माँ-बेटा (एक सच्ची घटना) – 3 । Mother Son Sex Story

नेक्स्ट डे सुबह माँ नास्ते में नानाजी का पसन्दीदा मेथी का पराठा बनायी. सब लोग नास्ता कर के अपने अपने काम पे लग गये. नानाजी का एक बिज़नेस था५ साल पहले जब वह बिमार पड़ गए और डॉक्टर उनको ६ महिना बेड रेस्ट में रहने के लिए कहे, तब उनका एक दोस्त का बेटा जो उनके साथ बिज़नेस में उनका असिस्टेंट था, वह सब कुछ सँभालने लगा. उस आदमी ने अच्छी तरीके से बिज़नेस को अपनी मेहनत और बुध्धि से पकड़ के रख्खा. नानाजी ने ६ महीने बाद जब हिसाब किताब देखे , सब बिलकुल परफेक्ट था और लाभ भी पहले जैसा बराबर हुआ थावह आदमी बहुत होनेस्ली पहले से ही काम करता था नानाजी खुश थे. फिर उन्होंने उस आदमी के साथ एक एग्रीमेंट किया. अब से वह बिज़नेस को सम्भालेंगा. नाना जी केवल हप्ते में एक या दो दिन आके उसका हिसाब किताब लेते रहेंगे. और जो कुछ फ़ायदा होगा उसको ५०-५० हिसाब से दोनों बाट लेंगे. इस्स में नानाजी को और मेहनत करने की भी जरुरत नहीं है, साथ ही साथ पैसा भी आता रहेगा. नानाजी आलरेडी पूरी ज़िन्दगी की मेहनत से बहुत कुछ बना लिए थे. उनको अब काम करने की जरुरत भी नहीं था इस लिए अब नाना जी ज़ादा टाइम घर पर ही बिताते है. आज नाना जी और नानी जी ड्राइंग रूम में बैठके टीवी देख रेहे थे. माँ नहा के फ्रेश होकर , भीगे बालों में एक टॉवल लपेट के किचन में काम कर रही थी. लंच के लिए सब्जिअं काट रही थी. नाना – नानी टीवी देख रहे थे, फिर देख भी नहीं रहे थे. आज उनलोगों को देख के ऐसा लगने लगा की वह लोग टीवी के तरफ देख के और कुछ सोच रहे थे. एक समय नानाजी नानीजी की तरफ मुड़के देखा. नानीजी उनको देख के कुछ समझि और फिर से दोनों टीवी देखने लगे. थोड़ी देर बाद नानीजी वहां से उठ के किचन के तरफ चली गई. किचन में माँ को काम में हेल्प करने के लिए उनके साथ हाथ बटाने लग गयी.
थोड़ी देर इधर उधर की बात होने के बाद नानी जी मेरा बात लेके वह उनका चिंता जताते रहे. मैं कितना प्रॉब्लम फेस कर रहा हू अकेला रहके. माँ भी समझती थी मेरी प्रॉब्लम क्यों की वह भी कुछ दिन से परेशान थी इस को लेके. उनके साथ इस कन्वर्सेशन में क्लियर पता चलता है वह आज कल किनता चिंतित है मुझे लेके. और यह होना जाएज भी है. उनका एक लोता बेटा हु में. सो नानी जी की बातों में माँ भी साथ देणे लगी. तब नानी जी बोलने लगी की अब हीतेश भी बड़ा हो गया है तो उसका शादी करवा देते है. यह सुन के माँ नानी की तरफ देख के हॅसने लागी. माँ हस्ते हस्ते बोली
” अब…..शादी… हीतेश की?”
नानी बोली
” हा…कयूं नहीं?”
” मम्मी … अब तो वह बच्चा है”
” हीतेश २० साल का हो चुका है… नौकरी भी करता है…. और उसको देख के कौन सा बच्चा लगता है तुझे?”
मां मुस्कुराके सब्जी काटने लगी… उनको भी यह सब मालूम है. तब नानी बोली
” हर माँ को उनके बेटा-बेटी हमेशा बच्चा ही लगता है..जब की वह कितना भी बड़ा हो जाए”

सब्जी काट ते काट ते माँ बोली
” तो अब हीतेश को एकबार पुछ लेते है…”
नानी नमकिन का पैकेट्स काट के छोटा छोटा बरनि में भरते हुए कहा
” उससे क्या पूछना है…”
फिर माँ के ऊपर एक नज़र दाल के देखि. माँ नानी की तरफ बैक होक खडी है सब्जी काट ते हुए किचन स्लैब के पास . फिर अपनी हाथ में पकडे बरनि की तरफ देख के नानी बोली
” घर पे हम उसके बड़े है. क्या हम उसकी भलाई बुराई नहीं समझ ते है क्या?…. और वह भी ऐसा नही… हमेशा हमारी बात सुनता है”
मा का सब्जी काटना ख़त्म हो गया था वह मुड के नानी को देखते हुए किचन का दूसरा तरफ जाने लगी.
वह वहां रखा आटे का डिब्बा खोल रहे थे और बोली
” उसके लिए तो अब एक अच्छी लड़की ढूंढ़नी पड़ेगी मम्मी”
नानी अब बरनि का ढक्कन बंद करते हुए कही
” हाँ… यह एक बड़ा काम है. एक अच्छी लड़की ही तो चहिये”
नानी ढक्कन टाइट करते करते माँ की तरफ देखि और कहने लगी
” जो हीतेश का ठीक से देख भाल कर सके. अकेली हाथों से संसार बांध सके. बच्चे का देख भाल कर सके. और हमारे साथ मिलके हमारी एक फॅमिली जैसी बनके रहे….”
मा थोडी चिंतित दिख रही थी. वह आटा निकालते निकालते नानी को देख के बोली
” सही कहा तुमने मम्मी..”
फिर अपने काम की तरफ नज़र फिराके बोलने लगि
” ऐसी ही लड़की चाहिए हमारे हीतेश के लिये. जो हम सब को अपना सोच के हमारे तरह एक साथ रहे पर….”
मा थोडी चिंता के साथ अपने काम पे जुटी रही. शायद वह यही सोच रही होगी की उन्होंने दोबारा शादी नहीं की क्यों की बाहर से कोई नया आदमी आके उनकी फॅमिली को तोड़ ने की कोशिश ना करे अपना अधिकार जताके. और आज ऎसी एक नई बात जहाँ पात्र बदल गए पर सिचुएशन वही सामने है. आज कल की लड़की..बहु ससुराल में क्या क्या कारनामा करना चालू कर देती है.
नानी ने नोटिस किया माँ कुछ सोच में है. तो उन्होंने चुप्पी तोड़ के बोली
” और तो और देखने में भी अच्छी होनी चहिये…हमारे हीतेश के साथ
बिलकुल मैच हो पाये”
मा उठके एके आटे की थाली किचन स्लैब के ऊपर रखि. और उसमे पाणी ड़ालने लगी और बोली
” ऐसी लड़की मिले तब ना मम्मी….”
नानी को थोड़ा होसला मिला. माँ की साइड प्रोफाइल नानी को नज़र आ रही है. उन्होंने माँ से नज़र ना हटाके बोलते रहि
” हम भी एहि सोच रहे थे. आज कल जो लड़की लोगों को देखती हू, उनसे मन ही उठ जाता है. तेरा पापा के साथ इसको लेके बहुत बात हुइ. हम भी परेशान हो गए थे. कहाँ मिलेगी ऐसी लड़की. कौन खबर करेंगा. बहुत सारि बात चित होने के बाद हम यह तय किये की हम इतना क्यों सोच रहे.क्यों की हम सबकी भलाई के लिए ही चिंतित है. हमारे सब की भविष्य के बारे में सोच के चलना पड़ेगा. सब ठीक विचार करके हम ने सोचा की..हाँ है न… ऐसी ही लड़की है….जैसे हम सब को चहिये”
मां आटा गुंथते गुंथते रूक गई..और नानी की तरफ मुड़के आँखों में एक हैरत के साथ और होंठो पे मुस्कराहट लेके पूछि
” क्या मम्मी…. आप लोगों ने लड़की ढूंढ भी निकाली!!”
नानी अब एक स्माइल के साथ उठ के माँ जहाँ खडी थी स्लैब के पास वहां आने लगी. तब माँ फिर से पूछि
” कहाँ से ढुंडके निकाली मम्मी?”
नानी माँ के पास पहुछि और उनके सामने खडी होगई. नानी माँ का चेहरा गौर से देखने लगी. माँ भी थोड़ा एक्साइटेड हो रहे थी. नानी की आँखों में एक ममता और प्यार भरी मुस्कराहट छा गई. माँ फिर से पुछी
” कौन है वह लड़की मम्मी…और कहाँ की है?”
नानी देखा माँ नहाके फ्रेश होकर एक लाइट कलर की प्रिंटेड साड़ी में आज बहुत सुन्दर दिख रही है. उनके सर के बाल पे एक टॉवल लपेटा हुआ है. एक दो बाल टॉवल से निकल के उनकी फोरहेड के ऊपर पड़ा है. नानी अपने दोनो हाथ से माँ का वह बाल प्यार से फोरहेड से हटाके उनका चिन पकड़के बोली
” बाहर कहाँ ढूंढू ऐसी लड़की….जब हमारे ही घर में एक ऐसी सुन्दर लड़की है तो” बोलके नानी एक चौड़ी स्माइल करते रही.
मा इस बात को ठीक से समझ नहीं पाई. वह कोशिश कर रही है समझने की और जैसे की कुछ याद कर रही है. उन्होंने एक बड़ा सा पलक झपका के नानी को पुछी
” मलताब….कोन है मम्मी?”
नानी अपनी स्माइल बरक़रार रख के..आँखोँ में और प्यार और ममता लेके बोली
” क्यूँ !!…. हमारी मंजु सुन्दर नहीं है क्या?”
मा कुछ पल नानी को देखते रही और उनको कुछ समझ के. उनके फेस पे जो चमक थी वह ग़ायब हो गई अचनाक. उनकी आंख स्थिर हो गई ,जगह के उपर. वह बिलकुल स्तब्ध हो गई. वह नानी को एक दृष्टि से देख के बोली
” कैसी बात कर रही हो मम्मी!! “
नानी अब एकदम शांत आवाज़ में लेकिन प्यार से कहने लगि
” देख मंजू.. मैं और तेरे पापा इस बारे में बहुत सोचे. हमको यह भी मालूम है इस के लिए हम सब को न जाने क्या क्या सैक्रिफाइस और एडजस्टमेंट करना पड़ेगा. न जाने क्या क्या असुबिधा झेल ना पड़ेगा. लेकिन इस में ही सब का भलाई है. सब का भविष्य हम को ही तो सोचना पड़ेगा मंजू. ……”
नानी इस तरह फिर से वहि सब बात बताने लगी. आज वह है तोह ठीक है. कल जब वह लोग नहीं रहेंगे तब क्या मंजु अकेली जी पायेगी? हीतेश और किसीसे शादी करेगा तोह क्या गारंटी की वह लड़की हमारे जैसी ही होगी. मंजु को वह कैसे ट्रीट करेगी उसकी गारंटी कौन देगा. फिर वहि पुरानी चिंता. और ऐसे होने में किसका क्या कैसे भलाई है, उसकी का फेरिस्त देणे लगी नानीजी. नानीजी यह भी बताई की खुद की भलाई और खुद की लाइफ सिक्योर्ड बनाने के लिए अगर समाज से थोड़ा दूर जाके एक अलग दुनिया बनाके हम खुश रहे , तोह इसमें कोई बुराई नहीं है. माँ एकदम हैरत से सब सुन रही थी. जैसे की उनको बिस्वास नहीं हो रहा है की नानी जी कुछ बोल रही है. वह खुद कुछ भी बोल नहीं पा रही थी. असल में उनका मुह तक कुछ आ नहीं रहा है बोलने के लिये. अन्दर ही अंदर एक तूफ़ान मचा हुआ है. भला , बुरा , पाप, पुण्य , न्याय, निती, समाज ,संस्कार सब ने उनके मन में भीड़ कर के उनका बोलना बंध करवाया था. वह केवल नानी को देखे जा रही है. उनकी आँख धीरे धीरे नम होके गिला हो रहा है. बहुत टाइम बाद जब नानी की बात धीरे धीरे कम होने लगा तब वह नानी की आँखों में आँखें डाल के, एक स्थिर दृस्टि होकर, एक शांत और कठिन आवाज़ से पूछि
” क्या यह सब हीतेश को भी बता दिया आप लोगों ने?”
नानी अब एक माँ का प्यार और ममता भरी आवाज़ से बोली
” नहीं बेटा… यह बात तुम्हारे बूढे माँ बाप, अपनी एक लौती बेटी के अपने एक मात्र पोते के, और अपनी फॅमिली की भलाई के लिए ही सोचे है. इस में अब सब कुछ तुम्हारे डिसिशन के ऊपर डेपेंट करता है बेटा.”
मा नानी को कुछ पल देख ते रही और जब आँखों से आसूं गिरने का वक़्त आगया तब मुड़के वहां से दौड़के अपने रूम में चलि गयी.
वहा क्या क्या हो रहा था. लेकिन मुझे भनक तक लगने नहीं दि. यह बात मुझे बाद में पता चली थी लेकिन एक बात में महसूस करने लगा था की घर पे कुछ तो हुआ होगा. क्यूँ की जब हर की तरह उस दिन रात में माँ को फोन किया. माँ पहले उठायी नहि. दोबारा ट्राय किया तब उठाया. और थोडी खामोश लगी. मेरे से बात कर रही थी , पर बोल तो में रहा था , उन्होंने केवल ‘हमम’, ‘हाण’, ‘यक’, ‘ठिक है’, अच्चा’ ऐसे बोलने लगी .
मैन सोचा उनका मूड ऑफ होगा शायद. मैं बड़ा होने के बाद कभी भी माँ को जबरदस्ती कुछ पूछता नहीं था हमेशा वह जो बोलती थी, में सुनता था और मुझे उनकी हर ख़ुशी का ख्याल रख के जैसे बात करना है वैसे ही करता थाऐसे तीन दिन चला. ऑफिस में काम का प्रेशर था सो उस बात को में ज़ादा खीचा नहि. पर
उस फ्राइडे रात को जब में माँ को फोन किया तोह माँ उठायी नहि. मैं सच मुच सोच में पड़ गया. माँ की तबियत तो ठीक है. फिर में नानाजी को फोन लगाया. नानाजी बोलै की घर पे सब ठीक है, चिंता की कोई बात नहि. तुम कल आजाओ आराम से. मैं सुन तो लिया पर मेरे मन में लगा था की जरूर कुछ बात होगी. जो सब मुझसे छुपाना चाहते है. एक चिंता दिमाग के अंदर लेके उस वीकेंड में यानि की शनिबार शाम को अहमदाबाद पहुंचा.

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दर असल में हुआ था यह की…उस दिन माँ किचन से दौर के , अपने रूम के जाके डोर लॉक कर दिया. दोपहर लंच करने भी बाहर नहीं आई. नानीजी जाकर बुलाई, दरवाज़ा खटखटायी, पर माँ खाने के लिए स्ट्रैट मना कर दि. जब रात में नाना नानी सब डिनर करके सो गए थे, उसके बाद माँ उठके किचन में गई और फ्रिज से कुछ खाना निकल के चुपचाप खाके फिर से रूम में चले गई. नाना नानी सोच में पड़गये. उनलोगों ने यह एक्सपेक्ट ही किया नहीं की सुरु में ही ऐसा रिएक्शन देखने को मिलेगा उन्को. उनलोग ने सोचा की शायद वह लोग यह एक बिलकुल गलत स्टेप लेने जा रहे थे. इस में उनकी बेटी इतनी हर्ट होगी. न जाने बेचारी को कितना दुःख पंहुचा होगा.

नेक्स्ट डे नानीजी खुद घर का सब काम करने लगी. माँ को बिलकुल डिस्टर्ब करना उचित नहीं होगा समझी. उनको थोड़ा टाइम अकेले छोडना सही समझा वह लोग. लंच में फिर नानीजी माँ को बुलाये पर माँ डोर खोलके बाहर नही आई. वह लोग लंच करके अपने रूम में आराम करने चले गए तो माँ किचन में आके अकेली खाना खा लिया. नाना नानी को मालूम पडता है आवाज़ से. पर वह लोग भी अब सामने आके माँ को अनवांटेड सिचुएशन में डाल ना नहीं चाहते थे. ऐसे तीन दिन कट गए अगला दिन थर्सडे था. सुबह सुबह नानीजी नास्ता बनाने जुटे हुये थी. अचानक माँ किचन में आके नानी को कहति है ” में बनाती हूँ ” बोलके माँ खुद काम पे लग गयी. माँ कि आवाज़ में एक ऐसी ठण्डी और कथिक तेज थी, जिससे नानीजी कुछ बोलने में साहस नहीं किया. वह चुप चाप माँ को देखि. माँ बिलकुल एक साइलेंट और फ़ीलिंगलेस फेस लेके काम करे जा रहे थी. नानीजी चुप चाप वहां से निकल गए माँ घर का काम काज करना शुरू कर दिया, पर किसीसे कोई बात नहीं हो पा रहा था. माँ अपना काम करके फिर अपनी रूम में जाके लॉक लगा के अंदर रहती थी. रात को नाना नानी सोते टाइम बोलने लगे की शायद उनलोगों की बातों से उनकी बेटी का मन में एक गहरा चोट लगी. इस लिए वह भी दुखी हो गए पर है तो वह लोग उनकी मम्मी पापा सो वह लोग खुद ही अपना किया हुआ करम , खुद ही समेटना चाहा. अगला दिन यानि की फ्राइडे के दिन सुबाह नानी खुद किचन में आके माँ से बात करने का कोशिश किया. माँ पहले मुंह से जवाब न देके, नानी जो माँगती है या करने को कहती है, वह सब चुप चाप करके एक साइलेंट जवाब दे ने लगी. नानी सोचा गम थोड़ा हल्का हो रहा है. नास्ता करके नाना नानी जब टीवी पे न्यूज़ देख रहे थे , तब वह लोग देखा की माँ पहले जैसा डाइनिंग टेबल पे आके, लेकिन अकेला बैठके नास्ता कर रही है. ऐसा सुबह का समय कट गया. जब लंच बनाने में नानी आके माँ का हाथ बटाने लगी , तब माँ बेटी में धीरे धीरे डायरेक्टली बात चित सुरु हुआ. आज माँ का आवाज़ काफी नार्मल थी. लेकिन आज उन्होंने फिर से सब का खाना होने के बाद अकेली टेबल पे बैठके खाना खाया नाना नानी दो पहर अपना रूम में रेस्ट कर रहे थे. आज उन लोगों को थोडी खुश दिखि. क्यूँ की जो परिस्थिति क्रिएट हुआ था , अब उसका काला मेघ इस घर से हट गया था. शाम के टाइम नानीजी किचन में गई माँ अकेली चुप चाप किचन स्लैब के ऊपर हाथ रख के खड़े खड़े चाय उबाल ना देख रहे थी. नानी का एंट्री से वह हिली नही जैसे कुछ सोच में है. नानी इधर उधर कुछ करके, माँ को एक टक देखती रही. और फिर माँ के पास आके स्लैब के ऊपर एक हाथ टीका के खड़ी हो गयी.

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नानी चुप्पी तोड़के माँ के तरफ देख के बोली
” मंजू………बेटा…… हर माँ बाप अपने बच्चों की ख़ुशी के बारे में सोचते है. हम शायद कुछ ज़ादा सोच लिया था……..”
फिर जैसे ग़लती एक्सेप्ट करने का बॉडी पोस्चर होता है, वैसे नानी अपना सर थोड़ा झुका के , अपने दूसरी हाथ से साड़ी का आँचल मोड़ ते हुए कहि
” अपने नसीब में जो है, वहि होगा”
” आप लोग अकेले कैसे रहेंगे!!”
अचानक यह सुन के नानी झटके से अपना मुँह उठाके माँ की तरफ देखा. माँ नानी का लुक फील करती है और अपना सर थोड़ा झुका के अपनी पैरों की तरफ देखने लगी नानी को समझ ने में थोड़ा वक़्त लगा. फिर उनके होठो पे एक स्माइल खील गयी. उनकी अंख में ख़ुशी झलक उठि, धिरे से माँ के और नज़्दीक आई और माँ का चिन पकड़ के अपनी तरफ मोड़ ने की कोशिस की. माँ जैसे खड़ी थि, उनकी बॉडी का पोजीशन हिला नहीं , लेकिन उनका फेस नानी के तरफ मूड गया. उनकी आँख झुकि ही है. उन्होंने कोशिश करके भी उनके फेस पे शर्म आनी छुपा नहीं पाई नानी पूरी बात समझ गयी फिर भी प्यार से फुसफुसा के पूछि
“सच ?”
मा नानी की तरफ मुड़के उनके कंधो में अपना मुह छुपा ली. और नानी को दोनों हातो से बेडी लगाके पकड़ली. नानी हसके उनकी एक साथ माँ के पीठ के ऊपर रख के दूसरे हाथ से माँ की
बाल और पीठ सहलाने लगी एक माँ अपनी बेटी को परम ममता से प्यार कर रही है. नानी हस्ते हस्ते बोली
” अरे पगली….इस में शर्मा ने का क्या है. हम थोड़ी कोई अन्जान लोग है…..और नहीं तू किसी और के घर जा रही है…सब तो तेरा अपना हि लोग है…”
मा ने और शर्मा के नानी की छाती में मुह छूपा लीया.

मै शनिबार अहमदाबाद पहुच गया. शाम हो गइ थी आने मे. नाना नानी मुझे हर बार की तरह स्माइल के साथ ही स्वागत किया. लेकिन हर बार की तरह माँ वहां दिखाइ नहीं दि. मैं अंदर आके अपना बैग रखा. पर मुझे समझ नहीं आ रहा था की जब यह लोग इतने खुश दिख रहे है तो , जरूर कोई गड़बड़ तो नहीं है घर पर. फिर भी माँ मेरे साथ ऐसे क्यों कर रही है. मेरी कौन सी ग़लती पे माँ मुझ पर नाराज हो गयी!! क्या में उनको अन्जाने में दुःख पहुंचाया!!! यह सब भावनाएं मुझे घेर ने लगी. माँ जनरली घर पर ही रहती है. और आज तो मेरा आने का दिन है. आज तो वह रहती ही है. तोह फिर क्यों वह मेरे से मिलने सामने नहीं आई.
हम सब ड्राइंग रूम के सोफे पे बैठे थे. नानीजी पानी लाक़े दिए पीने के लिए और फिर नाना नानी मेरे से हास् हास् के खुसी के साथ बात कर रही थे. वही सब पुराना टोपीक. मेरा हाल वगेरा पूछते रहे. मैं उनलोगे के सवाल का जवाब दे रहा था छोटी छोटी शब्द मे. क्यूँ की मेरा मन धीरे धीरे जिद्द पकड़ने लगा. अगर सच में अन्जाने में में कोई ग़लती कर भी लिया , तो माँ होकर उनका यह फ़र्ज़ नहीं बनता की वह सामने से आकर अपनी बेटे का वह दोष बतादे.. और चाहे तो जो मर्ज़ी सजा दे. ऐसा न करके वह पूरे हप्ताह मेरे से ठीक से बात भी नही की. और अभी तो वह मेरे सामने भी नही आइ . मेरा दिल उनके लिए जिद्दी होने लगा. मेरा आंख जलने लगी. मैंने सोचा की ठीक है, अगर वह माँ होकर अपनी बेटे के साथ ऐसा बर्ताव कर रही है, तोह में भी उनका बेटा हुण. मैं भी उनसे जाके मिलूँगा नहि, जब तक वह मेरे पास नही आती. मैं भी बहुत जिद्दी हुण. मैं बहुत भावुक बन रहा था. फिर भी में खुद को कण्ट्रोल करके नाना नानी से बात कर रहा था. इन सब बातों के बीच नानाजी मेरे तरफ देख के बोले
” बेटा.. तुमसे कुछ बात करना है.” मैं शांति से बोला
” कहिये नानाजी”
उनहोने एक बार नानीजी को देख, फिर मेरे तरफ देख के थोड़ा स्माइल के साथ बोलै
” इतना अर्जेंट भी नहीं है. तुम फ्रेश हो जाओ. खाना वाना खाके आराम से बैठ के बाते करेंगे.”
मैं मेरे रूम में जाकर फ्रेश होने लगा. नानाजी न जाने क्या बात करना चाहते है. लेकिन में माँ को लेके ज़ादा चिंतित था. ऐसे ही बहुत सारी चिंता से मन भरी था. कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. दिल बोल रहा था की है तो माँ इसी घर पर ही. दौड़ के जाके उनसे पुछु की क्या मेरा गुनाह है. पर मेरा जिद्द मेरा पैरों को बांध के रखा. मैं एक नया पाजामे और टी- शर्ट पेहेनके जैसे ही बाहर ड्राइंग रूम में आया, तब नानी डिनर के लिए बुलाया.
आज नानाजी और में बैठा. मालूम था की पहले जैसा आज सब कुछ होनेवाला नहीं था. नानी सर्व करने लगी. लेकिन में किचन में माँ की उपस्थिति फील कर रहा था. और एक दो बार तो नानी से बात भी करते हुए सुना. मुझे एक गुस्सा आया. सब तो ठीक ही है. तोह क्या में ही गुन्हेगार हूँ!! और नाना नानी को भी माँ का इस तरह से व्यवहार करना, या इस तरह से मेरे सामने पेश होना, जरूर नज़र आ रहा होगा. फिर भी कोई किसी को कुछ बोल भी नहीं रहा है. खाना खाते खाते सोचा की शायद नानाजी इस बारे में ही कुछ बताने वाले है.

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डिनर के बाद नानाजी मुझे टेरेस पे लेके गये. गर्मी का टाइम था. सो टेरेस पे एक अच्छा फील हो रहा था. थोड़ा थोड़ा हवा आ रहा था बीच बीच मे. आस पास का एरिया में ऐसे ही सब प्राइवेट मकान है. और ईस्ट साइड में ,हमारे महल्ले का रास्ता जाकर जहाँ बड़े रास्ते से मिला है, वहां कुछ फ्लैट बिल्डिंग है. बाकि तरफ दूर दूर तक मैदान दिखाइ देता है. उधऱ से हवा आरही है. नानाजी किनारे के तरफ जाकर , टेरेस की फेंसिंग में टेक लगाके एक सिगरेट निकाले. और बोलने लगे ” तुम्हारा नानी यहाँ नहीं है अब… तोह ठीक है….” बोलके हॅसने लगे और माचिस निकालकर सिगरेट जला लिये. मैं बोला
” नानाजी…डक्टर आप को स्मोक करने में मना किया है”
उन्होंने एक कस लगाके धुआं छोड़के बोला
” एक आध पिने में कुछ नहीं होता है…”
नानाजी हस्ते हस्ते ऐसे बाते सुनाने लगे. कुछ समय ऐसे ही बीत गया. पर मेरा मन यह सब सुन नहीं रहा था. मुझे बार बार यह चिंता सता रही है की नानाजी आखिर मुझे क्या बताना चाहते है.
ईस सब सोच के बीच नानीजी आवाज़ लगाई. हम नीचे गये. मैं नज़र घुमाके माँ को देख नहीं पाया. किचन में लाइट ऑफ है. माँ शायद डिनर करके अपने रूम में चलि गयी. मुझे बहुत ग़ुस्सा हुआ माँ के उपर. मैंने क्या ग़लती किया की उन्होंने मुझे ऐसे सजा दे रही है. नानाजी मुझे उनके कमरे में आने को कहे. नानीजी भी आ गई. नानाजी आकर दरवाज़ा थोड़ा बंध कर दिया.
मैं बेड के पास रखा कुरसी में बैठा. नाना नानी बेड पे आराम से बैठे. मेरा टेंशन बढ़ रहा है. आखिर क्या कहेंगे, और उस में माँ का क्या ताल्लुक है. यह सब हज़ारों चिंता जब मेरा दिमाग में भीड़ किया तब नानाजी बोलना सुरु किया.
“बेटा…हुम तुम्हारा परवरिश का कोई कमी नहीं रखा है. बचपन से सब कुछ देते आया. और आज तक तुम्हारा सब भावना चिंता हम करते है लेकिन अब तुम बड़े होगये हो. जॉब कर रहे हो. हम को छोड़के दूर जाकर अकेले रहने लगे हो. मालूम है वहां तुमको अकेले रहने में कुछ परेशानी फेस भी करना पडता है. तभी भी… यह सब से हम को बहुत ख़ुशी होता है. तुम अब तुम्हारी जिंदगी खुद जीने जा रहे हो. उस से हम को भी हटना पड़ेगा. और हम भी और कितना दिन रहेंगे. हमारा जाने के बाद भी तुम को अच्छी तरह ज़िन्दगी जीना है. अपना फॅमिली बनाना है. तो अब हम सोच रहे है की तुम्हारी शादी करवाने के लिये.”

नानाजी थोड़ा चुप हो गए. शायद मेरा रिएक्शन परख रहे है. मेरा दिमाग में दूसरा कैलकुलेशन चल रहा है. अब मुझे लगा की शायद इस बात से माँ दुखी है और मुझसे शायद नाराज भी है. मैं मन में सोचा की अगर उनका ख़ुशी के लिए मुझे शादी न भी करना पडे, तो मुझे कोई खेद नहीं है. उनको ज़िन्दगी भर खुश रखना चाहता हुं.
नानाजी फिर बोले
“देखो बेटे ..तुमहारा लाइफ में कोई आकर तुम्हारे पास खड़े हो जाए, तुम्हारा हर इमोशन सही तरह से शेयर कर ले, हर चढाई उतराई में तुम्हारे साथ रहके ज़िन्दगी की राहों में चलना आसान कर दे. इस लिए सब के लाइफ में बीवी की जरूरत पड़ती है.”
मैं में जो सोच रहा था टेंशन के साथ, शायद उस का छाप मेरे फेस पे नज़र आया था. इस लिए नाना नानी हास पडा. नानाजी आगे बोलते रहै
” हमने आज तक तुमहारा सब भला बुरा सोच के ही काम किया. अब यह लास्ट ड्यूटी भी ठीक से पूरी हो जाये तो चैन से मर सकता हु.”
मैं माँ का बात सोच के बोलने लगा
” नानाजी….आप का बात ठीक है… लेकिन …….”
मैन रुक गया. मुझे पहले माँ से जानना है , क्या इस बात को लेके वह दुखी है !!. इस लिए मुझे गुस्सा होक मेरे से दूर है!! लेकिन नानाजी शायद मेरा द्विधा समझ गए और मेरा बात पकड़ के बोले
” बेटा पहले में जो बोल रहा हुन ..पुरा सुन लो. फिर तुम आराम से सोच समझ के मुझे बताना. अगर तुम को लगे की यह हमारा सब का भलाई के लिए है, तो वैसे सोच के बताना, नहीं तो जो मन में डिसाईड करोगे ,वईसे ही बताना. कोई प्रेशर नहीं तुम्हारे उपर. “
यह बोलके नानाजी नानीजी को देखे. नानीजी भी सहमत होकर अपना सर हिलके मुझे आश्वसन दिलाया.
नानाजी फिर से बोलना शुरू किया
” बेटा…हुम तुम को सब चीज़ दिया बचपन से, जो हर कोई बच्चे को मिलता है, लेकिन एक चीज़ कभी नहीं दे पाये”
मैं नानाजी के तरफ देख के सुनने लगा
” हर बच्चे का नसीब में किसीको ‘पापा’ कहके बुलाने का सुख है, वह हम कभी तुम्हे प्राप्त करने का सौभाग्य नहीं दे पाया. और अब तुम्हारा शादी हो जाये तो तुम को एक नए मम्मी पापा भी मिलेंगे.”
फिर नानाजी थोड़ा आगे आके , मेरा हाथ अपना हाथ के अंदर लेके, दूसरी हाथ से मेरे हाथ को दो बार थप थपाया. और एक मुलायम स्नेह भरी आवाज़ से मुझे देख के बोलने लगे
” हम सब का भलाई सोच के ही यह सब कर रहा हु………अगर तुम को बोलू…मतलब…क्या तुम मुझे ‘पापा’ बोलके बुलाना पसंद करोगे?”
बोलके मेरे आँखों में अंख मिलके देखने लगे. मुझे इस बात को समझने में कुछ पल लग गया. जैसे ही इस का मतलब मुझे समझ में आया, तभी मेरा शरीर में एक अनजाना अनुभुति फ़ैलने लगाग. मैं फिर भी कन्फर्म होने के लिए , गले में उसका असर पड़ने ना देखे, पुछा
” मतलब आप क्या कहना चाहते है नानाजी ?”
नानाजी स्ट्रैट बोलने लाग
” बेटा अब में तुम्हारा नाना बनके नही, एक बेटी का बाप बनके तुमसे यह पुछ रहा हु की क्या तुम मेरी बेटी का हाथ थामोगे?”
अब मेरे अंदर एक अजीब सा, एक अद्भुत सा फीलिंग्स होने लगा. जो में बयां नहीं कर सकता. मैं केवल बोला
” एह्…यः….आप क्य…क्या कह रहे है नानाजी……”
“हम बहुत..बहुत सोच समझने के बाद यह बात तुमको बोलने का साहस किया”
मैं अपने आप को कण्ट्रोल करते हुए कह
“पर…पर….यह कैसे होगा…..कैसे मुमकीन है……”
” अगर हम चाहे तो सब हो सकता है बेटा”
मेरी माँ का चेहरा मेरे नज़र के सामने आया. मैं सोचने लगा की यह सब बात सुनने के बाद में माँ से कैसे फेस करूँगा अब. और नाना नानी मेरे से खुलके ऐसे बात कर रहे है की मुझे एक शरम, न जाने क्या , मुझ में छा ने लगाग. मैं बोला
” नानाजी हम कैसे ऐसे कर सकते है….ना की कहीं…कभी ऐसा हुआ!!”
नानाजी शांत आवाज़ से कहे
“बेटा…में और तुम्हारा नानी इस बारे में सोचा..हमसब का ख़ुशी के लिए हम कुछ भी सहने के लिए तैयार है. हम बस चाहते है की हमारा बेटी और हमारा पोता ज़िन्दगी में हमेशा खुश रहे…”
फिर थोड़ा रुक के बोले
” और…और तुम्हारी माँ भी इस रिश्ते के लिए राजी है.”
मैं चोंक गया. क्या माँ भी जानती है यह सब!! क्या इस लिए वह मेरे सामने नहीं आरही है!! इस लिए फ़ोन पे ठीक से बात नहीं कर पायी!! और तो और उन्होंने इस रिश्ते को अपनाने के लिए भी मंजूरी दे दि.. मेरा स्पाइन में के एक ठण्डी शीतल पर दिल में कम्पन देणे वाली एक अनुभुति धेरे धेरे नीचे जेक पूरा सरीर में फैल गया. मेरा सर झिमझिम करने लगा. फिर भी में थोड़ा आश्चर्य और डाउट के साथ धिरे से पुछा
” क्या आप लोग माँ से भी इस बारे में बात……और…..और उन्होंने ….”
बोलके में चुप हो गया. नानाजी बोले
” पहले तो वह हम से बहुत गुस्सा किया. एक दम ख़फ़ा हो गयी थी. तीन दिन ठीक से बात भी नहीं कि, खाना भी नहीं खायी. दिन भर रूम लॉक करके अंदर रहने लगी. फिर और दो दिन बाद सिचुएशन थोड़ा सहज हुआ. मंजु भी धिरे धिरे थोड़ा नरम होने लगी. और कल जब तुम्हारा नानी से मंजु का बात हुआ तो तभी हम जान पाये.”
मेरा दिमाग में बहुत सारे सोच्, चिंता भर के भीड़ करने लगा. मैं कुछ न बोलके बैठा था. नानाजी बोले
” हम तुम पर जबरदस्ती से हमारा इच्छा चढा नहीं रहा हु. इतना जल्दी जवाब देणे की जरुरत नही. तुम टाइम लेके सोचो. फिर बताओ. जो भी राय होगा तुम्हारा, उसको हम प्यार से एक्सेप्ट करेंगे”

उस दिन में बहुत सारे चिंता और नए नए अनुभुति के साथ धिरे धिरे नाना जी के रूम से निकल के मेरे रूम में आया. मेरा अनुपस्थिति में , मेरा बिस्तर एक दम फिट फाट बनाके गयी है मा. मैं ज़ादा सोच भी नहीं पा रहा था. बस जाके सो गाया. नीद नहीं आ रही थी. बीच बीच में एक नइ उत्तेजना से कांपने लगा. जो भावना मेरे मन के अंदर थी, आज वह सच मुच घटने जा रहा है. एक रोमाँच में बन्द होकर आंख बंध करके पड़ा रहा. ऐसे कैसे टाइम चला गया पता नहीं चला. देर रात तक अकेला सो सो के कुछ डिसिशन लेनेका फैसला किया. पर हालत ऐसा था की उस से पहले खुदको हल्का करने के लिए पाजामे के अंदर से अपना पेनिस निकल के हिलाने लगा. पेनिस आज ज़ादा गरम मेहसुस हुआ. मैं जोर से झटका मार मार के गरम गरम सीमेन पूरा बॉडी में बारिश जैसा गिराया. मन शांत होने लगा क्यों की तब तक शायद मेरे अंदर अन्जाने में कोई डिसिशन हो चुका था. और धिरे धिरे एक चैन की नीद आने लगी.

आगला दिन रविवार था मैं सुबह जल्दी उठ गया था मैं हमेशा जल्दी उठ ता हु माँ ने ये आदत लगाई है मुझे. माँ जादातर मेरे पीछे पड़ पड़ के बचपन से यह आदत बनादि है. माँ हमेशा बोलती थी की सुभा उठके पढाई करूँगा तोह जल्दी से सब याद रह जाएगा. ऐसी बहुत सारी अच्छी आदते मेरे में डाल दिया है माँ ने. इस लिए में ज़िन्दगी के रास्ते में चलते टाइम हर पल उनकी उपस्थिति महसुस करते आया हु. वही एक मात्र नारी है जो मेरे पूरे दिल में छाई हुई है. शायद इस लिए कभी और कोई लड़की मेरे मन में जगह बना नहीं पाई
सुबह नींद तूट ते ही देखा सूरज की पहली किरण खिड़की से अंदर लाक़े पूरा घर रौशनी से भर दिया. खिड़की से बाहर की कुछ आवाज़ें आ रहा है. ऊपर फैन घूम रहा है फुल स्पीड में, फिर भी गर्मी जा नहीं रही है. लेकिन यह सब के अलवा मेरे दिल में एक ठण्डी शीतल अनुभुति महसुस कर रहा हु, जो मेरे पूरे बदन को एक नशीली आवेश में भरके रखा है कल रात नानाजी नानीजी ने जो बात कही है, हो सकता है वह इस दुनिया में ऐसा होता नहीं है. समाज उस चीज़ को मान्यता देता नहीं है. पर हमारे घर में सब..यनि की नाना, नानी और मा…सब इस में सहमत है. सब हमारी खुद की भलाई के लिए ही यह चाहते है. और उसके लिए जो भी बाधा का सामना करना पड़ेगा, जो संकट सामने आकर खड़ा होगा, जो सैक्रिफाइस करना पड़ेगा, वह लोग सब कुछ सहने के लिये, सामना करने के लिए भी तैयार है. तो बाहर की दुनिया के बारे में क्या सोचना है !! और माँ भी एक नारी है. उनके अंदर जो औरत है, उस सुन्दर औरत को में पिछले ६ साल से, एक कल्पना की दुनिया बनाके, अपने ही अंदर छुपाके रख के प्यार करते आ रहा हु. बॉल अब मेरे कोर्ट में है. अगर में चाहू तो वह कोमल दिल की नाज़ुक औरत ज़िन्दगी भरके लिए मेरी हो सकती है इसी वास्तव दुनिया मे, मेरी जीवनसाथी बन सकती है, मेरी बीवी बन सकती है, मेरे बच्चों की माँ बन सकती है. एक ख़ुशी के आवेश मे में आँख मूंद के बिस्तर पर पड़ा रहा. तभी दरवाज़ा खट खटाके नानाजी नास्ते के लिए बुलाया.

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अब यह अबतक की मेरी ज़िन्दगी का सबसे कठिन समय है. ऐसी एक परिस्थिति हुई है, जहाँ हर कोई एक सीक्रेट को जानलिया. और ऊपर से इनमे से कोई भी एक इंसान यह भी जनता है की यह सीक्रेट बाकि सब को भी मालूम है. फिर भी कोई कुछ नहीं बोल पा रहा है इस बिषय मे. सब पहले जैसा रहने का, बोलने का कोशिस कर रहा है, पर अंदर ही अंदर न जाने क्या एक चीज़ सब को एक दूसरे से थोड़ा अलग कर के रख रही है. खाली एक ही डिफरेंस है. हम चरों में से, केवल माँ सब की नज़र से छुपके रह रही है. स्पेशली मेरे. नाश्ते की टेबल पे भी कल रात जैसी स्थिति थी. माँ किचन से नानी के हाथ से खाना भेज रही है. आज केवल सब लोग थोड़ा कम बोल रहे है.

पुरा दिन ऐसे ही कट ता रहा. नाना नानी से में कम्फर्टेबल होने की कोशिश किया. फिर भी दिमाग का एक हिस्सा सब कुछ नार्मल बनाने में रोक रहा है. वह लोग भी आपस में बात कर रहे है लेकिन धीरे धीरे, कभी कभी मेरे से दूर रहके या मेरा नज़र से बाहर. पर सब कुछ मैं महसूस कर पा रहा था. ड्राइंग रूम में ज़ादा तर टाइम बिताने लगा. इस लिए माँ भी नज़र नहीं आइ. क्यूँ की में समझ गया माँ केवल अपने रूम और किचन में ही आना जाना कर रही है पीछे का बरंदाह से. सो वह मेरे सामने अने में हिचकिचा रही है. शायद शर्म उनको घिरके रखा है
मैं हमेशा की तरह संडे रात को निकल पड़ा स्टेशन जाने के लिए . मैं रात को ट्रेवल करता था एमपी जाने के लिये. क्यूँ की रात में में सोटे सोटे एमपी पहुच जाता था. इस में नीद भी हो जाती और टाइम भी मैनेज हो जात. हर बार की तरह इस बार सब कुछ पहले जैसे नहीं हुआ. इस बार में चुप चाप निकल ने की तैयारी करने लगा. नाना नानी भी मुह पे स्माइल लेके चुप चाप खड़े है. नानी का पैर छूटे ही उन्होंने सिलेंटली मुझे गले लगा लिया. और कुछ पल ऐसे ही वह पकड़ के रखी. जैसे उन्होंने मुझे कोई सहारा दे रही है. मेरे अंदर की सोच को एक परम ममता से भर दे रही है. जब उन्होंने मुझे छोड़ा तब एक माँ की स्नेह भरी आवाज़ से बोली ” अपना ख़याल रखना”. मैं ने खामोशी से सर हिलाया. नानाजी मेरे नज़्दीक आकर उनका राईट हैंड मेरे पीठ में रख के थप थपा दिए. मैं उनका पैर छुने गया तो उन्हों ने सिचुएशन इजी करने के लिए कहा ” क्या भाय…अपना हीतेश इतने बड़े ऑफिस में इतना बड़ा बड़ा काम कर रहा है, अब वह बच्चा नहीं है. वह अब अपनी ज़िन्दगी का भलाई बुराई खुद ही सोच सकता है….” . फिर मुझे देख के कहा ” है की नहीं ?” . मैं खामोशी से स्माइल देके मेरा बैग उठाने लगा. मेरा मन बहुत कह रहा था की में एक बार माँ से मिलके जाऊ. लेकिन कल रात से में खुद उनके सामने जा नहीं पा रहा हु जिद्द के लिए नहि, एक संकोच घेर के रखा है मुझे. एक शर्म मुझे दूर करके रखा है उनसे. चाह कर भी मेरा कदम उठाके उनके सामने जा नहीं पा रहा हु. शायद यह इस लिए की में मेरे से ज़ादा उनको शर्मिंदा नहीं करना चाहता था एक अजीब परिस्थिति में उनको डालके. ऐसे सिचुएशन में उनको नहीं ड़ालना चाहता था जहाँ वह शर्म और ग्लानी में खुद को दुःख पहुँचाए. तभी भी में जाने से पहले उनकी एक झलक देखने के लिए छट पटा रहा था. दरवाजे से निकल के पीछे मुड़के नाना नानी को “बाय” बोलते टाइम , उनकी नज़र चुराके अंदर की तरफ देखा था. मन सोच रहा था , शायद वह वहां कहीं खड़ी होगी. पर में निराश होके निकल गया
ओफिस में काम का प्रेशर था. मैं पूरा दम लगाके काम पे लग गया.
फिर भी हमेशा वह बात मेरा मन में रहता था. पूरे हप्ताह में इस को लेके सोचता रहा. ऑफिस में या साइट विजिट के टाइम भी मन में वह बात आजाती थी. जब भी उस बारे मे में थोड़ा गौर से सोचता था, तब ख़ुशी का एक आवेश मुझे पकड़ लेता था. पूरे हप्ता में ऐसे ही एक ख़ुशी और एक टेंशन में गुजर ता रहा
मैं वापस अने के बाद माँ को भी फ़ोन नहीं करता था. जब भी में फ़ोन करने के लिए सोचता था, मुझे एक शर्म और एक अन्जान अनुभुति घिरके रहता था. नानीजी एक बार फ़ोन करके मेरा हाल पूछे थे. बस…और न उनलोगों ने, ना में…हम कोई किसीसे बात नहीं कर रहा था.
ऐसे धीरे धीरे सब कुछ सोच के, सब ठीक विचार कर के, मेरे मन में एक रोशनाई पैदा होते रही. मेरा दिल भी अब एक पक्का डिसिशन में पहुच गया. और जैसे ही मेरा दिमाग उस डिसिशन को एक्सेप्ट किया, तभी से मेरे अंदर एक आनंद और सुख की अनुभुति फैली हुई है. मैं संकोच से बाहर आके मेरा डिसिशन नानाजी को बताना चाहा.

आखिर उस शुक्रवार मैं, डिनर के बाद मे नानाजी को फोन लगाया. नानाजी फोन उठा के बोले
“हैल्लो.”
मैं तुरंत कुछ बोल नहीं पाया. कुछ पल बाद बोला
”हैल्लो नानाजी..आप लोग सो तो नहीं गए?”
”नही नहीं बेटा…. सोया नही..बस सोने की तैयारी कर रहा हु”.
मेरे दिमाग में बहुत कुछ चल रहा है. कैसे क्या कहुँ वह ठीक से मुह मे नहीं आरहा है. मैं जबाब में केवल ”आह अच्छा..” ही बोल पाया. फिर मेरी चुप्पी देख के नानाजी भी बात ढूंढ ने लगे और बोलै
”टीम कैसे हो बेटा?”
”में ठीक हुण”
“डिनर हो गया तुम्हारा?”
“हा जी….”
फर से चुप्पी छा गया. आज हज़ारों बाधा, हज़ारों चिंता, हज़ारों अनुभुति मेरे दिल के उप्पर भारी होके बैठा हुआ है. पर मुझे आज वह सबकुछ तोड़के, सब बाधा हटाके बोलना है जो में बोलने के लिए फ़ोन किया. मेरी इस तरह ख़ामोशी देखके नानाजी पुछै
”हितेश…बेटा तुम्…. कुछ कहना चाहोगे?”
मैने ने जैसे ही जवाब में ” ह्म्म्म” कहा, मेरे बदन में एक करंट सा खेल गया. पूरा शरीर कांपने लगा. खुद को कण्ट्रोल करते हुए मैंने कहा
” नानाजी,…..आप लोग मुझसे बहुत बड़े है. और हमेशा से मेरी भलाई बुराई सोचते आरहे है……”
फिर में रुक गया. बात सजाने लगा मन मे. पर में समझ गया नानाजी बहुत ध्यान से बिलकुल साइलेंट होक सुन्ने लगे. शायद वह मेरी ख़ामोशी की भाषा भी पड़ने की कोशिश कर रहे थे. मैं फिर बोलने लगा
”अगर….अगर….आप लोगों को लगता है की …..इस में ही सब का अच्छा है……इस में सब खुश रहेंगे ……. और ……. और ….. माँ भी इस से सेहमत है ……… तो …. …..”
मैं रुक गया. यह बताने के बाद एक खुशी और एक अद्धभुत फीलिंग्स मेरे पूरे शरीर के खून में दौड़ने लगी. नानाजी आवाज़ में थोड़ी हसि मिलाके अचानक बोले
” मैं समझ गया बेटा. तुम बिलकुल चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएग.
तूम बस कल घर आओ . बाकि बाते घर पे बैठ के करेंगे”
उस रात मुझे न कोई तस्वीर, न कोई मन घड़ंत दुनिया की जरुरत पड़ी. मैं अपने ही बेड पे लेते लेते आनेवाले कल में जो होनेवाला है, वह सोच के बिलकुल रोमांचित हो गया. इतने दिन जो चीज़ केवल मेरे मन के अंदर एक छोटे कमरे में रखी हुई है. आज अचानक वह चीज़ इस बाहर की वास्तव दुनिया में सच होने जा रही है. मेरे रूम की ब्लू नाईट लैंप की रौशनी चारो तरफ फैली हुई है. मैं यह सब सोच के मेरे पाजामे का नाडा खोल. आलरेडी मेरा पेनिस उसके आनेवाले समय को मेहसुस करके खुद ही ख़ुशी से फूल रहा था. मैं पूरा मुठ्ठी से उसको पकड़के धीरे धीरे सहलाने लगा. आँख बंध करते ही मेरी माँ मेरी नज़र के सामने अपनी झुकि हुई नज़र से खड़ी है. मैं और उत्तेजित हो गया यह सोच के की यह खूबसूरत औरत कुछ दिनों में बस मेरी ही होने वाली है. मेरी बीवी बननेवाली है. मेरा पेनिस का कैप इस सोच में और फूल गया. मैं तेज़ी से हिलने लगा. और माँ का गले में मेरा दिया हुआ मंगलसूत्र और मांग में मेरे नाम का सिन्दूर कल्पना करके में ओर्गास्म की तरफ पहुच गया. मेरा बॉल्स फूल गया और सीमेन शूट करने के लिए तैयार हो गया. मैं तेज़ी से स्वास ले लेके केवल बोलने लगा ‘ मा..आई लव यू लव यु मा…आई.. लव यु’. माँ की कोमल पुसी , जिसको बस कुछ दिन बाद से केवल मुझे ही एक्सेस करने का अधिकार मिलेगा, उसको कल्पना करके उसके अंदर मेरा वीर्य छोड़ने का सुख मेहसुस करके, मेरा एकदम फुला हुआ मोटा पेनिस जोर जोर से झटके खाने लगा और अचानक फींकी लेके मेरा सीमेन मेरा फेस, गला ,छाती सब गिला करके भर भरके निकल ने लगा. आज पहली बार इतना सीमेन निकला की में खुद हैरान हो गया. जब मेरा ओर्गास्म पूरा होगया, में शान्ति से अंख बंध करके बेड पे पड़ा रहा.

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