फिर मे उसके पीछे आ गया, और उसके भारी भरकम गान्ड के पाटों को मसलते हुए, थोड़ा आगे को झुका दिया…
उसकी गान्ड का छेद खुल बंद हो रहा था..
मेने अपना मुँह उसकी गान्ड के पाटों के बीच डाल दिया, और उसकी गान्ड के छेद को जीभ से कुरेदते हुए उसकी चूत में उंगली कर दी…
उसकी चूत और ज़्यादा रस बहाने लगी…
अब उसे और सबर करना मुश्किल हो रहा था, तो उसने मुझे पलंग पर धक्का दे दिया और खुद मेरे ऊपर आकर मेरे मुँह पर अपनी भारी भरकम गान्ड लेकर बैठ गाइिईई……….
मेरे मुँह में उसकी चूत से बूँद-2 कर के शहद टपक रहा था, जिसे मे चासनी की तरह चाटता जा रहा था,
वो भी मेरे ऊपर लंबी होकर पसर गयी, और मेरे लौडे को अपने मुँह में भर कर शॅपर-शॅपर कर के लॉलीपोप की तरह चूसने लगी…
मुझे बाद में पता लगा कि इस पोज़िशन को 69 की पोज़िशन कहते हैं…
मेरी जीभ उसकी चूत में घुसी पड़ी थी, साथ ही उसकी कौए की चोंच जैसी क्लिट जो अब और भी बाहर आ रही थी अपनी उंगलियों में पकड़ कर दबा दिया…
वो बुरी तरह से अपनी कमर को मेरे मुँह पर पटाकने लगी…उसकी गान्ड का छेद खुल-बंद हो रहा था…
मेने अपने दूसरे हाथ का अंगूठा, उसकी गान्ड के सुनहरे छेद पर रख कर फिराया, फिर उसे उसकी चूतरस से गीला कर के धीरे से गान्ड के सुराख में घुसा दिया…
जबादुस्त तरीके से उसकी गान्ड ने मेरे अंगूठे को कस लिया, और अपनी चूत को और ज़ोर से मेरे मुँह पर दबाने लगी…
धीरे – 2 मेने अपना पूरा अंगूठा उसकी गान्ड में डाल दिया, वो गूँग – 2 करते हुए उत्तेजना में मेरा पूरा लंड अपने गले तक निगल गयी…
जिस स्पीड से मेरे हाथ हरकत कर रहे थे, उतनी ही स्पीड से वो मेरे लौडे पर अपना मुँह चला रही थी…
मेरी हरकतें वो ज़्यादा देर तक सहन नही कर पाई, और अपनी चूत का ढक्कन खोल दिया, चूत ने अपना सारा शहद मेरे मुँह में उडेल दिया…!!!
वो अभी मेरे उपेर से लुढ़क कर साइड में लेट कर लंबी-2 साँसें ले ही रही थी, कि मेने उसकी टाँगों को ऊपर कर के अपनी छाती से सटा लिया,
उसकी फूली हुई चूत जो की अब टाँगें ऊपर होने से और ज़्यादा मधु-मक्खी के छत्ते की तरह उभर आई थी, अपनी हथेली से दबा कर रगड़ दिया….
और अब अपना मूसल जैसा सख़्त कड़क लंड उसकी ताज़ा झड़ी हुई चूत में पेल दिया…..
अरे…मारररर……..दिया रीईए…उहह…माआआअ… धीरे…से डालल्ल्ल…कुत्तीए… इसकाअ…एक दिन में ही भोसड़ा बना देगा क्या…भेन्चोद….
बहुत हरामी है तू…भोसड़ी के .. वो दर्द से लिपटी आवाज़ में बोली…. कॉन से जन्म का बैर निकाल रहा है मदर्चोद….
तुमने ही तो कहा था… खा जा मुझे… फाड़ दे मेरी..चूत… अब क्या हुआ….मेने मज़ा लेते हुए कहा…
वो – अरे तेरा फघोड़े जैसा लंड, इतना शख्त और कड़क है … एक दम मोटे डंडे जैसा…. मैया रीि…. अंदर तक चीर डाला रे मेरी चूत को इसने……
आअहह…..उउउफ़फ्फ़……….
अगर मे एक बच्चे की माँ नही होती.. तो तू मार ही डालता मुझे…आहह……
फिर मेने आराम से अपना मूसल बाहर खींचा… उसने एक राहत भरी साँस अपने नथुनो से निकाली….
अभी वो अच्छे से अपने आप को संभाल भी नही पाई थी, कि मेने फिरसे एक ताक़तवर धक्का उसकी चूत पर मार दिया….
वो फिरसे बिलबिला कर गालियां देने लगी…धीरीए…..कुत्ते….हइई र्रइ….
ऐसे ही कुछ धक्कों तक चलता रहा, वो चुदती भी जारही थी.. और साथ-2 कुछ ना कुछ बड-बड़ाती भी जा रही थी..
मेरे धक्कों की स्पीड के हिसाब से ही उसके मुँह से गालियाँ निकल रही थी.. जो मुझे और ज़ोर से चोदने को भड़का रही थी…
15-20 मिनिट तक हम दोनो ही जमकर चुदाई में लगे रहे.. अब वो भी अपनी गान्ड उछाल-2 कर मस्त होकर चुद रही थी…
फिर हम दोनो ने एक साथ ही अपने – 2 नल खोल दिए और झड़ने लगे…
मेरे गाढ़े – 2 रस से उसकी पोखर लबा लब भर गयी, … वो भी आज पहली बार इतनी गहराई तक लंड लेकर बुरी तरह से झड़ी थी….
आज उसके बोर की अच्छे से सफाई हो गयी थी…हमारे गाँव के पंडित जी जो हमारे घर में होने वाले सभी वैदिक कार्यों को संपन्न करते हैं.. उनका घर बीच गाँव में है…
50 वर्षीय पंडित जी के दो संतानें थी, बड़ा लड़का जिसकी उम्र कोई 23-24 की होगी..
उसकी शादी एक साल पहले हो चुकी थी, दूसरी बेटी, उसकी शादी उसके भाई से भी एक साल पहले हो गयी थी..
घर पर पंडित जी, उनकी पंडितानी, और बेटे की बहू.. यही तीन प्राणी रहते थे…
बेटी की शादी हो चुकी थी, और बेटा शहर में रहकर कुछ नौकरी धंधा करता है… महीने दो महीने में एक बार घर आता है..
मेने पंडित जी के घर का दरवाजा खटखटाया… कुछ देर बाद अंदर से एक सुरीली सी आवाज़ आई… कॉन है…?
मेने बाहर से आवाज़ दी – मे हूँ… अपने पिताजी का नाम लेकर उनका बेटा…अंकुश.
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला… सामने एक 20-21 साल की गोरी-चिटी, शादी शुदा बेटे की बहू… जिसके गोल-गप्पे जैसे कश्मीरी आपल जैसे लाल-लाल गाल… देखते ही जी करे खा जाउ..
गोल चेहरा, बड़ी बड़ी कटीली काली आँखें, नज़र डालते ही सामने वाला घायल हो जाए…
वो साड़ी पहने हुए थी.. कस्के लपेटी हुई सारी के पल्लू में से उसके कठोर मस्त कबूतर अपने होने का आभाष दे रहे थे…
छ्हरहरे बदन की उस नवयौवना की पतली सी कमर के नीचे.. थोड़ा उभरे हुए उसके कूल्हे…
उसने अपनी साड़ी थोड़ी नाभि के नीचे बाँध रखी थी.. जो उसकी पतली सी सारी में से अपनी सुंदरता का बखान खुद ब खुद कर रही थी…
मेने उसे पहले कभी नही देखा था… तो उसे एकटक देखता ही रह गया… वो भी मुझे घूर-घूर कर देखे जा रही थी…
नज़रें चार होते ही, हम दोनो ही जैसे एकदुसरे में खो गये…
कुछ देर तक हम दोनो ही एक दूसरे को देखते रहे… फिर जब पीछे से पंडितानी की आवाज़ सुनाई दी, तो चोंक पड़े…, उसने फ़ौरन अपनी नज़रें झुका ली..
पंडितानी – कॉन है बहू…?
मेने अपना परिचय दिया और पंडित जी के बारे में पूछा.. तो उसने बताया कि वो तो पड़ोस के गाँव गये हैं.. शाम तक ही लौटेंगे…
मेने अपने आने का कारण बताया और शाम को आने का बोल कर वापस अपने घर लौट आया…
शाम को पंडितजी खुद आकर बाबूजी को गौने की तिथि बता गये….
दूसरे दिन मे समय पर अपने कॉलेज पहुँचा…मेने बुलेट स्टॅंड की.. और अपनी क्लास की ओर चल दिया…
अभी मे ग्राउंड क्रॉस कर के लॉबी में एंटर हुआ ही था कि रागिनी अपने सीने पर किताबें चिपकाए मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी…
मेने उसके साइड से निकल कर आगे बढ़ने की कोशिश की तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया…
मेने पलट कर उसकी तरफ देखा… तो वो मेरा हाथ थामे अपनी नज़रें झुकाए खड़ी थी…
मे एकटक उसकी ओर ही देख रहा था, और मन ही मन सोच रहा था, कि ये भेन्चोद अब और क्या नया बखेड़ा खड़ा करना चाहती है…
जैसे-तैसे कर के मेने अपने गुस्से को कल काबू में किया था… अब अगर इसने कोई ग़लत हरकत करने की कोशिश की, तो मे साली की माँ चोद दूँगा…
मे अभी ये सब सोच ही रहा था, कि उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और अपने दोनो हाथ जोड़ कर बोली – मुझे माफ़ करदो अंकुश, अपने कल के व्यवहार के लिए मे बहुत शर्मिंदा हूँ..
मे तो मुँह फाडे उसको देखता ही रह गया… अचानक ये चमत्कार कैसे हो गया.. यार, ये शेरनी… भीगी बिल्ली कैसे बन गयी… ज़रूर इसकी ये कोई चाल होगी…
मे – देखो..! मे कल की बात को कल ही भूल चुका हूँ… अब मुझे तुमसे कोई शिकायत नही है… प्लीज़ मेरा रास्ता छोड़ो.. मुझे लेक्चर अटेंड करने के लिए लेट हो रहा है..
वो – तो सिर्फ़ एक बार कह दो कि तुमने मुझे माफ़ कर दिया..
मे – अरे यार ! जब मे कह रहा हूँ.. कि मे कल की बात को भूल चुका हूँ.. तो अब इसमें माफ़ करने की बात कहाँ से आ गयी…
वो – इसका मतलव तुम मुझसे नाराज़ नही हो…?
मे – नही ! मे तुमसे नाराज़ नही हूँ… अब मे जाउ…?
वो – तो अब हम फ्रेंड्स हैं..? और ये कह कर उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया…
मेने भी कुछ सोच कर अपना हाथ आगे कर दिया… तो उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर चूम लिया और थॅंक्स बोलकर वहाँ से भाग गयी…
मे उसकी थिरकति गान्ड को देखते हुए वहीं खड़ा रहा और उसकी इस हरकत का मतलव निकालने की कोशिश करता रहा.. फिर अपना सर झटक कर अपनी क्लास में चला गया…!
लास्ट लेक्चर अटेंड कर के मेने स्टॅंड से अपनी बाइक ली और किक मारकर कॉलेज से चल दिया…
अभी मे कॉलेज के गेट से बाहर निकल ही रहा था, कि देखा ! गेट के ठीक सामने एक खुली जीप खड़ी थी, 5 लड़के जो शक्ल से ही आवारा किस्म के लग रहे थे.. जीप के नीचे खड़े थे…
उनमें से एक लड़का, जो 5’4″ हाइट होती, गोरा रंग चौड़ा शरीर, किसी फुटबॉल जैसा, चेहरा घनी दाढ़ी से भरा हुआ… बड़ी-2 लाल – लाल आँखें, देखते ही उसने मुझे हाथ देकर रुकने का इशारा किया…
मेने बाइक रोक दी लेकिन एंजिन अभी भी चालू ही था.. मेरे दोनो पैर ज़मीन पर टीके हुए अभी भी में बाइक की सीट पर ही बैठा था..
वो फुटबॉल जैसा फिर बोला – ओये… ये डग-डग बंद कर…मेने बाइक का एंजिन बंद कर दिया और गाड़ी को साइड स्टॅंड पर लगा कर खड़ा हो गया…
वो मेरे पास आया, अब मेरी हाइट 6’2″ , और वो मेरे सामने टिंगा सा तो मुझसे बात करने के लिए उसे अपना थोबड़ा उठाना पड़ा,
वो ऊँट की तरह अपनी गर्दन उठा कर बोला – तेरा ही नाम अंकुश है..?
मे – हां ! क्यों ? क्या काम है..? बोलिए.. मेने शालीनता बनाए हुए कहा..
वो – तू जानता है मे कॉन हूँ…? भानु प्रताप सिंग नाम है मेरा… ठाकुर सूर्य प्रताप का बेटा…
मे – जी बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर.. बोलिए मे क्या सेवा कर सकता हूँ आपकी..?
वो – सेवा तो हम तेरी करने आए हैं… साले.. बहुत चर्बी चढ़ गयी है.. तुझे.. ये कहते हुए उसने अपना हाथ ऊपर कर के मेरा गिरेवान पकड़ लिया…
मे – देखिए भाई साब ! शायद आपको कोई ग़लत फहमी हुई है… मे तो यहाँ सिर्फ़ पढ़ाई करने आता हूँ.. मेने ऐसा कुछ नही किया जो आपकी शान के खिलाफ हो…
वो – अच्छा ! अब हमें बताना पड़ेगा कि तूने क्या किया है..? साले तेरी खाल खींच कर भूस ना भर दिया तो मेरा नाम भानु प्रताप नही…
अभी वो और कुछ कहता या करता… रागिनी भागते हुए वहाँ आई, उसने अपने भाई का हाथ मेरे गिरेवान से झटक दिया.. और बोली…
रागिनी – ये आप क्या कर रहे हैं भैया…?
वो – इस हरम्जादे ने तेरे साथ बदतमीज़ी की है… और तू इसे ही बचा रही है…
रागिनी – आपको कोई ग़लत फहमी हुई है, इसने मेरे साथ कोई बदतमीज़ी नही की, ग़लती मेरी ही थी… और आपसे किसने कहा कि इसने मेरे साथ कोई बदतमीज़ी की है..?
आप जाइए यहाँ से प्लीज़… मे बाद में आपको सब बताती हूँ.. फिर मेरी ओर पलट कर बोली – सॉरी अंकुश.. मे अपने भाई की तरफ से तुमसे माफी मांगती हूँ..
उसका भाई अपने दोस्तों के साथ वहाँ से चला गया… मेने रागिनी की बात का कोई जबाब नही दिया और बिना कुछ कहे अपने घर चला आया…!
उधर रागिनी का बदला हुआ रबैईया देख कर उसकी फ्रेंड्स आश्चर्य चकित थी, वो आपस में ख़ुसर-पुसर करने लगी…
टीना – अरे यार ! आज सूरज पश्चिम से कैसे निकल आया..
मीना – हां यार ! कल तो ये शेरनी की तरह दहाड़ रही थी… और आज खुड़ने ही उसे अपने भाई से बचा लिया… आख़िर कुछ तो बात हुई है.. चलो पुछ्ते हैं..
वो चारों रागिनी के पास पहुँची… जो मेरे बिना कुछ बोले वहाँ से चले आने की वजह से अपने भाई पर गुस्से से भुन्भुना रही थी…
रखी – हाई रागिनी ! आज तो तू कुछ बदली-2 सी लग रही है…
रागिनी – यू शट-अप…! पहले ये बताओ.. तुम लोगों ने मेरे भाई से क्या कहा..?
रीना – अरे ! तू हमारे ऊपर क्यों भड़क रही है यार ! हमने ऐसा-वैसा कुछ नही कहा…
मीना – तुझे तो पता ही है.. कि हमने तुझे भी कल समझाया था… फिर हम तेरे भाई को क्यों ऐसा-वैसा कुछ कहेंगे..
वो तो पुच्छ रहा था.. कि रागिनी के साथ कल कॉलेज में क्या हुआ… तो हमने उसे सारी बात बता दी…
अब तुम दोनो भाई-बेहन अपने आगे किसी को कुछ समझते हो नही…
टीना – मे फिर कहती हूँ रागिनी… इससे पहले कि अंकुश का पेशियेन्स जबाब दे जाए… तुम दोनो भाई-बेहन सही रास्ते पर आ जाओ… वरना तुम्हारी पूरी फॅमिली के लिए मुशिबत हो सकती है.. आगे तुम्हारी मर्ज़ी…
राखी – वैसे आज तेरा बर्ताव देख कर अच्छा लगा… क्या तेरी कोई बात हुई थी उससे..
रागिनी ने उसकी बात का कोई जबाब नही दिया और वो वहाँ से चली गयी…
इधर जब मे घर पहुँचा.. तो आते ही भाभी ने लपक लिया, और बोली – अच्छा हुआ लल्ला तुम आ गये.. मे अभी सोच ही रही थी कि कैसे और किसके साथ जाउ…
मे – कहाँ जाना है आपको…?
भाभी – अरे ! वो पंडितजी की बहू को कल शाम से ही ना जाने क्या हो गया है..?कल शाम को वो अंधेरे में शौच के लिए गयी थी… वापस आकर बड़ी अजीब-अजीब सी हरकतें कर रही है…
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चाची बता रही थी.. कि उसके ऊपर कोई भूत – प्रेत का चक्कर हो गया है…, अब जल्दी से फ्रेश हो जाओ, और मुझे वहाँ ले चलो… देखें तो सही, हुआ क्या है उसे ?..
मे सोच में पड़ गया,…कि यार ! कल जब में उनके यहाँ गया था.. तब तो वो एकदम भली चन्गि थी, तो अब अचानक से ही क्या हुआ…?
खैर चलो देखते हैं, ये भूत ब्याधा होती क्या है…? ये सोचते -2 मे फ्रेश होने चला गया…
ज्ब हम पंडित जी के घर पहुँचे.., उनके चॉक (आँगन) में लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था, औरतें और मर्द बैठे आपस में बतिया रहे थे…
कोई कुछ कह रहा था, तो कोई कुछ बता रहा था…
जितने मुँह उतनी बातें.. सब अपनी अपनी राई देने में लगे थे.., आप बीती या सुनी सुनाई दास्तान एक दूसरे के साथ शेर कर रहे थे…
हां ! सब्जेक्ट एक ही था…भूत प्रेत के चक्कर…
चूँकि हमारा परिवार गाँव के प्रतिष्ठित लोगों में शुमार होता है, .. और अब तो एमएलए के घर से संबंध जुड़ने से और ज़्यादा मान सम्मान मिलने लगा था…
हमें देखते ही पंडितानी ने भाभी का स्वागत सत्कार किया…,
जब भाभी ने उनकी बहू के बारे में पूछा तो वो हमें उस कमरे में ले गयी.. जहाँ वो लेटी हुई थी..
गेट खुलने की आवाज़ सुनते ही उसने अपनी बड़ी – 2 आँखें और ज़्यादा चौड़ी कर के खोल दी, जिसमे आग बरस रही थी…, उसके इस रूप को देखकर एक बार तो मुझे भी डर लगने लगा…
सामने अपनी सास के साथ भाभी और मुझे देखते ही वो झट से उठ कर बैठ गयी… और भारी सी आवाज़ निकालकर गुर्राते हुए बोली…
तू फिर आ गयी… साली हरम्जादि… कुतिया… मे तुझे जान से मार दूँगा… वो अपनी लाल-लाल आँखें दिखाकर, और हाथों के पंजों को फैलाकर अपनी सास के ऊपर झपटी…, मानो वो उसका गला ही दबा देना चाहती हो…
भाभी चीखते हुए बोली – लल्ला जी जल्दी से पकडो इसे.. !
मेने झपटकर आगे से उसके कंधे मजबूती से पकड़ लिए…और उसे फिरसे बिस्तेर पर बिठा दिया,
वो झटके मार-मारकर मेरी पकड़ से छूटने की कोशिश कर रही थी…
और हुंकार मारते हुए ना जाने क्या 2 अनप-शनाप बकने लगी… उसकी गर्दन लगातार झटके मार रही थी… इस वजह से उसका आँचल नीचे गिर गया…
सरके बाल चारों ओर बिखर गये, और अब वो किसी हॉरर मूवी की हेरोइन प्रतीत होने लगी थी…
वो आगे को झुक कर अपने सर को आगे पीछे कर के गोल – 2 घूमने लगी…मुँह से गुर्राहट बदस्तूर जारी थी.
उसकी गोल-गोल सुडौल, दूध जैसी गोरी-गोरी चुचियाँ आधी – आधी तक मेरी आँखों के सामने नुमाया हो गयी….
कुछ देर तो मे भी उसकी मस्त कसी हुई जवानी में खो गया… जिससे मेरी पकड़ कुछ ढीली पड़ने लगी…
लेकिन फिर जल्दी ही मेने अपने सर को झटक कर उसे कंट्रोल किया और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला –
क्यों कर रही हो ऐसा, क्या मिलेगा तुम्हें अपने घरवालों को इस तरह परेशान कर के… ?
मेरी बात सुनकर, एक पल के लिए उसके हाव- भाव बदले……
मानो, वो मुझसे कुछ कहना चाहती हो… लेकिन दूसरे ही पल वो फिरसे वही सब करने लगी…और घूर-2 कर अपनी सास को खा जाने वाली नज़रों से देखने लगी..
भाभी ने पंडितानी को कमरे से बाहर जाने का इशारा किया…, उनके बाहर जाने के बाद हम तीन लोग ही रह गये उस कमरे में,
भाभी ने अंदर से कमरे का गेट बंद कर दिया… और उसके पास जाकेर बैठ गयी…
उन्होने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रख कर सहलाया… और बोली – देखो वर्षा….. ये जो तुम कर रही हो, उससे तुम्हारे घर की कितनी बदनामी हो रही है, पता है तुम्हें…?
लोगों का क्या है, उन्हें तो ऐसे तमाशे देखकर और मज़ा आता है, परेशानी तो तुम्हारे अपनों को ही हो रही है ना…
मे जानती हूँ कि तुम्हारे ऊपर कोई भूत-प्रेत का चक्कर नही है…फिर क्यों लोगों का तमाशा बन रही हो…?
भाभी की बात सुन कर वो एक बार के लिए चोंक पड़ी…, और झटके से उसने अपना सर ऊपर किया…
भाभी ने आगे कहा.. चोंको मत…, और बताओ मुझे असल बात क्या है… क्यों कर रही हो ये सब..?
कुछ देर वो यौंही बैठी भाभी को घूरती रही…, मानो उसके मन में कोई अंतर्द्वंद चल रहा हो…, फिर उनके कंधे से लग कर वो फुट – फुट कर रोने लगी, और सुबक्ते हुए बोली …
आप ठीक समझ रही हैं दीदी… लेकिन मे क्या करूँ.. आप खुद ही समझ लीजिए मेरी इस हालत का ज़िम्मेदार कॉन है..?
भाभी उसकी पीठ सहलाते हुए हंस कर बोली – तुझे कल मेरे इस देवर का भूत घुस गया था, है ना..!
उन्होने मेरी तरफ इशारा कर के कहा.., तो उनकी बातें सुनकर उसने अपनी नज़रें झुकाली..
मे भाभी की बात सुनकर चोंक पड़ा…, कुछ कहना ही चाहता था.. कि भाभी ने मुझे चुप रहने का इशारा किया….
फिर वो उससे बोली – तू फिकर मत कर मे सब ठीक कर दूँगी.. बस जैसा मे कहती हूँ, वैसे ही करना… ठीक है..
फिर उन्होने उसकी कमर में चुटकी लेते कुए कहा – अब तू आराम कर, और अपना ये नाटक कल तक और ऐसे ही जारी रखना…..
भाभी की बात सुनकर वो मंद-मंद मुस्कराने लगी, हम दोनो उठ कर बाहर की तरफ चल दिए, वो तिर्छि नज़र मुझ पर डाल कर लेट गयी…
बाहर आकर भाभी ने पंडितनी को अकेले में बुलाया और बोली –
चाची जी, मेरे गाँव में एक भूत भगाने वाला ओझा है.., घर जाकर मे अपने पिताजी को चिट्ठी लिख दूँगी, वो सब संभाल लेंगे, आप बस कल लल्ला जी के साथ वर्षा को उसके पास भेज देना..
चिंता करने की कोई बात नही है.. सब ठीक हो जाएगा…! कल सुबह 10 बजे उसको तैयार करवा देना… ठीक है, मे अब चलती हूँ.
रास्ते में मेने भाभी से पूछा – ये आप वहाँ क्या कह रहीं थीं…? मेरा कॉन्सा भूत है जो घुस गया उसके अंदर…?
भाभी हँसते हुए बोली – चलो घर जाकर शांति से सब कुछ समझाती हूँ तुम्हें..
मे रास्ते भर यही सोच-सोच कर परेशान होता रहा, की आख़िर ऐसा क्या देखा भाभी ने और ये क्यों कहा.. कि मेरा भूत घुस गया है उसके अंदर… आख़िर असल बात क्या है…?
मेरी मनोस्थिति देखकर भाभी मन ही मन मुस्करा रही थी…
घर आकर उन्होने मुझे अपने पास बिठाया और मेरे गाल पर प्यार से सहलकर बोली – हाँ लल्ला ! अब पुछो क्या पुच्छना चाहते हो..?
मे – वही जो आपने वहाँ उससे कहा था.. वो क्या है..?
वो हँसते हुए बोली – तुम्हारे अंदर एक बहुत ही प्यारा सा भूत रहता है, जब तुम उससे कल मिले थे, तो वो भूत उसके अंदर घुस गया..
मे – मेरे अंदर कॉन्सा भूत है.. ? और वो मुझे क्यों नही दिखता..? ये आप कैसी बातें कर रही हो भाभी …?
मुझे तो डर लग रहा है.. प्लीज़ बताइए ना..!
वो हँसते हुए बोली – वही भूत जो थोड़ा – थोड़ा हम सबमें घुस चुका है…तुम्हारे अंदर से… मुझे, रामा को, आशा, को चाची को और शायद अब रेखा को भी .. है ना..!
मे अभी भी नही समझा भाभी… आप सबको कब और कैसे लगा…?
वो – अरे मेरे बुद्धू राजा !.. तुम्हें देख कर तो किसी भी औरत या लड़की को भूत लग ही जाते हैं.. और वो तुम्हारा प्यार पाने को तड़पने लगती है.. समझे कुछ… कि अभी भी नही समझे मेरे अनाड़ी देवर जी…
इतना कह कर भाभी ने मेरे गालों को कच-कचाकर अपने दाँतों से काट लिया और फिर अपनी जीभ और होंठों से सहलाने लगी… जैसे पहले किया करती थी..
मेरे पूरे शरीर में रोमांच की एक लहर सी दौड़ गयी.., मेने झपट्टा मार कर भाभी को पलंग पर गिरा दिया और उनके ऊपर छाता चला गया…
उनके मस्त उभारों को मसल कर, चूत को सहला दिया… वो भी मेरे लंड को पाजामा के ऊपर से ही पकड़ कर मसल्ने लगी…
हम दोनो के हाथ हरकत में आ गये, और इसी तरह एक दूसरे के अंगों के साथ खेलने लगे..
जल्दी ही हमारे कपड़े बदन छोड़कर पलंग से नीचे पड़े थे…
कितनी ही देर तक हम एक दूसरे के बदन से खेलते रहे.. अपने अरमानों को शांत करते रहे…,
कमरे के अंदर वासना का एक तूफान सा आया, और जब वो गुजर गया तो फिरसे हम एक दूसरे की बाहों में पड़े बातें करने लगे..
भाभी मेरे होंठ चूम कर बोली – देखो लल्ला कल तुम वर्षा को मेरे गाँव ले जाने के बहाने कहीं जंगल में अच्छे से उसके साथ मंगल करना.. जिससे उसके शरीर की भूख शांत हो जाए…
वो बेचारी जब से शादी होकर आई है, उसका पति उसके साथ नही रहता है.. अब इस नयी उमर में वो बेचारी कैसे अपने पर काबू रखे..
जब कल उसने तुम्हें देखा.. और शायद तुमने भी उसे प्यार भरी नज़रों से देखा होगा… तो उसकी भावनाएँ भड़क कर बाहर आ गयी..
वो पुरुष का प्यार पाने के लिए तड़प उठी, उसे कोई और रास्ता नही सूझा और उसने ये भूत वाला नाटक कर डाला..
अब तुम्हारा ही लगाया हुआ भूत है तो तुम्हें ही उतारना होगा ना..कह कर भाभी खिल-खिलाकर हँसने लगी…मेने भाभी को कस कर गले से लगा लिया और बोला – सच में भाभी आप जादूगरनी हो.. झट से उसकी नब्ज़ पकड़ ली आपने…
लेकिन आपको ये पता कैसे लगा.. कि वो ये सब नाटक कर रही है…?
भाभी – तुम्हें याद होगा, .. जब तुम उसे संभालने की कोशिश कर रहे थे, तब एक पल को उसके विचार तुम्हारी आँखों में देख कर बदले थे.. मे तभी समझ गयी.. कि असल चक्कर ये है…
मे – आप सच में बहुत तेज हो भाभी.. साइकोलजी की आपको बहुत नालेज है.. ये कैसे आई आपके अंदर ..?
वो – अपने परिवार को संभालते-2 अपने आप ही आ गयी.. बस…! अब तुम थोड़ा अपना कॉलेज का काम वाम कर्लो.. मे शाम के कामों को देखती हूँ..
कल सुबह ही उसको लेकर जाना है तुम्हें उसके घर तक मे भी तुम्हारे साथ चलूंगी.. जिससे कोई तुमसे उल्टे सीधे सवाल ना करे…..!
ये कहकर और अपने कपड़े पहनकर भाभी, किचन की तरफ चली गयी, और मे अपने कमरे में आकर कॉलेज का काम करने बैठ गया…..!
दूसरे दिन प्लान के मुतविक में वर्षा को लेकर चल दिया… मेरी मंज़िल वो झील थी जहाँ मेने रामा दीदी की सील तोड़ी थी…
उस हसीन पलों के याद आते ही, मेरे लंड में सुरसुरी होने लगी,
गाँव से निकल कर कुछ आगे जाते ही वर्षा भौजी मेरी पीठ से किसी जोंक की तरह चिपक गयी…
मेने कहा – भौजी ज़रा कंट्रोल करो… वरना ये मेरी बुलेट रानी नाराज़ हो गयी तो दोनो ही किसी झड़ी में पड़े मिलेंगे लोगों को…
वो – देवर जी मे आपको कैसे बताऊ कि, आज मे कितनी खुश हूँ.. जबसे आपको देखा है.. मेरे दिन का चैन, रातों की नींद हराम हो गयी थी..
मेने कहा – भौजी ! आज तो मे आपको खुश कर दूँगा… लेकिन कल को क्या करेंगी..?
वो हँसते हुए बोली … कल फिरसे भूत घुसा लूँगी…
मेने कहा – मे मज़ाक नही कर रहा भौजी… बताइए क्या करेंगी…?
वो – कभी-2 तो मौका दे ही सकते हो ना आप…
मे – लेकिन कब तक…?
वो – आगे की बाद में देखेंगे.. अभी से अपना मूड खराब क्यों करें… वैसे हम जा कहाँ रहे हैं..?
मेने कहा – वो आप मुझ पर छोड़ दीजिए… आज मे आपको जन्नत की सैर कराने ले जा रहा हूँ…
मेरी बात सुनकर उसने अपने कबूतर मेरी पीठ में गढ़ा दिए, और हाथ आगे कर के जीन्स के ऊपर से ही मेरा लंड पकड़ कर दबा दिया…
बातें करते -2 कब हम वहाँ पहुँच गये पता ही नही चला.. ठंडी का मौसम था.. तो लोग ना के बराबर ही थे..
क्योंकि झील में नहाने की हिम्मत तो कोई कर नही सकता था..
वहाँ की प्रकरातिक सुंदरता देख कर वर्षा भौजी खुश हो गयी..
मेने अपनी बुलेट रानी, एक पेड़ के पास खड़ी करदी, और घस्स के हरे-भरे मैदान में घुस गये…
वो मुझसे से चिपक कर चल रही थी, जिससे उसके कबूतर मेरे बाजू से सट गये..
मैदान पार कर के हम घूमते-घामते.. हम जंगल के बीच एकांत में पहुँच गये…
एकांत पाते ही वो मुझसे अमरबेल की तरह लिपट गयी और बेतहाशा मेरे चेहरे को चूमने लगी….
उसका उतावला पन देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी… और मे भी उसका साथ देने लगा..
उसकी सारी खोल कर मेने नीचे गिरादी और उसके कुल्हों को कस कर दबाते हुए उसके होंठों को चूसने लगा…
उसने भी मेरे होंठों को अपने होंठों में भर लिया, हम एकदुसरे से मानो कॅंप्टेशन करने लगे की देखें कॉन किसके होंठ ज़्यादा चूस पाता है..
फिर एक दूसरे की जीभ आपस में टकराने लगी.. बड़ा मज़ा आरहा था हमें इस खेल में..
जंगल के शांत वातावरण में पक्षियों के कलरव की ध्वनि के बीच हम एक दूसरे में समा जाने की जी तोड़ कोशिश में लगे थे..
उसने मेरे जीन्स की ज़िप खोल दी और उसको नीचे खिसका कर मेरे लंड की कठोरता को अपनी मुट्ठी में लेकर परखने लगी…
अब उसे अपने अंदर लेने की उसकी इच्छा और ज़्यादा प्रबल हो उठी थी…