दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और मस्त कहानी शुरू करने जा रहा हूँ जो आपको ज़रूर पसंद आएगी . दोस्तो जिंदगी का एक ही धर्म और एक ही मत है चूत और लंड ……………. दोस्तो अब आप कहेंगे कि ये कैसे हो सकता है तो दोस्तो इसके जवाब मे में सिर्फ़ इतना ही कहूँगा कि इंसान हो या जानवर सभी एक ही चीज़ पर अपनी जान देते हैं वो हैं लंड और चूत ……………. दोस्तो चूत का धर्म एक ही है लंड को निकालना और निगलना ………. और लंड का भी धर्म एक ही है घुसना निकलना .
दोस्तो अब आप सोच रहे होंगे कि क्या राज शर्मा पागल हो गया है जो इस तरह की अनर्गल बातें कर रहा है तो इसके जवाब में सिर्फ़ इतना ही कहूँगा कि जो चूत लंड को पैदा करती है फिर उसी लंड को अपने अंदर लेने के लिए क्यों बेचैन रहती है और लंड जिस चूत में से निकलता है उसी चूत में जाने के किए क्यों बेकरार रहता है क्या इसका जवाब है किसी के पास ऐसा क्यूँ होता है तो मेरा मानना ये है कि अगर सेक्स ना होता तो शायद परिवार ना होता और परिवार ना होता तो शहर या गाँव या ये संसार ही नही होता . दोस्तो इंसान चाहे कितनी ऊँचाइयों को छू ले मगर सेक्स की ज़रूरत को ख़तम नही कर सकता . दोस्तो इसीलिए मैं कहता हूँ कि इस संसार में चूत लंड के सिवाय कुछ और है ही नही इस दुनियाँ में जहाँ भी देखो बस लंड हैं चूत हैं
दुनिया का हर इंसान दो हिस्सों मे बटा हुआ होता है. एक हिस्सा तो वो होता है जिसे सब लोग जानते हैं, देखते हैं और उसकी अच्छाई और बूराई को समझते और पहचानते हैं और उस इंसान के बारे मे आपनी ज़ाति राय रखते हैं. मगर इंसान का दूसरा हिस्सा जो पहले हिस्से से बिल्कुल आलग ही होता है, उस हिस्से की गहराई मे वो खूद भी पूरा नही उतर सकता तो दूसरा कैसे उतर सके गा. यह दूसरा हिस्सा हर इंसान का काला यानी नेगेटिव हिस्सा होता है और इस हिस्से की हर बात को पूरी दुनिया से छुपा कर रखता है. इस हिस्से मे इंसान की वो तमाम काली, गंदी और वासना से भरपूर शौक और ख्वाहिशे छुपी हुई होती हैं जिसे इंसान सोच सोच कर ही मज़ा लेता है, कम लोगों मे हिम्मत और हौसला होता है कि वो आपनी इन गंदी ख्वाहिशो को अपने अंदर से निकाल कर प्रॅक्टिकली कर सकें.
बहुत ही कुछ लोगो मे हौसला तो होता है मगर हालात और मौके की वजह से उसे पूरा नही कर सकते हैं. ऐसी बहुत सी अंदर की ख्वाहिशो मे एक ख्वाहिश सेक्स से भी जुड़ी हुई है. सेक्स के बारे मे हर इंसान का अपना ही अलग तरीक़ा और पसंद होती है, कोई किसी तरीक़े से मज़ा महसूस करता है कोई किसी तरीक़े से. सेक्स के शौक़ की कोई इंतिहा नही होती है. बहूत से इंसान ऐसे भी होते हैं जिन्हे सेक्स आपने खून के उन रिश्तो के साथ करने का सोच कर या उनके साथ करके या उन्हें शामिल करने से मिलता है जिसकी दुनिया का कोई भी मोआश्रा और मज़हब इजाज़त नही देता है, यानी इन्सेस्ट
मेरी ज़िंदगी की कहानी भी इन्सेस्ट से भी जुड़ी हूई है. मेरे भी दो चेहरे है एक वो चेहरा जो दुनिया के सामने है जिसकी बड़ी इज़्ज़त है लोग मेरी शराफ़त पर पूरा यक़ीन रखते हैं. मगर मेरा दूसरा चेहरा जो गलाजत और गंदगी से भरपूर है उसे कोई नही जानता. मैं बाज़ाहिर बहुत शरीफ और नेक इंसान हूँ मगार हक़ीक़त यह नही है बल्कि मैं बहुत की कमीना, बेगैरत और बहुत बूरा इंसान हूँ. सवाल यह है कि जब मैं खूद ही इसे ठीक नही कहता तो मैने यह सब किया ही क्यूँ और अभी तक क्यूँ कर रहा हूँ. मैं क्या करूँ यह मेरे अंदर का कमीना पन और बेगैरती है और मेरे अंदर सेक्स का छुपा हुआ जनून है जो लज़्ज़त और मज़े लेने केलिए मुझे करने पर मजबूर कर देता है. मुझे अब सिर्फ़ सीधे साधे तरीक़े के सेक्स और चुदाई मे बिल्कुल ही मज़ा नही आता है और नाही मेरा लंड ठीक से खड़ा होता है. आप लोग मेरी ज़िंदगी की कहानी पढ़ेंगे तो मालूम होगा .
एक बड़ी अजीब बात यह भी है कि अगर हमारी माँ, बहेन, बीवी या बेटी को कोई मर्द ग़लत नज़रों से देख भी ले, या वो खूद चोरी छुपे किसी मर्द से ताल्लुक़ रख लें और हमे मालूम हो जाए तो हम खून ख़राबे पर उतर आते हैं, दूसरी तरफ कुछ लोग अपने सामने इन्ही रिश्तो को खूद चोद कर और दूसरों से चुदवा कर मज़ा माहसूस करते हैं, मैं भी एक ऐसा ही इंसान हूँ, मेरे सेक्स का जनून अपनी इंतिहा को पहुँचा हुआ है और मैने अपनी लज़्ज़त और मज़े लेने के लिए अपने खून के रिश्तो को चोदा और उन्हे किन किन लोगो से कैसे कैसे चुदवाया यह आप को मेरी कहानी पढ़ कर ही मालूम होगा. मेरी यह कहानी बिल्कुल सच्ची कहानी है सिर्फ़ इतना है कि इसमे लिखे हुए मुकलमे (डाइयलोग) मैने कहानी को दिलचस्प और मज़ेदार बनाने के लिए लिखा है. माफ़ कीजिएगा मैने पहले कभी कुछ नही लिखा इसलिए हो सकता है कि बहुत सी फज़ूल और लंबी बातें लिख दी हो. बहरेहाल मेरी ज़िंदगी की कहानी पढ़िए और होसके तो अपने विचार लिख कर सहयोग करें .
दोस्तो ये कहानी पाकिस्तान के एक ऐसे परिवार की कहानी है जिसमे एक लड़के ने अपनी गंदी ख्वाहिशों को पूरा करने के किए क्या क्या नही किया ये कहानी इसी तरह का ताना बाना है
मेरा नाम शहाब है जिस वक़्त मैं अपनी ज़िंदगी की यह कहानी जो सूनाने जा रहा हूँ इस वक़्त मेरी ऊमर 38 साल की हो गई है. मैं शहर कराची, पाकिस्तान का रहने वाला हूँ. मैं पैदा हुआ और पला बढ़ा कराची ही मे और इस वक़्त मैं अमरीका की रियासत टेक्सस के शहर होस्टान मे पाँच (5) साल से रह रहा हूँ . मैं 1963 मे पैदा हुआ, हम “6” भाई बेहन हैं. आज कल मेरी एक बेहन नजमा कराची और दूसरी बेहन असमा कॅनडा मे अपने अपने शौहरो के साथ रहती हैं. हायाउस्टन मे हम लोगो ने दो बड़े मकान साथ साथ लेकर इन्हें साथ ही मिला कर एक कर दिया है इसलिए बाक़ी हम तमाम भाई सब ही हायाउस्टन मे अपने बीवी और बच्चो के साथ इसी एक ही घर मे साथ रहते हैं.
यूएसए आने से दो साल पहले मेरे वालिद और वाल्दा दोनो ही का इंतिक़ाल हो गया था. मेरे वालिद बशीरुद्दीन का कराची मे पेपर का होल्सेल का बिज़्नेस था. हम अगर बहुत अमीर नही थे तो ग़रीब भी नही थे हममे मिडिल क्लास फॅमिली मे शुमार किया जासकता है. हम [6] भाई बहनों मे पहले और दूसरे नंबर पर भाई हैं जो मुझ से [3] साल और [एक] साल बड़ा है. फिर हम जूड़वाँ भाई बेहन यानी मैं और मेरी बेहन नजमा जो मुझ से सिर्फ़ [8] मिनिट छोटी है, उसके बाद मुझ से [5] साल छोटा भाई और [7] साल छोटी बेहन है. मेरे अब्बू ने मेट्रिक के फ़ौरन बाद ही दोनो बड़े भाइयो को अपने साथ काम पर लगा लिया और उन्हें नाइट कॉलेज मे आगे पढ़ाई के लिए एडमिशन दिलवा दिया, इस तरह वो अब्बू के साथ बिज़्नेस मे भी लग गये और पढ़ाई भी नही छोड़ी. हमारे पूरे घराने की खूबसूरती की तारीफ़ हर कोई करता था.
हम सभी का रंग गोरा और गुलाबी है, नाक नक़्शा खड़ा और बहुत पुर्कशिश (चार्मिंग) है सब लंबे क़द के हैं. खुसुसन मेरी मम्मी जिन का नाम रज़िया है उनके हुश्न और जमाल की मिसाल नही मिलती, वो फिल्मी हेरोइन मधुबाला की हम-शक्ल थीं, लोग कहते थे कि जूड़वाँ हम-शक्लो मे भी थोड़ा बहुत फरक़ होता है मगर मम्मी और मधुबाला मे एक बाल बराबर भी फरक़ नही था. मेरे अब्बू और मम्मी की उम्र मे [20] साल का फरक़ था यानी मम्मी पापा से [20] साल छोटी थी. पापा पहले भी एक शादी कर चूके थे, उस बीवी से कोई औलाद नही थी, शादी के 15 साल के बाद उनका इंतकाल होगया था उसके बाद सब के ज़िद करने पर [5] साल बाद मम्मी से शादी की थी. जब मैं [16] साल का था तो मेरी मम्मी 35 साल की थी मगर वो 35 साल की बजाए [22/23] साल की कंवारी लड़की नज़र आती थी. उनका क़द 5”-6”, गुलाबी रंग, लंबे बाल और जिस्म उनका 35-26-34 का था. जब वो बाहर निकलती तो रास्ते मे चलने वाले लोग दूर दूर तक उन्हे देखते ही रहते थे. शूरू मे हमारा घराना मज़हबी और पर्दे का पाबंद घराना था जो बदलते ज़माने के मुताबिक़ वक्त के साथ साथ चलता हुआ बदलता भी रहा. फिर जब मैं [10] साल का हुआ तो उस वक्त ही से हमारे घराने मे पर्दे का रिवाज ख़तम हुआ और नये दौर की थोड़ी बहुत आज़ादी आ गई, पहले घर पर किसी दोस्त को बुला कर जमघट लगाना मना था
मम्मी और पापा कहते थे कि जिस घर मे लड़कियाँ हों वहाँ गैर मर्दो की बैठक बाज़ी नही होना चाहिए, मगर अब दोस्त यार आते और हम लोग रात देर तक ताश वग़ैरह खेलते, मम्मी और बेहन भी कभी कभी हमारे क़रीबी और बेतकल्लुफ दोस्तो से हाई हेलो कर लेने मे कोई बूराई महसूस नही करतीं थी. पहले हमारे घर की औरतें और लड़कियाँ अकेले बाहर नही जा सकती थी, मगर अब कोई रोक टोक नही थी, नजमा जो [18] साल की हो गई थी उसे भी [2/4] घंटे के लिए किसी सहेली के पास अकेले जाने से कोई नही रोकता था.
मेरे पापा गुस्से के बहुत तेज़ थे और बात बात पर मार मार कर चमड़ी उधेड़ देते थे, घर का हर शख्स उनसे हर वक्त डरा हुआ ही रहता था, सिरीफ़ घर ही वाले नही बल्कि मुहल्ले के लोग भी उनके गुस्से से डरते थे, उनकी बेवजह की मार पीट ने मुझे बचपन ही से बाघी बना दिया और बचपन ही से बुराई के रास्ते पर चल पड़ा. बचपन ही से मेरे सांगी और साथी उम्र मे मुझ से बड़े तो थे ही इसके अलावा वो सब आवारा, बदमाश और लुच्छे लफंगे क़िस्म के जाहिल लड़के थे जो बात बात पर मा बेहन की गालियाँ देते, घर से पॉकेट खर्च बहुत तोड़ा और वो भी बड़ी मुश्किल से मिलता था.
दोस्तों के कहने सुन ने पर मैने घर से मम्मी के बटवे से और भाई की जेब से पैसे चुराना शुरू कर दिए. अपने से उम्र मे बड़े लड़कों के साथ उठने बैठने की वजह से [****] साल की उम्र मे ही मैं बिल्कुल पक गया और मुझे सेक्स के बारे मे बहुत कुछ मालूम हो गया, मुझे मालूम हो गया कि चुदाई और चोदना किसे कहते हैं. शुरू मे हम एक दो लड़के चुदाई की बातें करते हुए एक दूसरे के लंड को आपस ही मे पकड़ कर सहलाना शुरू किया बाद मे एक दूसरे की गान्ड मार कर मज़ा लेने लगे. हमे गान्ड मारने और मरवाने मे इतना मज़ा मिला कि हम हर वक्त मौके की तलाश मे रहते और मौका मिलते ही आपस मे एक दूसरे की गान्ड मारते. फिर हमे सिगरेट पीने की आदत पड़ी और हम ने जुआ (गॅंबलिंग) भी खेलना शुरू कर दिया. यानि के [18] साल की उम्र तक पहुँचते पहुँचते मैं हर रंग मे रंग गया. मगर अभी भी एक बात की कमी थी यानी किसी लड़की को चोदने और चुदाई देखने की ख्वाहिश, मगर हम कहाँ से लड़की चोदने के लिए लाते और किसी को कैसे चुदाई करते हुए देखते.
हर वक़्त दिमाग़ मे लड़की को नंगा देखने का, उसकी चूत देखने का और उसको चोदने का ही ख्याल भरा रहता था. यह ख्वाहिश मुझे पागल किए रखती थी और दिन- ब- दिन लड़की के लिए जनून बढ़ता ही जा रहा था. मेरे अंदर के जनून ने मुझे अपनी बहन नजमा की तरफ आकर्षित किया, जो मेरी जुड़वाँ होने की वजह से मेरी हम-उम्र भी थी और बहुत क़रीब और बेतकल्लुफ भी,
मुझे याद नही कि यह सिलसिल्ला कैसे शुरू हुआ कि जब मैं मौका और उसको अकेला पा कर उसकी छाती (ब्रेस्ट) पकड़ कर दबाना शुरू किया, नजमा ने मेरी हरकत की शिकायत घर पर किसी से नही की बस शरमा कर भाग जाती, उसके किसी को ना बताने की वजह से मेरी हिम्मत बढ़ गयी और फिर छाती के साथ साथ उसकी चूत को भी सहलाना शुरू कर दिया. मैने हमेशा यह महसूस किया कि मेरी हरकत से उसे भी मज़ा आने लगा है मगर इस-से आगे कुछ कर नही पता क्यूंकी जैसे ही उसे हाथ लगाता वो हमेशा शरमा कर भाग जाती मगर किसी से बोलती नही.
चूँकि हमारा पूरा घराना बहुत खूबसूरत था और ख़ास कर मम्मी की खूबसूरती तो अपनी मिशाल आप थी, उनकी खूबसूरती पूरी की पूरी मेरी बहन नजमा को मिली थी इस-लिए नजमा भी बहुत खूबसूरत थी, जो भी उसे देखता उसकी खूबसूरती की तारीफ़ करते नही थकता था. [18] साल की उम्र मे उसका कद [5”-5”] का हो गया था, वो बिल्कुल गुलाबी रंग की दुबली पतली जापानी डॉल की तरह थी, चेहरे पर बच्चों की तरह मासूमियत थी, [18] साल की होने के बाद भी वो बच्ची ही नज़र आती थी, और उसकी छाती (ब्रेस्ट) [32”], कमर [20”] और कूल्हा (हिप) [32”] का था.
हमारे मोहल्ले मैं एक गोरोसेरी की शॉप थी उसके ओनर का नाम नही मालूम मगर सब लोग उसे शाहजी के नाम से पुकारते थे वो 35-40 साल का लंबा चौड़ा गोरे रंग का बिल्कुल किसी फिल्मी हीरो की तरह बहुत खूबसूरत और ताक़तवर मर्द था, वो पंजाब का रहने वाला था उसकी पूरी फॅमिली पंजाब ही मे रहती थी वो कराची कमाने के लिए आया था और उसने यहाँ गोरोसेरी की एक छोटी सी दुकान कर ली थी और दुकान के पीछे ही एक रूम रहने के लिए बना लिया था जिसका एक दरवाज़ा दुकान के अंदर से था और दूसरा दरवाज़ा पिछली गली से था और वो वहीं रहता था. सुना था की वो बहुत पहले शादी की थी मगर शादी के चन्द महीने बाद ही उसकी बीवी मर गयी थी,
बीवी के मरने के बाद ही वो कराची आकर बस गया था. हमारे घर का पूरा गोरोसर्री उसी की दुकान से आती थी, शाहजी महीने मे एक दो मर्तबा हमारे घर आता और मम्मी उसे ज़रूरत की चीज़ें लिखवाती जातीं और वो लिख कर ले जाता फिर दूसरे दिन लिस्ट का पूरा समान हमारे घर पहुँचवा देता था, उसका पूरा हिसाब किताब पापा महीने मे एक बार करते थे. वो हमारे घर के सब लोगों से बहुत बेतकल्लुफ था. बहुत बार मैने देखा और महसूस किया था कि जब मम्मी उसके सामने बैठ कर समान का लिस्ट उसे लिखवाती थी तो उसकी निगाह मम्मी की छाती की तरफ होती थी जहाँ से उनकी क़मीज़ के {वी] शेप के गले से ऊपरी उभार नज़र आता था, बहुत बार मैने देखा कि मम्मी को उसकी हरकत का पता चल गया मगर उन्होने शाहजी को कुछ नही कहा बस उनके चेहरे पर शर्मीली मुस्कुराहट दौड़ गयी और उन्होने अपने दुपट्टे से अपनी खुली हुई छाती को ढक लिया.
बहुत बार मैने देखा कि समान लिखवाने का काम ख़तम होने के बावजूद मम्मी और शाहजी बैठे घंटों हंस हंस के गॅप शॅप करते थे बाद मे मम्मी मुझे उसके साथ गॅप शॅप के बारे मे किसी से कुछ ना कहने की ताकीद कर देती थी. हम सब भाई बेहन हमेशा उसकी दुकान ही से आइस्क्रीम , चोकॉलेट वग़ैरह खरीद ते थे, और जिसको भी कुछ लेना होता था बिना झिझक अकेले ही उसकी दुकान पर चला जाता था. उसे ख़ास ताल्लुक़ मेरा एक दोस्त करम दीन जिसे हम सब करमू कहते थे उसने करवाया. करमू ही वो लड़का था जो हमे सिगरेट और गॅंबलिंग के रास्ते पर लाया, वो मुझ से 5 साल बड़ा था और उसी ने पहली बार मेरी गान्ड मारी और गान्ड मारने और मरवाने का मज़ा चखवाया. हमारे
पास चूँकि अपनी कोई जगह नही थी जहाँ राज़दारी से चुदाई करते और गॅंबलिंग करते, एक दिन हम चारों दोस्त बैठे यही बात कर रहे थे की हमारे पास किसी पक्की जगह का इंतज़ाम होना चाहिए जहाँ हम बगैर किसी डर के आराम से ताश खेल सकें और गान्ड मारने का मज़ा ले सकें, करमू ने कहा कि एक जगह तो है मगर जिस की जगह ही उसे भी अपने ग्रूप मे शामिल करना पड़ेगा, हम सब फ़ौरन राज़ी हो गये तो करमू ने कहा कि पहले उसे पूछना पड़ेगा कि वो राज़ी है भी या नही.
उस वक़्त करमू ने उसका नाम नही बताया था वो यह कहा था कि अगर वो राज़ी नही हुआ तो उसका नाम ज़ाहिर करना ठीक नही होगा, उसने उसके बारे मे इतना ज़रूर बता दिया था कि वो 30/40 साल का मर्द है और वो चुदाई का बहुत शौक़ीन है, उसे तो बस लंड घुसाने के लिए सुराख चाहिए चाहे सुराख लड़की की चूत का हो या लड़के की गान्ड का, फिर करमू मेरी रान पर हाथ मार कर बोला था,
“शहाब तू बहुत खूबसूरत और चिकना लौंडा है चूँकि वो तुझे जानता है इस लिए वो तेरी गोरी और चिकनी गान्ड के लिए ज़रूर राज़ी हो जाएगा,”
“वो किसी को कुछ कहेगा तो नही”,
मैं ने यही सोच कर पूछा कि कोई भी गान्ड मारे मुझे मज़ा तो मिले गा ही और साथ साथ एक जगह का पक्का बंदोबस्त भी हो जाए गा, बस राज़ ना ख़ूले.
“यार मैं खूद दो [2] साल से उसे और उसके तीन [3] दोस्तों से गान्ड मरवा रहा हूँ क्या आज तक किसी को कुछ मालूम हुआ, यार राज़ खुलने की फ़िक्र मत करो, उसकी चाहे जान चली जाए मगर राज़ नही ख़ूले गा, यही हाल उसके तीनों दोस्तों का है. सब लोग राज़ के मामले मे बिल्कुल पक्के लोग हैं,”
करमू बड़े यकीन से दिलासा देता हुआ बोला.
हम सब ने सहमत होकर करमू को उससे बात करने की इजाज़ात देदि. दूसरे दिन जब मैं स्कूल से आकर दो[2] बजे करमू से मिला तो उस वक्त सिर्फ़ करमू अकेला था हमारे आर दोनो दोस्त नही आए थे, पहले तो मैने दोनो के बारे मे पूछा. फिर मतलब की बात पर आ गया और पूछा,
“यार अब यह बता कि क्या तूने अपने उस दोस्त से बात करली”,
करमू मुस्कूरा कर जवाब दिया,
“मैं रात ही उसके पास गया था और जब मैने उसे पूरी बात बताई तो वो सून कर खुशी से उछल पड़ा और फ़ौरन राज़ी हो गया क्यूँ-कि बहुत दिनो से तेरे ऊपर उसकी नज़र थी मगर कभी तुझ से कुछ कहने की हिम्मत नही कर सका था,मैं करमू की मनी-खेज मुस्कुराहाट से शरमा गया और थोड़ा रुक कर पूछा कि वो कौन है तो उसके मूह से शाहजी का नाम सून कर मैं हैरत से उछल पड़ा क्यूँ-कि मेरे वहम-ओ-गूमान मे भी शाहजी का नाम नही था, पहले तो मैं ने सॉफ इनकार कर दिया कि मैं यह सब शाह जी के साथ नही करूँ गा, मगर जब करमू ने मुझे गालियाँ देते हुए समझा कर कहा,
” अबे मादर चोद…..तेरी बहन की चूत मे कुत्ते का लंड घुसाऊ अगर तो अब इनकार करे गा तो होसकता है कि हमारा राज़ सब लोगों को मालूम हो जाए क्यूँ कि जब कल हमारी बात पक्की हो चूकि थी और हम सब राज़ी हो गये थे तो मैने शाहजी को सब के बारे मे पूरी तफ़सील बता दिया था, अब अगर हमारी तरफ से इनकार होगा तो कहीं शाहजी गुस्से मे हमारा भंडा ना फोड़ दे, और तू इनकार क्यूँ कर रहा है, अबे साले रंडी की औलाद गान्ड तो हम मरवा ही रहे हैं अब अगर शाहजी भी हमारी गान्ड मार ले गा तो क्या फरक पड़ेगा, यह तो सोच उससे ताल्लुक़ रख कर हमारा फ़ायदा ही फ़ायदा है, एक तो हमारे पास ताश खेलने की जगह हो जाए गी, दूसरी यह कि हम जब चाहेंगे चुदाई का मज़ा ले सकेंगे तीसरा यह कि हमे अगर ताश खेलते हुए कभी ऊधार की ज़रूरत हो गी तो वो भी हम शाहजी से ले-सकेंगे”
करमू के समझाने से मेरी समझ मे बात आ गयी और मैं राज़ी हो गया, वो उसी वक्त मुझे शाहजी के पास उसके घर ले गया, क्योंकि शाहजी अपनी दुकान एक[1] बजे से चार [4] बजे तक बंद रखता था और वो घर पर आराम करता था, शाहजी मुझे देख कर खुश हो गया और वक्त जाया किए बगैर मुझे अपनी गोद मे बैठा कर मेरे गाल को सहलाता हुआ बोला,
“करमू ने मुझे सब कुछ बता दिया है, मेरी जान अब तुझे जगह के लिए फ़िक्र करने की ज़रूरत नही है तू बिल्कुल सही आदमी और सही जगह पर आ गया है, इसे तू अपनी जगह ही समझ जब दिल चाहे यहाँ आकर जो दिल चाहे कर कभी किसी को कुछ नही मालूम होगा,यह कह कर शाहजी मेरा पैंट उतारने लगा तो मैं शरमा कर अपनी पैंट को पकड़ लिया तो वो बोला,
“मादरचोद, नखरे क्यूँ दिखा रहा है जल्दी से कपड़े उतार, बहुत दिनों से तेरी गान्ड मारने को तरस रहा हूँ”,
शाहजी यह कह कर फिर मेरे कपड़े उतार ने लगा, करमू ने भी मुझे समझाया तो मैं अपने कपड़े उतार कर नंगा बिस्तर पर बैठ कर शाहजी को देखने लगा जो अपने कपड़े उतार रहा था, वो जब खुद भी नंगा हो गया तो जैसे ही मैने उसके मोटे और लंबे लंड को देखा एक दम डर कर उठ-ता हुआ बोला,
“बाप-रे-बाप, नही शाहजी मैं तुम से गान्ड नही मरवाउन्गा तुम्हारा लंड बहुत बड़ा भी है और बहुत मोटा भी यह मेरी गान्ड को फाड़ देगा”,
शाहजी जो अब बिल्कुल नंगा हो चुका था वो मुझे पकड़ कर अपने साथ बिस्तर पर लाता हुआ मेरी गान्ड को सहला कर बोला,
“मेरी जान डरता क्यूँ है, कुछ नही होगा करमू को देख वो भी तो मुझ से गान्ड मरवाता है क्या उसे कुछ हुआ जो तुझे होगा, बे-फ़िक्र रह सूखा लंड नही घुसाउन्गा, पहले ठीक से क्रीम लगा कर चिकना कर लूँगा उसके बाद जब घुसाउन्गा तो तुझे पता भी नही चलेगा कि कब मेरा लंड तेरी गान्ड मे घुसा, ले पहले मेरे लंड को पकड़ कर सहला फिर इसे मुँह मे ले कर चूस”,
शाहजी और करमू के दिलासा देने से मेरा डर तो ख़तम हो गया मगर लंड का चूसना मेरे लिए बिल्कुल नई बात थी, थोड़े इनकार के बाद मैं शाहजी के मोटे लंड को बड़ी मुश्किल से अपने मुँह मे ले कर चूसना शुरू किया, शुरू मे मुझे उल्टी सी होने लगी और मेरा मुँह नमकीन हो गया, मगर थोड़ी देर बाद मुझे मज़ा आने लगा, मैं शाहजी के लंड को पकड़ कर चूस रहा था और शाहजी मेरी गान्ड मे क्रीम लगा कर अपनी मोटी ऊँगली मेरी गान्ड मे घुसा कर हिला रहा था, थोड़ी देर बाद शाहजी ने मुझे बिस्तर पर मेरे पेट और लंड के नीचे दो तकिया रख कर मुझे औंधा लेटा दिया, नीचे दो तकिया होने की वजह से मेरे चूतड़ ऊपर उठ गये थे, शाह जी मेरे ऊपर आकर मेरे चूतड़ को चीर कर अपने लंड को एक हाथ से पकड़ कर अपने लंड की टोपी को मेरी गान्ड के सुराख पर रगड़ने लगा, रगड़ते रगड़ते उसने हल्का धक्का मारा और उसके लंड का टोपा “खच” से मेरी गान्ड मे घुस गया,
क्रीम लगी होने की वजह से मुझे कोई तकलीफ़ नही हुई, मगर बाद मे वो जैसे जैसे अपना लंड अंदर घुसा ने लगा मुझे बहुत तकलीफ़ होने लगी मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरी गान्ड मे मिर्च डाल दिया हो, मैं तकलीफ़ से तिलमिला कर खुद को शाहजी से छुड़ाने की कोशिस करने लगा मगर शाहजी ने मुझे इसतरह जकड रखा था कि मैं हिल भी नही सका, अहिस्ता अहिस्ता वो अपने धक्के की रफ़्तार बढ़ाता ही गया और मैं तकलीफ़ से रोने लगा, थोड़ी देर मे मेरी तकलीफ़ ख़तम हो गयी और मुझे बहुत मज़ा आने लगा. जब मैं मज़े और मस्ती मे आकर अपने चूतड़ हिला हिला कर गान्ड मरवाने लगा तो शाहजी ने मेरे चेहरे को मोड़ कर अपने होंठ मेरे होंठो से मिला कर चूसने लगा और अपनी ज़बान मेरे मूँह मे घुसा दिया, मैं लज़्जत और मज़ा की बे-खुदी मे उसकी ज़बान को खूब चूसने लगा. शाहजी चोदने के मामले मे बहुत ताक़तवर मर्द था, वो बहुत देर तक मुझे चोदता रहा . यह था शाहजी से मेरे ख़ुसी तालूक़ के शुरू होने की कहानी. उसके बाद यह सिलसिला चल पड़ा,
शाहजी हमेशा गान्ड मारने के बाद मुझे 10/ रुपए ज़रूर देता था फिर शाहजी के तीनों दोस्त भी शामिल हो गये, वो भी मेरी गान्ड मारने लगे, जो भी मेरी गान्ड मारता वो मुझे पैसे ज़रूर देता. हम अब बगैर किसी डर के शाहजी के घर जुआ खेलते और मौजमस्ती करते. शाहजी मुझे जुआ खेल ते वक्त यह कह कर उधार देता कि यह उधार माफ़ नही होगा और वो मुझ से वसूल भी कर लेता था, जो मैं घर से चूरा कर वापस करता था. शाहजी और उसके तीनों दोस्त हफ्ते दो हफ्ते मे रात को लड़की भी ला कर चोदते. उन्हो ने मुझे भी दावत दी मगर चूँकि वो रात को लड़की लाते इसलिए मैं कभी शामिल नही हो सका.
एक दिन 4 बजे शाम को मैं नानी जान के पास से घर आया तो घर मे घुसने से पहले मैने नजमा को रास्ते से घर की तरफ आते देखा वो क़रीब आई तो मैने देखा कि उसके चेहरे पर घबराहट है और उसका चेहरा लाल होरहा था, मैने पूछा,
“नजमा क्या बात है ख़ैरियत तो है तुम इतनी घबराई हुई क्यूँ हो”
उसने कोई जवाब नही दिया और मेरे साथ ही घर मे दाखिल हो गई, ईस्वक़्त घर मे मम्मी सो रही थी और एक कमरे मे मेरे दोनो छोटे भाई और बहन लुडू खेलने मे लगे हुए थे, मैने नजमा को अकेले कमरे मे बुलाकर फिर उसके घबराहट की वजह पूछी, बड़ी मुश्किल से बार बार ज़िद करने पर शरमाते हुए बोली,
“मैं शाहजी की दुकान पर आइस्क्रीम लेने गई थी दुकान मे वो अकेला था और मुझे देख कर मेरे पास आया और एकदम मेरी छाती (ब्रेस्ट) पकड़ कर दबा दिया, मैं शरम से घबरा कर वहाँ से भाग कर आ गई”
नजमा से शाहजी की हरकत सून कर गुस्से से मेरा खून खौल गया, साथ ही यह सोच कर डर भी गया कि अगर नजमा ने किसी को बता दिया तो भाई और पापा उसे यक़ीनन पोलीस से पकड़वा देंगे फिर मेरा गान्ड मरवाने और जुआ खेलने का राज़ खुल भी सकता है, यह सोच कर मैने नजमा को यह बात किसी से ना बताने को कहा और बोला कि मैं खुद ही शाहजी से निपट लूँगा.
आगे की कहानी, आगे की भाग में…..