शीला अपने घर के बरामदे में पहुंचकर बोली “पीयूष, मेरे घर की चाबी तेरे घर पर रखी हुई है.. जरा आकर मुझे दे जाना.. “
कविता और पीयूष अपने घर के अंदर दाखिल हुए.. और पीयूष शीला भाभी के घर की चाबी ढूँढने लगा..
कविता मन में सोच रही थी.. आज शीला भाभी पीयूष को पूरा निचोड़ लेगी.. मेरे लिए कुछ भी नहीं बचने वाला..
पीयूष के लंड पर हाथ सहलाते हुए कविता ने पीयूष को कहा “जा.. भाभी को चाबी देकर आ.. ताला भी खोल देना उनका.. लगता है शीला भाभी को तेरी चाबी पसंद आ गई है”
पीयूष: “क्या यार कविता!! कुछ भी…. !!” कहते हुए पीयूष खुशी खुशी कंपाउंड की दीवार फांद कर शीला के बरामदे में पहुँच गया।
कविता घर के अंदर चली गई थी इसलिए पीयूष ने राहत की सांस ली.. और शीला को चाबी देते हुए कहा “भाभी.. खोल दूँ??”
शीला ने अपना पल्लू हटा दिया.. और अपने पपीते जैसे मदमस्त स्तनों के दर्शन करवाती हुई कामुक आवाज में बोली “हाँ खोल दे पीयूष.. “
कविता अंदर थी पर पीयूष को यह डर था की कहीं वो बाहर न आ जाए.. इसलिए वो अपने दरवाजे पर नजर रखे हुए शीला के घर का ताला खोलने लगा.. उसी वक्त शीला घुटनों के बल झुक गई और पीयूष के लंड को उसके पतलून से बाहर निकाल दिया.. और उसके टोप्पे पर चूमकर बोली
“क्या हुआ पीयूष? इतना वक्त क्यों लग रहा है तुझे खोलने में? छेद नहीं मिल रहा क्या तुझे?”
“अरे भाभी.. आप मुझे मरवा दोगी.. वो कविता अभी बाहर निकलेगी तो अभी के अभी मुझे तलाक दे देगी.. “
कविता किचन की खिड़की से और अनुमौसी बेडरूम से.. शीला और पीयूष के इस मिलन को देख रहे थे.. अनुमौसी ने अपने बेटे के लंड को देखने की बहोत कोशिश की.. पर अंधेरे के कारण नहीं दिखा… सख्त कड़े उत्तेजित लंड को देखे अरसा बीत गया था.. मौसी ने एक निराशा भरी नजर अपने पति चिमनलाल पर डाली.. मोटी तोंद और कमजोर लंड वाला चिमनलाल खर्राटे लेकर सो रहा था.. उसके पूपली जैसे लंड को मौसी ने हाथ से हिलाकर देखा.. मरी हुई छिपकली जैसे लंड ने कोई हरकत नहीं की.. अनुमौसी ने एक गहरी सांस छोड़ी.. और कमर हिला रहे अपने बेटे को देखकर उत्तेजित होकर.. चिमनलाल के मोबाइल को अपने भोसड़े में घुसेड़ दिया.. कविता भी खिड़की से अपने पति का लंड चूस रही शीला को देखते हुए.. और पिंटू को याद करते हुए.. अपनी नेलपोलिश लगी उंगलियों से क्लिटोरिस को कुरेदने लगी..
सास और बहु खिड़की से कमर हिला रहे पीयूष को देखते हुए सोच रहे थे.. ये चोद रहा है या मुंह में दिया हुआ है!!??
शीला ने पीयूष का पूरा लंड मुंह में लेकर इतना चूसा की पीयूष के होश उड़ गए.. पीयूष ताला खोल रहा था उतनी देर में तो शीला ने उसके लंड को झड़वा दिया.. कविता पिंटू के याद में अपनी चुत खुजाते हुए सो गई.. उसे मालूम था की शीला भाभी की पकड़ से छूटने के बाद.. पीयूष के पास उसे देने लायक सख्त लंड बचा ही नहीं होगा.. और फिलहाल उसे जरूरत भी नहीं थी। अनुमौसी भी अपने पति के मोबाइल से मूठ लगाकर.. अपनी बूढ़ी चुत को सहलाते हुए.. उल्टा लेटकर सो गई।
शीला ने मस्ती से पीयूष के लंड को चूस चूस कर खाली कर दिया….
अपने लंड को पेंट के अंदर रखकर चैन बंद करते हुए पीयूष ने कहा “मैं अब चलता हूँ भाभी… ऐसे ही मौके देते रहना.. भूल मत जाना”
शीला: “तेरी जब मर्जी करे चले आना.. मना नहीं करूंगी.. “
पीयूष जाते जाते शीला के दोनों स्तनों को मसलकर गया.. शीला के होंठों पर चमक रही वीर्य की बूंद को देखकर वो मुसकुराते हुए निकल गया।
काश मेरी कविता भी इसी तरह लंड मुंह में लेकर मेरा वीर्य चूसती तो कितना अच्छा होता!! शीला भाभी को अब हाथ में रखना पड़ेगा.. एक बार धड़ल्ले से टांगें फैलाकर चोदना है भाभी को.. भोसड़ा भी मस्त होगा साली का.. और छातियाँ उसकी ये बड़ी बड़ी.. चौबीसों घंटे गरमाई हुई रहती है… बस एक मौका मिल जाएँ.. पीयूष ये सब सोचते सोचते घर में घुस गया.. शीला भी बिस्तर पर गिरते ही सो गई.. और तब उठी जब अनुमौसी का फोन आया..
“अरे बाप रे.. देर हो गई.. आज तो महिला मण्डल के साथ यात्रा पर जाना है” बड़बड़ाते हुए वो झटपट बाथरूम में घुसी और फटाफट जैसे तैसे नहाकर तैयार हो गई.. बाहर निकली तो अनुमौसी के घर के पास एक मिनीबस खड़ी थी.. और अंदर करीब २५ औरतों का झुंड था.. अनुमौसी बस के बाहर शीला का इंतज़ार करते हुए खड़ी थी.. शीला तुरंत अंदर चढ़ गई.. और अनुमौसी को हाथ पकड़कर अंदर चढ़ने में मदद की
अनुमौसी: “तेरे अंदर तो बहोत जोर है शीला.. हम तो अब बूढ़े हो गए!!”
तभी आगे की रो में बैठी एक जवान औरत ने कहा “अरे मौसी, वो तो उनका पति घर पर नहीं है इसलिए सारा जोर बचाकर रखा हुआ है.. अगर पति साथ होते तो उनका सारा जोर निचोड़ लिया होता अब तक.. क्यों ठीक कहा ना भाभी??” शीला उस उँजान औरत के सामने देखकर मुस्कुराई पर कुछ बोली नहीं.. सब अनजान थे इसलिए शीला थोड़ा सा शरमा रही थी
थोड़ी देर बाद.. अनुमौसी शीला की बगल वाली सीट पर आकर बैठ गई.. और उस तरह बैठी की उनके स्तन शीला के कंधों से रगड़कर जाए
अब शीला ये सब हथकंडों से कहाँ अनजान थी!! उसने मौसी से कहा “मौसी, आपकी कविता तो बड़ी ही होशियार है..!!”
अनुमौसी: “अच्छा.. !! ऐसा क्यों लगा तुझे शीला? वैसे तो मेरा पीयूष भी कम होशियार नहीं है.. “
अनुमौसी ने पीयूष का नाम लेकर बड़े ही विचित्र ढंग से शीला की आँखों में देखा.. शीला को एक पल के लिए शक हुआ.. कहीं ये बुढ़िया ने रात को मेरे और पीयूष के बीच के खेल को देख तो नहीं लिया.. !! चलो.. जो भी होगा देखा जाएगा.. चिंता करके कोई फायदा नहीं है
अनुमौसी भजन गाने लगी.. और सारी औरतें उनका साथ देने लगी.. थोड़ी ही देर में वो मिनीबस नजदीक के एक छोटे से शहर पहुंची.. वहाँ के मंदिर में दर्शन करने के बाद सारी औरतें बाजार में शॉपिंग करने निकल पड़ी..
शीला और अनुमौसी साथ में घूम रहे थे.. चलते चलते वो एक दुकान पर पहुंचे जहां बेलन और चकला मिलता था
अनुमौसी ने एक पतला बेलन हाथ में लिया.. और चेक कर वापिस रख दिया.. “ये वाला ठीक नहीं लगता.. मुझे तो मोटा बेलन ही पसंद है”
दुकान वाला शीला के उन्नत स्तनों के बीच की दरार को देखते हुए मुस्कुराकर बोला ” हाँ मौसी.. मेरी पत्नी को भी मोटा बेलन ही भाता है.. मेरे घर तो पतला बेलन भी है.. पर वो हमेशा मोटे वाले से ही रोटियाँ बेलती है.. “
इन द्विअर्थी संवाद को सुनते ही शीला की चुत का वो हाल हुआ.. जो गरम तेल में पानी डालने पर होता है.. छम्म छम्म छम्म होने लगा.. अपने आप दोनों जांघें एक दूसरे सट गई.. अपनी चुत को खुजाते हुए शीला ने अनु मौसी से कहा “मुझे भी मोटा बेलन ही पसंद है मौसी.. आप ये मोटा वाला खरीद लीजिए.. ये बढ़िया है.. मोटा और चिकना.. “
अनुमौसी ने बेलन लेकर थैली में रख दिया.. और अपने ब्लाउस में हाथ डालकर पर्स निकाला और ५० का नोट दुकानवाले को देते हुए बोली “आप बड़ा महंगा बेचते हो.. बेलन मोटा है तो इतना भाव थोड़ी होता है!!”
दुकानदार: “मौसी.. बेलन पतला हो या मोटा.. तैयार करने में मेहनत तो लगती है ना!! और मैं बिल्कुल वाजिब दाम में बेचता हूँ.. आप एक बार मेरा बेलन इस्तेमाल करके तो देखिए.. मुझे रोज याद करोगी.. जीतने भी ग्राहक बेलन लेकर जाते है वो फिर से मेरी दुकान जरूर आते है.. मेरा बेलन है ही कमाल का!!”
शीला: “भैया हमे तो जो भी बेलन मिल जाता है उसी से काम चला लेते है” शीला ने मोटे बेलन की नोक पर ऐसे उँगलियाँ फेरी जैसे लंड पकड़ कर मूठ मार रही हो.. दुकानवाले के पसीने छूट गए ये देखकर.. शीला के इस कातिल यॉर्कर से दुकानवाले के स्टम्प उखड़ गए.. अनुमौसी शीला की इस हरकत को देखकर शर्मा गई और हँसते हँसते शीला का हाथ पकड़कर खींचते हुए बोली “अब चल भी.. यहीं रोटियाँ बेलने बैठेगी क्या तू? बड़ी नालायक है तू शीला.. !!”
शीला हँसते हुए दुकान से बाहर निकली और दोनों चलते हुए बस तक पहुंचे.. सब अंदर बैठ गए पर ड्राइवर कहीं नजर नहीं आ रहा था.. सब औरतों को शीला बेलन दिखाते हुए उसपर ऐसे हाथ घुमा रही थी जैसे लंड को सहला रही हो.. शीला का पल्लू हटकर नीचे गिर गया और उसकी उत्तुंग पहाड़ियों को सारी महिलायें देखती ही रह गई.. सारी औरतें ही थी इसलिए शर्म की कोई बात नहीं थी.. शीला भी बेफिक्र होकर जीव के मूसल लंड को याद करते हुए बेलन से खेल रही थी..
एक बूढ़ी औरत ने शीला और अनुमौसी से पूछा ” अच्छा.. तो तुम दोनों ऐसा मोटा बेलन ढूँढने गई थी बाजार में.. “
अनुमौसी: “क्या चम्पा बहन आप भी!! मोटे बेलन की जरूरत तो सब को पड़ती है.. आप तो ऐसे बोल रही है जैसे आपको मोटा पसंद ही नहीं है”
चम्पा मौसी: “मेरे घर तो कपड़े धोने की बढ़िया सी मोटी थप्पी है इसलिए मुझे तो बेलन की जरूरत ही नहीं पड़ती” शरारती मुस्कान के साथ उस बुढ़िया ने कहा
तभी एक जवान औरत ने कहा “हमारे घर तो हमारे पतिदेव ही काफी है.. इसलिए थप्पी या बेलन की जरूरत ही नहीं पड़ती” शीला ने तुरंत उस औरत का नाम पूछ लिया
उस औरत ने शीला के स्तनों को तांकते हुए बड़े कामुक स्वर में अपना नाम बताया “रेणुका.. “
वापिस आते हुए रास्ते में शीला ने रेणुका के साथ दोस्ती कर ली और उसका मोबाइल नंबर भी ले लिया.. रेणुका करीब ३२ की उम्र की गोरी चीट्टी दो बच्चों की माँ थी.. शीला ने बाकी औरतों पर नजर घुमाई.. पर एक भी उसे अपने लायक नहीं लगी..
शहर से बाहर बस पहुंची.. एक पीपल के पेड़ की छाँव के नीचे ड्राइवर ने बस रोक दी.. सारी महिलायें नीचे उतरी.. और चटाई बिछाकर खाना खाने बैठ गई.. सब ने मिलकर घर से लाए भोजन को बाँट के खाया.. और तृप्त होकर वहीं चटाई पर लेट गई.. औरतों को दोपहर की नींद, रात के सेक्स जितनी ही पसंद होती है.. कुछ औरतें तो दोपहर को इसलिए सो जाती है ताकि रात को देर तक जागकर चुदवा सकें..
एक घंटा सोने के बाद सब जाग गए.. पास ही की एक टपरी पर सबने मसालेदार चाय का लुत्फ उठाया.. तभी रोड के किनारे पर बहते झरने को देखकर.. कुछ जवान औरतों का मन कर गया की पानी में थोड़ी से छब छब की जाएँ.. शीला, रेणुका और उनके साथ कुछ औरतें झरने के किनारे पर जा पहुंची.. नहाने के लिए अलग से कपड़े तो थे नहीं.. और आजूबाजू कोई नजर नहीं आ रहा था.. इसलिए वो औरतें अपनी साड़ी उतारकर.. ब्लाउस और पेटीकोट में ही घुटनों तक गहरे पानी में कूदने के लिए तैयार होने लगी..
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रेणुका ने साड़ी का पल्लू हटाकर सबसे पहले अपनी अद्भुत जवानी की झलक दिखाई.. मध्यम उम्र का जिस्म.. गदराए गोरे स्तन और ब्रा की पट्टी ब्लाउस से नजर आ रहे थे.. उन स्तनों को देखते ही शीला आकर्षित हो गई.. रेणुका की सख्त निप्पल थोड़ी सी लंबी थी.. उसकी गहरी नाभि देखकर शीला की चुत में झटके लगने शुरू हो गए.. हल्की चर्बी वाला गोरा गोरा पेट और कमर.. चेतना से करीब ५ साल छोटी थी रेणुका.. पर बेहद आकर्षक थी.. रेणुका के जिस्म के पूरे भूगोल का मुआयना करने के बाद शीला ने कहा
“दो बच्चों के बावजूद आपने बॉडी को अच्छा मैन्टैन किया हुआ है.. ” रेणुका हंसने लगी पर कुछ बोली नहीं
चम्पा मौसी: “उसने मैन्टैन नहीं किया.. पर उसके पति ने करवाया है.. बहोत खयाल रखता हो वो रेणुका का.. क्यों ठीक कहा ना मैंने??”
रेणुका ने चम्पा मौसी के कूल्हों पर हल्की सी चपेट लगाते हुए कहा “अब चुप भी करो मौसी.. नहीं तो मैं आपका भी वस्त्राहरण कर दूँगी.. ” कहकर वो दुशासन की तरह चम्पा मौसी की साड़ी खींचने लगी..
सारी औरतें मस्ती करते हुए पानी में उतरने लगी.. पानी को देखते ही हर कोई बच्चा बन जाता है.. रेणुका का घाघरा गीला होकर उसकी गांड की दरार में घुस गया था.. गहरे पानी में कमर तक उतर चुकी शीला ने रेणुका के चूतड़ों का आकार देखकर.. पानी के अंदर ही अपने भोसड़े के बेर को घिसकर ठंडा करने की कोशिश की.. सिसकियाँ भरते हुए वो रसिक, जीवा और रघु के लंड को याद करने लगी ताकि उसके भोसड़े का जल्दी छुटकारा हो.. आखिर उसकी चुत ने झरने के पानी को पवित्र कर ही दिया..
नहाते हुए पानी उछालते रेणुका शीला के करीब आई.. शीला के भीगे हुए पतले कॉटन ब्लाउस में दोनों स्तन एकदम तंग थे.. वो भी बिना ब्रा के.. रेणुका बस देखती ही रह गई.. शीला ने रेणुका के मुँह पर पानी उछालकर उसकी समाधि भंग की “क्या देख रही है यार!!”
रेणुका शर्मा गई.. फिर हिम्मत करते हुए वो शीला के करीब आई और धीमे से उसके कान में फुसफुसाई.. “बड़ी कातिल लग रही हो तुम शीला”
शीला के लिए अपनी तारीफ सुनना कोई नई बात नहीं थी.. पर फिर भी उसे सुनकर अच्छा लगा.. उसने रेणुका के चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए कहा
“तू भी कुछ कम नहीं है रेणुका.. ” दोनों कमर तक पानी के अंदर थी.. इसलिए उनकी हरकत सबकी आँखों से छुपी हुई थी.. सब अपनी मस्ती में मस्त थी.. शीला अभी भी रेणुका के कूल्हों से खेल रही थी.. और रेणुका भी मजे लेकर शीला के साथ अपनी दोस्ती को गाढ़ा करने में जुट गई।
दिन के उजाले में.. भरी दोपहर में.. शीला रेणुका के चूतड़ों के दरार में उंगली फेरते हुए अपने पासे फेंक रही थी
शीला: “ये बता रेणुका.. मेरे घर कब आओगी?”
रेणुका: “जब तुम बुलाओ.. मेरे वो ऑफिस के लिए निकले उसके बाद मैं फ्री होती हूँ.. तुम आ जाओ मेरे घर पर”
शीला: “जरूर आऊँगी.. पर पहले तुम मेरे घर आओ.. “
रेणुका: “अब बस भी करो शीला.. तुम्हारा हाथ जरूरत से कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गया है”
शीला की उँगलियाँ दरार से आगे निकल कर रेणुका की गांड के छेद तक पहुँच गई थी।
शीला: “क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा?”
रेणुका: “अच्छा क्यों नहीं लगेगा भला.. !! पर आजू बाजू देखो तो सही.. सब यहाँ मौजूद है.. हम अकेले थोड़ी है”
शीला: “हाँ वो तो मैं भूल ही गई.. एक बात कहूँ.. तुम बहोत सुंदर हो रेणुका”
रेणुका: “जिसे कदर होनी चाहिए वो ही तारीफ ना करे तो ये सुंदरता किस काम की!!”
शीला: “ऐसा क्यों बोल रही है? तेरे पति तुझे प्यार नहीं करते क्या?”
रेणुका: “उन्हे टाइम ही कहाँ मिलता है.।!! बिजनेस से फुरसत मिले तो मुझे प्यार करे ना!! रात को देर से आकर टीवी देखते देखते सो जाते है.. कभी उनका मूड हो तब मैं थकी हुई रहती हूँ, इसलिए कुछ नहीं हो पाता.. अपने ही घर में हमारी जरूरतों को ही नजर अंदाज किया जा रहा है”
पीछे खड़ी अनुमौसी इन दोनों के संवाद को बड़े चाव से सुन रही थी.. उनसे रहा नहीं गया और बोल पड़ी
अनुमौसी: “शुरू शुरू में ये मर्द हमे सब कुछ सीखा सीखा कर बिगाड़ते है.. और फिर वही सब हम करना चाहे तो कहते है “कैसी गंदी गंदी चीजें करने को कह रही हो” अब बोलो.. क्या करें इनका.. “
रेणुका: “बिल्कुल सच कह रही हो मौसी.. मुझसे तो कहा भी नहीं जाता और सहा भी नहीं जाता.. बुरी फंसी हूँ मैं.. “
शीला: “मौसी मेरे पास इन सारी समस्याओं का हल है.. पर आप मेरे बारे में गलत सोचेगी ये सोचकर कुछ बोलती नहीं मैं”
अनुमौसी: “अरे शीला.. मैं क्यों तेरे बारे में गलत सोचूँगी.. !! तू भी मदन के बिना २ सालों से तड़प रही है.. मैं समझ सकती हूँ”
रेणुका: “क्या बात कर रही हो!! २ साल से अकेली है तू शीला?? बाप रे!! मुझे तो एक हफ्ता बीत जाएँ तो ऐसा लगता है जैसे सालों हो गयें..तुम तुम्हारी रातें अकेले कैसे बिताती हो??”
शीला: “ये सब बातें करके मेरा दिमाग खराब मत करो तुम सब.. चलो.. बहोत देर हो गई है.. कब तक नहाते रहेंगे!!”
रेणुका: “घर जाकर भी क्या करना है!! वहीं सब झाड़ू-पोंछा, सफाई, खाना पकाना.. और पति का इंतज़ार करना.. इससे अच्छा यहीं पानी में पड़े रहते है.. कम से कम नीचे ठंडक तो मिल रही है.. घर में तो दिमाग खराब हो जाता है मेरा!!”
रेणुका की आवाज का दर्द शीला महसूस कर सकती थी.. कमर तक डूबी हुई रेणुका का हाथ पकड़ लिया उसने.. पानी के अंदर किसी को ये नजर नहीं आ रहा था.. रेणुका का हाथ खींचकर शीला ने घाघरे के नीचे अपनी भोस पर रख दिया.. चुत का स्पर्श होते ही रेणुका स्तब्ध रह गई
रेणुका: “ये क्या कर रही हो शीला?? कुछ तो शर्म करो.. !!”
शीला: “मैं तुम्हें ये बताना चाहती हूँ की पानी में रहने से ये ठंडी नहीं होती.. देखो.. कैसे तप रही है!!”
अनुमौसी: “अरे नासपीटी शीला.. शर्म बेच खाई है क्या तूने!! कब सुधरेगी तू!!??”
शीला: “इसमें मैंने क्या गलत क्या मौसी? ये रेणुका बोल रही थी की पानी में रहने से नीचे ठंडक मिलती है.. कुछ ठंडक नहीं मिलती.. ठंडक के लिए कुछ जुगाड़ लगाना पड़ता है.. सिर्फ उँगलियाँ अंदर डालने से बच्चे पैदा नहीं होते.. जहां जिस चीज की जरूरत हो वहाँ वो ही चीज काम करती है.. समझे!!” तीनों एक दूसरे के करीब खड़े गुसपुस कर रही थी.. और साथ ही अपने जीवन के सबसे जटिल प्रश्न का हल ढूँढने का प्रयत्न कर रही थी
ड्राइवर के बार बार हॉर्न बजाने पर सारी औरतें बाहर निकली.. पेड़ के तने के पीछे जाकर कपड़े निचोड़कर सुखाए.. और फिर मज़ाक मस्ती करते हुए बस में बैठ गए.. अनुमौसी, रेणुका और शीला एक साथ बैठे थे। अनुमौसी कुछ कहना चाहती थी पर हिचक रही थी.. ऐसा लगा शीला को.. पर वो कुछ बोली नहीं.. रेणुका शीला के साथ अपनी दोस्ती को ओर घनिष्ठ करने लगी.. शीला भी रेणुका से करीब होती चली..
जब बस अनुमौसी के घर के बाहर आकर रुकी तब तक रेणुका और शीला अच्छी सहेलियाँ बन चुकी थी.. घर जाने से पहले रेणुका शीला के गले लगी और बोली “कल फोन करना मुझे.. भूल मत जाना.. ” रेणुका के जिस्म की भूख शीला अच्छी तरह से महसूस कर पा रही थी
रात के ९ बज रहे थे..
अनुमौसी: “अब इतनी रात को तू अपने लिए कहाँ खाना बनाने बैठेगी!! आजा मेरे घर.. कविता ने खाना तैयार रखा हुआ है.. मेरे घर ही खा लेना.. “
शीला को थोड़ा सा संकोच जरूर हुआ पर वो अनुमौसी को मना नहीं कर पाई.. शीला को लेकर अनुमौसी अपने घर के अंदर पहुंची
“आइए शीला जी” गोल बिस्तर जैसे शरीर वाले, अनुमौसी के पति, चिमनलाल ने शीला का स्वागत किया.. टीवी देखते हुए वो खैनी चबा रहे थे
शीला के सुंदर शरीर ने जैसे ही घर में प्रवेश किया.. अनुमौसी का पूरा घर जगमगा उठा.. उस गदराए जिस्म को ताड़ते हुए चिमनलाल बाहर खैनी थूकने चले गए..
“ओहहों भाभी.. आप!! आइए आइए ” पीयूष ने शीला के जिस्म को अपनी आँखों से ही सहलाते हुए कहा.. उसका बस चलता तो शीला को वहीं दबोचकर ऊपर से नीचे तक चूम लेता.. पीयूष के सामने देखकर शीला ऐसे मुस्कुराई के पीयूष के घुटने कमजोर हो गए.. रात का सीन याद आ गया उसे..
अनुमौसी बाथरूम में गए और कविता किचन में खाना तैयार करने में व्यस्त थी.. शीला ने दरवाजे के बाहर देखा तो चिमनलाल कहीं नजर नहीं आए.. ड्रॉइंगरूम में शीला और पीयूष अकेले ही थी.. एक ही पल में शीला ने पीयूष को अपनी तरफ खींचा और कस के चूम लिया.. शीला के इस अचानक आक्रमण से पीयूष के पसीने छूट गए.. शीला ने पेंट के ऊपर से पीयूष के लंड को मुठ्ठी में लेकर दबा दिया.. और पीयूष के डेटाबेज़ में अपना अकाउंट रीन्यू कर लिया.. पीयूष को तब होश आया जब कविता ने उसे किचन से आवाज दी.. घबराया हुआ पीयूष अपने आप को शीला की पकड़ से छुड़ाते हुए दौड़ कर अंदर चला गया
शीला मुसकुराते हुए अनुमौसी का इंतज़ार करते टीवी देखने लगी.. तभी अनुमौसी बाथरूम से आए..
थोड़ी देर में कविता ने किचन से आवाज लगाई “शीला भाभी.. कैसी हैं आप?”
शीला: “ठीक हूँ कविता.. पर तेरे जैसी ठीक तो नहीं हूँ.. तुम जवान लोगों के मजे है.. तकलीफ तो हम जैसे लोगों को ही है”
अनुमौसी ये सुनकर हंसने लगी..
दो थालियों में खाना परोसकर पीयूष बाहर लेकर आया.. और शीला की आँखों में देखते हुए थाली रखकर बोला “खाना खा लीजिए भाभी”
दोनों की आँखें आपस में नैन-मटक्का कर रही थी.. सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनकर अनुमौसी इस द्रश्य का मज़ा ले रही थी
अंदर किचन में रोटियाँ बेलते हुए कविता.. पिंटू के संग मल्टीप्लेक्स में उड़ाएं गुलछर्रे याद कर रही थी.. शीला ने जिस तरह दो दो लंड एक साथ पकड़कर हिलाए थे वो सीन याद करते हुए पीयूष भी उत्तेजित हो रहा था और शीला उस अनजान आदमी के लंड को याद करते हुए अपनी चुत खुजा रही थी..
तभी कविता किचन से थालियाँ और बाकी का खाना ले कर आई.. पीयूष शीला की बगल में बैठ गया.. कविता ने टेबल पर थाली रखने से पहले अपने पल्लू को छाती पर ठीक से दबाकर रखा.. वरना उसके झुकते ही जो द्रश्य दिखता उससे शीला की चुत व्याकुल हो जाती..
यहाँ वहाँ की बातें करते हुए सब खाना खाने लगे.. २० मिनट में सबने खा लिया था.. शीला गप्पे लड़ाते हुए थोड़ी देर बैठी रही.. और फिर उठते हुए बोली “मैं अब चलती हूँ मौसी.. पूरे दिन की थकान है.. नींद आ रही है मुझे”
अनुमौसी: “ठीक है शीला.. आते रहना.. “
पीयूष के सामने अपनी आँखें नचाते हुए शीला निकलने लगी.. किचन से कविता ने भी हाथ हिलाकर उन्हें “बाय” कहा.. घर से बाहर निकलते.. दरवाजे पर, अनुमौसी के पति चिमनलाल अंदर आ रहे थे.. शीला और चिमनलाल दोनों एक साथ टकरा गए.. शीला के बड़े बड़े भोंपू चिमनलाल की रुक्ष छाती से टकरा गए.. शीला शर्मा गए और वहाँ से भाग निकली.. चिमनलाल का लंड, शीला की मादक खुशबू सूंघते ही.. अंगड़ाई लेकर उठने लगा.. जैसे ५ साल के बाद कुंभकर्ण की निंद्रा टूटी हो!!
“साली.. मेरी वाली भी इसके जैसी करारी होती.. तो मज़ा ही आ जाता.. ये अनु तो कुछ करती ही नहीं है.. उसे देखकर तो उठा हुआ लंड भी लटक जाएँ” चिमनलाल सोचते सोचते घर के अंदर पहुंचे
चिमनलाल अपने बेडरूम के अंदर गए और बिस्तर पर लेट गए.. उनके पीछे पीछे अनुमौसी भी अंदर आई और बेडरूम का दरवाजा बंद कर लिया। जैसे ही उन्होंने अपने ब्लाउस के हुक खोले, उनके दोनों ढीले स्तन लटकने लगे.. देखकर चिमनलाल ने गहरी सांस छोड़ी.. एक तरफ वो शीला के बॉल.. और उसके मुकाबले ये अनु के दो पिचके हुए थन.. आह्ह शीला ने तो आज मुझे जवानी की याद दिला दी.. एक बार मिल जाएँ तो आज भी उसे पूरी रात चोदने की ताकत रखता हूँ.. पर इस अनु को तो देखकर ही मेरी सारी इच्छाएं खतम हो जाती है.. ८० के दशक का पुराना बजाज.. जो २५ बार किक मारने पर भी चालू न हो.. वैसा ही हाल है अनु का.. और बजाज को तो झुकाकर भी चालू कर सकते है.. पर इसका क्या करें?? अब जैसी मेरी किस्मत.. चिमनलाल सोचता रहा
शीला अपने घर पहुंचकर बिस्तर पर लेट गई “वो चिमनलाल जानबूझकर मुझसे टकराया था क्या!! रास्ता तो काफी चौड़ा था.. मेरा ध्यान नहीं था पर उन्हे तो नजर आ रहा था.. वो चाहता तो ये भिड़ंत नहीं होती.. लगता है बूढ़ा जानबूझकर ही टकराया था.. और उसके मुंह से खैनी की कितनी गंदी बदबू आ रही थी.. छीईईई.. “
सिनेमा हॉल में पीयूष के साथ बिताया समय याद करने लगी शीला “कितना हेंडसम है पीयूष!! उसके होंठ भी लाल लाल है.. मस्त चिकना है.. उसका लंड थोड़ा सा दमदार होता तो ओर मज़ा आ जाता” आगे एक विचार ये भी आया “तगड़े लंड की कमी पूरी करने के लिए रसिक और जीवा तो है ही.. “
जीवा के लंड की याद आते ही शीला सिहर उठी.. ये पीयूष का लंड तो जीवा के मुकाबले पतली सी पुंगी जैसा ही है.. हाय.. आज का पूरा दिन बिना चुदाई के ही बीत गया.. शीला ने अपनी भोस पर हाथ फेरा.. लंड तो तरह तरह के देखे.. पर जीवा और रघु जैसा लंड आजतक नहीं देखा था.. अपने गाउन की ऊपर की चैन खोलकर अपने एक स्तन बाहर निकाला शीला ने.. निप्पल पर थूक वाली उंगली लगाकर वो कल्पना करने लगी की जैसे पीयूष उसकी निप्पल को चूस रहा हो.. चूचक गीला होते ही शीला के दोनों स्तन कठोर होने लगे.. आज उसे अनुमौसी और रेणुका के नए स्वरूप के दर्शन हो गए यात्रा के दौरान.. अनुमौसी ने जब साड़ी उतारी.. तब उनके पेट की चर्बी क्या मस्त लटक रही थी.. और वो चम्पा मौसी की जांघें.. आहहाहहहहा.. रेणुका के चूतड़.. ईशशशश.. अपनी चुत को सहला रही शीला के चेहरे पर मुस्कान आ गई.. आज रेणुका की गांड के छेद तक हाथ पहुँच ही गया था.. उसने माना न किया होता तो बेशक गांड में उंगली घुसा देती शीला.. एक बार उस रेणुका की मदमस्त गांड पर चुत रगड़नी है.. आहहह.. ४४० वॉल्ट का झटका लगा शीला के भोसड़े में.. कुछ भी नया कामुक विचार दिमाग में आते ही उसकी चुत में आग लग जाती थी..
शीला की नजर घर में चारों तरफ घूमने लगी.. क्या करू? बिना लंड के अब रहा नहीं जाता.. उसने अपने कूल्हों के नीचे गोल तकिया रख दिया.. गाउन ऊपर किया.. और अपनी चिकनी खंभे जैसी जांघों पर हाथ फेरने लगी.. अभी कोई मर्द हाथ लगे तो उसे कच्चा चबा जाने का मन कर रहा था शीला का.. क्लिटोरिस पर हाथ थपथपाते वो दूसरे हाथ से अपनी चूचियाँ मसलने लगी..
To Be Continue…