देवर भाभी का रोमांस – 8 | Devar Bhabhi Sex Story

दूसरे दिन चाय नाश्ता करके हम तीनो बेहन भाई, भैया के ऑफीस की गाड़ी से उनके शहर की तरफ निकल लिए…

मे आगे ड्राइवर के बगल में बैठा था और दीदी-भैया पीछे की सीट पर बातें करते हुए अपना समय पास करते जा रहे थे..

वो दोनो भी कुच्छ सालों पहले एक साथ स्कूल जाना, साथ खेलना बैठना काफ़ी सालों तक रहा था, आज वो दोनो अपनी पुरानी बातों, साथ बिताए लम्हों को याद करते जा रहे.

उनकी बातें सुनकर मुझे पता चला कि हम भाइयों और बेहन के बीच कितना प्रेम है एक दूसरे के लिए..

शायद इसकी एक वजह माँ की असमय मृत्यु भी थी, जिसकी वजह से सब जल्दी ही अपनी ज़िम्मेदारियाँ समझने लगे थे.

उनकी पोस्टिंग जिस शहर में थी, वो हमारे गाओं से तकरीबन 100-110 किमी दूर था,

गाओं से कुच्छ दूर मैं हाइवे तक सिंगल और खराब रास्ता ही था, लेकिन उसके बाद हाइवे अच्छा था.

बातों-2 में समय का पता ही नही चला और कोई 3 घंटे बाद हम उनके शहर पहुँच गये..

भैया पहले सीधे अपने ऑफीस गये, वहाँ अपने स्टाफ से हमें मिलवाया फिर अपने ऑफीस के काम का अपडेट लेकर हम तीनों शॉपिंग के लिए निकल गये..

पहले मेरे लिए एक बुलेट बुक कराई, जो कल तक मिलने वाली थी, फिर हम दोनो के लिए कपड़े वैगैरह खरीदे.. इसी में शाम हो गयी..

दूसरे दिन भैया हमें एक सिनिमा हॉल की टिकेट देकर अपने ऑफीस निकल गये..

अपने ऑफीस की ही एक गाड़ी हमारे लिए रख दी जो हमें पूरे दिन घुमाने वाली थी..

3 से 6 वेल शो हम दोनो मूवी देखने हॉल में घुस गये.. अक्षय कुमार की कोई अच्छी मूवी लगी थी..

दीदी ने नये खरीदे कपड़ों में से एक पिंक कलर की टीशर्ट और एक ब्लू लीन्स पहन रखी थी, मे भी एक वाइट टीशर्ट और जीन्स पहने हुए था..

इस ड्रेस में दीदी क्या ग़ज़ब लग रही थी, मे तो उन्हें देखता ही रह गया.. और मेरे मूह से निकल गया.. वाउ ! दीदी क्या लग रही हो …

वो एकदम से शर्मा गयी, और फिर बोली – सच बता भाई.. मे अच्छी लग रही हूँ ना..!

मे – ग़ज़ब दीदी ! आप तो एकदम से बदल गयी हो… कोई कह नही सकता कि ये कोई गाओं की लड़की होगी..

वो – तू भी किसी हीरो से कम नही लग रहा… देखना कहीं कोई लड़की गश ख़ाके ना गिर पड़े…

मे – अब आप मेरी टाँग खींच रही हो..

वो – नही सच में.. और आगे बढ़के मेरे गाल पर किस कर लिया.. मे तो अचानक उनके किस करने से गन-गन गया…!

हॉल में अंधेरा था, कुच्छ वॉल साइड की लाइट्स थी जिससे हल्का-2 उजाला फैला हुआ था. हम अपने नंबर की सीट जो बाल्कनी में सबसे उपर की रो में थी बैठ गये.

अच्छी मूवी होने की वजह से कुछ देर में ही हॉल फुल हो गया.. और कुच्छ ही देर में सभी लाइट्स ऑफ हो गयी.. और एक दो आड के बाद मूवी स्टार्ट हो गयी.

हॉल में अंधेरा इतना था, कि हमें अपने बाजू वाले की भी पहचान नही हो रही थी कि कॉन बैठा है..

मूवी शुरू हुए अभी कुच्छ ही मिनिट हुए थे कि दीदी का हाथ मेरी जाँघ पर महसूस हुआ..

मे चुपचाप बैठा मूवी देखता रहा.. अब धीरे-2 वो मेरी जाँघ को सहलाने लगी.. और उसे उपर जांघों के बीच ले आई…

अब उनकी उंगलिया मेरे लंड से टच हो रही थी… वो टाइट जीन्स में क़ैद बेचारा ज़ोर मारने लगा..

लेकिन जीन्स इतनी टाइट थी कि कुच्छ ज़ोर नही चल रहा था उसका…

दीदी का हाथ और कुच्छ हरकत करता उससे पहले मे थोड़ा सीधा हो गया और अपनी सीट पर आगे को खिसक गया… !

दीदी ने फ़ौरन अपना हाथ खींच लिया और मेरे मूह की तरफ देखने लगी.. लेकिन मे मूवी देखने में ही लगा रहा…

मे थोड़ा आगे होकर दीदी की साइड वाले अपने बाजू को थोड़ा उनकी सीट की तरफ चौड़ा दिया,

अब हॅंडल पर आगे मेरा बाजू टिका हुआ था और मेरे पीछे ही दीदी ने भी अपना बाजू टिका लिया और मेरी सीट की तरफ को होगयि…

पोज़िशन ये होगयि.. कि अगर मे ज़रा भी पीछे को होता तो मेरा बाजू उनके बूब को प्रेस करता…!

हम दोनो कुच्छ देर यूँही बैठे रहे.. उसको ज़्यादा देर चैन कहाँ पड़ने वाला था.. सो अपना हाथ मेरी बॉडी और बाजू के बीच से होकर फिर मेरी जाँघ पर रख दिया, और फिर वही पहले वाली हरकतें…!

मे उन्हें बोलने के लिए पीछे की तरफ होकर उनकी ओर को हुआ… मेरा बाजू एल्बो से उपर का हिस्सा उनके बूब पर रख गया…!

जैसे ही मुझे इस बात का एहसास हुआ, और मे अलग होने ही वाला था कि उसने मेरा बाजू थाम लिया और उसे और ज़ोर्से अपनी चुचि पर दबा दिया…!

आह्ह्ह्ह… क्या नरम एहसास था, रूई जैसी मुलायम उसकी चुचि मेरी बाजू से दबी हुई थी.. मुझे रोमांच भी हो रहा था,

लेकिन मेरे मन में हमेशा ही उनके प्रति एक भाई-बेहन वाली फीलिंग पैदा हो जाती थी और मे आगे बढ़ने से अपने को रोक लेता था…!

दीदी ने अपना गाल भी मेरे बाजू से सटा रखा था…मेने उनके कान के पास मूह लेजा कर कहा – दीदी ये आप क्या कर रही हो..?

वो – मे क्या कर रही हूँ..?

मे – यही ! अभी आप ऐसे चिपकी हो मेरे से, कभी मेरी जाँघ सहलाती हो… ये
सब…. क्या ठीक है..?

वो – क्यों ! तुझे कोई प्राब्लम है इस सबसे..?

मे – हां ! हम बेहन-भाई हैं, और ये सब हमारे रिस्ते में ठीक नही है..

वो – अच्छा ! और भाभी देवर के रिस्ते में ये सब ठीक है..?

मे – क्या..?? आप कहना क्या चाहती हो..? साफ-साफ कहो…!

वो – आजकल तेरे और भाभी के बीच जो भी हो रहा है ना ! वो मुझे सब पता है.. यहाँ तक कि तेरे बर्थ’डे वाली सारी रात उनके कमरे में जो हुआ वो भी..

मे एक दम से सकपका गया.. और हैरत से उनकी तरफ देखने लगा…..

वो – ऐसे क्या देख रहा है…? क्या ये भी बताऊ, कि कब-कब, तुम दोनो ने क्या-क्या किया और कहाँ किया है..?

लेकिन तू फिकर मत कर मे किसी को कुच्छ नही कहूँगी…बस थोड़ा सा मेरे बारे में भी सोच…!

अब मेरे पास बोलने के लिए कुच्छ नही था… सो जैसे गूंगी औरत लंड की तरफ देखती है ऐसे ही बस उसे देखता ही रहा…!

वो – अब चुप क्यों है ! कुच्छ तो बोल… ?

मे – ठीक है दीदी ! आप जैसा चाहती हैं वैसा ही होगा, लेकिन अभी यहाँ कुच्छ मत करो… वरना मुझे कुच्छ -2 होने लगता है…!

वो – तो फिर कहाँ और कैसे होगा.. ? यहाँ भी कुच्छ तो मज़े कर ही सकते हैं ना !

मेने पूरी तरह हथियार डाल दिए और अपने आपको उसके हवाले कर दिया….दीदी अपनी चुचि को मेरे बाजू से रगड़ कर कान में फुसफुसाई… अपनी जिप खोल ना भाई..

मे – क्या करोगी…?

वो – मुझे देखना है तेरा वो कैसा है…!

मे – यहाँ अंधेरे में क्या दिखेगा… ?

वो – अरे यार तू भी ना, बहुत पकाता है.. तू खोल तो सही मे अपने हाथ में लेकर देखना चाहती हूँ..! प्लीज़ यार ! खोल दे…

मे – रूको एक मिनिट.. और मेने सीट से पीठ सटकर कमर को उचकाया और अपना बेल्ट और जिप खोल दिया..

उसने तुरंत अपना हाथ जीन्स के अंदर डाल दिया और फ्रेंची के उपर से ही मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया…

मे – अह्ह्ह्ह… कैसा है..?

वो – हाईए.. छोटू ! ये तो बड़ा तगड़ा है…यार !

मे – क्यों तुम्हें अच्छा नही लगा…? तो वो झेंप गयी और शर्म से अपना गाल मेरे बाजू पर सटा दिया…

वो उसे हौले-2 सहलाने लगी और उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने बूब पर रख दिया…और बोली – तू भी इसे प्रेस करना !

मेने कहा रूको, और फिर मेने अपना बाजू उसके सर के पीछे से लेजा कर उसके दूसरी साइड वाले बूब के उपर रख दिया और धीरे-2 दबाने लगा…

मेने उसके गाल को चूमते हुए उसके कान में कहा- तुम भी अपनी जिप खोलो ना दीदी !

तो उसने झट से अपनी जीन्स खोल दी और मेने अपना हाथ उसकी पेंटी के उपर रख कर उसकी मुनिया को सहला दिया…

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सीईईईईई…. हल्की सी सिसकी उसके मूह से निकल गयी, उसकी पेंटी थोड़ी-2 गीली हो रही थी.. और अब मेरे दो तरफ़ा हमले से उसकी और हालत खराब होने लगी…

हम दोनो मस्ती में एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे, कि तभी इंटेरवाल हो गया, और जल्दी से अपने सीटो पर सही से बैठकर अपने-2 कपड़े दुरुस्त किए और बाहर चल दिए…

इंटेरवाल के बाद भी हम दोनो ऐसे ही मस्ती करते रहे, और इस दौरान वो एक बार झड भी चुकी थी..

मेरा भी लंड फूलकर फटने की स्थिति में पहुँच गया था..

मूवी ख़तम होने के बाद हम घर लौट लिए, रास्ते भर हम दोनो चुप ही रहे, वो मुझसे नज़र चुरा रही थी, और मन ही मन मुस्कुराए जा रही थी.

मेने गाड़ी की पिच्छली सीट पर बैठे ही उससे पुछा – क्या हुआ दीदी, बात क्यों नही कर रही..?

वो – भाई देख यहाँ अब कुच्छ मत करना, वरना ड्राइवर को शक़ हो जाएगा …

मेने कहा – तो बात तो कर ही सकती हो.. फिर वो इधर-उधर की बातें करने लगी..

घर पहुँच कर फ्रेश हुए, थोड़ा टीवी देखा और कुच्छ देर बाद भैया आ गये…

एजेन्सी वाला बुलेट की डेलिवरी घर पर कर गया था, भैया ने सब पेपर चेक कर लिए..

रात देर तक हम तीनो बेहन भाई देर तक बात-चीत करते रहे.. भैया ने हमने दिन में क्या-2 किया वो सब पुछा.. और फिर अपने-2 बिस्तर पर जाकर सो गये..

दूसरे दिन हम निकलने वाले थे, भैया ने सुबह ही पंप पर जाकर बुलेट का टॅंक फुल करा दिया था, निकलने से पहले भैया बोले –

छोटू ! रास्ते में एक बहुत अच्छी जगह है, जंगलों के बीच झरना सा है, झील है.. देखने लायक जगह है..

अगर देखना हो तो किसी से भी पुच्छ कर चले जाना.. बहुत मज़ा आएगा तुम दोनो को..

फिर हम दोनो भैया से गले मिलकर चल दिए अपने घर की तरफ

डग-डग-डग….. बुलेट अपनी मस्त आवाज़ के साथ हाइवे पर दौड़ी चली जा रही थी..

जो मेने कभी सपने में भी नही सोचा था, आज मुझे मिल गया था….. मेरी पसंदीदा बाइक जिसे दूसरों को चलाते देख बस सोचता था, कि काश ये मेरे पास भी होती.

और आज भाभी की वजह से मेरे हाथों में थी, मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था इस वक़्त…

भैया के घर से निकलते वक़्त दीदी एक सलवार सूट में थी… शहर से निकल कर जैसे ही हमारी बुलेट रानी मैं हाइवे पर आई, दीदी ने मुझे गाड़ी एक साइड में खड़ी करने को कहा..

मेने सोचा इसको सू सू आ रही होगी, सो मेने एक पेड़ के नीचे बुलेट रोक दी और पुछा – क्या हुआ दीदी.. गाड़ी क्यों रुकवाई..?

उसने कोई जबाब नही दिया और मुस्कराते हुए अपने कपड़े उतारने लगी…! मेने कहा- अरे दीदी ऐसे सरेआम कपड़े क्यों निकाल रही हो.. पागल हो गयी हो क्या ?

फिर भी उसने कोई जबाब नही दिया और अपनी कमीज़ उतार दी…

मेरी आँखें फटी रह गयी.. वो उसके नीचे एक हल्के रंग की पतली सी टीशर्ट पहने थी..

फिर वो अपनी सलवार का नाडा खोलने लगी.. और उसे जैसे ही नीचे सरकाया, तो उसके नीचे एक स्लेक्स की टाइट फिट घुटने तक की पिंक कलर की लिंगरी पहने थी..

उसके दोनो कपड़े इतने हल्के थे कि उसकी ब्रा और पेंटी उनमें से दिखाई दे रही थी, वो इन कपड़ों में एकदम शहर की पटाखा माल लग रही थी.

ब्रा में कसे उसके 32 साइज़ के गोरे-2 बूब और पेंटी में कसी उसकी 33-34 की गांद देखकर मेरा पापुआ उछल्ने लगा.

मे भी इस समय एक हल्की सी टीशर्ट और एक होजरी का पाजामा ही पहने था, जो कि काफ़ी कंफर्टबल था रास्ते के लिए.

पाजामा में मेरा तंबू सा बनने लगा था.. लेकिन मे अभी भी बुलेट की सीट पर ही बैठा था, इसलिए वो उसको नही दिखा.

मेने मन ही मन कहा.. हे प्रभु आज किसी तरह इससे बचा लेना…!

ऐसा नही था, कि मे दीदी के साथ फ्लर्ट नही करना चाहता था, लेकिन जिस तरह वो दिनो-दिन मेरे साथ खुलती जा रही थी,

इसी से पता चल रहा था कि अब हम ज़्यादा दिन दूर नही रह पाएँगे..

मे जैसे ही आगे बढ़ने की कोशिश करता, मेरे मन में कहीं ना कहीं ये सवाल उठने लगता., कि नही यार ! ये तेरी बेहन है.. और बेहन के साथ……ये ग़लत होगा.

लेकिन उसके कोमल मन को कॉन समझाए…?

और अब तो उसने मेरे हथियार के दर्शन भी कर लिए थे…मे यही सब बुलेट के दोनो ओर पैर ज़मीन पर टिकाए सीट पर बैठा सोच ही रहा था कि वो मेरे पीछे दोनो तरफ लड़कों की तरह पैर करके बैठ गयी और बोली— अब चलो…

मेने किक लगाई और हमारी बुलेट रानी फिर से डग-डग करती हाइवे पर दौड़ने लगी…

उसने अपने बाल भी खोल दिए थे जो अब हवा में लहरा रहे थे.. मस्ती में उसने अपनी दोनो बाजू हवा में लहरा दी और हवा की तेज़ी को अपने पूरे शरीर पर फील करने लगी…

मे – अरे दीदी ! आराम से बैठो ना.. गिर जाओगी…!

वो – क्यों तुझे चलाना नही आता क्या..?

मे – ऐसा नही है.. अगर कहीं कोई गड्ढा आ गया या किसी भी वजह से ब्रेक भी लगाना पड़ सकता है तो तुम डिसबॅलेन्स हो सकती हो..

उसने मुझे घुड़कते हुए कहा – तू बस अपनी ड्राइविंग पर ध्यान दे.. और मुझे मेरा मज़ा लूटने दे…

मे फिर चुप हो गया.. थोड़ी देर बाद वो बाइक पर खड़ी हो गयी और चिल्लाने लगी—

याहूऊओ….याहूऊ… जिससे उसकी आवाज़ हवा में लहराने सी लगी और उसके खुद के कनों को सर सराने लगी……

ऐसी ही मस्ती में वो बाइक के पीछे मज़े लूटती जा रही थी…

फिर रोड पर कुच्छ गड्ढे से आना शुरू हो गये, तो मेने उसे रोक दिया और ठीक से पकड़ कर बैठने के लिए बोला.

तभी एक बड़ा सा गड्ढा आ गया और गाड़ी उछल गयी… वो अच्छा हुआ कि उच्छलने से पहले उसने मुझे पकड़ लिया था……

अब उसे पता चला कि में क्यों पकड़ने के लिए बोल रहा था… मेरी कमर में बाहें लपेट कर दीदी बोली –

देखभाल कर चला ना भाई.. घर पहुँचने देगा या रास्ते में ही निपटाके जाएगा मुझे…

मे – मेने तो पहले ही कहा था कि पकड़ लो कुच्छ..

दीदी मेरी कमर में अपनी बाहें लपेटकर मुझसे चिपक गयी, जिससे उसके कड़क अमरूद जैसी चुचियाँ मेरी पीठ में गढ़ी जा रही थी, अपना गाल मेरे कंधे पर रख कर मेरी गर्दन से सहलाते हुए मज़े लेने लगी…

नॉर्मली बुलेट जमके चलने वाली बाइक है, फिर भी वो उच्छलने के बहाने से अपनी चुचियों को मेरी पीठ से रगड़ रही थी, उसके मूह से हल्की-2 सिसकियाँ भी निकल रही थी…

धीरे-2 सरकते हुए उसके हाथ मेरे लौडे को टच करने लगे, उसका स्पर्श होते ही उसने उसे थाम लिया और धीरे-2 मसल्ने लगी…

मे – दीदी अपना हाथ हटाओ यहाँ से कोई आते-जाते देख लेगा तो क्या सोचेगा..?

वो – तो देखने दे ना..! हमें यहाँ कों जानता है.., तू भी ना बहुत बड़ा फटतू है यार..!

मे – अरे दीदी ! ये हाइवे है… ग़लती से अपना कोई पहचान वाला गुजर रहा हो तो.. और उसने जाके बाबूजी, या और किसी घरवाले को बता दिया… तब किसकी फटेगी…?

वो – चल ठीक है चुपचाप गाड़ी चला तू… कोई निकलता दिखेगा तो मे हाथ हटा लिया करूँगी..

इतना बोलकर उसे और अच्छे से मसल्ने लगी जिससे मेरा लंड और अकड़ गया.. अब वो पाजामा को फाड़ने की कोशिश कर रहा था..

अपने हाथों में उसका आकर फील करके दीदी बोली – वाउ ! छोटू, तेरा ये तो एकदम डंडे जैसा हो गया है यार….

मे – मान जाओ दीदी ! वरना मेरा ध्यान भटक गया ना, और गाड़ी ज़रा भी डिसबॅलेन्स हुई तो दोनो ही गये समझो..

आक्सिडेंट की कल्पना से ही वो कुच्छ डर गयी और उसने मेरे लंड से अपने हाथ हटा लिए..

लेकिन पीठ से अपनी चुचियों को नही हटाया, और तिर्छि बैठ कर अपनी मुनिया को मेरे कूल्हे के उभरे हुए हिस्से से सटा लिया,

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धीरे-2 उपर नीचे होकर अपनी चुचि और मुनिया को को मेरे शरीर से रगड़-2 कर मज़े लेने लगी…

हम 60-70 किमी निकल आए थे, भैया ने जो जगह घूमने के लिए बताई थी, वो आने वाली थी…हम 60-70 किमी निकल आए थे, भैया ने जो जगह घूमने के लिए बताई थी, वो आने वाली थी…

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आगे एक छोटे से गाओं के बाहर सड़क के किनारे चाय नाश्ते की टपरी सी थी, मेने उसके पास पहुँचकर अपनी बाइक रोकी और कुच्छ नाश्ते के लिए पुछा,

वो गरमा-गरम पालक-मेथी के पकोडे तल रहा था..

हमने उससे पकोडे लिए और खाने लगे… उसके बाद एक-एक चाइ ली जो कुच्छ ज़्यादा सही नही लगी.. अब ले ली थी तो पीनी पड़ी…

चाय पीते-2 मेने उस टपरी वाले से उस जगह के बारे में पुछा..
तो उसने बताया कि यहाँ से आधे किमी के बाद अपने ही हाथ पर एक कच्चा पत्तरीला रास्ता आएगा, उसी से वहाँ पहुँचा जा सकता है…

वो जगह रोड से करीब एक फरलॉंग ही अंदर को है…उसे चाय पकोडे के पैसे देकर हम फिर आगे बढ़ गये..

वो जगह वाकई में रोमांटिक थी.. घने उँचे पेड़ों के बीच एक छ्होटी सी झील जैसी थी, जिसका पानी एक सिरे पर स्थित कोई 15-20 फीट उँची पहाड़ियों से निकल रहा था, और झील में जमा हो रहा था… !

ओवरफ्लो होकर झील का पानी सबसे निचले किनारे से निकल कर जंगलों के बीच जा रहा था…

झील के दोनो किनारों पर उसके समानांतर तकरीबन 30-40 मीटर की चौड़ाई के हरी-हरी घास के मैदान थे… कुल मिलाकर प्रेमी जोड़ों के मज़े करने के लिए ये उत्तम जगह थी.

जब हम वहाँ पहुँचे तो दोपहर के 12-12:30 का समय था, इस वजह से और कोई वहाँ नही था, एक-दो जोड़े थे, वो भी निकलने की तैयारी में थे..

मेने बाइक पेड़ों के बीच खड़ी की और अपने बॅग उठाकर झील के किनारे की तरफ चल दिए… दीदी तो उस जगह को देख कर बहुत एक्शिटेड हो रही थी.

वाउ ! छोटू क्या मस्त जगह है यार ! मेरा तो मन कर रहा है, दो-चार दिन यहाँ से हिलू भी ना…

हमने झील के किनारे घास पर अपने बॅग रख दिए और कुच्छ दूर झील के किनारे-2 घूमने लगे…

रंग बिरंगी छोटी-बड़ी मछलिया.. हमें देख कर किनारे से और गहराई को तैरती हुई भाग जाती.. जो झील के साफ नीले पानी में काफ़ी दूर तक दिखाई देती..

वो एक जगह बैठ कर पानी में हाथ डालकर मछलियो से खेलने लगी…
वो कुच्छ देर दीदी के हाथ से दूर भाग जाती.. और एक जगह ठहर कर उसकी ओर देखने लगती, और फिर पुंछ हिला-हिलाकर इधर-उधर भाग लेती…

जुलाइ-अगुस्त के महीने में भी झील का पानी ठंडा था… कुच्छ देर मछलियो से खेलने के बाद दीदी बोली – भाई मेरा तो इसमें नहाने का मान कर रहा है..

मे – लेकिन दीदी हमें तैरना तो आता नही, अगर पानी गहरा हुआ तो..?

वो – लगता तो नही की ज़्यादा गहरा होगा.. चल धीरे-2 आगे बढ़ते हैं.. ज़्यादा अंदर तक नही जाएँगे.. और वो धीरे-2 पानी में उतरने लगी..

मे अभी भी किनारे पर खड़ा उसे पानी के अंदर जाते हुए देख रहा था..
दीदी काफ़ी अंदर तक चली गयी, फिर भी पानी उसके पेट से थोड़ा उपर तक ही था..

मेने कहा दीदी बस यहीं नहा लो, और आयेज मत जाना.. वो बोली- तू भी आजा ना यार ! साथ मे नहाते हैं.. मज़ा आएगा…

मेने कहा – नही तुम ही नहाओ, मे ऐसे ही ठीक हूँ, तो वो वहीं डुबकी लगाने लगी..

अब वो पूरी तरह भीग गयी थी, डुबकी लगाकर जैसे ही वो खड़ी हुई, उसकी झीने से कपड़े की टीशर्ट उसके शरीर से चिपक गयी और उसकी ब्रा साफ-साफ दिखाई देने लगी..

ब्रा से बाहर झलकते हुए उसके अमरूदो की छटा उसकी टीशर्ट से नुमाया हो रही थी..

उसे देखकर मेरा पप्पू भी मन चलाने लगा…मानो कह रहा हो- अरे यार क्या देखता ही रहेगा भेन्चोद ! कूद पड़ तू भी और ले ले मज़े… मौका है…

मे उसके भीगे बदन के मज़े ले ही रहा था कि उसने फिरसे डुबकी लगाई.. इस बार वो कुच्छ देर तक बाहर नही आई..

साफ पानी में उसका शरीर तो दिख रहा था लेकिन वो उपर नही आ रही थी…. मेरे मन में आशंका सी उठने लगी….

आधे मिनिट से भी उपर हो गया फिर भी वो बाहर नही आई तो मुझे कुच्छ गड़बड़ सी लगने लगी…

तभी दीदी झटके से उपर आई और एक लंबी साँस भरके…अपना एक हाथ उपर करके सिर्फ़ छोटू ही बोल पाई और फिरसे अंदर डूबती चली गयी………

मेने इधर उधर नज़र दौड़ाई, शायद कोई मदद करने वाला हो…लेकिन वहाँ दूर दूर तक ना इंसान ना इंसान की जात, कोई भी नही था…

जब कोई और सहारा ना दिखा, तो मेने ले उपर वाले का नाम, आव ना देख ताव.. अपनी टीशर्ट और पाजामा उतार किनारे पर फेंका और पानी में छलान्ग लगा दी…,

मे तेज़ी से दीदी की ओर बढ़ा…! और जैसे ही उसके पास पहुँचा.., झटके से वो उपर आई, और खिल-खिलाकर मेरे सामने पानी में खड़ी होकर हँसने लगी..

यहाँ पानी उसके गले से थोड़ा नीचे था, माने उसके बूब पानी के अंदर थे…मे डर और झुंझलाहट के मारे काँप रहा था, उसके उपर गुस्सा होते हुए बोला –

दीदी ये क्या हिमाकत है.. पता है मे कितना डर गया था, और तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है..

वो – अरे बुद्धू ! मे तो तुझे भी पाने में बुलाने के लिए नाटक कर रही थी… और खिल-खिलाकर हँसते हुए मेरे उपर पानी उछाल कर मुझे भिगोने लगी..

मे – अच्छा ! तुम्हें मस्ती सूझ रही है रूको अभी बताता हूँ, और मे भी हाथों में पानी भर-भर कर उसकी ओर उच्छालने लगा…

वो बोली – अब तो डुबकी लगाएगा या अभी भी नही..? तो मेने भी सोच लिया कि अब इसको अच्छे से मज़ा चखा ही दिया जाए…

सो मेने पानी में डुबकी लगाई और अंदर ही अंदर उसके पीछे पहुँचा, अपना सर उसकी टाँगों के बीच डाला, उसको अपने कंधे पर उठाकर खड़ा हो गया…

पहले तो वो शॉक लगने से चीख पड़ी, फिर मज़ा लेते हुए मेरे कंधे पर बैठी हवा में अपनी बाहें फैला कर याहू…याहू..हूऊ….. करके चिल्लाने लगी..

जंगल के शांत वातावरण में उसकी कोयल जैसी मीठी आवाज़ पेड़ों और पानी के बीच गूँजकर वापस हमारे कानों से टकरा रही थी..

रामा दीदी तो मस्ती में जैसे पागल ही हो उठी.. और ना जाने कब उसने मेरे कंधे पर बैठे हुए ही अपनी टीशर्ट उतार कर किनारे की तरफ उच्छाल दी..

लेकिन वो किनारे से पहले ही पानी में गिरी और बहकर हमसे दूर जाने लगी…

मे उसको कंधे पर उठाए हुए ही पानी में पीछे की तरफ पलट गया.. च्चपाक्क….

कुच्छ देर हम पानी के अंदर डूबे रहे, लेकिन फिर बाहर आते ही वो मेरी पीठ पर सवार हो गयी और मेरे कंधे पर अपने दाँत गढ़ा दिए…

मेरी चीख निकल गयी, मेने अपना हाथ पीछे ले जाकर उसे पकड़ने की कोशिश की,… तो वो हस्ती हुई किसी मछलि की तरह मेरे हाथ से फिसलकर मेरे से दूर जाने लगी..

मे जब उसे पकड़ने के लिए पलटा, तब पता लगा कि वो मात्र ब्रा में ही थी…

उसके उभार किसी टेनिस की बॉल की तरह एकदम गोल-गोल उसके ब्रा में क़ैद मुझे बुला रहे थे, मानो कह रहे हों कि, आजा बेटा….. गांद में दम है तो हमें मसल के दिखा..

मेरी झान्टे सुलग उठी, और मेने खड़े-खड़े ही उसके उपर जंप लगा दी और उसे पानी के अंदर दबोच लिया…

मेरे जंप मारते ही वो भी बचने के लिए पीछे हटी, जिससे मेरे दोनो हाथ उसकी कमर पर जम गये, मेरी उंगलिया उसके लोवर की एलास्टिक में फँस गयी..

उसने जैसे ही पीछे को तैरने के लिए अपने शरीर को झटका दिया, उसका लोवर उतर कर मेरे हाथों में आ गया… अब वो मात्र अपनी ब्रा और पेंटी में थी…

मेने उसके लोवर को हवा में गोल-2 घूमाकर उसको चिढ़ाया, लेकिन उसपर कोई असर नही हुआ, और हँसती हुई अपनी जीब चिढ़ा कर अंगूठा दिखाने लगी..

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मे फिर एक बार उसको पकड़ने झपटा, तो वो किसी मछलि की तरह मेरे हाथों से फिसल गयी…

हम दोनो पानी में नहाते हुए अधखेलियाँ कर रहे थे… पानी में तैरती मछलिया भी जैसे हमारे खेल में शामिल हो गयी थी,

और वो भी हमारे आस-पास जमा होकर इधर-से-उधर अपनी पुंछ हिला-हिला कर तैर रही थी…

फिर अचानक दीदी उछल्कर मेरी गोद में आ गई, अपनी पतली-2 लंबी बाहें मेरे गले में लपेट दी और पैरों से मेरी कमर को लपेट कर मेरे सीने से लिपट गयी…

स्वतः ही हम दोनो के होठ एक दूसरे से पहली बार जुड़ गये.. और हम दोनो एक लंबी स्मूच में खो गये..

दीदी मेरे होठों को बुरी तरह से झींझोड़ने लगी, मानो वो उन्हें जल्दी से जल्दी खा जाने की फिराक में हो..

मेने भी उसके निचले होठ को अपने मूह में भर लिया और उसके मूह में अपनी जीभ डालने की कोशिश करने लगा…

कुच्छ देर तो उसके मोतियों जैसे दाँतों की दीवार मेरी जीभ को रोकती रही, फिर वो खुल गयी और मेरी जीभ उसके मूह में घुसकर अपनी सहेली के साथ खेलने लगी..

मेरे हाथ उसके 33 के साइज़ के गोल-मटोल सुडौल नितंबों को मसलने लगे… दीदी की आँखें मस्ती में डूबकर लाल सुर्ख हो गयी, और उनमें अब सिर्फ़ वासना ही दिख रही थी…

मेरे हाथ उसके कुल्हों से हटकर उसकी पीठ पर आ गये और जैसे ही मेरी उंगलियों ने उसकी ब्रा के एकमात्र हुक को टच किया, वो शरारत कर बैठी, और उसकी ब्रा भी पानी में तैरती नज़र आने लगी…मेरे हाथ उसके कुल्हों से हटकर उसकी पीठ पर आ गये और जैसे ही मेरी उंगलियों ने उसकी ब्रा के एकमात्र हुक को टच किया, वो शरारत कर बैठी, और उसकी ब्रा भी पानी में तैरती नज़र आने लगी…

नीचे मेरा डंडा फुल फ्लश में अकड़ चुका था और इस समय उसकी गांद और चूत के होठों को सहारा दिए हुए था…

दीदी लगातार उसपर अपनी गांद और चूत के होठों को घिस रही थी… अब उसे अपनी पेंटी भी किसी सौतन की तरह अखरने लगी..

वो मेरी बाहों में पीछे को पलट गयी और अपने नंगे अल्लहड़ कच्चे अमरूद जो पकने के लिए तैयार थे मेरी आँखों के सामने कर दिए…

मेरा मन भी उन्हें खाने के लिए मचलने लगा…

मस्ती के जोरेसे उसके अंगूर के दाने जैसे निपल कड़क होकर मुझे निमंत्रण दे रहे थे…

मेरी चटोरी जीभ कहाँ मानने वाली थी.. और उसके एक अंगूर को बड़े प्यार से बड़ी शालीनता से चाट लिया…………….

ईईईीीइसस्स्स्स्स्स्स्शह………..भाईईईईईईईईईईईई………….आआआहह…..

जोरेसीईए…..चतत्त….ना………प्लेआस्ीईईईईई…………

मे भी उसे तड़पाना चाहता था… सो उसी तरह धीरे से दूसरे अंगूर को भी अपनी जीभ की नोक से जस्ट टच कर दिया…….

ज़ॉर्सीईईईई……….चातत्तत्त…ना.. भेन्चोद्द्द्द्द्द्द्द्द्द……..

दीदी की सहनशक्ति जबाब दे गयी… और उसके मूह से गाली निकल गाइिईई….

मे उसके मूह की तरफ देखता रह गया… और शरारती लहजे में कहा – दीदी अभी कहाँ हुआ हूँ मे भेन्चोद..?

वो – तो जल्दी बन जा ना….! और उसने अपने एक हाथ को मेरे गले से हटा कर, अपनी एक चुचि पकड़ कर मेरे मूह में ठूंस दी..

उसकी चुचि को चूस्ते हुए मे उसकी गांद की गोलाईयों को भी नाप-जोख रहा था…

उसकी पेंटी में कुच्छ चिप-चिपाहट मेरे पेट पर महसूस हो रही थी…उसकी गर्दन पीछे को लटक गयी..

वो तो अच्छा था कि उसके पैरों ने मेरी कमर को कस रखा था…

जल्दी कुच्छ कर ना मेरे भाई… सिसकते हुए कहा उसने…

मे बोला – क्या करूँ दीदी.. कर तो रहा हूँ.. जो तुमने कहा वो…

वो – इसके आगे का… ! अब नही रहा जाता… आअहह… प्लीज़ छोटू… जल्दी से कुच्छ कर वरना मेरी जान ही ना निकल जाए कहीं…

मे उसको उसी पोज़िशन में झील के किनारे पर ले आया वो मेरे गले से लटक कर खड़ी हो गयी..

तो मेने उसकी पेंटी नीचे खिसका दी.. और उसकी जांघों के बीच बैठ गया…

पहली बार मेने उसकी प्यारी मुनिया के दर्शन किए, जो अपने बंद होठ किये हल्के बलों के बीच सूरज की तेज रोशनी में किसी कली की तरह चमक रही थी..

मेने दीदी की गोल-सुडौल जांघों जो अभी तक ज़्यादा मांसल नही हुई थी, और उन दोनो के बीच थोड़ा सा गॅप था..

हल्की उभरी हुई उसकी मुनिया को देखते हुए चूम लिया.. और उसके होठों को खोलकर, अंदरूनी हिस्से को चाटने लगा…

वो अपनी आँखें बंद किए खड़ी मेरे बालों को अपनी उंगलियों से सहला रही थी…

खुले आसमान के नीचे हम दोनो बिना किसी परवाह के अपनी वासना के वशीभूत एक दूसरे के उन्माद को शांत करने के प्रयास में लगे थे..

हमें ये भी डर नही था कि कोई इधर आ भी सकता है…

हालाँकि जुलाइ की उमस भरी दोपहरी में इस बात के कम ही चान्स थे.. फिर भी एक आशंका मन में ज़रूर थी.. सो मेने अपना सर उठाकर दीदी से कहा-

दीदी ! यहाँ कोई आ गया तो…

वो जैसे सपने से जागी हो.. और झल्लाकर बोली – तू मार खाएगा अब मेरे हाथ से..

साले कुत्ते… मे मरी जा रही हूँ.. और तुझे ऐसी गान्ड फट बातें सूझ रही हैं…

उसके मूह से ऐसी बातें सुन मुझे हँसी आ गई और मेने जीभ निकाल कर उसकी रस से भरी कुप्पी के उपर फिराई…

सस्स्स्स्स्स्स्स्सिईईईईईईईईईई…….आआआआआअहह…..आआनन्नह…चत्ले आक्चीई…सीए…हाईए…रीई.. थोड़ा खोल लीयी… उसीए… आहह.. आईसीई…हिी…उईई…माआअ….हांननगज्गग…..

मेने उसकी मुनिया की फांकों को खोल कर उसकी अन्द्रुनि दीवार से जीभ लगा कर रगड़ दी…

मेरी खुरदूरी जीभ के घर्षण से वो बिल-बिला उठी… और उसने मेरा सर कसकर अपनी मुनिया के मूह से सटा दिया और अपने पंजों पर खड़ी हो गयी..

मेरी जीभ की नोक जैसे ही उसके छोटे से छेद में घुसने की कोशिश करती, वैसे ही वो वापस आजाती…

उत्तेजना के कारण उसकी क्लिट निकल कर बाहर आ गया… जिसे मेने जीभ से चाट कर अपने होठों से दबा लिया…और अपनी एक उंगली से उसके छेद के उपर मसल्ने लगा….

उफफफफफफफफ्फ़….कचूततुउउ…म्मेरीए…भाइईइ….मईए….आअहह….गाइिईईई…

और किल्कारी मारते हुई वो झड़ने लगी…मे उसकी कोरी गागर का सारा पानी पी गया, जो किसी अमृत से कम नही था… मेरे लिए…

अपनी बड़ी बेहन का अमृत पीकर मे धनी हो गया…. वो खड़ी खड़ी हाँफ रही थी… उसकी टाँगें काँपने लगी थी…

फिर वो बोली- मुझे कहीं छाया में ले चल… अब मुझसे धूप में खड़ा होना मुश्किल हो रहा है…

मेने उसे गोद में उठाया और पेड़ों की छाया की तरफ ले चला………

मेने एक घने पेड़ की छाया के नीचे उसे घास पर उतार दिया… और अपना अंडरवेर नीचे करके बोला – दीदी ! तुम भी थोड़ा इसे प्यार करो ना !

उसने भी आज पहली बार उसे बिना कपड़ों के देखा था, वो अपने पंजों पर मेरे सामने बैठ गयी और मेरे लंड को हाथ में लेकर सहलाते हुए बोली- छोटू.. ये तो बहुत बड़ा और मोटा भी ….!

मे – तुम्हें अच्छा नही लगा ? तो वो तपाक से बोली – अच्छा तो है.. पर …. ये मेरी उसमें घुस पाएगा…?

मेने कहा – किस्में घुसने की बात कर रही हो..? तो वो सकपका गयी.. और झिझकते कुए बोली – मेरी उसमें…

तुम लोग क्या कहते हो उसको.. जिससे हम लड़कियाँ सू सू करती हैं…

मे – मुझे क्या पता.. तुम किससे सू सू करती हो…?

वो – तू बहुत बदमाश होता जा रहा है… अरे भाई.. वो..सी.च.चुत…बस अब बता.. घुस जाएगा…

मे – मुझे क्या मालूम.. मेने कभी घुसाया है क्या तुम्हारी चूत में जो मुझे पता हो…? और अगर तुम्हें डाउट हो तो रहने दो…

उसने मेरे कूल्हे पर एक ज़ोर की चपत मारी.. और मेरे लंड को मसल कर बोली – अब तो चाहे जो भी हो… इसे तो मे आज लेकेर ही रहूंगी अपनी चूत में.. भले ही साली फट ही क्यों ना जाए…!

और उसे आगे-पीछे करने लगी, मेरा लंड तो उसके कोमल हाथ में आते ही ठुमके लगा रहा था,

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