समीर चुपचाप सुनता रहा।
नेहा- भइया कभी हम पर भी अहसान कर दो, गैरों पे करम अपनों पे शतम… ऐसा हम पे जुल्म ना करो।
समीर- “देख नेहा, जैसा तू सोच रही है ऐसा कुछ भी नहीं है। इस बारे में फिर कभी बात करेंगे। अभी घर में मम्मी पापा हैं। चल मुझे फ्रेश होने दे…” और समीर बेड से उतर जाता है।
नेहा- “एक बार इसको छूकर देख लूँ?” और नेहा ने समीर के अंडरवेर में हाथ डाल दिया।
समीर- पागल मत बन, मम्मी ने देख लिया तो मुसीबत बन जायेगी। जा अपने रूम में।
नेहा- नहीं पहले वादा करो की अपने पास सुलाओगे आज रात?
समीर- “अच्छा मेरी माँ अब जा यहां से…”
फिरर नेहा अपने रूम में चली गई।
सबने नाश्ता किया। अजय दुकान पर चला गया, समीर कंपनी, और अंजली किचेन का काम निपटाकर नेहा के रूम में पहुँचती है।
अंजली- नेहा मुझे थोड़ी शापिंग करनी है, मेरे साथ मार्केट चल।
नेहा- चलिए मम्मी।
दोनों मार्केट पहुँच गये। अंजली और नेहा विजय की दुकान पर पहुंच गई।
शिवांगनी- आइए मेडम क्या लेंगी आप?
अंजली- हमें काटन के शूट दिखाइए।
तभी विजय की नजर अंजली पर पड़ती है, तो विजय- “अरे… भाभी आप… क्या बात है आज हमारी दकान पे?”
अंजली- भाई साहब काटन के शूट लेने थे।
विजय- हाँ हाँ देखिए जो मर्जी। शिवांगनी भाभी को सारी वेरायटी दिखाओ। और बेटा नेहा तू कैसी है? तु नहीं चाहिए क्या?
नेहा- ठीक हूँ अंकल। बस आज तो मम्मी की शापिंग करने आई हूँ।
विजय- ओके। जब तक भाभी अपने लिए शूट पसंद करें तब तक तू मेरे इस बिल का टोटल कर दे।
नेहा- “लाइए अंकल..” और नेहा बिल टोटल करने लगी।
विजय अंजली को एक शार्ट गाउन दिखाता है- “भाभी आप ये देखिए… इस ड्रेस में आप कितनी हाट लगोगी।
अजय भाई देखते रह जायेंगे आपको…”
अंजली- और आप?
विजय- हमारे ऐसे नशीब कहां जो हम आपको इन कपड़ों में देखें?
अंजली- क्यों क्या खराबी है इन कपड़ों में? ट्राई कर सकती हूँ?
विजय- हाँ हाँ क्यों नहीं? जाइए अंदर ट्रायल रूम है।
अंजली गाउन लेकर ट्रायल रूम में चेंज करती है, और विजय को अंदर ही बुलाती है- “कैसी लग रही हूँ भाई साहब?”
विजय- भाभी कसम से कयामत लग रही हो। मेरा भी मन डोलने लगा आपको देखकर।
अंजली- बस रहने दो… कभी नजर उठाकर देखते भी नहीं और कहते हो मन डोलने लगा।
विजय- आपने कभी इशारा ही नहीं दिया।
अंजली- कैसा देते हैं इशारा, आप ही बता दो?
विजय- अब तो मेरा मन ही चोरी हो गया।
अंजली- किसने चुरा लिया आपका मन?
विजय- कभी तलाश करवाने आ जाना।
अंजली- “हम आपके किसी काम आ सकें, ये हमारी खुशकिस्मती होगी…” और अंजली ने गाउन भी पैक करा लिए और शार्ट भी लेकर निकल गई।
शिवांगनी- सर, ये जो लड़की थी नेहा, यही तो आई थी उस दिन।
विजय- क्या बात कर रही है?
शिवांगनी- और इसके साथ एक लड़की और थी। बड़ी ही गजब की माल थी वो तो।
विजय सोचता हुआ- “कहीं वो टीना तो नहीं?” होचकर विजय अपने कंप्यूटर पर सी.सी.टी.वी. कैमरे की रेकार्डिंग
चेक करता है कंप्यूटर स्क्रीन पर। और विजय को झटका लगता है। टीना और नेहा ने हाट नाइटी पहनी हुई थी। विजय ने कभी टीना और नेहा को इस नजर से नहीं देखा था, मगर आज।
शिवांगनी- क्या हुआ सर, क्या सोचने लगे?
विजय- “कुछ नहीं। चल ट्रायल रूम में चलते हैं…” और शिवांगनी का हाथ पकड़कर अपनी बाँहो में भर लिया।
शिवांगनी- क्या इरादा है सर?
विजय- मेरे मुन्ना को प्यास लगी है।
शिवांगनी- सर, कहो तो आज इसको कुँवें में डुबकी लगवा दें?
विजय- “नेकी और पूछ पूछ? मैं शटर डाल दूं पहले..” और विजय शटर डालकर शिवांगनी से लिपट गया। दोनों
ने जल्दी-जल्दी कपड़े उतार फेंके।
शिवांगनी- “लाओ मेरे मुन्ना को इसकी प्यास कैसे बुझानी है आज?” और लण्ड को लोलीपोप की तरह चाटने
लगी।
विजय- “हे शिवांगनी, तू मेरा कितना खयाल रखती है? आह्ह… मेरी जान मजा आ गया…”
शिवांगनी थोड़ी देर यूँ ही किस करती रहती है।
विजय- “चल अब इसे डुबकी भी लगवा दे…” और विजय ने शिवांगनी को लिटाकर दोनों जांघे अपने हाथों में पकड़ी और अपनी लण्ड को चूत से टिकाकर ऐसा झटका मारा की आधे से ज्यादा लण्ड एक बार में घुस चुका
था।
शिवांगनी- “आहह… मजा आ गया सर..”
विजय अपने हिसाब से धक्के लगाने लगा। मजा दोनों तरफ था।
आज समीर कंपनी में बैठा नेहा और टीना के बारे में सोच रहा था। उधर संजना के पास दिव्या का फोन आता है।
दिव्या- हेलो दीदी, कैसी हैं आप?
संजना- मैं ठीक हूँ, तू बता? और कुछ सोचा तूने समीर के बारे में?”
दिव्या- दीदी भला मैंने आज तक आपकी किसी बात को मना किया है? आपका फेसला मुझे मंजूर है।
संजना समीर के आफिस मे है- “हेलो समीर कैसे हो?”
समीर- जी मेम अच्छा हूँ।
संजना- आज चेन्नई वाले माल की डेलिवरी भेजनी है। कपूर शहाब का कई बार फोन आ चुका है।
समीर- जी मेडम माल तैयार है, बस पैकिंग करके ट्रांसपोर्ट पर भेज दूंगा।
संजना- और हाँ जब तुम फ्री हो जाओ तो मुझे बता देना। आज मुझे तुम्हारे घर पर चाय पीनी है।
समीर- जी मेडम, क्यों नहीं जरूर… ये तो हमारे लिए बड़ी खुशी की बात है।
समीर लंच टाइम तक फ्री हो जाता है, और अपने पापा को काल करता है- “पापा मेरी मेडम अभी घर पर आ रही हैं। आप जल्दी से घर पहुँचकर नाश्ते का इंतजाम करवा दीजिए.”
अजय- ठीक है बेटा, मैं बस पहुँचता हूँ।
समीर संजना के केबिन में पहुँचता है- “मेम, मैंने माल ट्रांसपोर्ट पर डलवा दिया है…”
संजना- वेरी गुड। तो चलें हम?
समीर-चलिए मेम।
संजना- “ड्राइवर से बोलो गाड़ी निकाले…” और दोनों समीर के घर पहुँच गये।
अजय, अंजली, नेहा ने मिलकर संजना का स्वागत किया। संजना को सोफे पर बिठाया और सब भी साथ में बैठ गये।
संजना अजय से- “आपका बेटा बड़ा ही काबिल होनहार है। जब से हमारी कंपनी जान की है, कंपनी के सारे आर्डर तैयार रहते हैं…”
अजय- संजना जी सब आपकी मेहरबरबानी है।
संजना- अरें… नहीं नहीं, ये तो समीर की काबिलियत है। हमें तो समीर इतना पसंद आ चुका है। इसीलिए आपके पास आई हूँ। अगर आपकी इजाजत हो तो मेरी छोटी बहन दिव्या का रिश्ता समीर से हो जाय।
अजय- “ये तो हमारे लिए बड़े फन की बात है की इतने बड़े घर का रिश्ता समीर के लिए आया है। भला हम कैसे मना कर सकते हैं? बस एक बार समीर से पूछ लूं?”
संजना- समीर, तुम्हें ये रिश्ता मंजूर है?
समीर हाँ बोल देता है।
संजना भी खुशी में समीर के मुँह में बरफी का टुकड़ा दे देती है।
संजना अजय से- “हमारा घ में है। वही आप लोग दिव्या को भी देख लेना और मम्मी-पापा से भी मिल लेना। कल सनडे भी है। सुबह 6:00 बजे निकल जायेंगे…”
अजय- ठीक है जैसा आप चाहें।
संजना- नेहा बेटा, तुम्हें भी चलना है। नेहा स्माइल के साथ- “जी ठीक है..”
फिर संजना वहां से निकल गई।
अंजली समीर से- “अच्छा तो ये बात थी की तूने पहले से ही दिव्या को पसंद किया हुआ था?”
समीर- नहीं मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं।
अंजली- “मैं तेरी माँ हूँ मुझे मत चला..” और सबको हँसी आ जाती है।
अंजली- विजय भाई साहब से भी बता दो।
अजय- अभी काल करता हूँ।
अजय- हेलो विजय?
विजय- हेलो।
अजय- हमने समीर का रिश्ता तय कर दिया है। सुबह लड़की देखने जयपुर जाना है। तैयार रहना सबको चलना
विजय- यार मैं तो नहीं जा पाऊँगा। ऐसा कर अपनी भाभी और टीना को ले जाना।
अजय- ठीक है उनसे बोल देना सुबह 6:00 बजे निकलना है।
विजय- ओके बोल दूंगा।
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रात के 10:00 बज थे। अंजली और अजय अपने रूम में सो चके थे। नेहा को नींद नहीं आ रही थी। नेहा ने अपने सारे कपड़े उतार फेंके, और एक छोटी से पारदर्शी नाइटी पहनकर समीर के रूम की तरफ चल दी। नेहा बहुत धीरे-धीरे समीर के रूम में पहुँची, मगर दरवाजा अंदर से बंद था। नेहा ने दरवाजा धीरे से खटखटाया।
समीर- कौन है?
नेहा- भइया मैं हूँ, दरवाजा खोलो।।
समीर ने दरवाजा खोला- “क्या बात है नेहा, और ये सब क्या है?”
नेहा- पहले अंदर तो आने दो भइया?
समीर- “देख आज तू अपने ही रूम में सो जा हमें सुबह जयपुर भी निकलना है। तू फिर किसी दिन सो जाना मेरे पास..”
मुझे नींद भी नहीं आ रही..” और
नेहा- “अच्छा जी सो जाऊँगी… मगर थोड़ी देर आपसे बातें तो कर । नेहा अंदर आकर समीर के बेड पर बैठ गई।
समीर- क्या बात करनी है मेरी बहना को?
नेहा- भइया, आपको दिव्या से कब और कैसे प्यार हुआ? आपकी लोव स्टोरी सुननी है मुझे।
समीर- बस मुझे तो पहली नजर में ही उससे प्यार हो गया था। मेरे दिल से ये आवाज आई की ये ही वो लड़की है, जो मेरी हमसफर बनेगी।
नेहा- वाउ भइया इंटरेस्टिंग… आगे बताओ, फिर क्या हुआ?
समीर- फिर एक दिन संजना मेडम ने मुझे दिव्या को जयपुर छोड़ने को बोला, जैसे ऊपर वाला भी यही चाहता था, और रास्ते में हमने गाने के खेल के सहारे प्यार का इजहार कर दिया।
नेहा- वाह भइया वाह… क्या बात है आपकी स्टोरी तो वाकई कमाल है। बिल्कुल फिल्मी स्टाइल वाला प्यार किया
आपने।
समीर- अच्छा देख अब तू भी अपने रूम में चली जा।
नेहा- भइया एक बार गले लगना है आपके।
समीर- तू नहीं मानेगी, चल आ जा।
नेहा की खुशी का ठिकाना ना रहा और बेड से कूद कर समीर की गोद में जा पहुँची। अपने दोनों हाथ समीर की गर्दन में लपेटे और अपने होंठों को समीर के होंठों से जोड़ लिए।
समीर को नेहा से ऐसी उम्मीद नहीं थी। मगर नेहा की किस ने समीर में भी जोश भर दिया और दोनों तरफ से चपर-चपर चूसने की आवाज आने लगी। 5 मिनट ऐसे ही चूसते रहे, समीर ने नेहा को नीचे उतरा।
समीर- नेहा अब बस कर, अब तुम अपने रूम में जाओ।
नेहा- क्या भइया तुम्हारा प्यार बस टीना और दिव्या के लिए ही है। मेरा तुमपे कोई हक नहीं?
समीर- अपना हक तू फिर किसी दिन ले लेना।
नेहा- “अच्छा जी…” और नेहा ने समीर की पैंट के उभार को हाथों में पकड़ लिया।
समीर की हाय निकल गई।
नेहा- “इसपर पर भी मेरा पूरा हक है। ये हक भी लेना है..” और नेहा अपने रूम में चली गई।