एक दिन बाबूजी अकेले दोपहर में ट्यूबवेल के कमरे में खाना खा कर लेटे हुए थे, तभी मन्झ्ली चाची वहाँ आ गयी…
बाबूजी चारपाई पर अपनी आँखों के उपर बाजू रख कर लेटे हुए सोने की कोशिश कर रहे थे,
दरवाजे पर आहट पाकर उन्होने अपने बाजू को हटाकर देखा तो मन्झली चाची सरपे पल्लू डाले उसका एक कोना अपने दाँतों में दबाए खड़ी थी….
बाबूजी सिरहाने की ओर खिसकते हुए बोले… आओ..आओ प्रभा…कोई काम था…?
वो – नही जेठ जी… काम तो कुच्छ नही था, बस चली आई देखने… शायद आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो.. तो.. पुच्छ लूँ..
इतना बोलकर वो चारपाई के नीचे बैठ गयीं…
बाबूजी – अच्छा किया, तुम आगयि…, काम तो कुच्छ नही था, अभी खाना ख़ाके लेटा ही था…
अब कोई बोल- बतलाने को तो था नही… सो लेट गया…, तुम बताओ सब ठीक ठाक से चल रहा है…?
वो – हां ! आपकी कृपा है……., लाइए आपके पैर दबा दूं.. ये कहकर वो चारपाई की तरफ सरक कर नीचे से ही उन्होने बाबूजी की पीड़लियों पर अपने हाथ रख दिए…
बाबूजी ने उनका हाथ पकड़ कर रोकने की कोशिश की, तो वो बोली – लेटे रहिए, बड़ों की सेवा करने से मुझे आशीर्वाद ही मिलेगा…
उन्होने अपना हाथ हटा लिया, और चाची उनके पैर दबाने लगी…
चारपाई थोड़ी उँची थी, और चाची ज़मीन पर अपनी गान्ड टिकाए बैठी थी, सो उन्हें हाथ आगे करके पैर दबाने में थोड़ा असुविधा हो रही थी.. तो वो बोली –
जेठ जी आप थोड़ा मेरी ओर को आ जाइए, मेरे हाथ अच्छे से पहुँच नही पा रहे..
बाबूजी खिसक कर चारपाई के किनारे तक आगये, अब चाची अच्छे से उनके पैर दबा पा रही थी…
हाथ आगे करने से चाची का आँचल उनके सीने से धलक गया, और उनकी चुचियाँ खाट की पाटी से दबने के कारण ब्लाउस से और बाहर को उभर आई,
चौड़े गले के ब्लाउस से उनके खरबूजे एक तिहाई तक दिखने लगे…
बाबूजी उनसे बातें करते हुए जब उनकी नज़र चाची की चुचियों पर पड़ी, तो वो उनकी पुश्टता को अनदेखा नही कर सके, और उनकी नज़र उनपर ठहर गयी…
अब तक उनके मन में कोई ग़लत भावना नही थी चाची के लिए, लेकिन उनकी जवानी की झलक पाते ही, उनके 9 इंची हथियार में हलचल शुरू हो गयी…और वो उनके पाजामे में सर उठाने लगा…
चाची उनके पैर दबाते – 2 जब जांघों की तरफ बढ़ने लगी, तो उनके हाथों के स्पर्श से उन्हें और ज़्यादा उत्तेजना होने लगी, अब उनका मूसल पाजामे के अंदर ठुमकाने लगा…
चाची की नज़र भी उसपर पड़ चुकी थी, और वो टक टॅकी गढ़ाए उसे देखने लगी… मूसल अपना साइज़ का अनुमान बिना अंडरवेर के पाजामे से ही दे रहा था…
हाए राम…. क्या मस्त हथियार है जेठ जी का… चाची अपने मन में ही सोचकर बुदबुदाते हुए अपनी चूत को मसल्ने लगी…
बाबूजी का लंड निरंतर अपना आकार बढ़ाता जा रहा था, जिसे देख-2 कर चाची की मुनिया गीली होने लगी…
उनकी ये हरकत कहीं उनके जेठ तो नही देख रहे, ये जानने के लिए उन्होने एक बार उनकी तरफ देखा, जो लगातार उनकी चुचियों पर नज़र गढ़ाए हुए थे…
बाबूजी को अपने सीने पर नज़र गढ़ाए देख कर उनकी नज़र अपने उभारों पर गयी, और अपनी हालत का अंदाज़ा लगते ही… वो शर्म से पानी-2 हो गयी…
अभी वो अपने आँचल को दुरुस्त करने के बारे में सोच ही रही थी.., कि फिर ना जाने क्या सोच कर वो रुक गयी, और उसके उलट अपने शरीर को उन्होने और आगे को करते हुए अपना आँचल पूरा गिरा दिया…
उनके आगे को झुकने से उनकी चुचियाँ और ज़्यादा बाहर को निकल पड़ने को हो गयी…लेकिन उन्होने शो ऐसा किया जैसे उन्हें इस बारे में कुच्छ पता ही ना हो..
उनके हाथ अब उपर और उपर बढ़ते जा रहे थे… और एक समय ऐसा आया कि उनका हाथ बाबूजी के झूमते हुए लंड से टकरा गया…
चाची का हाथ अपने लंड से टच होते ही बाबूजी के शरीर में करेंट सा दौड़ गया…, उन्होने सोने का नाटक करते हुए अपना एक हाथ चाची की चुचियों से सटा दिया…
अब झटका लगने की बारी चाची की थी, उन्होने बाबूजी की तरफ देखा, तो वो अपनी आँखें बंद किए पड़े थे, फिर उनके हाथ को देखा, जो उनकी चुचियों से सटा हुआ था…
उन्होने धीरे से उनके हाथ को अपनी चुचियों पर रख दिया, और उनके लंड को आहिस्ता- 2 सहलाने लगी…
बाबूजी आँखें बंद किए हुए, आनद सागर में डूबते जा रहे थे…चाची अपनी चूत को अपने पैर की एडी से मसल रही थी…
बाबूजी अपनी आँखें बंद किए हुए ही बोले – प्रभा, तुम भी चारपाई पर ही बैठ जाओ, तुम्हें परेशानी हो रही होगी…नीचे से हाथ लंबे किए हुए..
बाबूजी की आवाज़ सुनते ही चाची झेंप गयी…, उन्होने बाबूजी का हाथ अपनी चुचियों से हटा कर चारपाई पर रख दिया, और उठ कर खड़ी हो गयी…!बाबूजी ने अपनी आँखें खोल कर चाची की ओर देखा और बोले – जा रही हो…?
चाची ने कोई जबाब नही दिया, वो अपने पल्लू को अपने दाँतों से चबाती रही…फिर कुच्छ सोच कर वो दरवाजे की तरफ बढ़ गयी…,
बाबूजी ने अपनी आँखें बंद कर ली……
चाची ने दरवाजे के पास पहुँच कर बाहर नज़र डाली, फिर धीरे से उसे अंदर से बंद करके कुण्डी लगा दी, और वापस बाबूजी की चारपाई के पास आकर खड़ी रही…
वो अपनी आँखें बंद किए हुए सोने की कोशिश कर रहे थे, उनका लंड भी अब धीरे – 2 सोने की कोशिश कर रहा था, कि तभी…..
चाची आहिस्ता से चारपाई पर बैठ गयी… और उन्होने उनके लंड को कस कर अपनी मुट्ठी में जकड लिया…
बेचारा अभी सही से बैठा भी नही था, कि फिरसे खड़ा होना पड़ा…..
बाबूजी ने झटके से अपनी आँखें खोल दी… और वो उनकी तरफ देखने लगे…
क्या हुआ प्रभा…गयी नही…? बाबूजी बोले…
वो उनके लंड की तरफ इशारा करते हुए बोली – आपके इसने मुझे जाने ही नही दिया जेठ जी… मुझे अब इसकी ज़रूरत है…देंगे ना ?
बाबूजी – तुम्हारी मर्ज़ी… जब इसने तुम्हें रोक ही लिया है… तो फिर लेलो…
इतना सुनते ही चाची ने उनका पाजामा खोल दिया, और उसे अपने हाथ में लेकर मुठियाने लगी… वो फिरसे फन उठाने लगा…
बाबूजी का मस्त तगड़ा लंड देख कर चाची की चूत, जो पहले ही पनिया गयी थी… और ज़ोर से बहने लगी, उन्होने उसे अपने मूह में भर लिया…
बाबूजी ने भी उनके कड़क मोटे-2 चुचों पर कब्जा जमा लिया और लगे मीँजने…
अहह…. जेठ जी धीरे मसलो……
कुच्छ ही देर में कमरे में तूफान सा आगया, दोनो के कपड़े बदन से अलग होकर एक तरफ को पड़े थे…
फिर चाची अपनी पतली सी कमर और मोटी गान्ड लेकर बाबूजी के लंड पर बैठती चली गयी…
अपने होठों को मजबूती से कस कर धीरे – 2 वो पूरे 9″ के सोट को अपनी चूत में घोंट गयी..और हान्फ्ते हुए बोली….
हइईई……..दैयाआअ……जेठ जी कितना तगड़ा लंड है आपका… अब तक कहाँ छुपा रखा था…?
हइई…रामम्म….. कितना अंदर तक चला गया… और वो धीरे – 2 उसके उपर उठक बैठक करने लगी…
बाबूजी भी उनकी पतली कमर को अपने हाथों में जकड कर नीचे से धक्का मारते हुए बोले….
अरे प्रभा रनीईइ… ये तो यहीं था मेरे पास, तुम ही अपनी मुनिया रानी को घूँघट में छुपाये थी…. !
ससिईईईईई….आअहह….जेठ जी….अबतक इस पर किसी और का कब्जा था, तो मे क्या कर्तीईइ…उउउहह…..
आअहह…..प्रभा…सच में तुम्हारी चूत बड़ी लाजबाब है, मेरा लंड एकदम कस गया है… उस मादरचोद चंपा का तो भोसड़ा बन चुका है….
बाबूजी के मोटे तगड़े सोट की कुटाई, चाची की ओखली ज़्यादा देर तक नही झेल पाई…
और वो अपने मुलायम गोल-2 चुचियों को बाबूजी की बालों भारी चौड़ी छाती से रगड़ती हुई झड़ने लगी…
उनके कड़क कांचे जैसे निप्प्लो के घर्षण से बाबूजी भी उत्तेजना की चरम सीमा तक पहुँच गये….
एक लंबी सी हुंकार मारते हुए उन्होने नीचे से चाची को उपर उछाल दिया और अपनी मलाई से उनकी ओखली को भर दिया……
कुच्छ देर का रेस्ट लेकर वो दोनो फिरसे एक बार जीवन आनद में लौट गये, और अपनी जिंदगी भर का चुदाई का अनुभव एक दूसरे के साथ अजमाते हुए… चुदाई में लीन हो गये…
उस दिन के बाद चाची बाबूजी के लंड की दीवानी हो चुकी थी… मौका लगते ही वो उसे अपनी गरम चूत में डलवाकर खूब मस्ती करती….
इस तरह से बाबूजी को एक नयी चूत का स्वाद मिल गया था, और चाची को नये लंड के साथ – 2 कुच्छ मदद….. !
उधर बड़े चाचा और चाची जल भुन रहे थे, उनकी मज़े से आरहि कमाई जो बंद हो गयी थी,
यही नही, आने वाले समय में पानी और बगीचे वाली राहत भी बंद होने वाली थी…
लेकिन वो अब तक काफ़ी पैसा बाबूजी से ऐंठ चुके थे, तो हाल फिलहाल उनपर कोई असर पड़ने वाला नही था…लेकिन अब चाची का भी ज़्यादातर समय खेतों में ही गुज़रता था…
घर पर आशा दीदी ही देख भाल करती थी.. वो और रामा दीदी इस बार ग्रॅजुयेशन फाइनल एअर के एग्ज़ॅम देने वाली थी…
बाबूजी वाली बात उनके बच्चों को पता नही थी… ! नीलू भी ग्रॅजुयेशन फाइनल में था और वो रेग्युलर शहर में रह कर पढ़ रहा था…
एक दिन मुझे कॉलेज से लौटते वक़्त आशा दीदी घर के बाहर ही मिल गयी, जो शायद हमारे घर से ही आरहि थी, मुझे देखते ही वो चहकते हुए बोली…
आशा – ओये हीरो..! कहाँ रहता है आजकल…? अब तो तेरे दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं.. थोड़ा बहुत इधर भी नज़रें इनायत कर लिया करो भाई….!
मे – ऐसा कुच्छ नही है दीदी.. बस थोडा अब मेने भी घर खेती के काम में हाथ बँटाना शुरू किया है.. इसलिए थोड़ा समय कम मिलता है और कोई बात नही है…
आप बताइए… सवारी किधर से चली आरहि है..?
वो – रामा के पास गयी थी यार ! थोड़ा नोट्स बनाने थे मिलकर… चल आजा थोड़ा बैठकर गप्पें लगते हैं.. अकेली घर में बोर होती हूँ यार !
मे उनके साथ साथ उनके घर आगया… आकर उनके वरामदे में पड़े तखत पर बैठ गये,
वो मेरे साथ सट कर बैठ गयी और पालती मारकर अपना घुटना मेरी जाँघ के उपर रख लिया…
वो – छोटू ! भाई तुझे अपने साथ बिताए पुराने दिन याद आते हैं कि नही..
मे – हां ! क्या मस्ती किया करते थे, हम मिलकर एक दूसरे के साथ.. बड़ा मज़ा आता था नही..!
वो मेरे कंधे और बाजू को सहलाते हुए बोली – हूंम्म…..! फिर मेरे मसल्स को दबा कर बोली.. भाई, तेरे तो मस्त डोले-सोले बन गये है.. एकदम गबरू जवान हो गया है यार…
मे – क्या दीदी आप भी ! नज़र लगाओगी क्या मुझे..? वैसे, पहले से तो आप भी थोड़ा मस्त हो गयी हो.. उनके आमों पर नज़र डालते हुए मेने चुटकी ली…
वो मेरी नज़रों को भांपती हुई बोली – कहाँ यार, इतना भी नही हुआ है..! अच्छा एक बात बता.. तेरे कॉलेज में लड़कियाँ भी पढ़ती हैं..?
मे – हां पढ़ती तो हैं ! क्यों..?
वो मेरी आँखों में देखते हुए बोली – फिर तो लगता है.. तुझे देख कर आहें ही भरती रह जाती होंगी.. है ना ! क्योंकि तू तो किसी को घास ही नही डालता…
मे – ऐसा कुच्छ नही है..! कोई आहें बाहें नही भरती.. वैसे घास ना डालने वाली बात क्यों कही आपने…?
उसने शर्म से अपनी नज़रें झुका ली, फिर थोड़ा मेरी तरफ देख कर बोली – यहाँ भी तो तू किसी को घास नही डालता .. इसलिए कहा है..
मेने हँसते हुए कहा – यहाँ मेरी घास की किसको ज़रूरत पड़ गयी..?
वो अपने उरोजो को मेरे बाजू से सटाते हुए बोली – अगर ज़रूरत हो तो क्या मिलेगी…?
मेने उसके चेहरे की तरफ देखा, उसकी आँखों में प्रेम निमंत्रण साफ-साफ दिखाई दे रहा था..
मेने भी उसकी कमर में हाथ डालते हुए अपने से और सटाया और बोला – कोई माँगे तो सही.. मे तो डालने के लिए कब्से तैयार हूँ..
मेरी बात सुनकर आशा दीदी की आखों में चमक आगयि, और उसने सारी शर्म-झिझक छोड़ कर मेरे गले में अपनी बाहें लपेट दी,
मेने भी अपने होठों को उसकी तरफ बढ़ाया.. तो उसने झट से उन्हें चूम लिया…
गेट खुला है दीदी.. मेने उसे गेट की तरफ इशारा करते हुए कहा.. तो वो भाग कर गेट बंद करने चली गयी… इतने में मे तखत से उठ खड़ा हो गया..
वो वापस आकर मेरे गले में झूल गयी और मेरे होठों पर टूट पड़ी.. मेने भी उसके मस्त उभरे हुए कुल्हों को पकड़ कर मसल दिया..
उसकी गान्ड एकदम कड़क सॉलिड गोल-गोल, मानो दो वॉलीबॉल आपस में जोड़ दिए हों…वो वापस आकर मेरे गले में झूल गयी और मेरे होठों पर टूट पड़ी.. मेने भी उसके मस्त उभरे हुए कुल्हों को पकड़ कर मसल दिया..
उसकी गान्ड एकदम कड़क सॉलिड गोल-गोल, मानो दो वॉलीबॉल आपस में जोड़ दिए हों…
गान्ड को अच्छे से मसल्ते हुए मेरे हाथ उसके कुर्ता के अंदर चले गये… और मे अब उसकी कुँवारी चुचियों जो कि एक दम मस्त उठी हुई थी को ब्रा के उपर से ही मसलने लगा…
अहह…………भाईईईईईईई…..धीरीए करना यार……दुख़्ते हैं..मेरे..
उफफफफफफफ्फ़…..दीदी…क्या मस्त आम हैं…तेरे.. मन करता है, कच्चे ही खा जाउ…
5 मिनिट हम यूँही खड़े -2 मस्ती लेते रहे, जिससे दोनो के अंदर की आग बुरी तरह से भड़क उठी…..
मेने फुसफुसाकर उसके कान में कहा – दीदी पहले कभी ये सब किया है..?
वो झिझकते हुए बोली – हां ! अपने मामा के लड़के के साथ एक बार किया था..
लेकिन पूरा नही हो पाया था.. वो साला हरामी डरपोक बहुत था.. तो मेरे चीखते ही भाग लिया… हहहे…
उसकी बात सुनकर मुझे भी हसी आगयि और बोला – तो इसका मतलब तुम्हारी सील पूरी तरह नही टूट पाई…
वो – थोड़ा सा खून तो निकला था, अब पता नही.. लेकिन तुम ये सब क्यों पुच्छ रहे हो..?
तू अपना काम कर यार ! बहुत मज़ा आ रहा है, ऐसी बातें करके खराब मत कर.. प्लीज़…
मे – यहीं करना है या अंदर कमरे में चलें.. तो वो मेरा बाजू पकड़ कर कमरे में खींच कर ले गयी, और मुझे पलंग पर धक्का दे दिया.. फिर मेरे उपर आकर मेरी पॅंट को खोलने लगी…
उसकी चुदने की ललक देख कर मुझे हँसी आगयि.., वो मेरी ओर देख कर बोली – हंस क्यों रहे हो.. ?
मे – बड़ी जल्दी है तुम्हें मेरा लंड लेने की..
सीधा लंड शब्द सुनकर उसके गाल लाल हो गये.. और झूठा गुस्सा दिखाकर मेरे सीने में हल्के से मुक्का मार कर बोली – कितना गंदा बोलता है तू… बेशर्म कहीं का…!
मे – लो कर लो बात.. कपड़े मेरे तुम उतार रही हो.. बेशर्म मे हो गया.. वाह भाई वाह… उल्टा चोर कोतवाल को डाँटदे… हहेहहे….
शर्म से उसने अपने हाथ रोक कर अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया..
मेने उसकी गान्ड सहलाते हुए कहा – दीदी ! शर्म ही करती रहोगी या कुच्छ और भी करना है….
मेरी बात सुनकर उसने झट से मेरा पॅंट उतार दिया.. और मेरे उपर बैठ कर मेरे होठ चूसने लगी..
मेने उसकी कमीज़ में हाथ डाल दिया और ब्रा के उपर से उसके 33+ साइज़ के बोबे अपने हाथों में लेकर मसल दिए…
अहह… भाई… थोड़ा आरामम्म सीई…… इसस्शह… और अपनी चूत को मेरे लंड के उपर रगड़ने लगी.. इतनी देर में उसकी आधी-फटी चूत रस बहाने लगी..
मेने उसके कुर्ते को उसके सर के उपर से निकाल दिया और जैसे ही सलवार के नाडे पर हाथ लगाया… तो उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया…
मे – क्यों नही करना है क्या..? उसने झट से अपना हाथ हटा लिया.. मेने उसका नाडा खीच दिया और पैर के सहारे से उसकी सलवार खिसका कर पैरों तक कर दी..
अब वो पिंक कलर की ब्रा और पेंटी में मेरे सामने थी…
उसके होठों को चूमते हुए मेने उसके आमो को अपने हाथों में कस लिया.. और उनसे रस निकालने की नाकाम कोशिश करने लगा…..
पतली कमर और पेट के अलावा, उसके चुचे और गान्ड परफेक्ट शेप में थे…
फिर मेने उसे अपने नीचे लिया और अपनी टीशर्ट निकाल कर उसपर छा गया..
ब्रा को उसके शरीर से अलग करके उसकी चुचियों को चूसने लगा.. वो मस्ती में हाए-2 करके रस बहाने लगी..
मुझे जल्दी से चोद अंकुश… अब और इंतेज़ार नही कर सकती जानू…!उसकी आतूरता देख कर मेने भी देर करना सही नही समझा और उसकी पेंटी उतार कर उसके उपर छाता चला गया…!
उसकी चूत लगातार रस बहा रही थी.. चूत के होठों को चौड़ा करके अपने लाल लाल चौबातिया गार्डन के सेब जैसे सुपाडे को उसके छेद से भिड़ा दिया..
और एक हल्का सा धक्का देते ही पूरा सुपाडा उसकी गीली चूत में समा गया…
आईईईईईईईईईईईई….. मररर्र्ररर….गाइिईई….रीईईई….माआआआआ…. उफफफफ्फ़…भाईईईई…प्लेआस्ीईई….रुक्क्क…जाआ…
मेरे मूसल जैसे लंड को वो सह नही पाई.. और मेरे सीने पर हाथ रख कर अपने उपर से धकेलने लगी…
मेने उसके होठों को चूमते हुए कहा… दीदी.. थोड़ा झेल ले.. ये कहकर मेने थोड़ा अपनी गान्ड को और दबा दिया…
आधे से ज़्यादा लंड उसकी चूत में और सरक गया…
बहुत बड़ा जालिम है तू… थोड़ा साँस तो लेने दे…यार ! मर जाउन्गि…
आधे लंड को उसकी कसी हुई चूत में डाले, मे चुचियों को मसल्ने लगा, उसके कंचे जैसे कड़क हो चुके निप्प्लो को मरोडते हुए, एक और धक्का मार दिया.. वो कन्फ्यूज़ हो गयी… इस बार दर्द चुचियों में हुआ या चूत में.
पूरा लंड चूत में फिट हो गया…., उसकी अधूरी सील पूरी तरह टूट गयी थी….
वो हान्फ्ते हुए बोली – आहह….बहुत बड़ा है तेरा…. मेरी तो दम निकल गया होता….उउउफफफफफफफफ्फ़…….माआ…. आहह…..!
थोड़ा रुक, साँस लेने दे मुझे….मेने कुच्छ देर उसके पेट और चुचियों को सहलाया, पुचकार्ते हुए मेने अपने धक्के देने शुरू किए…
थोड़ी देर में ही वो भी मज़े में आगयि, तो नीचे से अपनी गान्ड उच्छाल – 2 कर चुदने लगी..
आहह………..भाई….चोद मुझे….और ज़ॉर्सीई….हाआंणन्न्….हाईए….फाड़ दे मेरी चूत को…बड़ा मज़ा आ रहा है….इस्शह….
आशा फुल मस्ती में अपने कमर उठा – उठा कर बड़बड़ाती हुई चुदने लगी…
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उसने अपनी एडीया मेरी गान्ड के दोनो तरफ से कस दी….और बुरी तरह झड़ते हुए मेरे सीने से चिपक गयी…
अब मेने उसको अपने गले से चिपकाए हुए पलंग से उठा कर दीवार के सहारे खड़ा कर दिया, और पीछे खड़े होकर, उसकी वेल शेप्ड गान्ड को चाटने लगा..
आशा दीदी फिरसे गरम होने लगी, और पलट कर मेरे होठों पर टूट पड़ी…
मेने उसकी पीठ पर अपने हाथ का दबाब डालकर उसको दीवार से टिका दिया, जिसकी वजह से उसकी गान्ड पीछे को हो गयी…
मेने पीछे से अपना लंड उसकी ताज़ा झड़ी चूत के मूह पर टिकाया, और एक ज़ोर का झटका अपनी कमर को दिया…
मेरा लंड सर्र्र्र्र्ररर… से उसकी गीली चूत में चला गया… आशा ने अपने होठ कस लिए और सारे दर्द को पी गयी…
मे उसकी पीठ से चिपक कर उसे दनादन धक्के लगा कर चोदने लगा… आशा दीदी भी अपनी गान्ड को पीछे धकेलने लगी… हम दोनो ही बुरी तरह से चुदाई में लगे हुए थे…
आख़िरकार 20-25 मिनिट की चुदाई के बाद मेने भी अपनी पिचकारी उसकी अध्कोरि चूत में छोड़ दी…..आशा भी ऊँट की तरह गर्दन उठाकर फिर एक बार और झड गयी….
दोनो की साँसें धोन्कनि की तरह चल रही थी….
आशा दीदी आज मेरा लंड लेकर बेहद खुश थी, मे भी अपना पुराना हिसाब चुकता करके अपने घर आगया………..
आशा दीदी की अधखुली चूत को अच्छी तरह से खोलने के बाद, मे जैसे ही घर पहुँचा… तो देखा पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ है…
भाभी के कमरे में गया तो वो दोनो माँ-बेटी गायब, दीदी को आवाज़ दी, कोई जबाब नही….फिर मेने अपने कमरे में जाकर कपड़े चेंज करने लगा..
बाथरूम में जाकर अपने लौडे को साफ किया जिसपर अभी तक आशा दीदी की चूत का खून मिश्रित चूतरस लगा हुआ था…
मेने अपना अंडरवेर उतार कर बाथरूम में ही डाल दिया, और एक खाली शॉर्ट पहन लिया..,बाथरूम में जाकर अपने लौडे को साफ किया जिसपर अभी तक आशा दीदी की चूत का खून मिश्रित चूतरस लगा हुआ था…
मेने अपना अंडरवेर उतार कर बाथरूम में ही डाल दिया, और एक खाली शॉर्ट पहन लिया..,
बाहर आकर आल्मिरा से टीशर्ट निकाली ही थी कि पीछे से मुझे किसी की नरम-नरम बाहों ने कस लिया…
मेने उन हाथों को पकड़ कर अपनी कमर से हटाया, और बाजू पकड़ कर आगे को किया… देखा तो रामा दीदी खड़ी मुस्करा रही थी…
उसने इस समय मात्र उपर एक पतली सी टीशर्ट और नीचे एक जीन्स का शॉर्ट पहना हुआ था…
सामने आकर उसने मेरे गले में अपनी बाहें डालकर मेरे होठों पर अपने होठ चिपका दिए..
उसके गोल-गोल चुचियाँ मेरे सीने से दब गयी… मेने उसके कंधों को पकड़ कर अपने से अलग किया.. और पुछा – दीदी ! भाभी कहाँ हैं ?
वो छोटी चाची के यहाँ उनकी तबीयत जानने गयी हैं..उसने जबाब दिया.
मे – इसलिए तुम मौके का फ़ायदा उठाना चाहती हो क्यों..?
वो – हहेहहे… हां तो उसमें क्या..? कभी-2 थोड़ा बहुत मज़ा तो कर सकते हैं ना ! प्लीज़ भाई जल्दी से कर्दे ना भाभी के आने से पहले..
मे – क्या कर दूं..?
वो –ओफ़्फूओ.. तू भी ना..! जान बूझकर हमेशा तंग करता है मुझे…
चल अब बातें मत बना और जल्दी से मेरी खुजली मिटा दे यार !.. आज बहुत मन कर रहा है.. प्लीज़…!
इतना कहकर वो फिरसे मेरे उपर चढ़ने लगी… मेने उसके अमरूदो को जोरे से मसल दिया…
सीईईई… धीरी… आराम से कर ना यार !..ये कहीं भागे जा रहे हैं..?
मे मुश्किल से आधे घंटे पहले ही एक सील तोड़कर आया था, मेरा लंड अभी भी थोड़ा पहली वाली नयी चूत की गर्मी से आकड़ा हुआ था..
और यहाँ एक और कमसिन चूत सामने थी.., जिसकी खुश्बू सूंघ कर वो फिरसे अपनी औकात में आ गया…
मेने झट-पट उसके पीछे जाकर उसका टॉप उपर करके निकाल दिया, बिना ब्रा के उसके बूब्स किसी स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह हिल-हिल कर बाहर आगये…
टॉप एक तरफ को उच्छल कर उसके चुचे चूसने लगा… वो भी उतावली होकेर गान्ड उचका-उचका कर चुसवाने लगी…
कुच्छ देर उसकी चुचियों को चूसने के बाद मेने उसको पूरी तरह नंगा कर दिया और अपने लंड की तरफ इशारा करके कहा….
दीदी ! लगे हाथ अब ज़रा तुम भी इसकी सेवा करदो…
वो मेरे डंडे जैसे खड़े लंड के आगे बैठ गयी, और उसे गडप से अपने मूह में भर कर लॉलीपोप की तरह चूसने लगी…
कुछ देर लंड चुसवाने के बाद मेने उसे अपने पलंग पर धकेल दिया और चढ़ गया उसके उपर…
पहले धक्के में ही उसकी अह्ह्ह्ह… निकल गयी.. फिर धीरे-2 आराम से मेने पूरा लंड उसकी चूत में डाल दिया, और हल्के – 2 धक्के मारने लगा.
हम दोनो ही अब लय में आते जा रहे थे,…
मे कुच्छ देर पहले ही एक चूत चोद कर आया था, सो मेरा माल निकलने में समय लगने वाला था…
करीब आधे घंटे भी ज़्यादा देर तक, मे उसको अलग-2 तरीकों से चोदता रहा…
इतनी देर में वो 2-3 बार अपना पानी छोड़ चुकी थी… आख़िर मेने भी अपना गाढ़ा-गाढ़ा दही उसकी चुचियों और मूह पर उडेल दिया…
वो उसको प्यार से अपनी उंगली पर लेकर चाटने लगी, और वाकई को अपने अमरुदों पर माल लिया… !
फिर उठकर बाथरूम में जाकर अपने शरीर को सॉफ किया और कपड़े पहन कर मेरे लिए चाय बनाने चली गयी…दो-दो चुतो का स्वाद लेने के बाद लंड महोदय तो बड़े खुश थे, लेकिन मुझे कुच्छ थकान सी होने लगी,
सो चाय पीकर मे सो गया… और सीधा शाम को 5 बजे ही उठा…
उठकर आँगन में पहुँचा तो वहाँ भाभी रूचि के साथ खेल रही थी, दीदी भी उनके साथ शामिल थी..
रूचि अब चलने और बोलने लगी थी… वो कभी-2 ऐसी बातें करती कि हम सब हँसते-हँसते लॉट पॉट हो जाते…
मुझे देखते ही रूचि चिल्लाई – चाचू आ गये.. मे तो चाचू के साथ ही खेलूँगी..
और अपने छ्होटे-2 पैरों पर भागती हुई मेरी तरफ आई, मेने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया…
उसके गाल पर एक पप्पी करके बोला – अले मेला प्याला बच्चा… चाचू के साथ खेलेगा…?
रूचि – हां चाचू..! मम्मी और बुआ तो मुझे चिढ़ाती हैं.. अब इन दोनो के पास कभी नही जाउन्गा…
भाभी बोली – अच्छा चाचा की चमची.. हमारी शिकायत करती है… ठहर, अभी तुझे बताती हूँ..
भाभी जैसे ही उसकी तरफ थप्पड़ दिखा कर आई, मे उसे लेकर घूम गया, और वो उन्हें अंगूठा दिखा कर चिढ़ाने लगी…
ऐसे ही बच्ची के साथ थोड़ा खेलने के बाद भाभी मेरे से बोली – क्या बात है लल्लाजी… आज तो बहुत सोए…!
दीदी की तरफ देखते हुए बोली – कुच्छ महंत वाला काम किया था क्या..?
दीदी ने शर्म से अपनी गर्दन नीची कर ली.. मेने कहा नही भाभी बस ऐसे ही कॉलेज में थोड़ा इधर-से उधर ज़्यादा भाग दौड़ रही सो थोड़ी थकान सी हो गयी थी…
लगता है.. कसरत में ढील दे दी है तुमने, आलसी होते जा रहे हो…. अब कुच्छ टाइट रखना पड़ेगा… और कहकर वो हँसने लगी…
दीदी ने हम सबके लिए चाय बनाई, चाय पीकर मे रूचि के साथ खेलता हुआ खेतों की तरफ निकल गया…!
रात को सोने से पहले भाभी ने मुझे इशारा कर दिया, तो दीदी के सोने को जाने के बाद मे उनके कमरे में चला गया…
वो एक लाल रंग का वन पीस गाउन पहने लेटी हुई थी, मुझे देख कर वो पलंग के सिरहाने के साथ टेक लगा कर कुच्छ इस तरह बैठ गयी..
और बोली – आओ लल्लाजी.. तुमसे कुच्छ बातें करनी थी…
मेने अंदर से गेट लॉक किया, और उनके बगल में टेक लेकर बैठ गया..!
भाभी मेरे हाथ को अपने हाथों के बीच लेकर बोली – लल्ला जी, मुझे पता है आज तुमने और रामा ने फिरसे मस्ती की, है ना !
मे – हां भाभी सॉरी ! वो दीदी ने मुझे जबर्जस्ती पकड़ लिया… मे क्या करता..
वो – अरे कोई बात नही… मे कोई तुमसे नाराज़ थोड़ी ना हूँ, बस ये देखना चाह रही थी कि तुम मुझसे क्या-क्या छुपाते हो…!
वैसे यही बात छुपाई है या और कुच्छ भी है…
मे – वो मे..वो.. भाभी… आशा दीदी ने भी मुझे कॉलेज से आते वक़्त अपने घर रोक लिया… और उन्होने… भी……..
वो – क्या ? आशा को भी ठोक दिया तुमने..हहहे…. एक नंबर के चोदुपीर होते जा रहे हो लल्ला… लगाम कसनी पड़ेगी.. तुम्हारी…..हहहे…
वैसे वो कुँवारी थी या… फिर..
मे – एक तरह से कुँवारी ही थी, इसके पहले उसके मामा के लड़के ने आधा करके छोड़ दिया था…
भाभी हँसते हुए बोली – क्यों ? आधे में क्यों छोड़ दिया था उसने…?
मे – वो कह रही थी.. मुझे जैसे ही दर्द हुआ, और मे चीख पड़ी.. तो वो डर गया और वहाँ से भाग लिया…
हाहहाहा… . भाभी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी, मे भी उनका साथ देने लगा.. फिर हँसते हुए बोली – साला एकदम गान्डू किस्म का लड़का निकला वो तो…
खैर अब अपनी बहनों की ही चिंता करते रहोगे या इस भाभी की भी फिकर है कुच्छ..
मे – अरे भाभी.. आपके लिए तो आधी रात को भी हाज़िर है आपका ये आग्यकारी देवर … वो तो मे आपके कहे वगैर कैसे कुच्छ कर सकता हूँ…
वो – तो अभी क्या इरादा है.. लिखित में चाहिए….?
भाभी का इतना कहना ही था कि मेने भाभी की नंगी जाँघ जो गाउन के उपर सिमटने से हो गयी थी, को सहलाया..
और एक हाथ से उनकी चुचि को उमेठते हुए उनके लाल रसीले होठों पर टूट पड़ा.भाभी मेरी सबसे पहली पसंद थी, उसे भला कैसे छोड़ सकता था..
भैया का लंड शायद भाभी को अंदर तक तृप्त नही कर पाता था, इस वजह से वो मेरे साथ सेक्स करने में पूरी तरह खुल जाती थी…,
अहह…..लल्लाअ…मेरे दूधों को चूसो….. बहुत खुजली होती है इनमें……इस्शह….खा जाऊओ……..
मेने जासे ही उनके कड़क हो चुके निप्पल्स को काटा…..भाभी कराह उठीी…
ज़ोर्से…नही मेरे रजाअ…..उफ़फ्फ़….माँ…..मस्लो इन्हें…
भाभी दिनो दिन गदराती जा रही थी, उनके चुचे अब 34+ और गान्ड भी 36 की हो चुकी थी, जो मेरी बहुत बड़ी कमज़ोरी रही है शुरू से ही…
एक गहरी स्मूच के बाद मेने उनका गाउन निकाल फेंका, उन्होने भी मेरे कपड़े नोंच डाले, और एक दूसरे में समाते चले गये…
भाभी को सबसे ज़्यादा मज़ा मेरे लंड की सवारी करने में ही आता था,.. सो उन्होने अपना हाथ मेरे सीने पर रख कर मुझे पलंग पर धकेल दिया…और
वो मेरे उपर सवार होकर अपनी चुचियों के कंट्रोल बटन्स (निपल्स) को मेरे सीने से रगड़ती हुई… फुल मस्ती से अपनी चूत को मेरे कड़क लंड पर रगड़ने लगी…
उनकी चूत से निकलने वाले रस से मेरी जांघें और पेट तक गीला होने लगा, फिर जब भाभी की मस्ती चरम पर पहुँची,
तो उन्होने अपना हाथ घुसा कर मेरे मूसल जैसे लंड को पकड़ कर अपनी सुरंग का रास्ता दिखा दिया…. और खुद पीछे को सरकती चली गयी….
जैसे – 2 लंड चूत की दीवारों को घिसता हुआ अंदर को बढ़ता गया, भाभी के मूह से सिसकारी निकलती चली गयी…
पूरा लंड सुरंग के अंदर फुँचते ही भाभी लंबी साँस छोड़ते हुए बोली…
अहह…..लल्ला…..सच में ये तुम्हारा हथियार दिनो दिन बड़ा ही होता जा रहा है….. उफफफ्फ़…. कहाँ तक मार करता है…
फिर धीरे – 2 धक्के लगाते हुए बुदबुदाने लगी – हाए मैयाअ… तभी तो रूचि के पापा के साथ मज़ा ही नही आता है मुझे….
ना जाने क्यों जितना सुकून और संतुष्टि सेक्स करने में मुझे भाभी के साथ होती थी, वो किसी और के साथ में नही होती थी…
मे और भाभी रात के तीसरे पहर तक एक दूसरे के साथ कुस्ति करते, एक दूसरे को मात देने की कोशिश में लगे रहे…..
आख़िरकार दोनो ही जीत कर हारते हुए…. थक कर चूर, कोई 3 बजे सोए…..!
सुबह नाश्ता करते हुए बाबूजी ने मुझे पुछा – छोटू बेटा ! तुझे मोबाइल चलाना आता है..?
मे – हां बाबूजी, उसमें क्या है… मेरे कयि दोस्तों के पास है.. (हालाँकि मोबाइल का चलन अभी कुच्छ समय पहले ही शुरू हुआ था.)
बाबूजी – तो एक काम कर राम को फोन करके बोल देना, एक मोबाइल लेता आए इस बार.. ये ज़रूरी चीज़ें होती जा रही हैं जिंदगी में…
मे – हां बाबूजी ! आप सही कह रहे हैं.. वैसे मे आपको बोलने ही वाला था इस बारे में, फोन होना ज़रूरी है…
बाबूजी – देखा बहू… हम बाप बेटे के विचार कितने मिलते हैं..
भाभी ने हँसकर कहा – हां बाबूजी… आख़िर खून तो एक ही है ना.. !
हम सभी चकित थे, आज बाबूजी के व्यवहार को देख कर.. कुच्छ दिनो से उनमें काफ़ी बदलाव आया था.. लेकिन आज वो कुच्छ ज़्यादा ही खुश लग रहे थे..
कारण मेरी समझ में कुच्छ -2 आता जा रहा था, उनके खुश रहने का राज,
मेने जैसा सोचा था, वैसा होता दिख रहा था…. बाबूजी की खुशी हम सबके लिए ज़रूरी थी..
खैर मे कॉलेज चला गया और लौटते में एसटीडी से मेने भैया को फोन करके बाबूजी की बात बताई.. उन्होने भी हां करदी…
सॅटर्डे को भैया आए और सिम के साथ मोबाइल भी ले आए, जो बाबूजी के नाम से आक्टीवेट था..
चूँकि दोनो भाइयों के पास पहले से ही फोन की सुविधा थी उनके ऑफीस और घर दोनो जगहों पर, तो अब दूरियाँ कम होने लगी थी…
हमारे इलाक़े के लोकल एमएलए रस बिहारी शर्मा, एक दिन अपने क्षेत्र के दौरे पर आए,