शीला की लीला – 13 | Hindi Sex Story

शनिवार को शाम ७ बजे, कविता और पीयूष तैयार होकर होटल मनमंदिर पर जाने के लिए निकले.. अच्छी नौकरी मिलने से पीयूष खुश था.. कविता किसी अलग कारण से उत्साहित थी.. समय का पाबंद पीयूष ७:४५ को होटल के प्रांगण में पहुँच गया..

“आओ पीयूष.. आइए भाभी जी” राजेश ने उन दोनों का स्वागत किया

पूरा कॉनफरन्स रूम भरा हुआ था.. कविता यहाँ किसी को नहीं जानती थी.. पीयूष को अभी तीन दिन ही हुए थे.. पर वो कुछ कुछ लोगों को जानता था.. इसलिए उनसे बातों में व्यस्त हो गया

कविता अकेले ही पूरे हॉल में घूमने लगी.. उसके दिमाग में एक ही बात चल रही थी “मेरा अंदाजा गलत नहीं हो सकता.. पिंटू की लिखाई को मैं बराबर जानती हूँ.. ऑफिस से आया हुआ वो खत पिंटू ने लिखा था इसका मुझे यकीन है.. ” उसकी आँखें यहाँ वहाँ एक ही इंसान को ढूंढ रही थी

“मे आई हेल्प यू?” पीछे से आवाज आई.. सुनकर कविता का रोम रोम पुलकित हो उठा। उसने पीछे मुड़कर देखा

“अरे पिंटू तू?? यहाँ.. ??” उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था

“कवि.. तू यहाँ कैसे?” पिंटू आश्चर्यचकित था..

“मेरे पति ने अभी अभी ये कंपनी जॉइन की है.. देख वो सामने खड़ा है.. पीयूष है उसका नाम”

“हाँ नाम तो मुझे पता था.. पर आज देखा पहली बार.. हेंडसम है तेरा पति.. और तू भी आज कितनी सेक्सी लग रही है यार.. आई लव यू जान” पिंटू ने कहा

शर्म से कविता की आँखें झुक गई.. उसके रूप और सौन्दर्य के सामने हॉल की सारी महिलायें फिक्की लग रही थी.. सब अपने अपने ग्रुप में मशरूफ़ थे इसलिए पिंटू की कही बात किसी के कानों पर नहीं पड़ी.. नहीं तो मुसीबत हो जाती

“हेंडसम तो तू भी बहोत लग रहा है आज.. मन तो ऐसा कर रहा है मेरा की अभी तुझे चूम लू.. कितने दिन हो गए.. साले तू कभी फोन या मेसेज क्यों नहीं करता?” कविता में छुपी प्रेमीका ने शिकायत की

“कवि.. ये सारी बातें यहाँ नहीं हो सकती.. मैं राजेश सर का पर्सनल सेक्रेटरी हूँ.. उनसे जुड़ी ऑफिस की सारी बातें मैं ही संभालता हूँ.. सुन कविता.. यहाँ हमे ऐसे ही बर्ताव करना है जैसे हम अनजान है.. नहीं तो किसी को शक हो जाएगा.. मैं अब चलता हूँ.. सर मुझे ढूंढ रहे होंगे”

उतने में पीयूष राजेश के साथ कविता के पास आया

“नमस्ते मैडम.. इस पूरे हॉल में सब से ज्यादा खूबसूरत आप लग रही हो.. इन सारे वेस्टर्न ड्रेस पहनी स्त्रीओं में आपकी साड़ी सब से अलग और आकर्षक लग रही है” राजेश ने कहा

पराए पुरुष से अपनी तारीफ सुनकर कविता शर्माने लगी.. ये सब उसे काफी नया नया लग रहा था। थोड़ी ही देर में सब डिनर टेबल पर बैठ गए और स्टेज पर माइक लिए खड़े पिंटू ने बोलना शुरू किया

“मेरे प्यारे मित्रों..

सारे उपस्थित स्टाफ और उनके परिवार का मैं दिल से स्वागत करता हूँ। मुझे ये बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है की हमारे परिवार में एक और कपल जुडने जा रहा है.. सब लोग तालियों के साथ स्वागत कीजिए.. मिस्टर पीयूष और मिसिस कविता.. !!”

अपने टेबल से खड़े होकर पीयूष और कविता ने सब का इस्तकबाल किया.. और वापिस चैर पर बैठ गए।

कविता का फिगर और खूबसूरती देखकर सब दंग रह गए.. सबके आकर्षण का केंद्र बन गई कविता !! उसके सेक्सी फिगर को लोग बार बार देख रहे थे.. कविता को थोड़ा सा विचित्र महसूस हो रहा था.. स्टेज पर से कंपनी के नए प्रोजेक्ट्स के बारे में जानकारी दी जा रही थी और सारा स्टाफ अब खाने में व्यस्त हो रहा था। कविता को खाने से ज्यादा पिंटू की आवाज सुनने में ज्यादा दिलचस्पी थी.. पिंटू यहाँ कैसे और कबसे नौकरी पर लगा होगा?? कविता तिरछी नज़रों से पिंटू को देख रही थी.. राजेश भी स्टेज पर बैठे बैठे पिंटू को सुन रहा था।

एकाध घंटे में खाना खतम हो गया.. सब एक के बाद एक जाने लगे.. जाने से पहले कविता एक बार और पिंटू से मिलना चाहती थी.. पर पीयूष के साथ होने के कारण ऐसा हो नहीं पाया.. अपनी पत्नी की इतनी तारीफ सुनने के बाद पीयूष थोड़ा सा असुरक्षित महसूस कर रहा था और इसलिए वो कविता का पल्लू छोड़ ही नहीं रहा था। वापिस लौटते वक्त पीयूष ने कंपनी के बारे में बहोत सारी बातें कही.. पर ना ही उसने पिंटू के बारे में जिक्र किया और ना ही कविता ने उसके बारे में कुछ पूछा..

दूसरे ही दिन से पीयूष नौकरी पर लग गया.. रोज रात को कविता पीयूष से कंपनी में हुई पूरे दिन की घटनाओं के बारे में पूछती.. इस आशा में की कहीं पिंटू की बात निकले पर उसे रोज निराश ही होना पड़ता था

एक सुबह ५ बजे कविता दूध लेने के लिए बाहर निकली तभी एक टैक्सी शीला भाभी के घर के आगे आकर रुकी.. करीब २७-२८ साल की लड़की सूट्कैस निकाल रही थी गाड़ी से.. और तभी रसिक दूधवाला भी आ पहुंचा

शीला ने दरवाजा खोला और वो लड़की अंदर चली गई.. रसिक से दूध लेकर शीला ने दरवाजा बंद कर दिया..

रसिक अब कविता के घर पर दूध देने पहुंचा.. दूध देते हुए उसने कहा

“उनकी बेटी आई है कलकत्ता से.. अच्छा है.. अब उनका अकेलापन दूर हो जाएगा”

कविता अंधेरे में नीचे देखकर रसिक के मोटे लंड का उभार ढूंढ रही थी..

कविता: “हाँ वो तो है रसिक.. अकेले रहना बड़ा मुश्किल होता है.. ” कविता को अपने साथ बात करता देख रसिक को आश्चर्य हुआ.. आज तक कभी भी उसने बात करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई थी..

रसिक के पजामे से उभार तो नजर आ रहा था जो उस मोटे लंड के होने का सबूत दे रहा था.. देखते ही कविता की पुच्ची में चुनचुनी होने लगी.. पर कहें कैसे रसिक को !! वह सोच में पड़ गई.. रसिक को आज शीला भाभी के साथ भी खेलना नसीब नहीं हुआ था.. वरना हररोज वो शीला के स्तनों को तो दबा ही लेता.. और अगर शीला हरी झंडी दिखाती.. तो उसका घाघरा उठाकर अपना एक किलो का लंड पेलकर धमाधम चोद भी लेता.. या तो फिर शीला उसका लंड हिलाकर उसके आँड़ों का मक्खन बाहर निकलवाने में मदद करती.. और फिर रसिक का पूरा दिन अच्छा जाता.. पर आज उनकी बेटी के आ जाने से कुछ भी नहीं हो पाया. अगर वह थोड़ी देर से आया होता तो शीला की बेटी अंदर चली गई होती और उसे कम से कम शीला के रसदार भारी स्तनों को दबाने का मौका तो मिलता..

रसिक ने कविता की नाजुक कमर और पतले शरीर को देखा.. और लगा की वह उसके किसी काम की नहीं थी.. रसिक के एक धक्के में ही उसका काम तमाम हो जाता.. कितनी संकरी होगी इसकी चुत ? रसिक देखते देखते सोच रहा था.. अगर इसके अंदर मेरा लोडा डालूँ तो ये लहू लुहान हो जाएगी.. अरे इसका तो पेशाब ही बंद हो जाएगा.. और मुझे ही उठाकर अस्पताल ले जाना पड़ेगा !!​

“क्या सोच रहे हो रसिक? दूध डालो पतीली में !!” रसिक की कामुक नजर.. सुबह का एकांत और अंधेरा.. शीला भाभी की बातों में सुने वर्णन के आधार पर रसिक के लंड की कल्पना करते हुए कविता पागल हो रही थी.. रसिक की चौड़ी छाती और पहलवान जैसा शरीर देखकर कविता की पेन्टी गीली होने लगी..

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वो सोच रही थी “इतना बड़ा पहाड़ सा इंसान मेरे ऊपर चढ़ेगा तो मेरा क्या हश्र होगा !! बाप रे.. कम से कम १०० किलो वजन होगा इसका.. मेरे ऊपर तो पीयूष चढ़ता है तब भी मेरी सांस अटक जाती है.. पीयूष तो है भी पतला सा फिर भी.. ये तो हाथी जैसा है.. नहीं रे नहीं.. ” कांप उठी थी कविता

दोनों अपना समय बर्बाद कर रहे थे.. चार पाँच मिनट बीत गई.. अभी भी रसिक ने पतीली में दूध नहीं डाला था.. कविता की छोटी छातियाँ.. सुराहीदार गर्दन.. कान में छोटी छोटी बालियाँ.. रसिक मुग्ध होकर कुदरत की बनाई इस खूबसूरत मास्टरपीस को देख रहा था.. यार, ये लड़की अभी मेरा पानी निकलवा देगी.. मुझे ये दूध का धंधा ही बंद कर देना चाहिए.. रोज सुबह इन खूबसूरत बलाओं के बबले देखकर हालत खराब हो जाती है मेरी..

“तुम दूध दे रहे हो या मैं जाऊ?” कविता ने कहा

“दे रहा हूँ.. दे रहा हूँ.. रुकिए जरा.. ” रसिक के हाथों में दूध का केन था.. केन का ढक्कन खोलने के लिए जो चाकू था वो साइकिल के हेंडल में फंसा हुआ था.. “जरा वो चाकू निकाल दीजिए ना भाभी.. फंस गया है.. “

रसिक के मुंह से फंस जाने की बात सुनकर कविता को अपनी संकरी चुत में उसका लंड फँसने की कल्पना मन में दौड़ने लगी.. अपने आप पर ही हंसने लगी कविता.. मन भी अजीब है.. कहाँ कहाँ विचार पहुँच जाते है !!

“हंस क्यों रही हो भाभी?” रसिक ने पूछा

“इतना फिट क्यों घुसा रखा है चाकू?”

“ओर कहीं रखने की जगह ही कहाँ है साइकिल में.. !! यहाँ रखता हूँ तो फिट हो जाता है साला.. रोज तो शीला भाभी खींचकर एक झटके में निकाल देती है.. पर आपको तकलीफ होगी.. शीला भाभी अनुभवी जो ठहरी.. पहली बार करो तब सबको तकलीफ होती ही है.. क्यों सच कहा ना मैंने भाभी?” रसिक द्विअर्थी भाषा में बातें करने लगा

“पहली बार तो शीला भाभी को भी तकलीफ हुई होगी.. कोई ऊपर से सीखकर थोड़े ही आता है.. धीरे धीरे कोशिश करें तो सब आने लगता है”

“ये क्या सुबह सुबह रसिक के साथ माथा फोड़ रही है तू.. चल अंदर.. खाना बनाने की तैयारी कर” पीछे से अनुमौसी की आवाज आई

अपनी सास की आवाज सुनते ही कविता ने तेजी से रसिक के हाथों से दूध का पतीला लिया.. और ऐसा करते वक्त दोनों के हाथों का स्पर्श हो गया..

“मम्मी, मैं तो कब से लेने के लिए तैयार खड़ी हूँ.. ये रसिक ही कमबख्त मुझे दे नहीं रहा” कविता ने भी द्विअर्थी संवादों का दौर जारी रखा.. कविता के मुख से ऐसी सांकेतिक भाषा सुनकर रसिक खुश हो गया

कविता दूध लेकर अंदर चली गई और रसिक आगे निकल गया.

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वैशाली को देखकर शीला खुश हो गई.. उसके आने से ही पूरा घर भरा भरा सा लगने लगा.. २७ साल की फेशनेबल, भरे भरे जिस्म वाली, एकदम गोरी और बॉब कट हेयर स्टाइल वाली वैशाली.. एकदम बातुनी लड़की थी.. वो और शीला दोनों बातें करने लगे.. वैशाली ने अपने पापा के बारे में पूछा और शीला ने उसे उसके पति संजय और ससुराल के बारे में बातें की

बातों ही बातों में वैशाली ने शीला को बताया की वो ससुराल में बिल्कुल भी खुश नहीं थी.. उसका पति संजय अपने काम पर ध्यान ही नहीं देता था और बार बार नौकरियों से निकाल दिया जाता था.. पूरा दिन सिगरेट फूंकता रहता था.. शराब पीता था.. दोस्तों से ब्याज पर पैसे उधार लेता था और जब लौटा न पाएं तब शहर छोड़कर भाग जाता था.. पूरा दिन घर पर कोई न कोई वसूली करने आ पहुंचता था.. वैशाली उसे टोकती तो वो अनाब शनाब बोलकर उसे हड़का देता.. उसके सास-ससुर भी संजय की इस स्थिति के लिए वैशाली को जिम्मेदार ठहराते.. ससुर के पेंशन से घर आराम से चल तो रहा था पर उसकी सास बात पर उसे ताने मारती रहती थी। अपनी स्थिति के बारे में बताते हुए वैशाली फुट फुट कर रोने लगी.. शीला ने उसकी पीठ पर हाथ सहलाकर उसे शांत किया.. अपनी माँ के साथ दुख बांटकर वह काफी हल्का महसूस करने लगी।

शीला: “तू चिंता मत कर बेटा.. मेरे होते हुए.. मैं सब कुछ ठीक कर दूँगी”

शीला की बात सुनकर वैशाली के दिल को थोड़ी तसल्ली मिली.. वैशाली का मूड ठीक करने के लिए शीला ने कहा “तू आराम से टीवी देख.. मैं तेरी पसंद का कुछ अच्छा खाने के लिए बना देती हूँ”

शीला किचन में गई और वैशाली पैर पर पैर चढ़ाकर आराम से टीवी देखने लगी.. मायके में आकर बेटियों को एक अनोखी शांति का एहसास होता है.. दोपहर में माँ बेटी ने खाना खाया और फिर से बातें करने लगी.. शाम के साढ़े पाँच कब बज गए पता ही नहीं चला..

शीला ने फोन करके कविता को घर बुलाया और उसकी पहचान वैशाली से करवाई..

शीला: “कविता, तू और वैशाली एक ही हमउम्र हो.. तू इसे कंपनी देना.. वैशाली, ये कविता है.. अपने अनुमौसी के बेटे पीयूष की पत्नी.. बहोत ही अच्छा स्वभाव है इसका.. तुम दोनों की साथ में अच्छी पटेगी.. “

दोनों लड़कियों की दोस्ती होने में समय नहीं लगा.. एक दिन में तो दोनों एकदम खास सहेलियाँ बन चुकी थी.. दोनों देर रात तक साथ बैठती और बातें करती रहती.. रोज रात को खाना खाने के बाद दोनों वॉक पर जाने लगी.. इन दोनों की दोस्ती से अनुमौसी और पीयूष भी बड़े खुश थे।

रात को वॉक पर जाते वक्त, वैशाली टाइट टीशर्ट और छोटी सी शॉर्ट्स पहनकर निकलती.. टीशर्ट के अंदर ब्रा भी नहीं होती थी.. चलते चलते हर कदम के साथ उसके उछलते हुए वक्ष देखकर कविता को अपने मायके की याद आ जाती.. लड़की अपने मायके में बिना किसी बंधन के कितने आराम से रहती है !! ससुराल में तो पूरा दिन “ये करो.. ये मत करो.. ऐसे मत बैठो.. ऐसे कपड़े मत पहनो” ऐसी रोकटोक में ही जीवन निकल जाता है..

वैशाली के ठुमकते जोबन को नुक्कड़ पर खड़े लड़के घूर घूरकर ताड़ते रहते.. वैशाली को उन लड़कों की नजर से कोई फरक पड़ता नहीं दिखा.. वो तो गर्व से अपना सीना तानकर उनके बगल से निकल गई.. उन लड़कों की लफंगी नज़रों से कविता शर्म से लाल हो गई

कविता: “यार वैशाली, लोग कैसी गंदी गंदी नज़रों से देख रहे है.. “

वैशाली: “देखने दे.. मुझे घंटा फरक नहीं पड़ता.. “

कविता: “पता नहीं यार.. ये लोग हमेशा हमारे बूब्स को देखकर क्या सोचते होंगे??”

वैशाली: “यहीं की एक बार टीशर्ट के अंदर हाथ डालकर दबाने मिल जाए तो मज़ा आ जाए.. हा हा हा हा.. “

वैशाली बोलने में एकदम बिंदास लड़की थी.. और स्वभाव से कामुक भी थी.. आखिर थी तो वो शीला की ही बेटी.. कोई हेंडसम लड़का दिख जाएँ तब वो भी उसे ऊपर से नीचे तक स्कैन कर लेती.. वैशाली बार बार कविता को उसकी सेक्स लाइफ के बारे में पूछती रहती.. इतना ही नहीं.. वो पीयूष के बारे में भी अलग अलग प्रश्न पूछती रहती कविता से.. वो सिर्फ पूछती ही नहीं थी.. अपने बारे में बताती भी थी

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शुरू शुरू में ऐसी बातें करने में कविता को झिझक होती थी.. जब वैशाली “लंड” “चुत” और “बबलों” जैसे शब्दों का खुलकर उपयोग करती.. धीरे धीरे कविता भी वैशाली के आगे खुलने लगी..

एक बार वैशाली ने कविता से बेधड़क पूछ लिया “तूने कभी शादी से पहले किसी के साथ सेक्स किया था?”

कविता: “नहीं रे नहीं.. मैंने तो सब से पहले पीयूष के साथ ही किया था.. वैशाली तू ने किया था क्या?”

वैशाली: “हाँ किया था.. अब ये मत पूछना की किसके साथ.. क्योंकी वो मैं बता नहीं सकती.. ” वैशाली ने कविता को अगला प्रश्न पूछने से रोक लिया

कविता सोचने लगी.. सब कुछ खुलकर बता रही है तो ये बताने में भला क्या हर्ज !!

कविता की ओर देखकर वैशाली ने कहा “तुझ जैसी सुंदर छुईमुई को किसी ने शादी से पहले लाइन न मारी हो ऐसा हो तो नहीं सकता.. पक्का तू मुझसे कुछ छुपा रही है”

कविता: “ऐसा कुछ भी नहीं है.. जब तू मुझे इतना सब खुलकर सब बता रही है तो फिर मुझे बताने में क्या दिक्कत होती !!!” कविता शीला की पक्की शिष्य थी.. अपने राज को कैसे दबाकर रखना वो बखूबी सीख चुकी थी। दूसरे के राज कैसे उगलवाना उसका मंत्र भी उसने शीला से ही सीखा था।

कविता ने धीरे से वैशाली से पूछा “बड़ी होशियार है तू वैशाली.. शादी से पहले ही सेक्स किया तो तुझे तेरे माँ-बाप को पता चल जाने का डर नहीं लगा था? मेरी तो ऊपर ऊपर से करवाने में ही डर के मारे जान निकल गई थी”

वैशाली ने चुटकी बजाते हुए कहा “मतलब तू जब ब्याह कर आई तब थोड़ा बहोत कर ही चुकी थी.. ऊपर ऊपर से मतलब? लंड अंदर नहीं लिया था क्या ??”

कविता: “मेरे मायके में एक लड़का था पिंटू.. मुझे बहोत पसंद था.. अभी भी मैं उसके साथ.. पर शादी से पहले मैंने कुछ नहीं किया था”

वैशाली: “ऐसा कैसे हो सकता है !! कोई भी लड़का तेरे जैसा कोरा माल बिना चोदे कैसे छोड़ देगा भला ??”

कविता: “वही तो.. मैंने काफी बार उसे मुझे चोदने के लिए कहा.. पर उसका कहना था की जब तक शादी न हो जाए तब तक वो कुछ नहीं करेगा”

वैशाली: “बड़ा आया सत्यवादी हरीशचंद्र.. इसका मतलब ये हुआ की पीयूष को सुहागरात पर सील-पेक माल ही मिला था.. पर तुझे सील-पेक माल नहीं मिला.. तुझे क्या पता की पीयूष इससे पहले किसी के साथ कर चुका है या नहीं”

कविता चोंक उठी “सच सच बता वैशाली”

वैशाली ने ठहाका लगाते हुए कहा “अरे यार बीती बातें भूल जा.. पीयूष ने सब से पहली बार मेरे साथ ही किया था.. ” कविता के पैरों तले से धरती हिल गई.. चक्कर सा आने लगा उसे.. !!!!

उदास हो गई कविता और उसका चेहरा भी लटक गया.. फिर उसने सोचा की वो भी कहाँ दूध से धुली थी !! प्रत्येक परिणित स्त्री का एक भूतकाल होता ही है.. वैसे वैशाली और पीयूष का भी था.. और पीयूष की बातों ऐसा कभी प्रतीत भी नहीं हुआ की उसे वैशाली की कभी याद भी आई थी

लेकिन स्त्री-सहज ईर्ष्या होना तो स्वाभाविक था.. कविता की असमंजस को वैशाली ने परख लिया

वैशाली: “तू उदास क्यों हो गई?? टेंशन मत ले.. मेरे और पीयूष के बीच जो कुछ भी हुआ था वो पुरानी बात है.. और वह एक भूल ही थी.. जो नादान उम्र के बच्चे अक्सर करते है.. और तेरा भी ऐसा ही भूतकाल पिंटू के साथ भी रहा ही है ना.. !! १७ से २२ की उम्र ही ऐसी होती है.. शरीर विकसित हो जाता है.. अन्तःस्त्राव शुरू हो जाते है.. दिल पंछी की तरह उड़कर अलग अलग डाल पर बैठने लगता है.. विजातीय आकर्षण होने लगता है.. मायके में दिल के अंदर बसे प्रियतम को भूलकर वह अन्य व्यक्ति के साथ अपने जीवन की शुरुआत करते ही सब कुछ भूल जाती है.. “

कविता को वैशाली की बात ठीक लगी.. “सच बॉल रही है तू वैशाली.. मैं भी जवान हुई तभी पिंटू के साथ प्रेम विकसित हुआ था.. मुझे ये बता.. शादी के बाद तुझे किसी के लिए आकर्षण हुआ है कभी??”

वैशाली बोलने में बिंदास थी.. “जिंदगी बिताने के लिए पति और प्रेमी दोनों की आवश्यकता होती है.. वरना जीने में मज़ा ही नहीं आता.. पति जब हमारा दिल दुखाएं तब सहारे के लिए एक कंधा तो चाहिए ना !! अपना दर्द बांटने के लिए कोई होना तो चाहिए.. मेरे तो पर्सनल प्रॉब्लेम इतने है की अगर मेरा प्रेमी नहीं होता तो अब तक पंखे से लटक गई होती”

इंसान जब अपने जीवन के दर्द भरे पन्ने किसी के सामने खोलता है तब दुख और दर्द उसकी इंतहाँ पर होते है.. वैशाली अपनी दास्तां सुनाती गई

“शादी के बाद मम्मी पापा का घर छोड़ा.. उसके साथ ही खुशी और सुख क्या होते है.. मैं तो जैसे भूल ही गई.. पापा के घर मुझे एक भी काम नहीं करना पड़ता था.. पापा अक्सर मुझे टोकते.. कहते की कामकाज सिख ले वरना ससुराल में बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ेगा.. आज उनकी कही सारी बातें याद आ रही है.. संजय से शादी के पहले पाँच साल तो बड़े ही शानदार तरीके से बीते.. पहला झटका तब लगा जब मुझे संजय के अफेर के बारे में पता चला.. मैं आज तक समझ नहीं पाई.. मैंने उसे हर तरह से खुश रखा था.. ऐसी कौन सी कमी थी मुझ में जो संजय को किसी और के पास जाना पड़ा !!! उसे जो चाहिए था मैंने सब कुछ दिया.. किसी बात के लिए कभी जिद नहीं की.. उसकी हर बात मानती थी मैं.. अरे शुरुआत के दिनों में उसे पूरा दिन सेक्स की चूल मची रहती.. एक रात में चार चार बार.. कभी कभी पाँच बार सेक्स करते.. मैंने कभी मना नहीं किया.. बिना सोये पूरी रात चुदवाने के बावजूद में सुबह जल्दी उठ जाती.. तुझे पता है ना.. की चुदाई के बाद कैसी नींद आती है!! संजय तो हल्का होकर देर तक सोते हुए अपनी थकान उतारता.. पर मैं घर के सारे काम में व्यस्त हो जाती.. दोपहर को जब थोड़ा सा आराम करने बिस्तर पर लेटती.. संजय फिर से तैयार हो जाता.. और कम से कम दो बार सेक्स करने के बाद ही दम लेता.. मैं ये सोचकर सब कुछ बर्दाश्त करती की आखिर पति है वो मेरा.. उसे हक है मेरे शरीर को भोगने का.. पर इतना सब करने के बाद भी जब वो किसी और के साथ मुंह मारने लगा.. ” वैशाली आगे बोल नहीं पाई

“कौन थी वो? नाम क्या था उसका? तूने उसे सबक सिखाया की नहीं?” कविता ने पूछा

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वैशाली ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा “यार.. जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो गैरों को बोलकर क्या फायदा !! संजय कुछ कमाता तो था नहीं. बस दिन भर बिस्तर पर पड़ा रहता और मौका मिलते ही मेरी टांगें चौड़ी करके मेरे छेद में घुसा देता.. उसे २४ घंटे चुदाई के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं थी.. तंग आ गई थी मैं उस ज़िंदगी से.. जब पति ही ऐसा हो तो कैसे कटेगी पूरी ज़िंदगी उसके साथ !! तभी मैंने दूसरा साथी तलाश लिया.. लाखों में एक है वो कविता.. अपने एरिया में ही रहता ही.. अब तक हम सिर्फ बातें ही करते है.. मेरा ससुराल नजदीक होता तो हम मिल भी पाते.. पर कलकत्ता में रहते हुए ये मुमकिन हो न सका.. तुझे पता है कविता.. एक तरफ मेरा पति है जिसके दिमाग में हर वक्त औरतों को भोगने का जुनून सवार रहता है.. स्त्री को हमेशा एक साधन की तरह ही इस्तेमाल करता है.. जब देखो तब मुझे कहता रहता है “अरे वो देख वो लड़की की गांड कितनी मस्त है.. आह्ह वो वाली की चूचियाँ” मुझे तो बोलने में भी शर्म आती है.. कभी कभी तो मेरी मम्मी के बारे में भी गंदी गंदी बातें करता है.. दूसरी तरह मेरा प्रेमी.. जो इतने दूर रहकर भी मुझे शब्दों से सहारा देता है.. मेरी हिम्मत बढ़ाता है.. मेरी बात सुनता है.. मेरे दर्द बांटता है.. और इसके बदले उसने कभी मुझसे कुछ भी नहीं मांगा.. हिम्मत है उसका नाम.. आई लव हिम्मत” वैशाली भावुक हो गई

कविता: “ऐसे हरामजादे मर्दों को तो गोली मार देनी चाहिए..”

वैशाली: “नसीब की बलिहारी तो देख कविता.. हिम्मत की पत्नी का चार महीने पहले ही देहांत हो गया.. सिर्फ ८ साल में ही उसका गृहस्थ जीवन समाप्त हो गया.. फिर भी इस नाजुक वक्त पर में उसे सहारा न दे पाई.. “

कविता: “इतनी छोटी उम्र में ही हिम्मत की पत्नी चल बसी?? क्या हुआ था उसे?”

वैशाली: “हिम्मत की बीवी को गर्भाशय का केन्सर था.. अकेला पड़ गया है बेचारा.. अच्छे लोगों के साथ ही ऐसा क्यों होता है? तू मानेगी नहीं.. हिम्मत अपनी बीवी की मौजूदगी में मुझसे बातें करता.. अब बता.. कोई पत्नी ऐसा बर्दाश्त कर सकती है भला?? पर संध्या ने कभी एतराज नहीं जताया.. बहोत ही अच्छी थी संध्या.. हिम्मत संध्या से कभी कुछ भी छुपाता नहीं था.. कभी कभार संध्या भी मुझसे बात करती और मेरा होसला बढ़ाती.. संजय जब घर पर नहीं होता था तब मैं घंटों हिम्मत से बात करती थी.. सिर्फ उसी की बदौलत मैं अब तक संजय के साथ टीक पाई हूँ.. आज मैं हिम्मत से भी ज्यादा संध्या को मिस कर रही हूँ” वैशाली की आँखों से आँसू टपकने लगे

वैशाली ने बात आगे बढ़ाई “शादी से पहले के इस प्यार को हम दोनों ने मेरी शादी के बाद दफना दिया था.. कभी उसने मुझे आई लव यू तक नहीं कहा.. बस दोस्ती का रिश्ता ही रखा था.. संध्या ने एक बार मुझे कहा था की उनकी शादी से पहले ही हिम्मत ने उसे मेरे बारे में बता दिया था। ऐसा ईमानदार इंसान अब कहाँ मिलेगा!! ” वैशाली के शब्दों के दर्द ने कविता को भी हिला दिया

कविता: “तू चार दिन से आई है.. फोन किया की नहीं?”

वैशाली: “नहीं यार.. उसकी पत्नी को मरे कुछ ही महीने हुए है.. मैं अकेली उसके घर जाऊँगी तो लोगों को बातें बनाने का मौका मिल जाएगा.. मम्मी को लेकर तो जा नहीं सकती.. कोई साथ हो तो ठीक है.. पर अकेले जाने में लोग तरह तरह की बातें करेंगे और बेकार में हिम्मत परेशान हो जाएगा”

कविता: “तुझे एतराज न हो तो मैं तेरे साथ चलूँ?”

वैशाली: “मुझे क्यों एतराज होगा भला.. और अगर होता तो मैं ये सब बातें तुझे क्यों बताती !! पर सिर्फ हम दो लड़कियां उस अकेले मर्द के घर जाएगी तो अच्छा नहीं लगेगा.. कोई मर्द साथ होता तो फिर किसी के मन में कोई शक ही पैदा नहीं होगा. पर किसे लेकर जाएँ यही प्रॉब्लेम है.. खैर मेरे प्रॉब्लेम तो चलते ही रहेंगे.. तू अपनी बता.. पिंटू के साथ तेरे संबंध कैसे थे?”

कविता ने अथ से इति तक सब कुछ बताया पिंटू के बारे में.. बात करते करते वो शर्म के मारी लाल लाल हो गई

वैशाली: “बड़ी किस्मत वाली है तू.. कम से कम तेरा प्रेमी नजदीक तो है.. जब चाहे उसे देख सकती है तू.. पर ये बता की शादी के बाद तूने उससे संबंध कैसे बनाए रखे?? तेरे घर पर सास ससुर हमेशा रहते है.. तुम लोग कैसे मिलते हो फिर?”

कविता: “यार हम लोग कभी कभार तेरे घर पर ही मिलते है.. तेरी मम्मी को सब कुछ पता है इसके बारे में… “

वैशाली चकित हो गई “मम्मी ऐसी बातों में तुझे सपोर्ट कर रही है ये ताज्जुब की बात है.. वैसे मम्मी बड़ी स्ट्रिक्ट है.. “

कविता: “बहोत दिन हो गए है यार उसे मिले हुए.. अब रहा नहीं जाता “

वैशाली: “मतलब तुम दोनों जब भी मिलते हो तब सेक्स भी करते हो?”

कविता ने जवाब नहीं दिया बस “हाँ” कहते हुए गर्दन हिलाई फिर धीरे से बोली “अकेले में मिलना होता है तब करते है.. बहोत मज़ा आता है उसके साथ.. वैसा मज़ा तो मुझे पीयूष के साथ भी नहीं आता कभी”

वैशाली: “वैसा ही होता है.. घर की मुर्गी दाल बराबर”

कविता: “मुझे एक आइडिया आया है वैशाली”

वैशाली: “तो बता ना.. “

कविता: “तु हिम्मत को मिलने के लिए अपने घर ही बुला ले.. मैं शीला भाभी को २ घंटों के लिए कहीं बाहर ले जाऊँगी”

वैशाली सोच में पड़ गई.. “वो तो ठीक है यार.. पर मुझे डर लगता है”

कविता: “डरने वाली कौन सी बात है? तेरी मम्मी तो मेरे साथ ही होगी”

सुनते ही वैशाली की आँखें चमकने लगी.. संजय से वो इतनी नफरत करती थी की हिम्मत से अकेले में मिलने के खयाल मात्र से उसकी पेन्टी गीली होने लगी.. “यार ऐसा कुछ सेटिंग हो तो मज़ा आ जाएगा.. हिम्मत को और मुझे एकांत की सख्त जरूरत है.. मैं कुछ करती हूँ”

दोनों बातें करते करते घर पहुंचे और अपने अपने घर चले गए। वैशाली जब दरवाजा खोलकर अंदर आ रही थी तब उसने खिड़की से देखा की मम्मी किसी से फोन पर हंस हँसकर बात कर रही थी.. वैशाली को देखते ही उसने फोन काट दिया.. पर यह बात वैशाली के दिमाग मे नोट हो गई थी

“काफी दोस्ती हो गई है तेरी और कविता की.. हैं ना.. !! मैंने कहा था ना तुझे.. बहुत अच्छी लड़की है.. मेरे साथ भी उसकी अच्छी पटती है.. ” अपने मोबाइल पर नजर रखे हुए शीला ने कहा

वैशाली: “हाँ मम्मी.. कविता बहोत ही अच्छी लड़की है”

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