ।
अजय- “सच में… आप भी मुझे सब्जी खिलाने को तड़प रही हैं?”
किरण- “और नहीं तो क्या?” टीना भी नहीं है। नेहा का फोन आया था शाम को पार्टी है आपके यहा…”
अजय- तो आप इस वक्त अकेली हैं।
किरण- “जी भाई साहब, बस सब्जी तैयार है। आपके आने की देर है। मैंने तो आपके लिए आम भी धोकर रखे हैं, आपको आम चूसना अच्छा लगता है ना?”
अजय- भाभीजी मुझे दूध भी पसंद है।
किरण- अरें… भाई साहब आप जल्दी आ जाओ, आपको दूध भी मिलेगा। मेरे लिए कुछ लेते आना।
अजय- “ठीक है, मैं मूली लेता आऊँगा…”
अब अजय से एक पल और रुकना नामुमकिन था। किरण अजय को खुला आफर दे रही थी। लण्ड पैंट में बार बार झटके मार रहा था, और फिर अजय किरण के घर के लिए निकल पड़ा। रास्ते में एक गलाब और चाकलेट
और किरण के लिए प्यारी सी नाइटी पैक करा ली। अजय बस रास्ते भर यही सोचता जा रहा था की बात कैसे शुरू करनी है? अजय ने किरण के घर पर डोरबेल बजाई।
किरण शायद दरवाजे के पास ही खड़ी थी। उसने अजय का स्वागत किया। अपना हाथ आगे बढ़ाकर अजय से हाथ मिलाया। किरण ने कहा- ‘आज तो बड़े खूबसूरत लग रहे हो..”
अजय- आपने भी तो कयामत ढा रही हैं।
किरण ने बिना दुपट्टे के कमीज पहनी हुई थी, जिसमें से किरण की आधी चूची चमक रही थी। अजय अंदर सोफे पर आकर बैठ गया और किरण ने दरवाजा बंद कर लिया।
किरण- क्या लेना चाहोगे पहले, ठंडा या गरम?
अजय- भाभी पहले मुझे दूध पिला दीजिए।
किरण- “अभी लाई…” कहकर किरण किचेन में जाने लगी।
अजय ने उठकर किरण का हाथ पकड़ लिया- “अरे… भाभी सुनिए तो, मुझे एकदम ताजा दूध पीना है…”
किरण- “भाई साहब एकदम ताजा दूध कहा से लाऊँ?”
अजय- ये आप जानो। जब आपने हमें दावत पर इन्वाइट किया है तो इंतजाम भी आपको ही करना पड़ेगा। आज हमें एकदम शुद्ध दूध पिलाओ।
किरण- कैसे पीना पसंद करोगे?
अजय- कैसे मतलब?
किरण ने एक सेक्सी मुश्कान के साथ अपनी साड़ी का पल्लू खिसका दिया- “मतलब ग्लास में पियोगे या… …”
अजय- या मतलब?
किरण स्माइल के साथ- “चमड़े से पियोगे…’
अजय भी पूरे जोश में आ गया, और किरण को बाहों में भर लिया, और कहा- “हमें तो चूसकर पीना है ताजा ताजा दूध…”
अजय भी पूरे जोश में आ गया, और किरण को बाहों में भर लिया, और कहा- “हमें तो चूसकर पीना है ताजा ताजा दूध…”
धर किरण के निप्पल तन गये, जैसे कह रहे हों की आओ और चूस लो सारा दूध। ये सब तुम्हारे लिए है। अब अजय का सबर का बाँध टूट चुका था। अजय की नजरें तने हुए निप्पल को देखकर अपने हाथ वहां पर टिका दिए।
किरण- “हाईईई… उईई… उम्म्म्म … सस्स्सी … हाँ भाईई सहब चूस्स लो सारा दूध… आपके लिये ही है सब…”
अजय ने अपने होंठों को निप्पल से लगा लिया, और चूसने लगा। अजय को बड़ा मजा मिल रहा था।
किरण- “हाय भाई साहब ऐसे ही… ओहह… ओहह… हाँ हाँ…” कहकर किरण भी पूरी मस्ती में चूचियां चुसवा रही
थी। किरण पूरी गरम हो चुकी थी।
किरण- “भाई साहब, मेरा दिल भी कुछ खाने को कर रहा है। आप मेरे लिए कुछ लाए हो?”
अजय- क्या खाना चाहती हो?
किरण- मेरा दिल तो इस वक्त केला खाने को कर रहा है।
अजय- “वो तो है मेरे पास, मगर छोटा नहीं है। ज्यादा बड़ा केला है आपके मुँह में कैसे जायेगा?”
किरण- भाई साहब मुझे बड़े केले ही पसंद हैं।
अजय- “जैसी आपकी मर्जी…” और अजय ने किरण का हाथ पकड़कर अपनी पैंट की जिप पर रख दिया।
किरण- बाप रे ये केला है या साँप है?
अजय- खुद ही देख लो।
किरण- ना बाबा ना… मुझे तो डर लगता है, कही इस लिया तो?
अजय- “भाभी जान, आप तो बेकार में डर रही हो। सच में केला ही है, खोलकर देख लो..” किरण ने पैंट की जिप खोल दी, तो लण्ड बाहर आ चुका था।
किरण- अरे… हाँ भाई साहब ये तो सचमुच केला ही है। वैसे बहुत बड़ा केला है आपके पास।
अजय- तुम तो बेकार में डर रही थी। अब जैसे मर्जी खाना है खा लो। सिर्फ आपके लिए ही लाया हूँ.”
किरण बड़ी ही दक्ष लग रही थी लण्ड चूसने में।
“उफफ्फ..” अजय की हल्की सिसकारी निकल गई- “हाय भाभी, क्या केला चूसती हो… मजा आ गया…”
अजय- लगता है आपको केला बहुत पसंद है?
किरण- जी भाई साहब।
अजय- विजय भी खिलाता है आपको केला?
किरण- “कभी-कभी जब मैं जिद करती हूँ तब। नहीं तो बस सब्जी में ही डालकर खाना पड़ता है..” कहकर किरण लण्ड को मुँह में गहराई तक लेजाकर फिर बाहर कर देती।
अजय भी पूरी मस्ती से अपना लण्ड चुसवा रहा था, कहा- “भाभी विजय आपकी सब्जी कैसे-कैसे खाते हैं?”
किरण- बस जब भी सब्जी खाने आते हैं, कौव्वे के तरह चोंच मारकर खाते हैं, और सो जाते हैं
अजय- ओहह… बुरा लगा। इतनी अच्छी सब्जी को भला ऐसे खाया जाता है?
किरण- तो फिर कैसे खाते हैं?
अजय- “चलो मैं बताता हूँ की सब्जी कैसे खाई जाती है?” और अजय ने किरण की सलवार उतार फेंकी और टाँगें फैलाकर चूत को निहारा- हाय क्या मस्त चूत थी किरण की और अपने होंठ चूत की फांकों पर टिका दिए।
किरण की- “उईई.. इस्स्स… भाइ साहब…” की सिसकारी फूटने लगी।
अजय बड़ी ही शिद्दत से चूत की चुसाई में लग गया। ये अहसास किरण को पहले कभी नहीं मिला था। अजय भी किरण को पूरी तरह संतुष्ट करना चाहता था। अजय को कोई जल्दी नहीं थी। आज अपनी मर्दानगी साबित करनी थी।
किरण की बेचैनी इस कदर बढ़ चुकी थी की बिना लण्ड लिए झड़ गई, और अजय भी बिना हिचकिचाहट सारा चूत-रस पी गया। ये देखकर किरण अजय की दीवानी हो चुकी थी।
किरण- “भाई साहब, सब्जी की कदर तो कोई आपसे सीखे…”
अजय- हीरे की कदर जौहरी ही जानता है।
किरण अपनी इतनी तारीफ सुनकर मारे खुशी के अजय से लिपट गई। बाँहे गले में डालकर होंट से होंट मिला दिए, जैसे अजय का शुक्रिया कर रही हो। इस वक्त अजय का लण्ड किरण की चूत को छू रहा था।
अजय- भाभी मुझे तो और भूख लगी है।
किरण- भाई साहब, सब्जी तो खतम हो गई।
अजय- फिर तो हम भूखे ही रह जायेंगे।
किरण- आप बर्तन साफ कर लो, हंडिया में चिपकी होगी।
अजय- भाभी, चम्मच से निकल लूँ?
किरण भी जोश में आ चुकी थी। चूत का दबाव लण्ड पर डालने लगी। अजय ने भी किरण से लिपटे-लिपटे बेड पर लिटा दिया और अपना लण्ड चूत में सरका दिया। किरण की हल्की सी आss निकल गई। अब अजय बस रफ़्तार बढ़ाना चाह रहा था।
अजय- “ही भाभी, मजा आ रहा है आज तो, आपकी दावत खाकर।
किरण- “भाई साहब मैं तो ऐसी दावत आपको रोज खिला दूं..”
तभी अजय ने जोश में आकर एक जोर का झटका मार दिया।
किरण- “उईई माँ… धीरेss…”
अजय- क्या हुआ भाभी?
किरण- आपका चमचा।
अजय- “क्या भाभी, अब तो सीधे सीधे लण्ड ही बोल दो…”