पति को चखाई बहन की चूत

हाई फ्रेंड्स, मैं आपकी दोस्त सेक्सी सोनल हूँ. आज मैं आपको एक सेक्स कहानी बताने वाली हूँ. उस दिन मैं अपनी छोटी बहन कीर्ति के बेटे का पहला जन्मदिन मनाने के लिए उसके ससुराल में गई हुई थी. मेरी बहन की यह पहली औलाद थी. घर का चिराग एक साल का हो जाने की खुशी में सब लोग फूले नहीं समा रहे थे. मेरी छोटी बहन कीर्ति की सास ने खास तौर पर मुझे जन्मदिन के लिए न्यौता भेजा था.

उसकी सास ने जोर देकर कहा था कि मैं अपने पति मुकेश को लेकर एक हफ्ता पहले ही पहुंच जाऊं और जन्मदिवस मनाने के लिए हो रही तैयारियों में हाथ बटाऊं. लिहाजा मुझे हफ्ते भर पहले ही छुटकी के घर जाना पड़ा.

मेरी छुटकी की शादी यूपी के बिजनौर में एक बड़े परिवार में हुई थी. घर में हर तरह का ऐश-आराम था. मैं अपने पति मुकेश के साथ ठीक एक हफ्ता पहले ही कीर्ति के ससुराल पहुंच गई. चूंकि बेटे का पहला जन्मदिन था तो कीर्ति ने जाते ही मुझे गले से लगा लिया.

मगर जब वो मेरे गले लग कर अलग हुई तो उसकी साड़ी का पल्लू मेरे नेकलेस में अटक गया. उसके बड़े बड़े चूचे मेरी नजरों के सामने ही उभर आये. चूंकि अभी वो बच्चे को दूध पिला रही थी तो उसके चूचे और अधिक रसीले हो चले थे. एक बार तो मुझे भी उसके स्तनों के देख कर हैरानी हुई.

मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही कीर्ति है जिसको मैं अपने मायके में देखा करती थी. शादी और बच्चा होने के बाद उसकी जवानी ऐसे खिल गई थी जैसे गुलाब की कली फूल बन गई हो. चेहरे पर पहले से ज्यादा नूर आ गया था और शरीर भी भर गया था.

मैं उसके पल्लू को अपने नेकलेस से निकालने लगी. काफी देर में उसका उलझा हुआ पल्लू आजाद हो पाया. फिर हम दोनों अलग हुए और मैंने मुकेश की तरफ देखा तो उसकी नजर कीर्ति के स्तनों की दरार को ताड़ रही थी.

मुझे समझते देर नहीं लगी कि जो भाव मेरे मन में उठे थे वही भाव अपनी साली को देख कर मेरे पति के मन में भी उठ रहे हैं. मैंने उसकी पैंट की तरफ देखा तो उसका लंड फन उठाने लगा था. मगर अभी तक पूरे जोश में नहीं आया था. उसकी नजरों में हवस को मैं साफ साफ पढ़ पा रही थी.

मैंने मुकेश की तंद्रा भंग करते हुए अपना हाथ हिलाया तो उनको होश आया. जब सोनल ने मुकेश को देखा तो उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया और अपनी साड़ी के पल्लू से अपने स्तनों को ढक लिया.
सोनल बोली- अरे जीजा जी, आप भी आये हैं!
मुकेश ने कहा- हां जी, साली के बेटे का जन्मदिन है तो आते कैसे नहीं

तभी उसकी सास भी बाहर निकल आई. हम दोनों ने उनको नमस्ते की और वो हमें बैठक वाले कमरे में लेकर चली गई. कुछ देर तक यहां वहां की बातें होती रहीं और उसकी सास ने बताया कि जन्मदिन की सारी तैयारियां हम दोनों के भरोसे ही हैं.

कीर्ति की सास मुझे बहुत मानती थी. इसलिए जब मैं आई तो उनके चेहरे पर निश्चिंतता के भाव भी झलकने लगे थे. उसकी सास ने कहा कि हम लोग तो कल ही मेहमानों के लिए सारे उपहार खरीद लायेंगे. तुम यहां कीर्ति और उसके बच्चे को देख लेना.

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उसके बाद उन्होंने हमें आराम करने के लिए कह दिया. जल्दी ही शाम हो गई और सारे लोग साथ में मिल कर खाना खाने लगे. खाने के बाद हम दोनों को उसकी सास ने हमारा कमरा दिखा दिया. कुछ देर तक तो हम दोनों बातें करते रहे और देर रात को जब सब लोग सो गये तो पति की जांघों के बीच में लटक रहे उसके सांप ने मेरी चूत के बिल में घुसने के लिए फन उठाना शुरू कर दिया.

मुकेश ने मेरी साड़ी और पेटीकोट को एकसाथ ऊपर कर दिया और सीधे ही मेरी चूत में जीभ देकर जोर से उसको चूसने लगे. आज उनका जोश कुछ अलग ही मालूम पड़ रहा था.

शादी के पांच सालों में इतना जोश मैंने एकाध बार ही उनके अंदर महसूस किया था. तेजी से अपनी जीभ को मेरी चूत में मेरे पति ने अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. मैं तड़पते हुए इतनी गर्म हो गई कि मेरे हाथ बेड की चादर को कचोटने लगे. मगर पति की जीभ की रफ्तार थी कि कम नहीं हो रही थी.

पति का लंड लेने के लिए मेरे अंदर की कामाग्नि भड़क चुकी थी. मैंने उनसे अपनी चूत चुदाई के लिए विनती करनी शुरू कर दी. मगर वो जैसे मेरी बात सुन ही नहीं रहे थे. मेरी चूत में तूफान सा उठ चुका था जिसको शांत किये बिना अब मुझे चैन नहीं मिलने वाला था.

मैंने कहा- मार ही डालोगे क्या आज, अब डाल दो अपना लौड़ा… आह्ह।
मुकेश ने कहा- ऐसी भी क्या जल्दी है जान, थोड़ा रस तो पीने दो तुम्हारी चूत का!
मैंने कहा- इतनी देर से रस ही पी रहे हो. मेरा फव्वारा छूटने ही वाला है. इतने भी बेरहम न बनो जी!
वो बोले- क्या मेरा लंड लेने के लिए मेरी बीवी की चूत मचल रही है?

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उनकी बात पर मैंने कहा- मचल नहीं रही, बहुत बुरी तरह से तड़प रही है. अब बातें करने में समय बर्बाद न करो और अपने लंड को मेरी इस तपती हुई भट्टी में घुसा दो जान!
वो बोले- तो फिर तुम्हें भी मेरा एक काम करना होगा.

मैंने पूछा- अब मियां बीवी के बीच में शर्त कब से आ गयी?
वो बोले- ज्यादा सवाल न करो. वर्ना तुम्हारी चूत को प्यासी ही रहना पड़ जायेगा आज रात!
मैं बोली- अच्छा ठीक है मेरे सरताज, क्या शर्त है, बताओ भी अब?

मुकेश ने कहा- मुझे कीर्ति की चुदाई करनी है. आज जब से मैंने उसके ब्लाउज में उसके भरे हुए स्तनों को देखा है तब से ही अंदर एक आग लगी हुई है. बाथरूम में दो बार वीर्य गिरा चुका हूं. अब अगर तुमने अपनी बहन की चूत नहीं दिलवाई तो फिर मैं नाराज हो जाऊंगा. उसका खामियाजा तुम्हारी प्यासी चूत को भुगतना पड़ेगा.

मैं बोली- मगर वो मेरी बहन है. मैं उसको तुम्हारे साथ सेक्स के लिए कैसे तैयार करूंगी?
वो बोले- वो तुम्हारा काम है. तुम देखो. मुझे कुछ नहीं पता. मुझे बस अपनी साली की चूत चोदनी है.
मैंने कहा- ठीक है, मैं पूरी कोशिश करूंगी. मगर अब तो मेरी चूत की प्यास को बुझा दो मेरे राजा. इतनी देर से मेरी चूत में जो आग लगा रखी है तुमने उसको तो शांत कर दो.

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वो बोले- पहले वादा करो कि मुझे कीर्ति की चूत दिलावाओगी, किसी भी कीमत पर?
मैंने कहा- हां, वादा करती हूं.
वो बोले- तो फिर ठीक है मेरी रानी, अब मेरा मूसल लेने के लिए तैयार हो जाओ.

इतना कह कर मेरे पति मुकेश ने मेरी टांगों को चौड़ी कर दिया. अगले ही पल पैंट और अंडरवियर उतार कर नीचे से नंगे हो गये और अपने मोटे लंड को मेरी चूत के मुंह पर रख दिया.

उनके सात इंची मूसल लंड का गर्म सुपारा जब मेरी चूत पर लगा तो मैंने खुद ही उनको अपनी तरफ खींच लिया. जोर से उनके होंठों को चूसने लगी और नीचे से उनका लंड मेरी तपती हुई चूत में उतरने लगा.

जब पूरा लंड चूत में उतर गया तो मुझे तृप्ति का अहसास मिलना शुरू हो गया. अब उन्होंने अपनी गांड का रिदम बनाते हुए मेरी चूत को चोदना शुरू कर दिया. पति के लंड से चुदते हुए मेरी वासना शांत होने लगी.
हमारा यह घमासान बीस मिनट तक चला और मुकेश से पहले ही मेरी चूत ने ही पानी फेंक दिया.

पच-पच की आवाज के साथ दो मिनट बाद तक वो मेरी गीली चूत को चोदते रहे और फिर वो भी मेरी चूत में पिचकारी मारते हुए मेरे ऊपर निढाल हो गये.

अगली सुबह जब उठी तो काफी फ्रेश महसूस कर रही थी. सुबह ही कीर्ति की सास ने कह दिया कि हम लोग दस बजे निकल जायेंगे. मुकेश को भी चलने के लिए कह देना.

मैं बोली- नहीं मौसी, मुकेश की तबियत कुछ ठीक नहीं है. उनको आज थोड़ा आराम करने दो. आप मेरे जीजा जी को लेकर चली जायें.
उसकी सास ने कहा- अच्छा ठीक है. तो फिर तुम कीर्ति और उसके बच्चे का ध्यान रखना. हम लोग कोशिश करेंगे की शाम होने से पहले लौट आयें.

दस बजे नाश्ते के बाद कीर्ति की सास उपहार खरीदने के लिए निकल गई. घर में मैं, कीर्ति और मेरे पति ही रह गये. अब मेरे लिए कीर्ति को अपने जीजा यानि मेरे पति मुकेश के साथ सेक्स करने के लिए मनाने की एक और चुनौती थी. मैं सोच ही रही थी कि कीर्ति ने आवाज दे दी.

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उसके कमरे में गयी तो वो काम में लगी हुई थी. मुन्ना दूसरे कमरे में सो रहा था. मैं भी उसके साथ काम में हाथ बंटाने लगी. एक घंटे तक दोनों साफ सफाई के काम में लगी रहीं. उसके बाद दोनों हांफने लगी और कीर्ति बोली- बस अब थोडा़ आराम कर लें.

वो कुर्सी लेकर बैठ गई. उसके स्तनों से उसका पल्लू हटा हुआ था. मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- अभी इतना काम करना ठीक नहीं है तेरे लिये, ला मैं तेरे कंधे की मसाज कर देती हूं. थोड़ा आराम मिल जायेगा.

मैं अपनी छोटी के बहन के ब्लाउज के ऊपर से ही उसके कंधों को सहलाने लगी. वो रिलेक्स होने लगी. थोड़ी ही देर में उसकी आंखें बंद होना शुरू हो गईं. मैंने अब अपने हाथों को थोडा़ नीचे तक ले जाना शुरू कर दिया.

उसके उभारों को छूकर आने लगे थे अब मेरे हाथ. वो कुछ नहीं बोल रही थी. धीरे-धीरे करके मैंने उसके चूचों को भी सहलाना शुरू कर दिया. फिर एकदम से अपने हाथ को उसके ब्लाउज में डाल कर उनको दबा दिया.
वो बोली- आह्ह … क्या कर रही है सोनल!
मैंने कहा- छुटकी, तेरी चूचियों को मसाज दे रही हूं ताकि स्तनों में दूध की गांठ न बन जायें.

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वो बोली- अच्छा, तो फिर अच्छे से कर ना मसाज!
मैं समझ गई कि उसको मजा आने लगा है.
मैंने उसके स्तनों में हाथ डाल कर उनको दबाना शुरू कर दिया.
उसके मुंह से सिसकारियां निकलने लगीं. अब मेरे हाथ मेरी बहन के चूचों को अच्छी तरह से दबा रहे थे. वो हर पल गर्म होती जा रही थी.

उसके दूध इतने बड़े थे कि मेरे हाथों में समा नहीं रहे थे. इन्हीं दूधों को देख कर उसके जीजा अपनी साली की चूत चुदाई की जिद पर अड़ गये थे, ये बात अब मुझे अच्छी तरह समझ आ गयी थी. कीर्ति की आंखें बंद हो रही थीं और उसके होंठ खुलने लगे थे. उसके गुलाबी गालों पर वासनामयी गर्माहट फैल रही थी और उसके होंठों से निकल रही तपती सांसें आस पास के माहौल को और कामुक बना रही थीं.

मैंने उसके गुलाबी ब्लाउज के ऊपर से ही उसके दूधों को दबाना शुरू कर दिया था. अब मेरी चूत में भी सुरसुरी सी पैदा हो रही थी. मन कर रहा था कि उसके ब्लाउज को उतार दूं. मैं उसकी गर्दन को चूमने लगी और साथ ही मेरे हाथ उसकी चूचियों को मस्ती में दबाने लगे.

अब हम दोनों बहनें एक दूसरे के लिए वासना की प्रतिमूर्ति बन गई थीं. कीर्ति के को दबाने में मुझे भी आनंद आने लगा था. अगर मेरी जगह कोई मर्द होता तो अब तक उसके लंड का बुरा हाल हो चुका होता.

उसकी सिसकारियां कुछ इस तरह उसकी उत्तेजना को बयां कर रही थी- आह्ह … दीदी, अह्ह … ये क्या कर रही हो! अम्म … आआहस्स्… तुमने तो मसाज के बहाने मुझे गर्म कर दिया दीदी.
मैं भी सिसकारते हुए बोली- तेरा मर्द भी तो ऐसे ही तेरे दूधों को दबा कर मजे लेता होगा न? मगर आज अपनी दीदी के हाथों से मजा ले ले छुटकी.

कीर्ति बोली- मेरे दूधों में पति के हाथों से इतनी मस्ती तो मैंने कभी महसूस नहीं की जितनी इस वक्त मैं महसूस कर रही हूं.
मैंने पूछा- तो फिर तेरी चूत का हाल तो इससे भी बुरा हो गया होगा.
वो बोली- हां, मेरी चूत … आह्ह मेरी चूत … दीदी … मेरी चूत तो चिपचिपी हो चली है.

मैंने कहा- तो अपनी दीदी को दिखाएगी नहीं क्या अपनी चूत?
वो बोली- तुमने गर्म ही इतनी कर दी है कि वो खुद तुम्हारे सामने आ चाह रही है.
मैंने कहा- तो फिर दिखा, मैं भी तो देखूं मेरी बहन की चूत गर्म होने के बाद कैसी लगती है!

कीर्ति सिसकारते हुए मुझसे अलग हो गई और मैंने उसके चूचों से हाथ हटा लिए. जब वो उठी तो नागिन के जैसी लहरा कर उठी. मुझे पता लग गया था कि इसकी चूत को अब चुदाई के लिए तैयार करने का यह सही मौका आ गया है.

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