तब तक बुआ किचेन से उसका टिफेन बना कर ले आई,… और बोली – स्कूल छूटने के बाद भैया ही ले आएगा तुझे.. क्यों छोटू ! ले आएगा ना…!
मे – मुझे तो जाना था बुआ अभी… वो मे निशा को छोड़ने आया था, लौटते में सोचा आपसे भेंट करता चलूं…
बुआ – अरे तो शाम को चला जइयो.. अभी सुबह सुबह क्या करेगा… घर जाकर..
मेने कहा ठीक है, फिर चल विजेता.. तुझे स्कूल छोड़ देता हूँ..
दूसरे गाँव का रास्ता थोड़ा उबड़ खाबड़ था.. विजेता मेरे पीछे दोनो ओर को पैर कर के बैठी थी..
कभी ब्रेक लगाने पड़ते थे तो वो मेरे से सॅट जाती.. और उसके कच्चे अनार मेरी पीठ पर दब जाते…फिर जब गाड़ी उच्छलती तो वो रगड़ जाते…
मेरा लंड उसके स्पर्श से ही सर उठाने लगा था, …एक बार तो ज़ोर से ब्रेक लगते – 2 भी गाड़ी एक खड्डे मे चली ही गयी और ज़ोर से उच्छल गयी,
अब बुलेट पर पीछे कुछ ज़्यादा ही झटका लगता है..तो पहले तो वो मेरे ऊपर गिरी और फिर ऊपर को उछलि, जिसकी वजह से उसके अनार तो पीठ से रगडे ही…
साथ ही उसकी मुनिया भी मेरी कमर से रगड़ा खा गयी, और वो ज़ोर से सिसक पड़ी… शायद उसको भी मज़ा आया होगा…
मेने कहा – क्या हुआ विजेता…?
वो बोली – भैया धीरे – 2 चलाओ, ये रास्ता बहुत खराब है, साइकल से चलना भी मुश्किल हो जाता है…!
मे – हां वो तो मे देख ही रहा हूँ, पता नही लोगों का ध्यान इस तरफ क्यों नही जाता…
खैर जैसे तैसे कर के हम उसके स्कूल पहुँच ही गये, उसे स्कूल छोड़ कर मे बुआ के घर वापस आ गया…..
जब मे घर लौटा तो बुआ घर में झाड़ू लगा रही थी… वो एक लो कट गले की मेक्सी पहने हुए थी,
झुक कर झाड़ू लगाने से उनके बड़े-2 खरबूज जैसे स्तन लटक कर बाहर को झाँक रहे थे…
मे वहीं खड़ा होकर ये नज़ारा देख रहा था, कि इतने में उनकी नज़र पड़ गयी… और सीधी खड़े होते हुए हंस कर बोली – क्यों रे बदमाश, क्या देख रहा था…?
मेने भी हँसते हुए कहा – कुछ नही बुआ, तुम्हारा समान सामने आ गया तो देखने लगा…
वो – चल बैठ मे थोड़ी देर में झाड़ू मारकर फिर बैठती हूँ तेरे पास…
मेने बुआ से पूछा – बुआ वाकी लोग कहाँ गये…?
वो – तेरे फूफा इस समय खेतों में होते हैं… छोटी यहीं गाँव के स्कूल में है, उसका स्कूल जल्दी शुरू हो जाता है, दो घंटे में आ भी जाएगी…
इतना बोलकर वो फिरसे झुकर झाड़ू मारने लगी, टाइट मेक्सी में बुआ की चौड़ी गान्ड झुकने से और ज़्यादा बड़ी दिख रही थी…
शायद वो नीचे पेटिकोट और पेंटी भी नही पहने थी, जिस कारण से उसके दो पाटों के बीच की दरार किसी नाली की तरह सॉफ सॉफ दिखाई दे रही थी…
सोने पे सुहागा ये था, कि जब वो खड़ी हुई थी, तो मेक्सी का कपड़ा उसकी गान्ड की दरार में फँस गया था, जो अभी तक बेचारा निकलने के लिए फडफडा रहा था..
लेकिन दोनो पाटों का दबाब इतना ज़्यादा था, कि वो वहाँ से टस से मस नही हो पाया…
बुआ की गान्ड के नज़ारे ने मेरे लंड की ऐसी तैसी करदी, वो साला जीन्स के अंदर फडफडाने लगा…
मे चुपके से बुआ के पीछे गया, और उसकी गान्ड से जाकर चिपक गया,….
वो तो एकदम से हिल ही गयी, और अपनी गान्ड को मेरे लंड पर और ज़ोर से दबा दिया, तो मेने भी झुक कर बुआ के खरबूजों को पकड़ लिया…
वो झाड़ू छोड़कर खड़ी हो गयी, और अपनी गान्ड को मेरे लंड के आगे दबाते हुए बोली – निगोडे ! थोड़ा सा तो सबर करले,
मुझे पता है, तुझे मेरी गान्ड ने परेशान कर रखा है…ये हरामजादी दिनो दिन चौड़ी ही होती जा रही है…
मेने बुआ की चुचियों को मसल्ते हुए कहा – लगता है, फूफा जी, इस पर ज़्यादा ध्यान देते हैं.. तभी ये चौड़ी होती जा रही है…
वो – नाअ रे ! उन्हें गान्ड मारने का शौक नही है, पर वो ज़्यादा तर पीछे से ही करते हैं…
अब छोड़ मुझे झाड़ू मारने दे… फिर आराम से बैठते हैं…
मेने झुक कर बुआ की मेक्सी को उठाकर उनकी गान्ड को नंगा करते हुए कहा – इतना समय नही है बुआ… मेरा लंड अब और इंतेज़ार नही कर पाएगा…
इतना कह कर मेने अपनी जीन्स उतार दी, और फ्रेंची की साइड से लंड बाहर निकाल कर बुआ की गान्ड की दरार में फँसा कर ऊपर से नीचे रगड़ने लगा…
मेरे नंगे लंड का अहसास अपनी नंगी गान्ड पर होते ही बुआ सारी ना नुकुर भूल गयी, और अपनी आँखें बंद कर के उसने अपने हाथ सामने की दीवार पर टिका दिए…मेने अपना एक हाथ नीचे लेजा कर बुआ की माल पुआ जैसी चूत को मुट्ठी में भरके मसल दिया…
बुआ की चूत रस छोड़ने लगी, उसने भी अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख कर और दबा दिया, और सिसकते हुए बोली –
सस्सिईईई….हाईए रे…ये क्या कर दिया तूने… मेरी चूत में आग लगा दी…अब और देर मत कर…
मेने अपनी दो उंगलियाँ बुआ की चूत में डाल दी… और अंदर बाहर करने लगा…चूत हद से ज़्यादा गीली हो गयी…
फिर मेने बुआ की मेक्सी को उसके सर के ऊपर से निकाल कर उसे पूरी तरह नंगा कर दिया…
अपने लॉड को थूक लगा कर गीला किया, और बुआ की गीली चूत में पेल दिया…
सरसराता हुआ मेरा साढ़े आठ इंच लंबा और सख़्त रोड जैसा लंड जैसे ही जड़ तक बुआ की चूत में गया,
थप्पाक से मेरी जांघें उसके भारी चुतड़ों पर पड़ी, और इसी के साथ ही बुआ के मुँह से एक लंबी कराह निकल गयी….
हआइईईई रीईए…. बेरहम… नाश्पीटे … मार्डलाअ.. रीई, तोड़ा आराम से डालता…फाड़ दी मेरी चूत मुए….. ने…
लेकिन मेने अनसुना करते हुए, अपने धक्के शुरू कर दिए, और बुआ की वो चुदाई की, कि वो चकर्घिन्नि बन गयी…
एक बार खड़े-खड़े चोदने के बाद, जब वो झड गयी, तो फिर हम तखत पर आ गये…
बुआ को घोड़ी बना कर पहले कुछ देर उसकी चूत मारी, उसके बाद मेने अपना लंड उसकी गद्देदार गान्ड में पेल दिया…
उलट पलट कर मेने बुआ को अच्छे से रगड़-रगड़ कर दो बार चोदा…
बुआ की सारी खुजली मिट गयी… तो मेने कहा – बुआ देखलो मेने आपका चॅलेंज पूरा कर दिया… फिर मत कहना…
वो – हां रे छोटू.. तू सच में मर्द हो गया है, मेरे जैसी दो बच्चों की औरत को झंड कर दिया…
उसके बाद उन्होने मेरे लिए चाय बनाई, और अपना काम ख़तम कर के नहाने चली गयी…
इतने में फूफा भी आगये, और उसके कुछ देर बाद उनकी छोटी बेटी भी स्कूल से आ गयी…
सबने मिलकर खाना खाया, उसके बाद मे विजेता को लेने उसके स्कूल चला गया…
विजेता ने घर आकर बताया कि कल से उसकी रक्षाबन्धन की छुट्टियाँ शुरू हो गयी हैं जो जन्माष्टमी तक चलेगी…..
तो मेने कहा, बुआ ये वैसे भी भैया की शादी में नही जा पाई थी, क्यों ना इसे मे अपने साथ ले जाउ.. रामा दीदी के साथ इसका मन भी लगा रहेगा…
मेरी बात सुन कर विजेता भी कहने लगी… हां मम्मी मे भैया के साथ जाउन्गी… मेने मामा, मामियों को कब से नही देखा…
फूफा जी ने भी हां करदी तो फिर बुआ ने उसे पर्मिशन दे ही दी, और उसी शाम मे विजेता को लेकर अपने घर वापस लौट लिया…
रास्ते में बहुत ज़्यादा कुछ नही हुआ, मे बस थोड़ा बहुत उसकी पढ़ाई लिखाई के बारे में ही पूछा…
लेकिन स्कूल जाते-आते वक़्त की हल्की सी मस्ती याद आते ही, विजेता ने थोड़ी बहुत हरकतें ऐसी की जो हम दोनो के शरीर में मस्ती भरने के लिए काफ़ी थी…
विजेता को मेरे साथ देख कर भाभी ने पूछा – अरे देवर जी ये कौन है..? एक को लेकर गये थे, और दूसरी के साथ लौटे हो…ये क्या चक्कर है भाई..!
मेने हँसते हुए कहा – कोई चक्कर नही है भाभी ! ये शांति बुआ की बेटी विजेता है.. आप नही जानती इसको.. मेरे बताते ही रामा दीदी ने उसे पहचान लिया.. और वो उसके गले लग गयी…
फिर कुछ देर इधर-उधर की बातें की और अपने घर गाँव के हाल चाल पुछे…
कॉलेज में मेरी एक अलग ही इमेज थी, एक ज़िम्मेदार स्टूडेंट की, … जो कॉलेज की व्यवस्थाओं में भी सहभागिता रखता था…. टीचर्स और प्रिन्सिपल तक मेरी बात का सम्मान करते थे..
हालाँकि हमारे कॉलेज में लड़कियाँ भी थी, और ऐसा भी नही था… कि मे कोई ब्रह्मचारी था… आप सभी जान ही चुके हैं…. लेकिन…
लेकिन अपने कॉलेज में मेने अपनी एक साफ-सुथरी इमेज कायम कर रखी थी… लड़कियों से कोसों दूर रहना मेने अपना नियम सा बना लिया था…
ठाकुर सूर्य प्रताप सिंग…. जिनकी इस कस्बे में बहुत लंबी चौड़ी ज़मीन जयदाद थी… एक तरह से कस्बे के ज़मींदार थे…प्रशासनिक कार्यों में भी इनकी अच्छी ख़ासी पैठ थी…
कॉलेज को मान्यता दिलवाने में भी इनका बहुत बड़ा योगदान रहा, …
कस्बे के सभी बड़े छोटे व्यापारी, किसान सब इनका बड़ा आदर करते थे… या कह सकते हैं इनके एहसानो तले दबे रहते थे…डरते थे इनसे…
ठाकुर साब की बेटी रागिनी भी इसी कॉलेज में थी, उसके सब्जेक्ट अलग थे… आर्ट्स के और मे साइन्स सेक्षन में था…
रागिनी का एक बड़ा भाई भी था, भानु प्रताप सिंग… जो अपने पिता की दबन्गयि में चार चाँद लगाने में एहम भूमिका निभाता था…
कॉलेज की ज़्यादातर लड़कियाँ रागिनी की चापलूसी करती रहती या यूँ कहो… कि उसके पैसों से मौज करती, और उसकी हां में हां मिलाती रहती थी…
मे आज अपना लास्ट पीरियड अटेंड कर के थोड़ा लाइब्ररी चला गया एक दो बुक लेनी थी..कॉलेज की ज़्यादातर लड़कियाँ रागिनी की चापलूसी करती रहती या यूँ कहो… कि उसके पैसों से मौज करती, और उसकी हां में हां मिलाती रहती थी…
मे आज अपना लास्ट पीरियड अटेंड कर के थोड़ा लाइब्ररी चला गया एक दो बुक लेनी थी..
मेने कुछ बुक्स इश्यू कराई, और जैसे ही लाइब्ररी के गेट से निकल कर लॉबी में कदम रखा ही था..
उधर रागिनी तेज – तेज कदमों से चली आ रही थी, इधर मेरा निकलना हुआ और उसका घुसना सो हम दोनो ही एक दूसरे से टकरा गये,
रागिनी की चुचियाँ मेरे सीने से आकर लगी, मेरे हाथ से बुक्स छूट कर फर्श पर गिर पड़ी…
अचानक से टकराने के कारण, वो कुछ डिसबॅलेन्स हो गयी, और पीछे को गिरने लगी.
मेने फ़ौरन अपना हाथ उसे सहारा देने के लिए पीछे किया, और उसकी मखमली गान्ड को कस लिया…
दूसरे हाथ से उसके कंधे को पकड़ कर उसे गिरने से बचा लिया…और वो फिरसे खड़ी हो गयी…
उसके साथ रोज की तरह 4-5 लड़कियाँ भी चिपकी हुई थी… उसे खड़ा कर के, मेने ज़मीन से अपनी बुक्स उठाई.. और खड़ा होकर उसे सॉरी बोलने ही वाला था… कि तडाक से एक तमाचा मेरे गाल पर पड़ा…
मेने अपना एक हाथ अपने गाल पर रख कर सहलाया और उसकी तरफ देखा… वो अपनी कमर पर दोनो हाथ रखे हुए गुस्से से भुन्भुनाइ…
साले हरामी, देख कर नही चल सकता.. आँखें क्या घर छोड़ कर आता है…
मे उससे उलझना नही चाहता था.. सो मेने उसे सॉरी बोला… और वहाँ से चला आया…
हालाँकि गुस्से से मेरा चेहरा लाल हो रहा था… लेकिन फिर भी मेने अपने गुस्से पर काबू किया, अपनी बुलेट उठाई और घर को चल दिया…
वो पीछे से मुझे जाता हुआ देखती रही… जब तक की मे उसकी आँखों से ओझल नही हो गया…
उसकी एक फ्रेंड ने उसकी बाजू पकड़ कर कहा – अब चल, वो तो चला गया,… अब किसे मारेगी..?
वही लड़की फिर बोली – वैसे उस बेचारे की ग़लती क्या थी..?
दूसरी – हां यार ! वो तो बेचारा गेट से निकल ही रहा था, तू ही उससे टकरा गयी.. और बिना सोचे समझे तूने उस बेचारे को थप्पड़ मार दिया…
तीसरी – कितना डीसेंट लड़का है, फिर भी सॉरी बोला उसने, और बिना कुछ कहे चुप चाप चला गया..
चौथी – मे उसे स्कूल से ही जानती हूँ, वो बस अपनी पढ़ाई से मतल्व रखता है.. किसी से आज तक उसका झगड़ा तक नही सुना हमने..
पहली – अरे ये वोही अंकुश है ना, जिसने स्कूल में चेल्लेंज देने वाले लड़के को पछाड़ दिया.. था.
दूसरी – हां ! वोही अंकुश है, और जानती है.. इसका एक भाई डीएसपी है, और उसकी शादी यहाँ के एमएलए की लड़की के साथ हुई है…
तीसरी – फिर भी देखो… उसको ज़रा सा भी घमंड नही है… प्रिन्सिपल वग़ैरह सब उसे बहुत मानते हैं.. वो चाहता तो तेरे खिलाफ शिकायत भी कर सकता था..
चौथी – पर्सनॅलिटी देखी उसकी… ऐसा हमारे कॉलेज में तो क्या.. आस-पास भी कोई नही है… कितना हॅंडसम, क्या हाइट और बॉडी.. एकदम फिल्मी हीरो लगता है..
कितनी ही लड़कियाँ तो उसके आगे बिछ्ने को तैयार रहती हैं… लेकिन वो किसी को आँख उठाकर भी नही देखता…..
लड़कियों के मुँह से मेरे बारे में ये सब सुनते-2 रागिनी झल्ला उठी और चिल्लाते हुए बोली –ओह… विल यू शट अप ऑल ऑफ यू…बिच.
जाओ जाकर उस हीरो का लॉडा चूसो… इतना ही पसंद है तो.. लेकिन मेरे कान खाना बंद करो तुम लोग.. उहह…. फिल्मी हीरो ! माइ फुट…
पहली – तो तुझे अब भी लगता है कि ग़लती उसकी थी…? मुझे लगता है, कि तुझे उससे माफी माँगनी चाहिए..
रागिनी – क्यों..? वो कोई लाट साब है..?
वो – क्योंकि टकराई तू उससे, और तमाचा भी मारा उसको.. ग़लती तेरी ही है..
रागिनी भड़क उठी और बोली – जा इतना ही उसका ख्याल है तो जाके तू उससे माफी माँग.. यहाँ क्यों खड़ी है..?
उसकी बात सुनकर वो लड़की वहाँ से चल दी… उसके पीछे- 2 वाकी की लड़कियाँ भी चली गयी…
अपनी दोस्तों को यूँ उसे अकेला छोड़ जाते हुए देखकर, रागिनी गुस्से से अपने पैर पटकती हुई तेज-तेज कदमों से वहाँ से चली गयी…
आज पहली बार रागिनी को किसी लड़के की वजह से उसकी दोस्त जो हमेशा उसके साथ रहती थी, उसकी हर हां में हां मिलाती थी, उसके किसी फ़ैसले का विरोध करने का कभी सोच भी नही सकती थी, वो उसे यूँ छोड़ कर चली गयी थी…
रागिनी तमतमाया चेहरा लिए अपने घर पहुँची… उसकी माँ के पुछ्ने पर भी उसने कुछ नही बताया.. और जाकर सीधे अपने कमरे में बिस्तर पर धडाम से गिर पड़ी…
वो खुली आँखों से आज हुए सारे घटना क्रम को सोचने लगी… कभी उसे उस लड़के पर गुस्सा आता, तो कभी अपनी दोस्तों को गालियाँ देने लगती…
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जब इस सबसे भी उसका मन नही भरा.. तो वो अपने व्यवहार को चरितार्थ करने लगी…
उसने शुरू से लेकर घर लौटने तक का सारा घटना क्रम कई बार- रीवाइंड कर कर के देख डाला…
आख़िर में मन के किसी कोने से उसे धिक्कार सुनाई दी… और सवाल आया..
तू सिर्फ़ एकबार अपने बाप-भाई के रुतवे को अलग रख कर सोच रागिनी, जो व्यवहार तूने उस लड़के के साथ किया है, क्या वो सही है…?
फिर उसे अपनी फ्रेंड की वो बातें याद आने लगी…
कॉलेज में उसका कितना मान है, उसके परिवार की शान भी कोई कम नही थी…
एमएलए की लड़की उसकी भाभी है…
वो चाहता तो वो उसे भी सबक सिखा सकता था… लेकिन उसके बड़प्पन ने उसे ऐसा करने नही दिया…अब रागिनी का मन ग्लानि से भरने लगा था… और अंत में उसने फ़ैसला कर लिया कि वो कल सबसे पहले जाकर अंकुश से माफी माँगेगी… !
जैसे ही रागिनी ने मन ही मन ये फ़ैसला लिया कि वो कल जाकर अंकुश से माफी माँगेगी, उसका मन अप्रत्याशित रूप से शांत हो गया…
अब उसके मन मस्तिष्क में, नफ़रत की जगह अंकुश के लिए दूसरी ही भावनाएँ पनपने लगी, और वो उसका प्यार पाने की कल्पना करने लगी.
उसकी पर्सनॅलिटी उसके दिलो-दिमाग़ पर छाती जा रही थी, इन्ही ख्वाबों ख़यालों में ना जाने कब उसका हाथ उसके नाज़ुक अंगों के साथ खेलने लगा, और उपसर मस्ती भरी खुमारी छाने लगी.
कभी वो अपनी चुचियों को मसलकर फील करती कि ये अंकुश उनको मसल रहा है, तो कभी उसका हाथ अपनी चूत पर महसूस करती, और उसे अपने हाथ से सहलाने लगती.
रागिनी की खुमारी कब वासना में बदल गयी, उसे पता ही नही चला और उसकी उंगलियाँ चूत के अंदर जाकर एक्सर्साइज़ करने लगी…
वो अपनी उंगलियों को चूत में अंदर बाहर करती हुई, फील करने लगी, जैसे अकुश का लंड उसकी चूत में अंदर बाहर हो रहा हो…
उसके मुँह से मादक सिसकियाँ निकलने लगी…. आअहह…अंकुशह….और जोरी सीए…चोद्द्द….बोलते हुए उसकी उंगलियों की रफ़्तार तेज होती चली गयी…
आख़िरकार वो लम्हा भी आ पहुँचा जिसकी चाहत हर शरीर को होती है,
उसकी कमर किसी धनुष की तरह बिस्तेर से ऊपर उठती चली गयी, और एक चीख मारते हुए उसकी चूत ने अपना कामरस छोड़ दिया…
अपने गीले हाथ को वो काफ़ी देर तक देखती रही, फिर उसे बेडशीट से पोन्छ कर साँसों को इकट्ठा करते हुए उसके चेहरे पर एक सुकून भरी स्माइल खेल गयी..
अपने खुद के हाथों से अपना चूतरस निकालने में आज उसे एक अलग सा ही मज़ा आया था, जो इससे पहले कभी नही मिला..,
इसी खुमारी में ना जाने कब उसकी आँखें बंद होती चली गयी…
उधर अपना हीरो… अंकुश शर्मा यानी कि मे.. जब घर पहुँचा…
आज कॉलेज मे जो कुछ भी उसके साथ हुआ था, उसे तो वो बुलेट की आवाज़ में ही भूल चुका था, ऊपर से मस्त हवा के झोंके अपने साथ उसके गुस्से को भी उड़ा ले गये थे..
इससे पहले की मे घर तक पहुँचता, कि रेखा दीदी जो भैया की शादी के बाद से अभी तक यहीं जमी हुई थी.. मेरे घर से अपने घर की ओर जा रही थी..
मुझे रास्ते में ही रोक कर एक अर्थपूर्ण स्माइल करते हुए बोली – क्यों रे हीरो.. सवारी कहाँ से चली आ रही है…?
मे – कॉलेज गया था.. आप सूनाओ क्या चल रहा है..?
वो तंज़ कसते हुए बोली – हमारा क्या चलेगा..? दिन काट रहे हैं, तू तो कभी बात भी नही करता…और क्यों करेगा हमारे जैसे छोटे लोगों से…
मे – ऐसा क्यों बोल रही हो दीदी..? वैसे और किसी से बात करते देखा है आपने मुझे..? अब समय ही नही मिलता है, … अब मे कोई जान बूझकर तो ऐसा नही करता ना…!
वो – हां भाई ! वैसे भी दूसरों से फ़ुर्सत मिले तभी तो हमारी तरफ ध्यान जाए भी जनाब का.. क्यों..?
मे – किसकी बात कर रही हो.. ?
वो – क्यों अपनी साली के पीछे -2 नही घूम रहा था जब तक वो यहाँ रही..? और उस रात शांति बुआ के साथ….???
उसने जान बूझकर बात अधूरी छोड़ दी… मेने उसके चेहरे की ओर देखते हुए पूछा.. शांति बुआ क्या..? क्या कहना चाहती हो आप…?
वो – मुझे सब पता है बच्चू…. उस रात क्या हो रहा था… लेकिन मुझे ये भी पता है, कि उसमें तेरी कोई ग़लती नही थी..
मे तो एकदम सन्न रह गया उसके मुँह से ये सब बातें सुनकर, और मन ही मन सोचने लगा.. तो क्या इस भेन्चोद ने सब कुछ देखा था उस रात…?
मुझे चुप देख कर वो बोली – देख भाई.. तू चिंता ना कर, मे किसी को कुछ नही बताउन्गी.. तू ना थोड़ा सा हमारे ऊपर भी नज़रें इनायत कर्दे बस…
मेने फिर भी बचाव की आख़िरी कोशिश करते हुए कहा – मेरी समझ में नही आ रहा दीदी, कि आप क्या बोल रही हो…?
वो तुनक कर बोली – अच्छा ! तो साफ साफ सुन, जिस रात बारात लौट कर आई थी, उस रात तू शांति बुआ के बगल में ही सो गया था… ये तो याद होगा…?
मे – हां ! जगह नही बची थी कहीं, तो सो गया उसमें क्या…?
वो – तो ! रात में शांति बुआ ने मौके का फ़ायदा उठाया, और तेरे ऊपर चढ़ कर चुद रही थी… अब आया कुछ याद…?
और अगर फिर भी तू मुझे चूतिया समझ रहा हो तो, उसके बाद तूने बुआ को पीछे से जबरजस्ति चोदा था… अब बोल !
मेने उस रात की तेरी चुदाई लाइव देखी थी, और सच कहूँ तो तभी से मेरी चूत भी तेरा ख़याल आते ही पानी छोड़ने लगती है यार,
ये कहकर वास्तव में ही वो साड़ी के ऊपर से ही अपनी चूत को मसल्ने लगी…
मे हथियार डालते हुए बोला – ठीक है दीदी आप जो चाहती हैं, वो मे करने को तैयार हूँ.. बोलिए कब और कहाँ करवाना है..?
वो – अभी आजा ना ! घर में, मे और आशा ही हैं, उसको में अभी खेतों पर भेज देती हूँ…
मे – ठीक है, तो फिर चलिए, मे अभी आधे घंटे में आता हूँ आपके पास…
उधर जब मे घर पहुँचा तो मुझे देखते ही भाभी बोली –लल्ला जी थोड़ा समय निकाल कर पंडित जी से बड़े देवर जी के गौने का मुन्हुर्त निकलावाके लाना है.. बाबूजी बोलके गये हैं..
मेने कहा ठीक है भाभी.. मे चला जाउन्गा… उसके बाद मे फ्रेश हुआ, और अपने कपड़े चेंज कर के खाना खाया और निकल लिया रेखा दीदी के घर की तरफ..रास्ते में ही आशा दीदी मिल गयी जो अपने खेतों की तरफ जा रही थी, मेने पूछा कि कहाँ जा रही हो, तो उसने कहा – माँ-बापू को खाना देने जा रही हूँ..
तुम कहाँ जा रहे हो..
मेने कहा – रेखा दीदी ने बुलाया है किसी काम से.. मेरी बात सुनकर, वो अपनी बड़ी – 2 आँखें मटकाते हुए बोली – रेखा दीदी को तुमसे ऐसा क्या काम पड़ गया..?
मेने कहा – एक काम करो जल्दी लौट के आ जाओ, खुद ही देख लेना और ये कहकर मेने अपनी एक आँख दबा दी..
वो सब समझ गयी.. और बोली – बेस्ट ऑफ लक… लेकिन मेरे लिए थोड़ा बचा के रखना …अपना… परसाद… और हँसती हुई तेज तेज कदमों से खेतों की तरफ चली गयी…
उनके घर पहुँचने तक रेखा दीदी ने अपने बच्चे को दूध पिलाकर सुला दिया था,
अब वो उसे गाय या भैंस का ही दूध देती थी…अपना दूध पिलाना तो उसने कब का बंद कर दिया था..
मे जैसे ही उसके घर पहुँचा तो, झट से उसने दरवाजा बंद कर दिया.. और मुझे हाथ पकड़ कर अंदर ले जाने लगी…
मेने कहा – दीदी तुम चलो कमरे में, मे टाय्लेट कर के बस एक मिनिट में आया..
उसके जाते ही मेने दवाजे की संकाल खोल दी और ऐसे ही उसे भिड़ा रहने दिया…
मे जब उसके कमरे में पहुँचा तो वो अपनी साड़ी उतार चुकी थी… खाली ब्लाउज और पेटिकोट में उसके कसे हुए पपीते जैसे गोल बड़े-बड़े चुचे आधे बाहर को उबले पड़ रहे थे…
मेने जाकर उसके उन दोनो पपीतों को पकड़ कर ज़ोर से मसल दिया… उसके मुँह से अहह… निकल गयी….
वो नीचे ब्रा नही पहने थी, सो चुचियों को मसल्ते ही उसके निपल ब्लाउज के अंदर से ही खड़े होकर सल्यूट मारने लगे…
मेने उसके निप्प्लो को मसल्ते हुए उसके होंठों पर किस किया और बोला… दीदी !
तुम्हारे ये कलमी आम तो एक दम पक गये हैं… जी करता है चूस-चूस कर खा जाउ…
तो खा ना भेन्चोद… देखता क्या है… मे कब्से तुझे खिलाने के लिए कह रही हूँ…
पर तू तो कहीं और ही मुँह मारता फिरता है… सीईईईईईईईईई…. धीरे मरोड़.. ना..भोसड़ी के तोड़ेगा क्या मेरी घुंडीयों को…
मेने चटक-चटक कर के उसके ब्लाउज के सारे बटन तोड़ दिए.. और उसके नंगे कलमी आमों पर पिल पड़ा….
वो बुरी तरह से सीसीयाने लगी…. हाईए….. खाजा मेरे रजाआ… भेन्चोद… चुसले इनको…. आईईई… मदर्चोद…. काटता क्यो है… चुतिये…
उसके मुँह से गालियाँ सुन कर मेरी उत्तेजना और बढ़ने लगी… मेरा एक हाथ उसकी चूत को सहला रहा था…
उसने भी मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले रखा था, और वो उसे मसल और मरोड़ देती…
फिर मेने उसके पेटिकोट का नाडा भी खींचकर तोड़ दिया…
वो शिकायत भरे लहजे में बोली – तू मेरे कपड़े साबित नही छोड़ेगा लगता है..
उसकी पेंटी गीली हो गयी थी… और माल पुआ जैसी चूत पेंटी के ऊपर से ही फूली हुई दिख रही थी…
उसकी चौड़ी दरार देखते ही मेने उसकी माल पुआ जैसी चूत को अपनी मुट्ठी में भर कर ज़ोर से मसल दिया…
आईईईई…………आराम सीई…..भेन के लौडे… ये तेरी बेहन की चूत है… किसी रंडी की नही जो बुरी तरह से दबोचने में लगा है….
मेने कहा – दीदी… तू अगर अपनी पेंटी को बचाना चाहती है.. तो इसे जलादी से उतार दे…,
वो बोली – तू तो अभी सारे कपड़े पहना है.. और मुझे पूरा नंगा कर दिया..
ये कह कर उसने मेरी टीशर्ट निकाल दी, और लोवर को भी खींच दिया… अपनी पेंटी को उतार कर वो मेरे लंड को मुट्ठी में भरके बोली –
अहह…. क्या मोटा तगड़ा मस्त लंड है तेरा….
तेरे इस मस्त लंड से चुदने के लिए मेरी चूत कब्से फड़-फडा रही थी… अब इसको अपनी चूत में अंदर तक लूँगी….हुउऊंम्म…
आअहह….ये सोचकर ही मेरी चूत पनिया गयी रीई… देख तो कितना रस छोड़ रही है हाईए …ये कहकर वो मेरे लंड को मसल्ते हुए मूठ मारने लगी…
मेने एक हाथ से उसके एक पपीते को दबा दिया, दूसरे हाथ की दो उंगलियाँ उसकी रसीली चूत में पेल दी, और अंदर-बाहर कर के उसे चोदने लगा…
वो हाए-2 कर के अपनी कमर चलाने लगी…
फिर मेने अपनी उंगलियाँ उसकी चूत से बाहर निकाली और उसके मुँह में डाल दी… वो अपने ही चूतरस को चटकारे लेकर चाटने लगी…