शीला की लीला – 17 | Hindi Sex Story

वैशाली कविता के घर पहुँच गई थी… और संजय नुक्कड़ की टपरी पर खड़ा होकर सिगरेट फूँक रहा था

शीला के घर से निकालने के बाद जैसे ही चेतना टपरी के करीब से गुजरी.. तब उसने संजय को देखा.. वो ओर तेजी से चलते हुए आगे निकल गई.. संजय भी उसके पीछे पीछे चलने लगा था.. सीटी बस-स्टेंड पर खड़े खड़े चेतना १२४ नंबर की बस के इंतज़ार में थी..

बस आते ही वो अंदर बैठ गई.. संजय भी बस में चढ़ गया और चेतना की बगल की सीट पर बैठ गया.. चेतना को बड़ा आश्चर्या हुआ.. संजय का कंधा उसके कंधे से छूते ही चेतना के भूखे शरीर में करंट सा दौड़ गया.. वो कुछ बोली नहीं.. कंडक्टर के आते ही संजय ने दोनों की टिकट ले ली..

चेतना: “आपने मेरा टिकट क्यों लिया? मैं तू आपको जानती तक नहीं..!!”

संजय: “पर मैं तो आपको जानता हूँ.. रोज सुबह देखता हूँ आपको जब आप दूध लेने जाती हो”

चेतना: “मेरे जाते वक्त कौन मुझे देखता है उससे मुझे क्या लेना देना?”

संजय ने जवाब नहीं दिया.. दोनों चुपचाप बैठे रहे.. तभी चेतना का स्टेंड आ गया

संजय: “आपको एतराज न हो तो गेस्टहाउस पर मेरे कमरे पर चलिए.. थोड़ी देर बैठ कर बातें करेंगे”

चेतना: “तुम पागल हो क्या? मेरे घर के एरिया में अगर मुझे कोई गेस्टहाउस में जाते हुए देखेगा तो कोई क्या सोचेगा?”

संजय समझ गया.. चेतना को आने में दिक्कत नहीं थी.. उसे डर था तो किसी के देख लेने का

संजय ने हाथ दिखा कर एक रिक्शा को खड़ा रखा..

संजय: “आपको गेस्टहाउस में आने से ही दिक्कत है ना !! अगर में आपको किसी ओर जगह ले चलू तो.. ??”

चेतना शर्म से पानी पानी हो गई.. यहाँ बाहर जितनी देर वो खड़ी रहती.. किसी के देख लेने का जोखिम उतना ही बढ़ जाता.. बिना कुछ सोचे चेतना रिक्शा में बैठ गई.. उसका दिल धकधक कर रहा था..

संजय ने रिक्शा वाले से कुछ कहा.. और रिक्शा चल पड़ी.. साथ ही साथ चेतना का दिमाग भी चलने लगा

चेतना शीला को फोन करना चाहती थी पर संजय के साथ होने के कारण यह मुमकिन न था.. बारिश के कारण टूटे हुए रास्तों पर रिक्शा उछल रही थी.. और चेतना का कंधा और जांघ संजय के शरीर के साथ रगड़ रहे थे.. चेतना सोच रही थी.. ३५ दिन गुजर चुके थे.. और उसकी चुत को लंड नसीब नहीं हुआ था.. आखिर कोई कब तक बर्दाश्त करे? संजय के हर स्पर्श के साथ चेतना की चुत में सुरसुरी हो रही थी

रिक्शा एक गेस्टहाउस के पास जाकर रुकी.. यह एरिया चेतना के घर से काफी दूर था.. संजय के पीछे पीछे चेतना तेजी से अंदर घुस गई.. संजय रीसेप्शन पर बात कर रहा था और चेतना का दिल तेजी से धडक रहा था। थोड़ी देर में वेटर चाबी लेकर आया और एक कमरा खोलकर चला गया.. चेतना अंदर जाकर बिस्तर पर बैठी।

रजिस्ट्रेशन निपटाकर संजय कमरे के अंदर आया और दरवाजा बंद कर दिया। उसने पूछा “क्या नाम है आपका?”

“चेतना .. “

“मस्त नाम है आपका.. मेरा नाम संजय है.. वो तो आपको मेरी सास ने आपको बता ही दिया होगा”

“नहीं नहीं.. मैं तो उन्हे जानती नहीं हूँ.. मैं तो सिलाई का काम करती हूँ.. उनका ब्लाउस देने गई थी” चेतना ने खुद को और शीला को बचाने के लिए झूठ बोला.. संजय को भी यह सुनकर राहत हुई.. उसे डर था की कहीं इसने शीला को उसके और प्रेमिला के बारे में बता न दिया हो

चेतना के स्तनों को ललचाई नजर से देखते हुए संजय के अंदर का पुरुष और खामोश न रह पाया.. ऐसे मौकों पर समय हमेशा कम होता है.. जितना जल्दी मुद्दे पर आया जाएँ.. उतना समय ज्यादा मिलता है काम निपटाने के लिए.. पर कभी कभी जल्दी करने में बात बिगड़ भी जाती है.. और चेतना के पास कितना समय था ये वो जानता नहीं था

चेतना भी घबराहट के मारे सोच रही थी.. यहाँ न आई होती तो अच्छा होता.. किसी ने देख लिया होगा तो? अगर मेरे पति को पता चल गया तो? अगर शीला या वैशाली को पता चल गया तो? इन संभावनाओ को सोचकर ही वो कांपने लगी

एक तरफ डर था.. तो दूसरी तरफ जिस्म की भूख थी.. कुछ तय नहीं कर पा रही थी वो.. एक विचार ये भी आया की ये अच्छा मौका था संजय के बारे में जानकारी हासिल करने का.. उसने शीला को वादा जो किया था.. अगर शीला को पता चल भी गया तो वो ये बोल देगी की संजय के बारे में जानने के लिए उसे उसके साथ गेस्टहाउस आना पड़ा.. भूखी चुत चेतना को वकील की तरह बहस करना सीखा रही थी

चेतना ने अब तय कर लिया था.. जो भी होगा देखा जाएगा.. वैसे भी बंद कमरे के अंदर क्या हो रहा है वो किसको पता चलेगा? पर ये कमीना कुछ कर क्यों नहीं रहा?? बैठे-बैठे सिगरेट चूस रहा है.. जो चूसना चाहिए वो तो चूस नहीं रहा.. चेतना के दिमाग में अनगिनत विचार चल रहे थे

फूँक फूँक कर कदम रख रहा संजय… बुझी हुई सिगरेट को एश-ट्रे में डालकर बोला “मैं स्मोक करू तो आपको दिक्कत तो नहीं है ना!!”

चेतना को गुस्सा आया.. साला सिगरेट फूँक लेने के बाद पूछ रहा है.. उसने कोई जवाब नहीं दिया

संजय ने अपने पत्ते बिछाने शुरू कीये “चेतना, जब भी आपको सुबह सुबह देखता हूँ तब मुझे कुछ कुछ होने लगता है.. आपके अंदर कोई ऐसा आकर्षण है जो मुझे आपके करीब खींचता जा रहा है.. अपने मन को कंट्रोल करने की बहोत कोशिश करता हूँ पर पूरा दिन आप ही मेरे दिलों दिमाग पर छाई रहती हो.. आज तक किसी लड़की या औरत के लिए मुझे ऐसा कभी नहीं हुआ.. फिर आपको देखकर ही ऐसा क्यों हुआ होगा??”

अपनी तारीफ सुनकर किसी भी स्त्री के दिमाग को वश में किया जा सकता है.. ऐसा संजय का मानना था.. तारीफ सुनकर चेतना शर्म से लाल हो गई.. अपने जिस्म को लुटाने के लिए बेताब हो गई.. “ऐसा तो क्या देख लिया आपने मुझ में ? और आपके साथ तो वो सुंदर लड़की हमेशा रहती ही है ना ?”

संजय उठकर चेतना के पास बैठ गया और उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया.. चेतना इस स्पर्श से सिहर उठी.. आगे जो होने वाला था उसकी अपेक्षा में उसका शरीर डोलने लगा.. उसकी हवस अंगड़ाई लेकर जाग गई.. बिना फोरप्ले के.. केवल स्पर्श से ही चेतना की गीली हो गई

संजय चेतना के गालों के सहलाने लगा और उसके साथ ही चेतना ने अपना पल्लू गिरा दिया.. उसकी बड़ी छातियाँ हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी.. ब्लाउस में कैद उसका मदमस्त जोबन, वी-नेक गले से बाहर झाँक रहा था.. दो स्तनों के बीच की कातिल खाई को देखकर संजय का लंड झटके से खड़ा हो गया..

संजय ने फिर से सिगरेट जलाई.. और उस सिगरेट को चेतना के होंठों पर रखकर कहा “एक दम खींचकर देखो.. मज़ा आ जाएगा” चेतना को सिगरेट की गंध से बड़ी ही नफरत थी.. और सिगरेट कैसे फूंकते है उसका उसे पता न था.. उसने अपना मुंह फेर लिया..

संजय चेतना की गर्दन के पीछे के हिस्से को सहलाने लगा.. इस हरकत से चेतना की आँखें बंद हो गई.. संजय के गरम हाथ का स्पर्श उस उकसा रहा था.. संजय ने सिगरेट चेतना के हाथों में थमा दी और अपनी पेंट की चैन खोलने लगा.. सिगरेट पकड़ना बड़ा ही अटपटा सा लग रहा था चेतना को.. पर संजय का लंड देखा तो वो सब कुछ भूल ही गई.. लंड की गंध और सिगरेट की बू का संमिश्रण ने चेतना के लिए वियाग्रा का काम किया.. उसकी चूत से भांप निकालने लगी थी.. संजय को खड़े लंड को देखकर उसके स्तन सख्त हो गए.. जैसे अभी ब्लाउस फाड़कर बाहर निकाल आएंगे.. अपने लंड को चेतना के उभारों पर और चेहरे पर रगड़ते हुए संजय ने एक हाथ उसके स्तन पर रख दिया.. उभारों पर गरम सुपाड़े का स्पर्श होते ही चेतना बेकाबू होने लगी.. ​

शर्म की सारी सीमाएं तोड़कर चेतना ने संजय का लंड पकड़ लिया.. चेतना की मुठ्ठी में लंड दबते ही संजय जैसे उसका ग़ुलाम बन गया.. और चेतना मस्त हो गई.. लंड की तलाश में ही तो वो शीला के घर आई थी.. वह अब खड़ी हुई और अपने ब्लाउस के सारे हुक खोलकर संजय के होश उड़ाने के लिए तैयार हो गई.. ब्रा निकालकर वो संजय के ऊपर भूखी शेरनी की तरह टूट पड़ी..

संजय के जिस्म को हर जगह पागलों की तरह चूमते हुए उसने उसका शर्ट और बनियान उतरवा दिए.. उतना ही नहीं.. पेंट की क्लिप खोलकर, अंडरवेर के साथ वो भी उतार दिया.. संजय अब पूरा नंगा था.. उसका पूरा शरीर बालों से ढंका हुआ था.. सारा संचालन अपने हाथ में ही रखना चाह रही चेतना घुटनों के बल बैठ गई.. संजय के फुँकारते लंड को चूम लिया और फिर आँखें बंद करके पूरा लंड मुंह में लिया और चूसने लगी..

बेबस संजय.. लाचार होकर चेतना को अपना लंड चूसते देखता ही रहा.. दोनों हाथों से चेतना का सर पकड़कर वोह धक्के लगाते हुए.. उसके मुंह को ही चूत समझकर चोदने लगा.. जिस तरह चेतना बिना किसी विरोध के चुदवाने के लिए आसानी से तैयार हो गई ये देखकर संजय को आश्चर्य हुआ। वरना औरतों को लंड मुंह में लेने के लिए कितनी मिन्नते करनी पड़ती है वो संजय जानता था.. प्रेमिला को तो नया ड्रेस खरीद कर देने का वादा करो तभी मुंह में लेती थी.. और वो भी सिर्फ थोड़ी देर के लिए..

चेतना की हवस देखकर संजय को मज़ा ही आ गया.. वह उसके मुंह में धनाधन धक्के लगाता जा रहा था.. चेतना भी संजय के कड़े लंड को चूसकर धन्य हो गई थी.. उसने संजय को धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया.. बालों से ढंका हुआ संजय डरावने भालू जैसा लग रहा था पर चेतना को इससे कोई फरक नहीं पड़ता था क्योंकि उसकी नजर केवल उसके लंड पर थी। संजय के जिस्म पर सवार होते हुए चेतना ने अपनी ब्रा, साड़ी और घाघरा उतार दिया और मादरजात नंगी हो गई..

चेतना के मादक गदराए जिस्म को देखकर संजय मंत्रमुग्ध हो गया और उसका लंड ठुमकने लगा.. संजय के फुँकारते लंड को देखकर चेतना से ओर रहा न गया.. अपनी दोनों जांघों को फैलाते हुए वो संजय के मुख पर अपनी चूत के होंठों को रखकर बैठ गई और झुककर उसके लंड को फिरसे मुंह में लेकर चूसने लगी.. एक दो मिनट तक उसके लंड को मुंह के अंदर पीपरमिंट की तरह घुमाने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और नीचे हो रही चूत चटाई का आनंद लेने लगी.. असह्य उत्तेजना से बेकाबू होकर वो अपनी चूत को संजय के मुंह के ऊपर दबा देती.. संजय का दम घुटने लगा.. चेतना की इस आक्रामकता ने उसे झकझोर दिया.. ​

चेतना की क्लिटोरिस को अपने दोनों होंठों के बीच दबाकर चूसते हुए संजय, चूत के कामरस को भी चाट रहा था.. चेतना अब संजय के लंड को मन भरकर निहारने लगी.. लंड की लंबाई, परिघ.. मोटाई.. सुपाड़े का रंग.. खून के भरावे से फुली हुई नसें.. खूंखार था उसका लंड.. चेतना की मुठ्ठी में बस आधा लंड ही समाता था.. उस पर से उसने लंड की लंबाई का अंदाजा लगा लिया.. मस्त और अद्भुत!!

चेतना ने अब संजय के अंडकोशों को पकड़कर दबाते हुए लंड के मूल से लेकर टोपे तक चाटकर गीला कर दिया.. संजय दो पल के लिए चूत चाटना छोड़कर इस चुसाई का मज़ा लेते हुए पागल सा होने लगा.. अद्भुत भारी और बड़े बड़े.. सांड जैसे अंडकोश.. पुष्ट वीर्य से भरपूर.. !! चेतना ने लंड को पकड़कर ऐसे खींचा की संजय बिस्तर से एक फुट ऊपर उछल पड़ा.. चेतना को जो चाहिए था वो मिल गया.. झांटों से भरपूर आँड उसके मुंह के बिल्कुल सामने थे जिसे उसने गप्प से मुंह में भर लिया.. ऐसे चूसने लगी जैसे गोलगप्पा मुंह में डाला हो..

चेतना की इस अदा का दीवाना हो गया संजय!! इस कामुक मुख मैथुन का भरपूर मज़ा उठाते हुए वो सिसकने लगा..

संजय: “आह्ह चेतना.. यू आर मेकिंग मी क्रेजी.. आई लव यू.. ओह्ह.. यू आर सकीन्ग लाइक अ बीच.. ओह यस.. !!”

चेतना ओर उत्तेजित हॉक दोगुने जोश के साथ संजय के लंड और आँड को चाटने लगी.. अपने मुंह से वैक्यूम क्लीनर की तरह वो लंड को चूस रही थी.. “ओह्ह नो.. ओह नो.. !!” कहते हुए संजय उछला और उसके साथ ही लंड ने पिचकारी छोड़ दी.. चेतना के सर के ऊपर बालों तक वीर्य की धार जाके लगी.. उसके सारे बाल वीर्य से मिश्रित होकर चिपचिपे हो गए.. मुठ्ठी भी वीर्य से भर गई.. गजब का फ़्लो था संजय के लंड का.. बड़े ही अहोभाव सो वो ठुमकते हुए लंड की तड़प को देख रही थी.. वो सोचने लगी.. ऐसा तो क्या होता होगा वीर्य स्त्राव के वक्त जो लंड इतना ठुमकता होगा?? ​

अब चेतना की चूत में गजब की चुनचुनी हो रही थी.. जो अब किसी भी हाल में वह सह नहीं पा रही थी.. उसने अपनी मांसल जांघों के बीच संजय के सर को दबा दिया.. संजय की मुछ पर अपनी क्लिटोरिस को रगड़ते हुए वो बेतहाशा उछल रही थी.. संजय अपनी जीभ से क्लिटोरिस को उकसाते हुए दबा रहा था.. थोड़ी ही देर में चेतना ने अपनी चूत को उठाके पटक दिया और अपने अमृत की धारा सनज के मुंह में छोड़ दी.. हवस की आंधी थम जाने से संजय ने चैन की सांस ली.. अब चेतना की जांघों से उसे मुक्ति मिलने की आशा थी.. चेतना ने भी अपना शरीर ढीला छोड़ दिया.. और संजय के शरीर पर गिर गई.. बिना योनि प्रवेश के दोनों झड़ गए थे..

दोनों एक दूसरे के जिस्मों को सहलाते हुए थकान उतारने लगे.. ऑर्गैज़म की थकान भी कितनी मीठी लगती है!! चेतना संजय के हारे हुए सैनिक जैसे ढल चुके लंड पर हाथ पसार रही थी.. उसके स्तन संजय की छाती से दबकर चपटे हो गए.. संजय उसके नग्न कूल्हों को सहला रहा था और उसकी गांड की लकीर में उँगलियाँ फेरते हुए छिद्र को गुदगुदा रहा था.. चेतना को अंदाजा लग गया की उसके पीछे के छेद को क्यों टटोला जा रहा था.. उसने तुरंत कमर हिलाकर संजय की उंगलियों से अपने छेद को दूर हटा दिया.. संजय ने गांड को छोड़ कर उसकी चूत पर ध्यान केंद्रित किया.. चूत पर स्पर्श होते ही चेतना के जिस्म में नए सिरे से चुदवाने की भूख जागृत हो गई.. तो दूसरी तरफ चेतना के जिस्म की गर्मी से संजय का लंड भी अंगड़ाई लेकर जाग गया..

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लंड को हरकत करता देख चेतना की आँखों में चमक आ गई.. अपने कामुक हाथों में उस अर्ध-जागृत यंग को लेकर उसने दबाकर देखा.. अभी तक लंड की सख्ती चूत में घुसाने लायक नहीं हुई थी.. पर संजय अब फिर से चेतना की चूत पर पहुंचकर फिर से चाटने लगा था.. दोनों 69 की पज़िशन में सेट हो गए थे.. चेतना अपनी उंगलियों से लंड की चमड़ी को पीछे करने लगी.. जैसे बादल छटते ही पूर्णिमा का सुंदर चाँद बाहर निकलता है.. वैसे ही चमड़ी पीछे सरकाते ही सुंदर सुपाड़ा बाहर निकला.. उसे देखते ही चेतना को बेहद प्यार आया.. अपनी चिपचिपी चूत को वो संजय के मुंह पर रगड़ रही थी.. ​

संजय का लंड अब तैयार होकर यहाँ वहाँ झूलने लगा था.. उस मस्त लोड़े को चूम कर चेतना चूसने लगी.. उसकी उत्तेजना को परखकर संजय ने चाटते हुए अपनी एक उंगली अंदर घुसेड़ दी..

चेतना: “बहोत मज़ा आ रहा है.. ओह्ह संजय.. फक यार.. आह्ह”

चूत में उंगली अंदर बाहर होते ही चेतना एकदम मस्त हो गई.. संजय जान चुका था की लोहा अब गरम हो चुका था.. उसने अपनी दूसरी उंगली चेतना की गांड के छेद पर दबा दी.. चूत के रस से भीगी हुई उंगली ने गांड के छेद को भिगोकर रेशम जैसा मुलायम कर दिया.. इस बार चेतना ने कोई विरोध नहीं किया.. क्योंकि वह खुद भी बेहद उत्तेजित थी.. संजय की उंगली गांड के अंदर पूरी घुस चुकी होने के बावजूद उसे दर्द का एहसास नहीं हो रहा था.. या फिर अगर हो भी रहा था तो वो दर्द के चूत में उंगली घुसने से मिल रहे आनंद के तले दबकर रह गया था

संजय ने बड़ी मुश्किल से अपने वीर्य को स्खलित होने से रोक रखा था.. जिस तरह चेतना उसके सुपाड़े से खेल रही थी उसका लंड पिचकारी मारने के लिए उतावला हुए जा रहा था.. चेतना अब पूर्ण रूप से उत्तेजित होकर बेकाबू सी होने लगी थी.. काफी समय से बिना लंड के रहने की वजह से उसकी ये दशा हो गई थी.. उसकी आक्रामकता का एक कारण यह भी था की वह इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहती थी.. फिर ये जाम-ए-मोहब्बत मिले ना मिले!! वह आज संजय के लंड से तृप्त होना चाहती थी..

संजय चेतना के दोनों मस्त बबलों को मसल रहा था.. चेतना भी अब पूरी तरह संजय के लंड पर टूट पड़ी.. संजय को आश्चर्य हो रहा था की ७ इंच लंबा लंड वह कितनी आसानी से निगल रही थी..

“ओह्ह चेतना.. बस भी कर अब.. कितना चुसेगी? तेरा तों मन ही नहीं भरता.. पता है तुझे.. कितना कंट्रोल करना पड़ रहा है!! अभी निकल जाता मेरा.. आह्ह.. “

चेतना अब पलंग पर लेट गई.. बिना चूत की चुदाई के अगर संजय का लंड झड़ गया तो वो प्यासी ही रह जाएगी.. संजय के लंड के स्वागत के लिए उसने अपनी दोनों टांगें चौड़ी कर दी.. संजय चेतना की छाती पर सवार हो गया.. उसने चेतना के दोनों स्तनों को दबाकर एक किया और बीच में अपना लंड घुसेड़कर चोदने लगा.. चेतना को अपने दोनों स्तनों के बीच से आगे पीछे होता हुआ संजय का विकराल सुपाड़ा नजर या रहा था.. उसने अपनी गर्दन थोड़ी सी ऊपर की ताकि वो आगे पीछे होते हुए सुपाड़े को आसानी से चाट सकें.. लंड के इर्दगिर्द चरबीदार स्तनों का दबाव.. और टोपे पर चेतना के कामुक होंठ और जीभ के स्पर्श से ही संजय को ऐसा महसूस होने लगा की वो झड़ जाएगा.. वह तुरंत उसकी छाती से उतर गया.. ​

अब उसने चेतना की चौड़ी टांगों को अपने हाथों से और चौड़ा किया.. और अपने कंधों पर ले लिया.. आहाहाहाहा.. क्या सीन था!! केले के पेड़ के तने जैसी गोरी चिकनी मस्त जांघें.. और उन जांघों के बीच लसलसित बुर की फांक.. मुलायम जांघों पर हाथ फेरते ही.. प्रेमिला और वैशाली दोनों को भूल गया संजय.. उसने अपना सुपाड़ा चेतना की चुत के दरवाजे पर रखा.. गोली छूटने के बाद बंदूक की नली जितनी गरम होती है.. उतना ही गरम महसूस हुआ उस सुपाड़े का स्पर्श चेतना को..

संजय ने अब चेतना को तड़पाना शुरू कर दिया.. अपने टोपे को वो चेतना की क्लिटोरिस पर रगड़ते हुए उसे चूमने लगा.. संजय के इस दोहरे हमले से चेतना के होश उड़ गए.. संजय की लाल आँखें उसे डरा रही थी.. बेकाबू सांड जैसा लग रहा था संजय.. !! चेतना के दोनों हाथों को बिस्तर पर दबाकर लगभग ५ मिनट तक वह उसके होंठ चूसता रहा.. उस दौरान संजय का लंड चेतना की बुर की लकीर पर ऊपर से नीचे तक घिस रही थी.. चेतना के गाल, गर्दन और होंठों को काटते हुए तहस नहस कर दिया उसे संजय ने..

इतनी आक्रामकता के लिए चेतना तैयार नहीं थी.. हालांकि उसकी जिस्म की आग ऐसे रौंदे जाने से बेहद उत्तेजित था.. संजय के हमले के जवाब में चेतना ने भी अपने नाखून इतनी जोर से संजय की पीठ पर गाड़ दिए की उसकी पीठ पर खून के निशान बन गए..

गुस्साए संजय ने खींचकर एक तमाचा रसीद कर दिया चेतना के गोरे गालों पर “मादरचोद.. नाखून मारती है.. !! तेरी माँ को चोदू” कहते ही संजय ने चेतना को बालों से पकड़कर खड़ा कर दिया.. संजय के तेज-तर्रार चाटे से चेतना के कानों में सीटी बजने लगी.. चक्कर आ गया उसे.. दोनों वासना में इतने बेकाबू होकर क्या कर रहे थे उन्हे खुद पता नहीं था.. चेतना की आँखों में आँसू चमकने लगे.. उसने भी गुस्से में आकर संजय के लंड को पकड़कर इतनी जोर से खींचा की वह अपना संतुलन खो बैठा.. संजय को जरा भी अंदाजा नहीं था की चेतना जवाबी हमला करेगी.. उसका लंड दर्द करने लगा.. गुस्से में आकर उसने एक साथ दो उँगलियाँ चेतना की गांड में डाल दी..

चेतना ने अपनी चीख को बड़े ही मुश्किल से रोक रखा.. वह मजबूर थी.. ऐसे अनजाने गेस्टहाउस में उसकी चीख सुनकर अगर लोग इकठ्ठा हो गए तो उसकी ही बदनामी होती.. लेकिन जिस्म का दर्द ऐसी किसी भी मजबूरी के परे होता है.. वह थोड़ी समझता है?? दबाने के बावजूद हल्की सी चीख तो निकल ही गई.. संजय अब चेतना के स्तनों को ऐसे बेरहमी से मसल रहा था जैसे उसमें जान ही न हो..

चेतना की नजर संजय के सख्त खड़े लंड पर गई.. देखते ही उसकी चूत में चुनचुनी होने लगी.. कितने दिनों से उसकी भूखी चूत.. चुदने के लिए बेताब होकर आँसू बहा रही थी.. संजय ने चेतना को पकड़कर उल्टा कर दिया.. उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़कर ऊपर कर दिया.. चेतना अब कुत्तिया की तरह चार पैरों पर हो गई.. संजय ने चेतना के गोरे चूतड़ों पर धड़ाधड़ तमाचे लगाकर उन्हे लाल कर दिया.. चूत के छेद पर सुपाड़ा टीकाकार उसने एक जबरदस्त धक्का लगाया.. चेतना जोर से कराही.. उसकी चूत की दीवारें फाड़कर संजय का आधा लंड अंदर घुस गया.. दूसरा दमदार धक्का लगते ही चेतना की चूत की किल्ला फतेह हो गया.. ​

भख भख धक्के लगाते हुए संजय ने अपनी लय प्राप्त कर ली.. दोनों हाथों से मस्त कूल्हों को चौड़ा कर गांड के छेद में उंगली करते हुए वह बेरहमी से चोदने लगा.. चेतना भी अब बेहद उत्तेजित हो चुकी थी.. लंड के प्रत्येक धक्के से उसे इतना मज़ा आ रहा था की गांड के दर्द को उसने नजरअंदाज कर दिया.. इस तरह चुदवाने में चेतना को बहोत मज़ा आ रहा था.. संजय भी चेतना की टाइट चूत को बड़ी मस्ती से चोद रहा था.. उसकी जांघें चेतना के भव्य कूल्हों से टकराकर एक विशिष्ट प्रकार की ध्वनि उत्पन्न कर रही थी.. पूरा कमरा फ़च फ़च की आवाज से गूंज रहा था..

चेतना ने अपनी चूत की दीवारों को भींच लिया.. लंड पर अधिक दबाव महसूस होते ही संजय को धक्के लगाने में मज़ा आ गया.. करीब १० मिनट तक धक्कों का दौर यूँही चलता रहा.. चेतना की महीनों पुरानी भूख आज मिट रही थी.. एक हल्की सी कराह के साथ संजय के लंड ने इस्तीफा दे दिया.. उसके गरम वीर्य की बौछार से चेतना की बंजर चूत में बहार सी छा गई.. सुखी धरती पर बारिश की प्रथम बूंद के साथ जैसे धरती तृप्त हो जाती है वैसे ही चेतना तृप्त हो गई..

दो मिनट तक संजय का ठुमकता लंड चूत के अंदर पानी छोड़ता रहा और फिर दोनों बेड पर हांफते हुए गिर गए.. संजय का एक हाथ चेतना के मस्त उरोज पर था.. हल्के हाथों से वह उसका मर्दन कर रहा था.. करीब पंद्रह मिनट तक यूँही निष्क्रिय पड़े रहने के बाद दोनों सामान्य हो गए.. चेतना ने संजय के गाल पर किस किया

चेतना: “संजय, आज का दिन मैं कभी नहीं भूलूँगी.. दोबारा कब मिलेंगे ये तो बता नहीं सकती.. पर हाँ.. तू अपना मोबाइल नंबर मुझे दे देना.. मौका मिलते ही मैं तुझे कॉल करूंगी.. “

संजय ने चेतना को बाहों में भरकर एक झकझोर देने वाला आलिंगन दिया.. फिर वह उठ खड़ा हुआ और बाथरूम में चला गया.. चेतना भी उसके पीछे बाथरूम में गई और कमोड पर बैठकर मूतते हुए वो पेशाब कर रहे संजय के लंड को देखती रही.. देखकर ही उसे इतना प्यार आया की उसने मूत रहे लंड को अपनी मुठ्ठी में भर लिया.. और उस मूत्र को संजय के लंड और आँड़ों पर मल दिया.. चेतना की मुठ्ठी से अपना लंड छुड़ाकर संजय ने अपनी पेशाब की धार का निशाना उसके स्तनों पर लगाया.. गरम गरम पेशाब से चेतना के दोनों स्तन भीग गए.. वह सारा मूत्र स्तनों से गुजरकर नाभि पर होते हुए चेतना की क्लिटोरिस से टपक कर कमोड में गिरने लगा..

लंड की चमड़ी को पीछे कर अपने सुपाड़े को दबाते हुए संजय अटक अटक के पेशाब कर रहा था.. चेतना का हाथ पकड़कर उसने खड़ा किया और उल्टा मोड दिया.. हल्का सा धक्का देने पर चेतना नीचे झुक गई.. अपने मूत रहे लंड को संजय ने चेतना की गीली चूत में आधा घुसा दिया और चूत में ही मूतने लगा.. इस विचित्र और विकृत हरकत से चेतना भी मस्त हो गई.. मूत्र की आखिरी गरम पिचकारी अपनी बच्चेदानी पर महसूस होते ही चेतना को इतना मज़ा आया की वह सिसकने लगी..

अपने अर्ध जागृत लंड को चूत से निकालकर उसने गांड के छेद पर रगड़ना शुरू कर दिया.. इस हरकत से चेतना पागल सी हो गई.. अपना हाथ पीछे ले जाकर उसने खुद ही गांड के छेद को थोड़ा सा चौड़ा किया.. गांड का खुला हुआ छेद लंड को अंदर आने का आमंत्रण दे रहा था.. संजय ने छेद पर सुपाड़ा दबाया.. लेकिन उस सँकरे छेद में आधा मुरझाया लंड घुस नहीं पाया.. संजय को अपने लंड पर गुस्सा आया.. जब औरत सामने से गांड मरवाने के लिए उत्सुक हो तब लंड साथ न दे तब गुस्सा आना स्वाभाविक है..

चेतना: “मज़ा आ रहा है संजय.. थोड़ा सा और अंदर डाल.. मैंने आज तक पीछे नहीं करवाया है.. पता नहीं आज पीछे क्यों खुजली हो रही है!!”

संजय लाचार था.. जब उसका लंड तैयार था तब चेतना तैयार नहीं थी.. अब जब वह सामने से तैयार थी तब लंड साथ देने से इनकार कर रहा था.. बड़ी ही विडंबना थी..

संजय: “नहीं घुस रहा है यार.. तेरा छेद बहोत टाइट है.. दबाता हूँ तो मुड़ जाता है मेरा”

चेतना: “अरे यार.. एन मौके पर ही काम नहीं कर रहा तेरा हथियार.. एक काम कर.. उंगली डाल दे.. खुजली हो रही है मीठी सी”

लंड को बाहर खींचकर संजय ने अपना अंगूठा डाल दिया और रगड़ने लगा

चेतना: “आह्ह.. आह्ह.. मज़ा आ रहा है यार.. मस्त खुजा रहा है.. देख ना अगर तेरा लंड खड़ा हो तो.. उसमें ज्यादा मज़ा आएगा मुझे”

दो बार डिस्चार्ज हो चुका लंड खड़ा होने का नाम ही नहीं ले रहा था.. एक घंटे में दो बार स्खलित होने के बाद लंड का न उठना स्वाभाविक था

चेतना: “संजय, प्लीज मेरी एक इच्छा पूरी करेगा?”

संजय: “हाँ बोल ना डार्लिंग”

चेतना: “पीछे के छेद पर एक किस कर दे.. मुझे वहाँ पप्पी करवानी है”

संजय को बड़ी ही घिन आ रही थी पर वो चेतना जैसे मस्त माल को निराश करना नहीं चाहता था.. वैसे भी वो प्रेमिला के नखरों से तंग आ चुका था.. और मोनिका कुछ भी करने के पैसे लेती थी..

संजय ने बिना कुछ कहे झुककर चेतना की गांड पर हल्के से किस किया.. “कर दिया.. अब खुश ??”​

चेतना: “ऐसे नहीं यार.. तूने कब किस की मुझे तो पता भी नहीं चला.. ठीक से कर.. होंठों पर जैसे किस करता है तू बिल्कुल वैसे ही”

संजय सोच रहा था “क्या मुसीबत है यार!!! गांड पर लिप-किस ??” गुस्सा तो बहोत आया उसे पर फिर भी उसने कूल्हों को चौड़ा कर बादामी रंग के उस छेद पर अपने होंठ रख दिए

चेतना: “हाँ हाँ.. बिल्कुल वैसे ही.. ईशशशश.. ओह संजय.. आई लव यू यार.. बरसों पुरानी इच्छा पूरी कर दी तूने.. आह्ह.. अपनी जीभ थोड़ी सी अंदर डाल.. ऊँहह.. ओह गॉड..यस.. संजु मेरी जान.. ” संजय ने अपनी नापसंद को दरकिनार करके अपनी जीभ अंदर डाली.. खेल की शुरुआत भले ही संजय ने की थी पर अब अंत का संचालन चेतना ही कर रही थी.. पालतू कुत्ते की तरह वो चेतना के हर आदेश को मान रहा था.. एक चूत के लिए आदमी को क्या क्या करना पड़ता है !!

उत्तेजित होकर चेतना मन ही मन में सोच रही थी “चाट मेरी गांड भड़वे.. तूने मुझ पर हाथ उठाया था ना!! उसी का बदला है ये.. अब चाट मेरी गांड साले”

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संजय परेशान होकर चाट रहा था.. उससे बदबू बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. चेतना की गांड पर हो रही इस हरकत का असर उसकी चूत पर पड़ा.. अंदर से कामरस बहते हुए बाहर रिसने लगा.. पूरे बाथरूम में एक मस्की सी गंध फैल गई.. इस गंध को सूंघते ही संजय का लंड ताव में आने लगा.. झुककर गांड चटवा रही चेतना ने नीचे से संजय का उठा हुआ लंड देखा और घबरा गई “अरे बाप रे.. अगर अभी इस लंड को नरम नहीं किया तो गांड में घुसकर उसे फ्लावर बना देगा.. बाप रे.. इतना बड़ा अंदर जाएगा तो मेरी गांड फट जाएगी.. ईसे बचाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा”

चेतना तुरंत घूम गई.. “बस बस संजय.. अब मुझे तेरा लंड चूसने दे.. यार मज़ा आ गया आज तो.. तेरे जैसा मर्द मैंने आजतक नहीं देखा.. ” कहते हुए वह घुटनों के बल बैठ गई.. और संजय का डंडा मुंह में लेकर चूसने लगी.. दो बार स्खलित हो चुके लंड को फिर से झड़ाने में चेतना को समय तो लगा.. पर जब गांड पर रॉकेट तना हुआ हो तब कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता.. वह चूसते चूसते थक गई.. उसके गाल और जबड़े दर्द करने लगे.. पर फिर भी वह चूसती ही रही.. आखिर उसकी मेहनत रंग लाई.. और संजय के लंड का वीर्यस्त्राव हो ही गया.. जब तक वीर्य की सारी बूंदें उसने चाट न ली.. तब तक लंड मुंह से बाहर नहीं निकाला चेतना ने.. संजय उसे बस देखता ही रह गया.. अब भी चेतना लंड को चूसे जा रही थी.. संजय की गांड फट गई “कहीं ये चेतना मेरे लंड को एक बार और तैयार करने के फिराक में तो नहीं है?” कांप उठा संजय.. तीन तीन बार झड़ने के बाद उसमें और एक बार करने की ताकत नहीं बची थी.. ​

चेतना ने तब तक चूसना जारी रखा जब तक की संजय का लंड पूरी तरह से मुरझा नहीं गया.. पूरी तरह से तसल्ली होने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और निकालते वक्त सुपाड़े को एक बार ओर चाटकर ये चेक भी कर लिया की कहीं उसमें अब भी जान बच तो नहीं गई थी!! निश्चिंत होने के बाद उसने लंड को बाइज्जत बरी किया

संजय मन में सोच रहा था “लंड बच गया मेरा” चेतना सोच रही थी “गांड बची सो लाखों पाएं”

दोनों ने कपड़े पहने और अपना हुलिया ठीकठाक किया.. औ गेस्टहाउस से बाहर निकले.. सड़क पर आकर दोनों ने रिक्शा ली और चेतना की घर के तरफ निकले.. रास्ते में दोनों ने एक दूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए.. और दूसरी बार मिलने का वादा भी किया

चेतना: “मेरा घर अब नजदीक ही है.. मैं यहीं उतर जाती हूँ.. वरना कोई देख लेगा.. “

संजय: “एक काम करते है.. मैं यहाँ उतर जाता हूँ.. तुम ऑटो लेकर घर चली जाना.. वैसे भी मुझे बाजार में थोड़ा काम है.. वो निपटाकर गेस्टहाउस चला जाऊंगा”

चेतना: “तेरा ससुराल यहीं शहर में ही है फिर क्यों गेस्टहाउस में रहता है तू?”

संजय: “लंबी कहानी है.. कभी इत्मीनान से बात करेंगे.. अरे भैया, ऑटो यहीं रोक दीजिए” संजय ने उतरकर पैसे चुकाये और चेतना के गाल पर हाथ सहलाकर चल दिया.. चेतना मुस्कुराकर उसे जाते हुए देखती रही.. अपने पर्स से छोटा सा मिरर निकालकर अपना चेहरा चेक किया उसने.. कहीं कोई निशानी तो नहीं रह गई.. !! तसल्ली करने के बाद वह अपने घर के बाहर उतर गई..

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“दीदीईईईईई…………….!!!” किसी लड़की की शरारती चीख ने अनुमौसी के घर पर सब को चोंका दिया.. खाना पका रही कविता ने उस परिचित आवाज को पहचान लिया.. वह भागकर बाहर आई

“अरे.. क्या बात है !! मौसम तू यहाँ कैसे?? किसके साथ आई है? आने से पहले फोन तो किया होता, मैं तुझे लेने आ जाती” कविता की खुशी का कोई ठिकाना न रहा.. मौसम कविता की छोटी बहन थी

“अगर फोन करती तो तुम्हें सरप्राइज़ कैसे दे पाती?”

कविता हाथ पकड़कर अपनी छोटी बहन को घर के अंदर ले गई

अनुमौसी: “अरे, बेटा मौसम.. कैसी हो? परीक्षा खतम हो गई तेरी?”

मौसम: “ठीक हूँ आंटी.. ये बोर्ड की परीक्षा ने परेशान कर रखा था.. बाप रे.. पढ़ पढ़कर जान निकल गई मेरी.. और दुनिया भर की पाबंदियाँ.. टीवी मत देखो.. सहेलियों से मिलने मत जाओ.. मूवी देखने मत जो.. बस पूरा दिन पढ़ते ही रहो.. मैंने तय किया था की परीक्षा खतम होते ही मैं आप सब को मिलने आऊँगी”

अनुमौसी: “हाँ भई.. अब तो पढ़ाई लिखाई का ही जमाना है.. हमारे जमाने में तो लड़कियों को लिखना पढ़ना सिखाकर ब्याह देते थे.. तू अब यहाँ आराम से रहना और अपनी थकान उतारना”

मौसम: “हाँ आंटी.. दीदी के हाथ का बना बोर्नवीटा वाला दूध पीऊँगी तो मेरी सारी थकान उतर जाएगी” खिलखिलाकर हँसती हुई मौसम ने मंदिर की घंटी जैसी सुरीली आवाज में कहा

मौसम.. मौसम.. मौसम.. बारिश की पहली बूंद जैसी.. छोटी हिरनी जैसी.. मोती चुनते राजहंस जैसी..चहचहाती चिड़िया जैसी..

कविता मौसम को देखकर बेहद खुश हो गई.. मायके की हर चीज लड़की को प्यारी होती है.. और ये तो उसकी सगी छोटी बहन थी.. देखने में कविता जैसी ही.. पर थोड़ी सी ज्यादा सुंदर.. अठारह की हो चुकी थी मौसम.. बिंदास और शरारती स्वभाव की मौसम को देखते ही जो बात सबसे ज्यादा ध्यान खींचती थी.. वो थी उसकी मुस्कुराहट.. जब वो हँसती थी तब उसके गाल के डिम्पल इतने प्यारे लगते थे की देखने वाले की नजर ही न हटे.. उसके सहपाठी लड़के मॉसम के गालों के गड्ढों को देखने के लिए तरसते रहते.. सुराहीदार गर्दन.. मोम की पुतली जैसा जिस्म.. मीठी आवाज.. मौसम को देखने में ही सब ऐसे खो गए की उसके साथ आई लड़की का स्वागत करना ही भूल गए.. उस लड़की पर अनुमौसी का ध्यान गया

“अरे मौसम का स्वागत करने में हम सब इस लड़की को तो भूल ही गए.. !!” अनुमौसी ने कविता से कहा.. लगभग मौसम की उम्र की लड़की की पीठ सहलाते हुए उन्हों ने पूछा “क्या नाम है तेरा बेटा ?”

“जी नमस्ते आंटी जी, मेरा नाम फाल्गुनी है”

“मम्मी जी, हमारे पड़ोस में रहते सुधीरअंकल की बेटी है फाल्गुनी.. इसके और मौसम के बीच ऐसी गहरी दोस्ती है की दोनों कभी अलग होती ही नहीं है.. मैंने ही कहा था मौसम से.. की जब भी यहाँ आए तब फाल्गुनी को साथ लेते आए.. वो भी बेचारी थोड़ी फ्रेश हो जाएगी.. क्यों सही कहा ना मैंने फाल्गुनी?” हँसते हुए कविता ने कहा

फाल्गुनी: “हाँ दीदी, बड़ी मुश्किल से तो वेकेशन मिलता है.. और तभी ये पगली यहाँ दौड़ आती है.. फिर मैं अकेली वहाँ क्या करू? बोर हो जाती मैं.. इसलिए यहाँ इसके साथ ही आ गई.. अब पूरा एक महिना आपका दिमाग खाऊँगी.. ” फाल्गुनी का स्वभाव ही ऐसा था की आते ही सब के साथ घुलमिल गई

फाल्गुनी…. बोलने के समय बोलती थी पर वैसे काफी शांत.. थोड़ी सी गंभीर.. गोरी और कद में ऊंची थी.. उसे देखते ही सब से पहली जो चीज नजर आती थी वो थे उसके घने लंबे बाल.. उसकी चोटी घुटनों तक लंबी थी.. बरसात के बादलों जैसे काले बाल!!

इन दोनों चिड़ियाओं की चहचहाट से अनुमौसी के पूरे घर में जान आ गई.. दोनों हरदम इतनी बातें कर रही थी.. थकती ही नहीं थी.. कविता किचन में खाना बनाने गई.. साथ में ये दोनों भी उसकी मदद करने गए.. अनुमौसी बाहर निकली.. थोड़ा सा चलने के लिए.. रास्ते में ही उन्हे शीला मिल गई.. जो सब्जी लेकर आ रही थी

शीला और मौसी काफी दिन बाद मिले थे.. दोनों बातों में मशरूफ़ हो गई.. बातों ही बातों में शीला ने मौसी को वैशाली के वैवाहिक जीवन की परेशानी के बारे में बताया.. अपने दामाद संजय के बारे में भी कहा.. कैसे वो कुछ काम नहीं करता और उधार लेकर गुलछर्रे उड़ाता रहता है.. अनुभवी अनुमौसी से शीला को मार्गदर्शन की अपेक्षा थी इसीलिए वह अपनी बेटी के निजी जीवन की सारी बातें बता रही थी

एक लंबी सांस लेकर अनुमौसी ने कहा “अब ऐसी स्थिति में क्या कर सकते है ? बेचारी वैशाली के पास बर्दाश्त करने के अलावा ओर कोई चारा नहीं है.. अगर वो अलग होना चाहती है अभी सही वक्त होगा ऐसा करने के लिए.. जैसे जैसे समय बीतता जाएगा, समस्या ओर गंभीर बन जाएगी”

शीला: “आपने कहा अभी सही वक्त है, मतलब? मैं समझी नहीं..”

अनुमौसी: “देख शीला.. पति-पत्नी के झगड़े अक्सर रात को बिस्तर पर जाते ही थम जाते है.. भगवान न करें कहीं वैशाली प्रेग्नन्ट हो गई तो?? बच्चे के आने के बाद तलाक काफी कठिन और मुश्किल हो जाएगा.. ये था मेरे कहने का मतलब!!”

शीला डर गई “मौसी.. कहीं वैशाली पहले से प्रेग्नन्ट तो नहीं होगी ना.. !!”

अनुमौसी: “तू उसकी माँ है.. सीधा पूछ ही ले.. जो होगा वो बता देगी तुझे.. और अगर हुई भी तो बिना किसी शोर-शराबे के बच्चे को गिरा दे.. अगर तेरे दामाद के सुधरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे है तो.. और हाँ.. उस कमीने को भनक नहीं लगनी चाहिए अगर वैशाली प्रेग्नन्ट हुई तो.. वरना वो कमीना उसे ब्लेकमेल कर सकता है” अपने सालों के अनुभव को सांझा किया मौसी ने

ये सुनकर मन ही मन कांप उठी शीला.. पर वो भी हार मानने वालों में से नहीं थी.. संजय को तो सबक सिखाना ही पड़ेगा.. ऐसे कैसे वो किसी लड़की का जीवन तबाह करके ऐशोआराम की जिंदगी बीता सकता है!! वैशाली से बात करने का निश्चय करके शीला घर लौटी

रात का खाना खाकर जब दोनों माँ-बेटी झूले पर बैठे थे तब शीला ने वैशाली से सब कुछ पूछ लिया.. बातों बातों में उसने संजय और वैशाली के बेडरूम के जीवन के बारे में भी पूछ लिया.. जब शीला ने ये जाना की वैशाली भरी जवानी में शारीरिक भूख से तड़प रही थी तब उसका दिल ही बैठ गया.. इस उम्र में मुझसे रहा नहीं जाता तो ये बेचारी कैसे गुजारा करती होगी !!! इस बारे में मैं भी क्या कर सकती हूँ?? वाकई बिना पति के रहना बेहद कठिन है.. वैशाली के वैवाहिक जीवन को कैसे बचाया जाए ये सोचते हुए उसने वैशाली से संजय की कमजोरियों के बारे में पूछ लिया.. आखिर उन दोनों के बीच के झगड़े की जड़ तक जाना जरूरी था.. वो क्या कारण था की जिसके कारण दोनों के बीच अनबन शुरू हुई? इस बारे में सब कुछ जानना जरूरी था पर कुछ बातें ऐसी थी जो वो वैशाली से सीधे पूछ नहीं सकती थी.. इसके लिए शीला ने कविता की मदद लेने का तय किया.. दोनों माँ बेटी साथ में बिस्तर पर बातें करते हुए सो गई

सुबह शीला ने कविता को फोन किया.. अपनी छोटी बहन और उसकी सहेली की मौजूदगी के चलते कविता ने आने में असमर्थता जताई.. पर वादा किया की समय मिलते ही वह तुरंत मिलने आएगी..

शीला ने अब चेतना को फोन किया.. यह जानने की संजय के बारे में जानकारी प्राप्त करने का जो काम उसने चेतना को दिया था उस में कुछ जानने मिला भी या नहीं !!

चेतना: “सच कहूँ शीला.. दो दिन से मैं कुछ न कुछ काम में ऐसी उलझी रही की तेरे दामाद के बारे में पता करने का वक्त ही नहीं मिला.. हाँ सुबह सुबह गेस्टहाउस की बालकनी में वो खड़ा जरूर होता है.. बाकी कुछ नया जानने को मिलेगा तो में तुरंत तुझे बताऊँगी” चेतना ने अपनी जूठी कहानी सुनाई

फोन रखकर शीला सोच में पड़ गई.. आज ये चेतना की आवाज में झिझक क्यों महसूस हो रही थी!! हर बार की तरह बात नहीं कर रही थी वो.. जैसे कुछ छुपा रही हो.. !!

क्या करू? किस से कहू? शीला ने वैशाली की किसी सहेली की मदद लेने का सोचा.. काफी देर तक सोचते रहने के बाद उसे फोरम की याद आई.. वैशाली की कॉलेज की सहेली.. थोड़ी दिन पहले ही मंडी में फोरम की मम्मी शीला को मिल गई थी..फोरम ने प्रेम विवाह किया था और वो इसी शहर में रहती थी.. पर वो कहाँ रहती थी ये पता नहीं था..

शीला सोचती रही.. सोचती रही.. सोचती रही.. फिर उसे याद आया की टेलीफोन डायरी में उसका नंबर लिखा होगा.. वैशाली कहीं बाहर गई थी.. शीला ने डायरी निकाली और फोरम के घर का लेंडलाइन नंबर ढूंढकर फोन लगाया.. किसी पुरुष ने फोन उठाया

शीला ने नम्र आवाज में पूछा “जी आप कौन?”

“जी मैं मणिलाल ठक्कर.. आपको किसका काम है?”

“आप, फोरम के पापा हो ना.. !!”

“जी हाँ.. पर आप कौन बोल रही है?”

“जी नमस्ते, मेरा नाम शीला है.. मेरी बेटी वैशाली और फोरम दोनों सहेलियाँ है”

“ओह नमस्ते शीला बहन.. कैसे है आप? वैशाली को अच्छे से जानता हूँ मैं.. वह अक्सर मेरे घर आती रहती थी.. कहिए क्या काम था?”

“जी मुझे फोरम का काम था.. “

“वो तो अपने ससुराल है.. कुछ अर्जेंट काम हो तो आप उसके मोबाइल पर कॉल कर सकती है.. मैं नंबर देता हूँ”

“हाँ हाँ.. नंबर दीजिए प्लीज.. काम तो वैसे कुछ खास नहीं है.. वैशाली मायके आई हुई है.. वो फोरम को याद कर रही थी.. तो सोचा उसे फोन कर दु”

शीला ने चालाकी से फोरम का नंबर जान लिया.. और फोरम को फोन किया.. फोरम को संक्षिप्त में सारी बात समझकर उसे इस बारे में जानकारी प्राप्त करके मदद करने के लिए कहा

फोरम: “आंटी, आप चिंता मत कीजिए.. मैं सब कुछ जान लूँगी”

शीला: “मैंने तुझे फोन किया है इस बारे में वैशाली को पता नहीं चलना चाहिए”

फोरम: “मैं उसे कुछ नहीं बताऊँगी.. आप इत्मीनान रखिए.. मैं ऐसे आ टपकूँगी और उससे सारी बातें पूछ लूँगी”

शीला: “ठीक है बेटा.. मुझे बहोत चिंता हो रही है.. तू सब कुछ जान ले फिर आगे क्या करना वो पता चले मुझे”

शाम को शीला और वैशाली खाना खा रहे थे तभी डोरबेल बजी.. वैशाली ने उठकर दरवाजा खोला और अचंभित हो गई

“अरे.. फोरम तू.. !!!! तुझे कैसे पता चला की मैं यहाँ हूँ” वैशाली ने फोरम को गले से लगा लिया..

फोरम: “कुछ दिन पहले मेरी मम्मी आंटी से बाजार में मिली थी.. तभी उन्होंने बताया था की तू आई है.. तो आ गई मैं तुझे सप्राइज़ देने.. तू बता यार.. कैसा चल रहा है सब कुछ? तो तो यार मस्त गोरी हो गई कलकता जा कर.. “

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शीला: “आओ बेटा फोरम.. वैशाली खाना ठंडा हो रहा है.. पहले खाना खतम कर.. फिर दोनों आराम से बातें करना.. फोरम, तू भी आजा.. थोड़ा सा खा ले.. “

फोरम: “नहीं आंटी, मैं खाना खाकर ही आई हूँ.. ” कहते हुए वो डाइनिंग टेबल पर वैशाली के साथ बैठ गई..

शीला ने खाना जल्दी खतम किया और खड़ी हो गई “आप दोनों आराम से बात करो.. मुझे थोड़ा काम है” दोनों को अकेले बात करने का मौका देने के लिए शीला चली गई

फोरम ने बातों बातों में वैशाली से जान लिया की संजय और उसके बीच क्या तकलीफ थी.. उन दोनों के संबंध काफी खराब हो चुके थे.. दोनों बहोत ही खास सहेलियाँ थी इसलिए वैशाली सब कुछ बेझिझक फोरम को बताया.. सब कुछ.. यहाँ तक की बेडरूम लाइफ के बारे में भी

वैशाली और फोरम को प्राइवसी देने के लिए शीला अनुमौसी के घर चली आई.. कविता और पीयूष दोनों शीला को देखकर खुश हो गए.. शीला जब मौसी से बात कर रही थी तब चिमनलाल सोफ़े पर हिप्पो की तरह लेटे हुए आई.पी.एल के मेच देख रहा था.. तीरछी नज़रों से वो शीला के स्तनों को देख रहा था इस बात का पता था शीला को.. किसी भी एंगल से लाइन मारने योग्य नहीं था चिमनलाल.. इसलिए उसकी नजर शीला को चुभ रही थी.. ऊपर से पीयूष जिस तरह से मौसम के कंधे पर हाथ रखकर हंस हँसकर बात कर रहा था ये देखकर शीला थोड़ी ओर अस्वस्थ हो गई.. इस हरामी पीयूष को जवान साली क्या मिल गई.. मेरे सामने तो देख भी नहीं रहा!! उस रात मूवी देखते वक्त तो मेरे बबलों पर टूट पड़ा था कमीना..

मौसम की छाती पर नजर फेरते ही शीला को पता चल गया की माल एकदम कोरा था.. अभी तक किसी का हाथ नहीं पड़ा था उसके सख्त और विकसित हो रहे स्तनों पर.. ​

उसके स्तन जवान थे तो शीला के स्तनों में बड़े आकार का जादू था.. पीयूष का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए शीला ने अपना पल्लू गिरा दिया.. उसकी एक तरफ की ब्लाउस की कटोरी खुली होते ही पीयूष एल.बी.डब्ल्यू हो गया.. अब वो बार बार शीला के उरोज को देख रहा था ये बात कविता के ध्यान में भी थी

मौसम और फाल्गुनी इन नज़रों के खेल से अनजान थी क्योंकि वो दोनों शीला के बगल में बैठी थी.. कविता पीयूष के पास बैठी थी.. शीला के मदमस्त उरोजों को देखकर वो भी मन ही मन आहें भर रही थी.. सोच रही थी.. एक लड़की होकर भी मेरी नजर शीला के स्तनों पर चिपक जाती है.. तो बेचारे पीयूष का क्या दोष? अनुमौसी भी इन सब से अनजान तो नहीं थे पर रीटायर हो चुके खिलाड़ी की तरह वह सबकुछ देखते हुए शीला से बातें कर रही थी

मौसम: “जीजू, आप कल हमें घुमाने लेकर चलेंगे ना !! “

पीयूष: “कल तो मुश्किल होगा मौसम.. ऑफिस में बहोत काम है.. तू कविता को ही बोल.. वो तुझे ले जाएगी घुमाने”

शीला: “जहां भी जाओ.. वैशाली को साथ लेकर ही जाना.. वो बेचारी अकेले अकेले बोर हो जाती है”

वैशाली का जिक्र होते ही पीयूष की आँखें चमक उठी.. ये बात शीला की नज़रों से छिपी नहीं थी.. वो सोच में पड़ गई.. कहीं वैशाली और पीयूष के बीच भी कुछ.. ??? ये मादरभगत माँ और बेटी दोनों को घुमा रहा है शायद..

शीला: “मैं चलती हु अब.. साढ़े दस बज गए.. “

कविता: “बैठिए ना भाभी.. वैसे वैशाली कहाँ है? दिखी ही नहीं.. उस दिन संजयकुमार को भी देखा था मैंने.. कहीं बाहर तो नहीं गए वो दोनों?”

संजय का नाम सुनते ही पीयूष का दिमाग खराब हो गया.. उसने कुछ सोचकर कहा “मैं देखता हूँ.. अगर राजेश सर मुझे छुट्टी देते है तो मैं परसों गुरुवार और शुक्रवार दो दिन की छुट्टी ले लूँगा.. शनिवार और रविवार को वैसे भी छुट्टी है.. चार दिन कहीं जाने का प्रोग्राम बनाते है.. शीला भाभी और वैशाली को भी साथ ले लेंगे.. मज़ा आएगा”

ये सुनते ही मौसम उछल पड़ी और पीयूष को गले लगाकर बोली “थेंकयू जिजू..” मौसम के इस बर्ताव से किसी को ताज्जुब नहीं हुआ पर शीला की नजर मौसम के कच्चे अमरूद जैसी चूचियों पर गई जो पीयूष के शरीर से दबकर चपटी हो गई थी..

“आप चलोगे ना भाभी?” पीयूष ने आँख मारते हुए शीला से पूछा

“देखते है.. अगर वैशाली राजी हो गई तो चलूँगी.. उसे अकेला छोड़कर कैसे आ सकती हूँ? और अगर संजयकुमार अचानक घर पर आ गए तो? मुझे सब देखना पड़ता है ” शीला ने पोलिटिकल जवाब दीया

“अरे वैशाली को तो मैं मना लूँगा.. वो भी बेचारी.. कितने सालों के बाद मायके आई है.. वो भी थोड़ा सा इन्जॉय कर ले” पीयूष ने कहा

कविता ने अपनी कुहनी पीयूष की कमर पर मारते हुए कहा “क्या बात है.. वैशाली की बड़ी फिक्र हो रही है तुझे.. !! कहीं उसके साथ तेरा.. !!” कविता ने बात अधूरी छोड़ दी

पीयूष सकपका गया.. जैसे रंगेहाथों पकड़ा गया हो.. वो कुछ नहीं बोला और नजरें झुकाकर बैठा ही रहा

“मैं देखती हूँ.. जो भी होगा कल बताऊँगी” कहते हुए शीला उठकर अपने घर चल दी

शीला जब घर पहुंची तब वैशाली किसी के साथ मोबाइल पर बात कर रही थी.. फोरम जा चुकी थी.. शीला ने देखा की उसके आते ही वैशाली ने फोन कट कर दिया.. होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. वो भी अब शादीशुदा है और बड़ी हो गई है.. हर बात पर पूछना या टोकना ठीक नहीं होगा.. हो सकता है की संजय से ही बात कर रही हो !! लेकिन संजय का फोन होता तो इस तरह काट नहीं देती.. हिम्मत से बात कर रही होगी?? क्या पता !!

अपनी एकलौती बेटी का संसार उझड़ता हुआ देखकर शीला को बहोत दुख हो रहा था.. पर उससे भी ज्यादा दुख इस बात का था की उसका पति मदन अभी मौजूद नहीं था.. अगर वो होता तो संजय को ठीक कर देता.. अभी और १८ दिन बाकी थे मदन के लौटने में..

अपने पति को याद करते हुए शीला सो गई और उसके बगल में वैशाली भी.. सुबह ४ बजे के करीब वैशाली को पेट में बहोत दर्द होने लगा.. पर वो बिस्तर में पड़ी रही.. बेकार में मम्मी की नींद खराब होगी ये सोचकर.. थोड़ी देर यूंही पड़े रहने के बाद वह बाथरूम जाने के लिए उठने ही वाली थी तब डोरबेल बजी.. शीला तुरंत उठ गई.. मम्मी शायद दूध लेकर बाथरूम जाएगी तो उनके लौटने के बाद मैं जाऊँगी ये सोचकर वैशाली बिस्तर में पड़ी रही..

शीला ने दरवाजा खोला.. सामने रसिक था.. रसिक को देखते ही वह उससे लिपट पड़ी.. अपनी छाती को रसिक के जिस्म से रगड़ते हुए वह बोली

शीला: “ओह्ह रसिक.. बहोत मन कर रहा है यार.. पर क्या करू.. वैशाली के आने के बाद कोई सेटिंग हो ही नहीं पा रहा.. तेरा “ये” मुझे बहोत याद आता है.. कहीं ले चल मुझे यार.. अंदर ऐसी आग लगी है की तुझे क्या बताऊँ!!” कहते हुए शीला ने रसिक के पाजामे के ऊपर से ही उसका लंड पकड़ लिया

बेडरूम के दरवाजे के पीछे छुपकर देख रही वैशाली को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था.. ये क्या हो रहा है? मम्मी एक दूधवाले के साथ?? छी छी.. एक पल के लिए तो वो अपने पेट का दर्द भी भूल गई.. अपनी माँ का ये नया ही रूप देखा था उसने..

रसिक अपने मजबूत हाथों से शीला की पीठ और कूल्हों को गाउन के ऊपर से ही मसलते हुए शीला के होंठ चूस रहा था.. चूसते चूसते आहें भी भर रहा था

“आवाज मत कर पागल.. वो जाग गई तो आफत आ जाएगी” शीला ने कहा

रसिक का सख्त मूसल जैसा लंड मुठ्ठी में पकड़कर आगे पीछे करते हुए शीला का भोसड़ा चुदवाने के लिए तड़पने लगा.. उससे रहा नहीं जा रहा था लेकिन वैशाली की मौजूदगी में ऐसा कुछ भी कर पाना असंभव था.. हररोज केवल वो रसिक का लंड चूसकर ठंडा करती पर उसकी चूत की प्यास अधूरी ही रह जाती, ये बात बड़ी खल रही थी शीला को..

“ओह्ह भाभी.. रोज की तरह आज भी मेरा चूसकर सारा जहर बाहर निकाल दो.. तो मैं जाऊँ.. ये नरम नहीं होगा तबतक मैं किसी के घर जा नहीं पाऊँगा.. देखो तो सही.. कितना बड़ा उभार हो गया है पजामे में??” शीला के गाउन में हाथ डालकर जोर से मसल दिए उसके स्तन रसिक ने.. निप्पलों पर रसिक की खुरदरी उँगलियाँ रगड़ते ही शीला की वासना उफान पर चढ़ने लगी.. वो रसिक के लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगी.. अचंभित होकर वैशाली अपनी माँ की सारी करतूतें देखती ही रही.. शीला और रसिक की सारी बातें ठीक से सुनाई तो नहीं दे रही थी पर उनकी हरकतें देखने के बाद, बातें सुनने की जरूरत भी नहीं थी..

यह सारी कामलीला देखकर वैशाली की चूचियाँ भी सख्त और लाल हो गई.. वैशाली को एक पल के लिए नफरत हो गई अपनी माँ से.. फिर उसने सोचा.. दो साल से पापा विदेश थे.. मर्द की जरूरत हर औरत को पड़ती है.. तो उसमें गलत क्या है !! पर मम्मी को थोड़ा लेवल का भी ध्यान रखना चाहिए ना!! वैशाली ने देखा की थोड़ी सी आनाकानी के बाद उसकी माँ घुटनों पर बैठ गई.. कम रोशनी के कारण उसे रसिक का लंड नजर नहीं आ रहा था.. थोड़ी देर के बाद रसिक चला गया.. और शीला अपने मुंह में भरे वीर्य को थूकने के लिए वॉशबेसिन पर आई.. ये देख वैशाली को घिन आने लगी.. माय गॉड.. मम्मी के मुंह में उसने पिचकारी मार दी.. !!!!!!!​

शीला को बेडरूम की ओर आता देख वैशाली तुरंत बिस्तर पर लेट गई और करवट लेकर गहरी नींद में होने का नाटक करने लगी.. शीला ने वैशाली की ओर देखा.. उसे गहरी नींद में देख शीला का मन शांत हुआ.. अच्छा है ये सो रही है.. ये साला रसिक भी.. उसका लंड पकड़ते ही मेरी चूत में झटके लगने लगते है.. रहा ही नहीं जाता.. कितना टाइट है उसका.. हाय.. अंदर लेने का मन करने लगता है.. क्या करू यार.. बिना चुदे रहा नहीं जाता मुझसे अब.. कुछ सेटिंग तो करना ही पड़ेगा.. पर कहाँ करू? रसिक को चेतना के घर बुला लूँ?? आइडिया तो अच्छा है पर उस रंडी चेतना का कोई भरोसा नहीं.. एक बार उसने अगर रसिक का देख लिया तो बिना चुदवाए नहीं रहेगी.. और एक बार उससे चुद गई तो उसे अपना बना ही लेगी वो कमीनी.. नहीं नहीं.. ऐसा जोखिम नहीं उठाना..

शीला घर के काम में मशरूफ़ हो गई और उसका मन चुदवाने के बंदोबस्त के बारे में सोचने लगा.. करीब साढ़े आठ के करीब वैशाली जाग गई.. वह नहा-धोकर तैयार हो गई और कविता के साथ बाजार चली गई.. रास्ते में कविता ने वैशाली को चार दिन बाहर जाने के प्रोग्राम के बारे में बताया.. अपनी बहन मौसम और उसकी सहेली फाल्गुनी के बारे में भी कहा..

कविता: “तू आएगी ना साथ.. पीयूष कह रहा था की तुझे तो वो जरूर लेके चलेगा.. तेरे लिए कुछ ज्यादा ही जज्बाती है पीयूष.. और क्यों न हो.. तुम दोनों के बीच वो वाला खास रिश्ता जो है!!” शरारत करते हुए कविता ने कहा

वैशाली: “कुछ भी मत बोल.. उस समय जो होना था वो हो चुका.. बीत गई सो बात गई.. एक भूल हुई थी जो ईमानदारी से मैंने तेरे सामने कुबूल भी कर ली.. तू तो ऐसे बोल रही है जैसे मैं रोज पीयूष से करवाती हूँ”

कविता: “अरे यार मज़ाक कर रही हूँ.. क्या तू भी !! तू साथ चलेगी तो बहोत मज़ा आएगा.. यार वैशाली.. भूख लग रही है.. चल पानी पूरी खाते है.. तू ही बता.. यहाँ कौन सब से अच्छे गोलगप्पे खिलाता है?”

वैशाली: “चल तुझे ऐसी जगह नाश्ता करवाती हूँ की याद रखेगी.. थोड़ा दूर है पर मज़ा आएगा”

हाथ दिखाकर वैशाली ने रिक्शा को रोका और दोनों अंदर बैठ गए.. वैशाली ने पता बताया और ऑटो वाला उस ओर चलाने लगा..

रास्ते में कविता ने रसिक के साथ उस दिन हुई द्विअर्थी बातों के बारे में बताया.. रसिक का नाम सुनते ही वैशाली के कान खड़े हो गए.. वह कविता से और जानकारी प्राप्त करने के मकसद से घूम फिराकर पूछने लगी.. कविता को भी आश्चर्य हुआ की रसिक के बारे में इतना सब क्यों पूछ रही थी वैशाली !! दोनों ने उस जगह पहुंचकर नाश्ता किया और घर वापिस आए

घर आते ही शीला ने वैशाली को बताया “कविता और पीयूष, घर आए मेहमानों को लेकर ४ दिन कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम बना रहे है.. मुझे पूछ रहे थे अगर हम दोनों भी साथ चलना चाहे तो.. “

वैशाली: “मुझे मूड नहीं है जाने का मम्मी.. तुम्हें जाना है तो जाओ”

शीला: “अगर तू नहीं चलेगी तो मैं भी जाकर क्या करूंगी !!”

वैशाली: “मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा मम्मी.. संजय को लेकर मैं बहोत परेशान हूँ.. इसलिए नहीं जाना चाहती.. पर तू तो चली जा.. दो सालों से तुम कहीं नहीं गई.. थोड़ा माहोल बदलेगा तो तुझे भी अच्छा लगेगा.. “

शीला ने जवाब नहीं दिया.. वैसे वैशाली की बात तो सही थी.. २ साल हो गए थे मदन को गए.. दो सालों से वो कहीं नहीं गई थी.. बस एक बार अनुमौसी और महिला मण्डल पर एक दिन की यात्रा पर गई थी उसके अलावा कहीं भी नहीं.. वैशाली काफी उदास रहती थी.. और उसके कारण पूरा घर एकदम शांत और गंभीर लगता था.. बेटी की उदासी देखकर माँ को चिंता होना स्वाभाविक था.

To Be Continue…

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