देवर भाभी का रोमांस – 4 | Devar Bhabhi Sex Story

मे डरते-2 उनके पास गया.. उन्होने मेरे माथे पर एक किस किया और बोले – मेरा बेटा अब समझदार हो गया है .. है ना बहू.. जुग-जुग जियो मेरे बच्चे.. मे तो चाहता हूँ कि शिक्षा का अधिकार समान रूप से सबको मिले.. यही बात मेने अपने भाइयों को भी समझाने की कोशिश की लेकिन तब उनकी समझ में मेरी बात नही आई,

लेकिन अब वो भी अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे.. चलो देर से ही सही शिक्षा का महत्व समझ तो आया उनकी.

भाभी का मन गद-गद हो रहा था, जैसा ही अकेले में उन्हें मौका मिला, अपने सीने से भींच लिया मुझे और मेरे चेहरे पर चुम्मनों की झड़ी लगा दी…

थॅंक यू लल्लाजी, तुमने मेरे दिल की बात सबके सामने कह कर मुझे बिनमोल खरीद लिया. आगे पढ़ने की मेरी कितनी ख्वाइश थी, लेकिन जल्दी शादी होने से मन की मन में ही रह गयी.

उस दिन के बाद भाभी का झुकाव मेरी तरफ और ज़्यादा हो गया, और वो हर संभव मुझे अधिक से अधिक खुशी देने की कोशिश करती.

एक दिन सभी भाई घर पर ही थे, बाबूजी बाहर चौपाल पर बैठे, लोगों के साथ गॅप-सडाके में लगे थे.. कि अचानक भाभी का जी मिचलाने लगा और वो श्रिंक मे जा कर उल्टियाँ करने लगी.

अब घर में और कोई बुजुर्ग महिला होती तो वो उनकी परेशानी को समझती.. आनन फानन में बड़े भैया ने उनको स्कूटी पर बिठाया और कस्बे में डॉक्टर को दिखाने चल दिए.

ना जाने क्या हुआ होगा, ये सोचकर मे भी अपनी साइकल जो काफ़ी दिनो से कम यूज़ हो रही थी, उठाई और उनके पीछे-2 चल पड़ा.

डॉक्टर ने उनका चेक-अप किया और भैया से बोले- बधाई हो राम मोहन, तुम बाप बनाने वाले हो..

भैया की खुशी का ठिकाना नही रहा, फिर डॉक्टर की फीस देकर वो बोले- छोटू तू अपनी भाभी को लेकर घर चल में साइकल से आता हूँ, कुच्छ मिठाई-विठाई लेकर..

रास्ते में मेने भाभी को छेड़ा – क्यों भाभी बधाई हो, अब तो आप माँ बनोगी.. लेकिन अपने बच्चे की खुशी में अपने इस नालयक देवर को मत भूल जाना..

वो मेरी पीठ पर अपना गाल सटा कर मुझसे लिपट गयी और बोली- तुम मेरे बच्चे नही हो..? जो मे भूल जाउन्गी..! हां ! आइन्दा ऐसी बात भी मत करना.. वरना में तुमसे कभी बात नही करूँगी.. समझे…

मे – अरे भाभी ! मे तो मज़ाक कर रहा था.. क्या मुझे पता नही है कि आप मुझसे कितना प्यार करती है..

ऐसी ही बातें करते-2 हम घर आ गये… जब घर पर सबको ये खुशख़बरी सुनाई तो सब खुशी से नाचने लगे..

घर में उत्सव जैसा माहौल बन गया था, भैया ने पूरे गाओं में मिठाई बँटवाई, हमारे पूरे परिवार ने मिलकर हमारी इस खुशी में साथ दिया.

भाभी जा रही थी…. पता नही मेरे मन में दो तरह के भाव क्यों आ रहे थे, बोले तो डबल माइंड.. एक तो इस बात की खुशी थी कि भाभी इतने सालों में अपने घर जा रही थी, दूसरा उनसे इतने सालों बाद बिछड़ना हो रहा था.

सच कहूँ तो मुझे उनकी आदत सी हो गयी थी, तो उनके जाने के समय कुच्छ उदास सा हो गया.. जिसे भाभी ने ताड़ लिया और मुझे अकेले में लेजा कर समझाने लगी..

लल्लाजी क्या हुआ..? मेरे जाने से खुश नही हो..?

मे – नही भाभी ! आपको इतने सालों बाद अपने घर जाने का मौका मिला है, मे भला क्यों खुश नही होऊँगा..?

वो – (मेरे गाल पकड़ते हुए), तो फिर ऐसे मुँह क्यों लटका रखा है..?

मे – पता नही भाभी एक तरफ तो आपके जाने की खुशी भी है कि चलो इतने दिनो बाद आपको अपने घर जाने का मौका मिल रहा है,

दूसरी ओर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे अंदर से कोई चीज़ निकल कर आपके साथ जा रही हो, और मे खाली-2 सा होता जा रहा हूँ..

भाभी कुच्छ देर शांत खड़ी मेरे चेहरे को देखती रही.. फिर अचानक उनकी पलकें भीग गयी, और रुँधे स्वर में बोली – ये मेरे प्रति तुम्हारा लगाव है, जो स्वाभाविक है.. और ऐसा नही कि ये स्थिति केवल तुम्हारी ही है… मेरा भी कुच्छ ऐसा ही हाल है.

तुम्हारी भावना तो केवल मेरे लिए ही हैं तब इतना दुख हो रहा है, लेकिन मेरा तो पूरे घर के साथ है तो सोचो मेरा क्या हाल हो रहा होगा…

फिर भी अगर तुम नही चाहते कि मे जौन तो नही जाउन्गि…

मे – नही..नही..! भाभी प्लीज़ आप मेरी वजह से अपनी खुशी कुर्बान मत करिए, दो महीने की ही तो बात है..

भाभी चली गयी और मे अपना जी कड़ा करके उन्हें बस स्टॅंड तक विदा करके आया.

मन्झ्ले भैया का ये फाइनल एअर था, उन्होने डिसाइड किया था कि वो इस साल के पीसीएस के एग्ज़ॅम में बैठेंगे… बड़े भैया की भी यही सलाह थी जिस पर पिताजी को भी कोई आपत्ति नही थी.

हम बेहन भाई की रास्ते की मस्तियाँ बंद हो गयी थी, लेकिन घर में हम एक दूसरे को छेड़ने का मौका निकाल लेते थे, अब इसमें रेखा दीदी भी शामिल हो गयी थी.

एक दिन दीदी मुझे गुदगुदाके भाग गयी, और दूर खड़ी अपनी जीभ निकाल कर चिढ़ा ने लगी तो मे भी उनकी तरफ भागा… लेकिन वो मेरे हाथ नही आ रही थी..

फुर्रर इधर- तो फुर्रर उधर, किसी तितली की तरफ निकल जाती, एक दो बार हाथ आई भी तो झुक कर अपने को छुड़ा लेती और फिर दूर भाग जाती.. यहाँ तक कि हम दोनो की साँसें उखाड़ने लगी.

अब ये मेरे लिए प्रस्टीज़ इश्यू बनता जा रहा था, मे उनको ज़्यादा खुलेतौर पर टीज़ नही करना चाहता था, लेकिन उनके मन में पता नही क्या चल रहा था, मे जैसे ही जाने दो सोचके खड़ा होता तो वो थोड़ा दूर से मुझे अंगूठा दिखा के जीभ निकाल कर चिढ़ाने लगती…

मेने ठान लिया कि अब इनको सबक सीखा के ही रहूँगा… इस समय हम अपने लंबे-चौड़े आँगन में ही थे.. अब ये मेरे लिए प्रस्टीज़ इश्यू बनता जा रहा था, मे उनको ज़्यादा खुलेतौर पर टीज़ नही करना चाहता था, लेकिन उनके मन में पता नही क्या चल रहा था, मे जैसे ही जाने दो सोचके खड़ा होता तो वो थोड़ा दूर से मुझे अंगूठा दिखा के जीभ निकाल कर चिढ़ाने लगती…

मेने ठान लिया कि अब इनको सबक सीखा के ही रहूँगा… इस समय हम अपने लंबे-चौड़े आँगन में ही थे..

मेने एक लंबी सी छलान्ग लगाई और इससे पहले कि वो संभाल कर भाग पाती मेने पीछे से उनकी कमर में लपेटा मार दिया.

वो नीचे को झुकती चली गयी, मे उनके उपर था.. पीठ मेरे सीने से सटी हुई थी, मेने उनको अपनी बाजुओं में कस कर उठा लिया.. वो खिल-खिला रही थी, और मुझसे छोड़ने के लिए बोलती जा रही थी.

Read New Story...  चाची की चुदाई झोपड़ी में

उनके हाथ मेरे हाथों के उपर थे, लेकिन उनसे वो मेरे हाथों पर दबाब डाले थी, उन्हें छुड़ाने का कोई प्रयास नही था.

मेरी हाइट दीदी से कुच्छ ज़्यादा ही थी, उनको उपर उठाते हुए मेरे हाथ उनके पेट से सरक कर थोड़ा उपर को हो गये और उनके अमरूद के निचले हिस्से को टच होने लगे.

दीदी लगातार खिल-खिलाए जा रही थी और अपने हाथों से मेरे हाथों को और उपर को खिसकने की कोशिश कर रही थी, अब उनकी कमर का उपरी हिस्सा मेरे ठीक पप्पू के सामने था जो कमर के दबाब से फूलने लगा था.

दीदी ने अब अपने को छुड़ाने के बहाने अपने को और झुकाया और मेरी बाजुओं पर झूल गयी, अपने दोनो पैर हवा में उठा लिए और उन्हें मेरे घुटनों पर जमा लिया.

उसके बाद उन्होने अपनी कमर को और उपर की ओर उच्छला… अब उनके गोल-मटोल चुतड़ों की दरार ठीक मेरे अकड़ चुके पप्पू के सामने थी, वो लगातार मुझसे छोड़ने के लिए बोल रही थी और साथ ही अपने गांद को मेरे बाबू के उपर रगड़ रही थी.

हम दोनो के ही मुँह लाल पड़ गये थे… अभी कुच्छ और आगे होता उसके पहले बाहर के दरवाजे से एक और खिल-खिलाहट की आवाज़ सुनाई दी…

मेने दीदी को छोड़ दिया और हम दोनो ने ही पीछे मुड़कर देखा, दरवाजे पर आशा दीदी खड़ी ताली बजा-बजा कर हमारा खेल देखते हुए हंस रही थी.

आशा – वाह ! भाई-बेहन अकेले अकेले ही खेल में लगे हो… अरे भाई हमें भी शामिल कर्लो…

रामा – देखो ना दीदी, ये छोटू बहुत तंग करता है मुझे, ऐसा कस कर पकड़ लिया कि छोड़ ही नही रहा था..

मे – अच्छा मेरे गुदगुदी किसने की थी हां ! अब बताओ दीदी को.. खुद शुरू करती है, और दोष मेरे उपर डाल रही है..

आशा – अरे बस करो तुम दोनो और बताओ कोई काम-वाम तो नही है तुम दोनो को..?

दोनो एक साथ – नही ऐसा तो कोई काम नही है..

आशा – तो चलो क्यों ना हम लोग खेतों में चलें, वही बाग़ में बैठ कर खेलते हैं, यहाँ कितनी गर्मी है..

मेने कहा – हां दीदी चलो वहीं चलते हैं…. फिर हम बाबूजी को बता कर तीनों खेतों की तरफ चल दिए, जो बस घर से कोई आधा किमी की दूरी पर ही थे…

हमारी लंबी चौड़ी ज़मीन थी, ज़मीन के लगभग सेंटर में 4 एकर का आम और अमरूद का बाग था, जिसमें और भी आमला, बेर जैसे पेड़ थे, लेकिन मुख्य तौर पर आम और अमरूद ही थे.

बगीचे के चारों तरफ के हिस्से बराबर -2 खेत चारों भाइयों में बँटे हुए थे. गाओं की तरफ का हमारा हिस्सा था, और उसके ठीक ऑपोसिट आशा दीदी के खेत थे, चारों की ज़मीन की सिंचाई हमारे ही टबवेल से होती थी.

ये सीज़न आमों का था, लेकिन कच्चे आम लगे थे, पकने में अभी कम से कम एक महीना और लगनेवाला था.

हम तीनों आम के बगीचे में जहाँ घने पेड़ थे उनके नीचे एक चादर बिछा कर बैठ गये, और कार्ड्स खेलने लगे.

गर्मियों की चिलचिलाती दोपहरी में घर से ज़्यादा यहाँ रहट थी, वैसे तो हवा ज़्यादा नही थी, फिर भी जब भी हवा का झोंका आता, तो बड़ी ठंडक पहुँचती उस तमतमाति गर्मी में.

कार्ड खेलते -2 हमें पूरी दोपहरी निकल गयी, 3 बजे रामा दीदी बोली, यार अब चलो, बोर हो गये खेलते-2…

तभी आशा दीदी बोली चलो ठीक है, लेकिन कुच्छ आम ले लेते हैं, शाम को चटनी बनाने के काम आएँगे..

आशा दीदी बोली – छोटू तू ट्राइ करना कुच्छ आम तोड़ने की.. तो मे उचक कर कुच्छ नीचे की तरफ लटके आमों को तोड़ने की कोशिश करने लगा, लेकिन काफ़ी कोशिश करने पर भी उन्तक पहुँच नही पाया.

दोनो दीदी मिट्टी के ढेले उठाकर आमों को निशाना लगाकर तोड़ने की कोशिश करने लगी, लेकिन निशाना नही लग पा रहा था और एक-आध लगा भी तो कच्चे आम मिट्टी के ढेलों से नही टूट पाए..

आशा – छोटू यार ! तू घोड़ा बन जाय तो तेरे उपर चढ़ कर मे या रामा पहुँच सकती हैं आमों तक.

मे अपने घुटने टेक कर घोड़ा बन गया, पहले रामा दीदी ने ट्राइ किया लेकिन वो नही पहुँच पाई, फिर आशा दीदी ने भी ट्राइ किया, उनका वजन थोड़ा ज़्यादा था, लेकिन मेने उनको भी सहन कर लिया, लेकिन नतीजा वोही धाक के तीन पात.

आशा दीदी बोली, यार ! ये तो बात नही बन रही, तू पेड़ पर चढ़के नही तोड़ सकता क्या.. अब मे आज तक किसी पेड़ पर नही चढ़ा था, तो मेने मना कर दिया…
फिर वो बोली – तो एक काम कर, मुझे उचका दे… मे तोड़ लूँगी..

मेने रामा दीदी की ओर देखा, तो वो मन ही मन मुस्करा रही थी, लेकिन प्रत्यक्ष में कुच्छ नही बोली, मुझे चुप रहते हुए वो फिर बोली- अरे उचका ना ! बिंदास, सोच क्या रहा है.. तू भी ना… !

मेने आशा दीदी को जैसे ही पीछे से पकड़ने की कोशिश की तो वो पलट गयी और वॉली – आगे से उठा, जिससे तुझे भी दिखे कि और कितना उपर करना है…

मेने थोड़ा झुक कर उनकी जांघों को अपने बाजुओं में लपेटा और उपर को उठाया…इस पोज़िशन में उनका यौनी प्रदेश मेरे कमर से थोड़ा उपर माने पेट पर था और उनके बूब्स मेरे मुँह से थोड़ा सा नीचे थे.

उनकी मोटी-2 मांसल जांघों के एहसास ने मेरे शरीर में झुरजुरी सी दौड़ा दी, भारी-भारी गोल मुलायम चुचियों का उपरी भाग मेरी ठोडी को सहला रहा था.

दो-चार आम तो उनकी हद में आ गये और उन्होने उन्हें तोड़ लिया, लेकिन और भी तोड़ने के लिए अभी भी वो नही पहुँच पा रही थी..

आशा – छोटू ! भाई और थोड़ा उपर कर ना !

मेने उन्हें और 6-8″ उपर किया तो मेरा मुँह ठीक उनके बूब्स के बीच में आ गया, मेरे गाल उनकी चुचियों पर थे…

अचानक उनके मुँह से एक हल्की से सिसकी निकल गयी.. ईीीइसस्स्शह…सीईईईईईई.., मेने कहा- क्या हुआ दीदी..? तो वो फ़ौरन बोली – कुच्छ नही तू ऐसे ही पकड़े रह बस मे आम को पकड़ने ही वाली हूँ… अरे हिल मत…ना..!

मेरा मुँह और नाक उनकी मोटी-2 चुचियों में दब रहा था, तो उसको थोड़ा इधर-उधर किया… इससे मेरी नाक उनकी चुचियों पर रगड़ने लगी…

वो तो आम तोड़ना भूल कर अपनी आँखें बंद करके मस्ती में खो गयी…
मेरा भी नीचे तंबू बनता जा रहा था, फिर अचानक रामा दीदी बोली – अरे दीदी ! तोडो ना आम जल्दी उसको प्राब्लम हो रही है, कब तक वो ऐसे उठाए खड़ा रहेगा..?

Read New Story...  लॉकडाउन में एक महीना पड़ोसन भाभी के साथ

आशा – अरे तोड़ तो रही हूँ… ! छोटू ! भैया थोडा पीछे को हो ना ! ये चार आम थोड़े तेरे पीछे को हैं..

मे जैसे ही थोड़ा पीछे को हुआ, मुझे पता नही था कि ज़मीन थोड़ा उबड़-खाबड़ है, मेरा पैर एक गड्ढे में चला गया और मे पीछे को गिरने लगा…

छोटूऊऊऊऊऊओ….संभाअल… वो चिल्लाई… लेकिन एक बार बॅलेन्स क्या बिगड़ा कि धडाम से में पीछे को गिर पड़ा… आशा दीदी मेरे उपर… उनकी राम दुलारी मेरे आकड़े हुए पप्पू को किस कर रही थी…

उसके 34″ के दोनो उभार मेरे सीने में दबे पड़े थे, उत्तेजना के कारण दीदी के निपल भी कड़े होकर मेरे सीने में चुभन पैदा कर रहे थे.

मेरे दोनो हाथ अभी भी उनकी मस्त गद्देदार गांद पर थे… मुझे पता नही चला कि कही चोट-वोट भी लगी है, मे तो बस उनके मादक शरीर के नीचे पड़ा उनकी आँखों में झाँक रहा था, जिसमें एक निमंत्रण दिखाई दिया…

वो भी ऐसे ही कुच्छ देर मज़े के आलम में खोई रही… रामा दीदी पास में खड़ी खिल-खिला रही थी…

फिर मुझे अपनी पीठ में कुच्छ चुभता सा महसूस हुआ और मेने उनसे कहा- अरे दीदी ! उठो मेरी पीठ टूट गयी..!

वो – तो पहले तू मुझे छोड़ तो सही, तभी तो मे उठुँगी…! तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मेरे दोनो हाथ उसके चुतड़ों पर कसे हुए हैं.

जब मेने उन्हें छोड़ा, तो अपनी चूत को मेरे पप्पू के उपर ज़ोर से रगड़ा और एक मादक सिसकी भरती हुई वो मेरे उपर से उठ गयी…

मे जैसे ही खड़ा हुआ तब मुझे अपनी पीठ में दर्द का एहसास हुआ.. क्योंकि जहाँ में गिरा था, वहाँ एक छोटा सा ब्रिक (एंट) का टुकड़ा पड़ा हुआ था और उस साले ने मेरी पीठ को चटका दिया था.

मे आहह भरते हुए उठा… तो रामा दीदी बोली – क्या हुआ छोटू..? चोट लग गयी क्या..?

मे – हां दीदी इस पत्थर से मेरी पीठ टूट गई शायद, तो आशा दीडे ने मेरी शर्ट उपर करके अपने हाथ से कुच्छ देर सहलाया और बोली- रामा घर जाकर थोड़ा इयोडीक्स की मालिश कर देना ठीक हो जाएगा..

Devar bhabhi sex story | Hindi Sex Story | Antravasna Sex Story | XXX Story

इसी तरह की चुहल बाज़ियों में समय व्यतीत हो रहा था, मेरी दोनो बहनें मेरे साथ दिनो दिन खुलती जा रही थी.. और मे उनकी हरकतों से बुरी तरह उत्तेजित हो जाता था, लेकिन कुच्छ कर नही पाता…

मेने अभी तक अपने लौडे को हाथ में लेकर सिवाय मुताने के और कोई उसे नही किया था.. मन ही मन सोचता था, कि काश इसके आगे भी कुच्छ कर पाता.. लेकिन क्या ? ये कोई आइडिया नही था..

मेरा कोई ऐसा दोस्त भी नही था जिससे मे इस तरह की बातें शेयर कर पाता.. वो दोनो तो मुझे गरम करके अपना काम निकाल कर अपने रास्ते हो लेती और मे यूँ ही चूतिया बना रह जाता…आख़िरकार छुट्टियों के दिन बीत गये.. और मेने 11थ में अड्मिशन ले लिया.. स्कूल शुरू होने के कुच्छ दिन बाद ही भाभी लौट आई, मतलब बड़े भैया ले आए अपनी ससुराल जाकर…

आख़िर उनके भी तो लौडे में खुजली होती ही होगी…भाभी ने आते ही मेरी क्लास ले ली, और वो जो टाइम टेबल बना कर गयी थी, उसके बारे में पुछा जिसे मे एक अग्यकारी शिष्य की तरह ईमानदारी से पालन कर रहा था.

उन्होने मुझे गले से लगा लिया और मेरा माथा चूम कर मुझे अपनी गोद में लिटाया और बीते दिनो का सारा प्यार उडेल दिया.

मे अकेला स्कूल जाने वाला ही रह गया था, मनझले चाचा के बच्चे तो अपने मामा के यहाँ शहर में रह कर पढ़ रहे थे. और मेरी दीदी समेत वाकी की 12थ तक की पढ़ाई पूरी हो गयी थी.

भाभी की प्रेग्नेन्सी को जैसे -2 दिन बढ़ रहे थे, उनके शरीर में कुच्छ ज़्यादा ही बदलाव दिखने लगे थे, उनके वक्ष और कूल्हे एक दम ऑपोसिट साइड को बाहर निकलते जा रहे थे.

यही नही, वो दिनो दिन बोल्ड भी होती जा रही थी. एक दिन मालिश करते-2 भाभी ने मेरी हालत बहुत खराब कर दी.

ना जाने आज उनको क्या सूझी की अपनी साड़ी उतार कर एक तरफ रख दी, और मात्र ब्लाउस और पेटिकोट में मेरे पप्पू के उपर अपनी उभरी हुई गांद टिका कर मेरे सीने पर मालिश करने लगी.

आगे-पीछे होते हुए उनकी गांद मेरे लंड पर रगड़ा दे रही थी, जिसकी वजह से मेरे लंड महाराज बुरी तरह अकड़ गये, फिर तो उसकी ऐसी रेल बनी कि पुछो मत.

उधर ब्लाउस में कसे उनके उरोज बिल्कुल मेरी आँखों के सामने थे जो झटकों के साथ उच्छल-2 कर बाहर को निकलने पर आमादा दिखाई दे रहे थे.

फिर ना जाने भाभी को क्या सूझी कि वो मेरे उपर ही पसर गयी और उन्होने मेरे होठ अपने होठों में भर लिए, मुझे बड़ा अजीब लगा कि ये कर क्या रही हैं,

जिंदगी में पहली बार किसी ने मेरे होठों को चूमा था… यही नही, वो अपनी कमर को लगातार ज़ोर-ज़ोर्से मेरे लंड पर घिसने लगी.

15 मिनिट में उन्होने मेरी हालत बैरंग करदी, उनका मुँह लाल भभुका हो गया, बदन भट्टी की तरह तप रहा था, मानो बुखार चढ़ गया हो.

फिर अचानक ही वो शांत पड़ गयी और कुच्छ देर बाद मेरे उपर से उतर कर अपनी साड़ी उठाई और नीचे भाग गयी.

मे बड़ा असमजस में पड़ गया और सोचने लगा कि शायद भाभी को कहीं बुखार तो नही आ गया, जिसकी वजह से वो ऐसी हरकत कर रही थी..

इधर मेरा बुरा हाल था, मेरा मन कर रहा था, कि अपने पप्पू को अंडरवेर से बाहर निकल लूँ और ज़ोर-2 से हिलाऊ, उसे सहलाऊ…. !

आख़िरकार मेने आज पहली बार उसको बाहर निकाल ही लिया और ज़ोर-2 से मसल्ने लगा.
इधर जैसे ही मेरे लंड के टोपे की खाल उपर को खिंची, मुझे बेहद दर्द का भी एहसास हुआ… लेकिन मन करे कि ज़ोर्से इसको रागड़ूं, मसलूं…

अभी मे इसी कस्मकस में था कि क्या और कैसे करूँ कि अचानक भाभी की आवाज़ सुनाई दी….

लल्लाजी !….. ये क्या हो रहा है..?

मेने गर्दन घूमाकर देखा, तो भाभी जीने की सबसे उपरी सीढ़ी पर अपनी कमर पर हाथ रखे खड़ी थी..

मेरी तो गांद ही फट गयी, इधर मेरा पप्पू फुल अकड़ में था… मेने झट से उसे अपने पेट की तरफ लिटाया और अपने शॉर्ट को उपर की तरह खींच कर एलास्टिक छोड़ दी..

चटकककक ! शॉर्ट की टाइट एलास्टिक लंड के ठीक टोपे पर जहाँ उसकी स्किन का जॉइंट था वहाँ पड़ी…..

अरईईई…..मैय्ाआआआआअ………मररर्र्र्र्र्र्र्ररर…..गय्ाआआ……..रीईईईईईईईईईई…

दर्द के मारे मेरी हालत पतली हो गयी और में करवट लेते हुए, अपने घुटनों को पेट पर मोड़ कर लॉट-पॉट होने लगा…!

Read New Story...  बीवी समझकर बेटी को पकड़कर मसल डाला – 2 - Hindi Family Sex Story

मुझे दर्द से तड़प्ता देख भाभी दौड़ कर मेरे पास आई, और मेरे सर के पास बैठ, हाथ फेरते हुए बोली – क्या हुआ मेरे राजा मुन्ना को, बताओ मुझे… क्या हुआ..?

मेरे मुँह से कोई शब्द ही नही निकल पा रहे थे… मे लगातार कभी करवट से हो जाता तो कभी पीठ के बल, मेरे घुटने मुड़े ही हुए थे…

मेरी आँखों से पानी निकल आया.. तेज दर्द की लहर मेरी जान ही निकाले दे रही थी.. भाभी मेरे सर को लगातार सहलाए जा रही थी और बार -2 पुछ्ने की कोशिश कर रही थी कि आख़िर मुझे हुआ क्या है..?

जब थोड़ा दर्द में राहत हुई और मेरा चीखना कम हो गया तो उन्होने फिरसे पुछा… देखो लल्लाजी मुझे बताओ…. क्या हुआ है तुम्हें..?

आह्ह्ह्ह…. भाभी मेरे पेट में बहुत तेज दर्द है… मेने बात को छिपाने की कोशिश करते हुए कहा.

मे नही चाहता था कि भाभी को पता चले कि मे क्या कर रहा था..?

वो – देखो झूठ मत बोलो,… पेट दर्द में कोई ऐसा नही बिलबिलाता है… सच-2 बताओ… शरमाओ नही… कहीं कुच्छ बड़ी प्राब्लम हो गयी तो लेने के देने पड़ जाएँगे…

दरअसल उन्होने मुझे वो करते हुए तो देख ही लिया था, तो प्राब्लम भी कोई उसी से रिलेटेड होगी.. इसलिए वो जानना चाहती थी..

मे – नही भाभी सच में मेरे पेट में ही दर्द है.. मेने फिरसे छिपाने की कोशिश की…

वो थोड़ा बनावटी गुस्सा अपने चेहरे पर ला कर बोली – लल्लाजी..! मुझे तुमसे ये उम्मीद नही थी कि मुझसे तुम कोई बात छिपाओगे…!

सच बताओ क्या बात है.. कहीं कुच्छ ज़्यादा प्राब्लम हो गयी तो सब मुझे ही दोष देंगे…, कैसी भाभी है ये..? बिन माँ के बच्चे का ख्याल भी नही रख सकी.. क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारी भाभी किसी से बात करने लायक ना रहे..?

अब मेरे पास सच बताने के अलावा और कोई चारा नही बचा था… उन्होने एमोशनली मुझे फँसा दिया था..

मेरा दर्द भी अब जा चुका था तो मे उनकी गोद में अपना सर रख कर बोला – भाभी मेरी सू सू मेरे शॉर्ट की एलास्टिक से दब गयी थी.. बस और कुच्छ नही…

वो – लेकिन तुम कर क्या रहे थे सो तुम्हारी वो दब गयी… और इतनी ज़ोर से कैसे दबी कि इतना दर्द हुआ…?

मे – जाने दो ना भाभी.. ! अब सब ठीक है..!

वो – तो तुम मुझे सच-सच नही बताओगे.. हां ! कोई बात नही, आज के बाद मेरे से कभी बात मत करना और उन्होने मेरा सर अपनी गोद से उठा दिया और उठ कर जाने लगी…

मेने उनका हाथ पकड़ लिया और बोला – मे सब सच बताता हूँ… लेकिन प्लीज़ भाभी मुझसे नाराज़ मत हो.. वरना मे कैसे जी पाउन्गा…?

उन्होने लाद से मुझे अपने सीने में दबा लिया.. उनके मुलायम दूध मेरे मुँह पर दब गये.. कुच्छ देर बाद उन्होने मुझे अलग किया और मेरा माथा चूमकर मेरी ओर देखने लगी…!

मे – भाभी जब आप मालिश कर रही थी, तो आपके चुतड़ों की रगड़ से मेरी सू सू अकड़ने लगी.. मेरे अंदर उत्तेजना बढ़ने लगी… जो निरंतर बढ़ती ही गयी..

जब आप उठकर चली गयी.. तो लाख कोशिश के बाद भी मे अपने आप को रोक ना सका और अपनी लुल्ली को बाहर निकाल कर मसल्ने लगा…

लेकिन आपकी आवाज़ सुन कर मेने जल्दबाज़ी में उसको छुपाना चाहा और झटके से एलास्टिक छूट कर उसके उपर लगी….

भाभी कुच्छ देर चुप रही… और मेरे मासूम चेहरे की ओर देखती रही.. फिर ना जाने क्या सोचकर वो मुस्कराने लगी और मेरे नंगे बदन पर हाथ फेरते हुए बोली – लाओ दिखाओ तो मुझे.. क्या हुआ है वहाँ..?

मेने शर्म से अपने घुटने जोड़ लिए ताकि भाभी कहीं जबर्जस्ती मेरे शॉर्ट को ना खींच दें.. और बोला – नही भाभी ऐसा कुच्छ भी नही हुआ है.. अब दर्द भी नही हो रहा आप रहने दो..!

वो अपनी आँखें तरेर कर बोली – तुम अभी बच्चे हो…, अभी दर्द नही है तो इसका मतलब ये तो नही हुआ कि सब कुच्छ सही है… कही अंदुरूनी चोट हुई तो, बाद में परेशान कर सकती है..

देखो ये शर्म छोड़ो और मुझे देखने दो… फिर उन्होने मुझे लिटा दिया और मेरे शॉर्ट को नीचे करने लगी.. मेने एक लास्ट कोशिश की और उनके हाथ पकड़ लिया..

उन्होने एक हाथ से मेरा हाथ हटा दिया और मेरा शॉर्ट नीचे खिसका कर घुटनो तक कर दिया….

हइई… दैयाआआआअ…….ये क्या है लल्लाआ………? मेरा लंड देखकर उनका मुँह खुला का खुला रह गया और अपने खुले मुँह पर हाथ रख कर वो कुच्छ देर तक.. टक-टॅकी लगाए वो मेरे पप्पू की सुंदर्दता को देखती रह गयी..!

मे – क्यों क्या हुआ भाभी…? ये मेरी लुल्ली ही तो है…!

वो – हे भगवान..! तुम इसे अभी भी लुल्ली ही समझ रहे हो..? ये तो पूरा मस्त हथियार हो गया है..

फिर वो उसकी जड़ को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर इधर-उधर घुमा फिरा कर देखने लगी….

जब उन्होने मेरे टोपे की खाल को पीछे करने की कोशिश की तो वो बस अपना घूँघट की खोल पाया कि मुझे दर्द होने लगा…

अह्ह्ह्ह… भाभी नही … खोलो मत.. दर्द होता है.. जब भाबी ने सुपाडे के पीछे देखा तो मेरी खाल के होल से कोई आधा-पोना इंच नीचे ही जुड़ी हुई थी, जिसे खींचने पर दर्द होने लगता था.

हाए लल्लाजी… तुम्हारा हथियार तो अभी तक कोरा ही है… कभी कुच्छ किया नही इससे..?

मे – हां ! रोज़ ही करता हूँ…. पेसाब..!

वो – खाली पेसाब ?…. और कुच्छ नही..?

मे – नही..! और भी कुच्छ होता है इससे..?

वो – हां लल्लाजी ! और बहुत कुच्छ होता है.. लेकिन ताज्जुब है..! जब तुमने और कुच्छ भी नही किया है अबतक.. तो फिर ये इतना लंबा और मोटा कैसे हो गया…?

मे क्या जानू… ? मेने जबाब दिया तो वो बोली – तो फिर अभी क्यों हिला रहे थे..?

मे – सच कहूँ भाभी.. आप जब भी मालिश करती हो और आपका बदन इससे रगड़ा ख़ाता है… तो मे इतना एक्शिटेड हो जाता हूँ कि कुच्छ पुछो मत…

और जी करने लगता है की इसको मसल डालूं…, कुचल कर रख दूं.. लेकिन दर्द की वजह से कुच्छ कर नही पाता….!

पर आज आपने इसे ज़्यादा ही रगड़ दिया तो मुझसे रहा नही गया और वो करने लगा..

error: Content is protected !!