शीला के दिमाग में अलग अलग द्रश्य चलचित्र की तरह चलने लगे.. रूखी के दूध से भरे हुए बड़े बड़े स्तन.. जीवा के दमदार धक्के.. रघु के मजबूत हाथ.. उस रात दारू पीकर उन दोनों ने जिस प्रकार उसकी चुदाई की थी.. आहाहाहा.. मज़ा आ गया था.. पिछले एक महीने में कितना कुछ हो गया था.. चेतना और पिंटू के साथ वो रसभरी चुदाई..!! रेणुका और अनुमौसी के साथ हुआ ग्रुप सेक्स.. और सुबह सुबह रसिक के साथ लिए हुए मजे..!! वाह..!!
अनजाने में ही शीला के हाथ उसके स्तनों को मसलने लगे.. उसने अपनी जांघें जोड़ ली.. उसका दिमाग रसिक के मूसल लंड को याद करने लगा.. एक बार मौका मिले तो मदन के आने से पहले रसिक और जीवा के साथ एक यादगार प्रोग्राम करने की तीव्र इच्छा हो रही थी.. पर वैशाली की मौजूदगी में यह मुमकिन न था.. शीला को रसिक से भी ज्यादा जीवा के साथ मज़ा आया था.. रूखी का जोबन रसिक की वजह से नहीं.. पर जीवा के धक्के खा खाकर ही खिल उठा था.. रूखी के घर पर भी कुछ हो नहीं सकता था.. क्या करें!!!
अपने मुंह में उंगली डालकर गीली करते हुए शीला ने घाघरे के अंदर हाथ डाला और अपनी जामुन जैसी क्लिटोरिस को रगड़ने लगी.. दूसरे हाथ से उसने अपनी निप्पल को पकड़कर खींचा.. और सिसकने लगी.. गरम होकर उसने मुठ्ठी में अपनी चुत पकड़कर मसल दी.. कामुक होकर वह अपने चूतड़ ऊपर नीचे करते हुए कराह रही थी.. पर ऐसा करने से तो उसकी भूख और भड़क गई..
वह उठ खड़ी हुई.. और घर में बेबस होकर घूमने लगी.. उसके भोसड़े में जबरदस्त खुजली होने लगी थी.. जो एक दमदार लंड से ही शांत हो सकती थी.. बाहर काफी अंधेरा हो चुका था.. वैशाली का अब तक कोई पता न था.. शीला अपने बरामदे में बने बागीचे में आई और वहाँ रखी कुर्सी पर बैठ गई.. पर उसे कहीं भी चैन नहीं मिल रहा था.. वह खड़ी हो गई.. और बावरी होकर बागीचे में यहाँ वहाँ घूमने लगी.. जांघों के बीच चुत में आग लगी हुई थी.. और उस आग ने शीला को बेकाबू बना दिया था.. कोने में बरगद का पेड़ था.. उसके खुरदरे मोटे तने के साथ शीला अपना जिस्म रगड़ने लगी.. वो उस पेड़ के तने से लिपट गई.. अपने भरे हुए स्तनों को उसने ब्लाउस के दो हुक खोलकर बाहर निकाल दिए.. और फिर से पेड़ को लिपट गई..
शीला की हवस अब उफान पर चढ़ी थी.. पेड़ से अपने स्तनों को घिसते हुए शीला को ठंडक और जलन का एहसास हो रहा था.. तने को और जोर से लिपट कर शीला ने एक लंबी सांस छोड़ी.. “ओह मदन.. तू जल्दी आजा.. अब नहीं रहा जाता मुझसे”
शीला ने अपना घाघरा उठा लिया.. और घाघरे का कोना कमर में फंसा दिया.. घर पर वो अक्सर पेन्टी नहीं पहनती थी.. उसका नंगा भोसड़ा कामरस से गीला हो चुका था.. अपनी चुत को उसने पेड़ के तने पर घिसना शुरू कर दिया.. सिसकते हुए शीला ने अपने एक पैर को पेड़ के तने के ऊपर चढ़ा दिया जैसे पेड़ की सवारी कर रही हो.. जिससे चुत को पेड़ से ज्यादा नजदीकी मिले.. घिसते हुए एक अजीब सा एहसास हो रहा था उसे.. नीचे हाथ डालकर उसने अपनी चुत के दोनों होंठों को चौड़ा किया.. और पेड़ से चिपका दी अपनी चुत..
अचानक शीला को किसी ने पीछे से पकड़ लिया.. !!! शीला कुछ समझ या बोल पाती उससे पहले उस शख्स ने शीला को पेड़ से दबाकर उसके चूतड़ चौड़े कीये और उसकी गांड में एक उंगली डाल दी.. दर्द के मारे शीला के गले से एक धीमी चीख समग्र वातावरण में फैल कर शांत हो गई.. उस व्यक्ति ने अपना हाथ आगे डालकर शीला की चूत पकड़ ली.. और उसी के साथ शीला का विरोध खतम हो गया..
“कौन हो तुम ????” शीला ने धीमे से पूछा.. जो काम करते वो खुद पकड़ी गई थी ऐसी सूरत में चिल्ला कर कोई फायदा नहीं था.. बदनामी उसी की होती.. उस व्यक्ति ने जवाब देने के बदले शीला को घूमकर अपनी ओर किया और उसके होंठ पर अपने होंठ दबा दिए.. शीला के खुले स्तन उसकी मर्दाना छाती से दबकर चपटे हो गए..
जरा भी वक्त गँवाए बिना उस शख्स ने शीला को उत्तेजित करना जारी रखा.. शीला डर गई थी.. उसके गले से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी.. उस आदमी ने शीला को पूरी ताकत से अपनी बाहों में जकड़ रखा था.. घबराई हुई शीला अभी भी उसकी बाहों से छूटने की भरसक कोशिश कर रही थी..
वह आदमी शीला को मस्ती से चूमते हुए उसके स्तनों को मसल रहा था.. शीला के मांसल चूचकों को अपनी उंगली और अंगूठे के बीच दबा रहा था.. स्त्री कितनी भी सीधी क्यों न हो.. उसके स्तन पर मर्द के हाथ फिरते ही वह निःसहाय बन जाती है.. पके हुए पपीतों जैसे शीला के उरोजों को काफी देर तक मसलते रहने के बाद शीला अब विरोध कर पाने की स्थिति में नहीं थी..
चारों तरफ घनघोर अंधेरा था.. आज स्ट्रीट लाइट भी बंद थी.. इतना अंधेरा था की खुद की हथेली को भी देख पाना संभव नहीं था.. ऐसी सूरत में.. उस आदमी को शीला चाहकर भी देख नहीं पा रही थी.. जैसे ही शीला का विरोध शांत हुआ उस आदमी ने अगला कदम लिया.. अपने पेंट की चैन फटाफट खोलकर अंदर से निकला गरमागरम कडक लोडा शीला के हाथों में थमा दिया..
अब शीला कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं थी.. उसकी पसंदीदा चीज उसके हाथों में आ चुकी थी.. जिसके लिए वह पिछले एक घंटे से तड़प रही थी.. पर उसके मन को एक ही प्रश्न अब भी सता रहा था.. कौन है यह व्यक्ति? रसिक.. ?? पिंटू.. ?? पीयूष.. ?? रघु.. या फिर जीवा.. ?? नहीं नहीं.. इन सब में से कोई नहीं था.. क्योंकि इन सभी के स्पर्श से वह भलीभाँति वाकिफ थी.. यह बिल्कुल नया ही स्पर्श था.. अंधेरे में वह उस शख्स के चेहरे को देखने की कोशिश करती ही रही
उस आदमी के मुंह से शराब की गंध आ रही थी.. दिमाग पर पूरा जोर लगाने के बावजूद वह कौन था ये पहचान न पी शीला.. उस आदमी ने शीला को फिर से मोड़कर उल्टा कर दिया और पेड़ के तने पर झुकाकर पीछे से शीला के भोसड़े में अपना लंड एक धक्के में पेल दिया.. शीला के बालों को पकड़कर वह ऐसे धक्के लगाने लगा जैसे लगाम पकड़कर घोड़ी की सवारी कर रहा हो..
शीला इस योनिप्रवेश से इतनी उत्तेजित हो गई की उसने विरोध करना ही छोड़ दिया.. और उस दमदार ठुकाई का आनंद लेने लगी.. जिस तरह से वह शक्ष बाल खींच रहा था उससे शीला को दर्द हो रहा था पर भोसड़े में खिली बहार के आगे इस दर्द का कोई मुकाबला नहीं था.. शीला को अब एक ही बात जाननी थी.. की ये कौन चूतिया है? लेकिन वो शख्स शीला को घूमने ही नहीं दे रहा था.. साले ने दस मिनट तक लगातार धनाधन धक्के लगाकर शीला के भोसड़े की माँ चोद डाली..
शीला की चूत से ऑर्गैज़म के रूप में जल-वर्षा होने लगी.. उसकी चिपचिपी चुत में लंड अंदर बाहर होने की वजह से पुच-पुच की आवाज़ें आ रही थी.. शीला की चुत ने कब का पानी छोड़ दिया था पर वह आदमी और १०-१२ धक्के लगाकर अंदर चोट लगाए जा रहा था.. फिर अचानक एक जोर का धक्का लगाकर वह स्थिर हो गया.. शीला के भोसड़े की सिंचाई होने लगी.. लंड के वीर्य की धार बच्चेदानी के द्वार पर गरम लावारस की तरह छूटने लगा..
उस आदमी का आवेश शांत होने पर उसने एक आखिरी जोर का झटका लगाया.. शीला अपना संतुलन खो बैठी और पेड़ के तने से फिसलकर जमीन पर गिर गई.. एक पल के लिए उसे चक्कर सा आ गया.. अपने आप को संभालकर वह खड़ी हुई तब तक तो वो आदमी भाग गया था.. शीला हतप्रभ सी उसी अवस्था में कुछ देर बैठी रही.. फिर उसे अपनी स्थिति का अंदाजा हुआ.. उसका ब्लाउस पेट तक चला गया था.. दोनों बबले बाहर झूल रहे थे.. घाघरा कमर तक चढ़ा हुआ था.. और बगीचे की घास, उसकी वीर्य टपकाती चुत पर गुदगुदी कर रहा था..
शीला तुरंत खड़ी हुई और भागकर घर के अंदर आई.. वैशाली के आने से पहले उसे अपना हुलिया ठीक करना था.. उसने फटाफट एक शावर लिया और कपड़े ठीकठाक कर लिए.. बरामदे की लाइट चालू करके वो मुआयना करने लगी.. कहीं कोई निशानी मिल जाए की कौन था वो मादरचोद जो मेरे ही घर में, मेरा ही बलात्कार करके चला गया?? अब इस घटना की शिकायत भी किससे करें? कौन यकीन करेगा? एक पल के लिए तो शीला को हंसी भी आ गई..
वैसे इस घटना में उसका कोई नुकसान तो हुआ नहीं था.. भूखे को रोटी मिल गई थी.. भले ही जबरदस्ती मिली थी पर फिलहाल पेट तो भर गया.. !!! शीला ने अपनी चुत के अंदर तक उंगली डालकर उस आदमी का वीर्य निकालकर सूंघा.. जीभ की नोक पर लगाकर उसका स्वाद भी चख लिया.. बस अपने मन की विकृति को शांत करने के लिए.. वैसे उसे भी पता था की ऐसे चाटकर या सूंघकर कोई डी.एन.ए टेस्ट तो होने नहीं वाला था की जिससे पता चल जाता की वोह शख्स कौन था.. !!! पर मज़ा आ गया शीला को.. इस अनोखी चुदाई में.. लंड के लिए तरस रही थी और लंड मिल ही गया.. भले ही जबरदस्ती मिला हो.. ये चुत शांत रहेगी तो दिमाग काम करेगा..
वैसे भी मदन के आने से पहले उसे एक रात जीवा, रघु या रसिक के साथ बिताने की तीव्र इच्छा थी.. पर वैशाली के रहते ये मुमकिन नहीं था.. इसी लिए तो उसने कविता के सामने वैशाली को घूमने ले जाने का प्रस्ताव रखा था.. ताकि वो उन चार दिनों में रंगरेलियाँ मना सके.. शीला अभी भी बागीचे में घूमते हुए सोच रही थी.. आखिर कौन था वोह? कहीं वो संजय तो नहीं था?? अरे बाप रे.. ऐसा कैसे हो सकता है? हम्म.. हो क्यों नहीं सकता? शीला के दो कानों के बीच बैठा जेठमलानी उसके दिमाग में ही बहस करने लगा..
संजय हो सकता है.. उसकी गंदी नजर से शीला वाकिफ थी.. एक नंबर का चुदक्कड़ है साला.. जब भी मिलता था तब बेशर्मों की तरह मेरी चूचियों को ही देखता रहता था.. बात तो सही है.. पर आखिर वो मेरा दामाद है.. वो ऐसा नहीं कर सकता.. और वैसे स्तन तो वैशाली के भी मस्त बड़े बड़े है.. तो फिर वो कमीना मेरी छातियों के पीछे ही क्यों पड़ा रहता है.. !! बेशर्म हरामजादा.. शायद वही था.. और हाँ.. जब उसने होंठ चूमे तब सिगरेट और दारू की बदबू आ रही थी.. हो न हो.. वहीं मादरचोद ठोक गया तुझे शीला.. !!! शीला कितनी भी हवसखोर क्यों न हो.. आखिर थी वो भारतीय नारी.. शीला शर्म से पानी पानी हो गई.. बाप रे.. मेरे सगे दामाद ने मुझे चोद दिया.. !!!
“अरे मम्मी.. वहाँ अंधेरे में क्या कर रही हो? मैं कब से पूरे घर में ढूंढ रही थी तुम्हें.. ” वैशाली ने बागीचे में आकर शीला से पूछा तब शीला की विचारधारा टूटी..
“घर में गर्मी लग रही थी.. तो सोचा बाहर खुले में थोड़ा सा टहल लिया जाए.. घर के काम भी सारे निपट गए इसलिए खाली बैठी थी.. वैसे संजय कुमार के क्या समाचार है? “
वैशाली: “मैं वही बताने वाली थी.. मैं और फोरम बाहर थे तब संजय का फोन आया था.. उसने रात का खाना बनाने के लिए कहा है.. अब वो एक हफ्ता यहीं रुकेगा.. कंपनी का जो काम था वो खतम हो गया ऐसा बोल रहा था वोह.. मम्मी, फ्रिज में काफी सब्जियां पड़ी हुई है.. भिंडी की सब्जी बना दु?”
शीला: “हाँ बना दे.. मुझे तो सब चलेगा.. तेरे राजकुमार को जो भी पसंद हो वो बना दे”
वैशाली: “उसे तो दहीं-भिंडी बहोत पसंद है.. वही बना देती हूँ”
वैशाली घर के अंदर चली गई.. शीला अकेले अकेले सोच रही थी.. पूरी तसल्ली करने के लिए क्या करू.. जानना तो पड़ेगा.. अभी संजय आएगा तो उसके चेहरे के हावभाव देखकर सब पता चल जाएगा..
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वैशाली घर के अंदर चली गई.. शीला अकेले अकेले सोच रही थी.. पूरी तसल्ली करने के लिए क्या करू.. जानना तो पड़ेगा.. अभी संजय आएगा तो उसके चेहरे के हावभाव देखकर सब पता चल जाएगा..
आधे घंटे के बाद रिक्शा से संजय उतरा.. उसे देखते ही शीला की धड़कनें तेज हो गई.. आज से पहले शीला ने कभी भी संजय को इतना ध्यान से नहीं देखा था.. पर आज देखना बेहद जरूरी था..
शीला: “आइए आइए.. कहाँ थे इतने दिन?” शीला ने फर्जी प्यार जताया
वैशाली पानी का ग्लास लेकर आई.. पानी पीते वक्त संजय और शीला की आँखें दो बार टकराई.. शीला संजय की आँखों के भाव को नापना चाहती थी.. एकटक देखती रही वो.. संजय के हावभाव देखकर बिल्कुल भी ऐसा नहीं लग रहा था की आधे घंटे पहले वो ऐसा कांड करके गया हो.. शीला सोच में पड़ गई.. कुछ सोचकर वह बोली
“संजय कुमार.. आप मेरे साथ गली के नुक्कड़ तक चलोगे? मुझे दर्जी की दुकान से अपना ब्लाउस लेने जाना है”
संजय: “हाँ बिल्कुल.. क्यों नहीं.. !! वैसे भी मैं फ्री ही बैठा हुआ हूँ”
संजय की इस सौम्य भाषा को सुनकर वैशाली और शीला दोनों को काफी ताज्जुब हुआ.. ऐसा परिवर्तन संजय में आया कैसे? कहीं ये कोई नया नाटक तो नहीं? वैशाली को चिंता होने लगी।
जैसे ही शीला और संजय घर के बाहर निकले, वैशाली ने पीयूष को फोन किया.. और पीयूष के संग प्रेमभरी बातें कर ही रही थी तभी उसके घर पर कविता को आता देख उसने फोन काट दिया.. वैशाली को हड़बड़ाहट में फोन काटते हुए कविता ने देख लिया.. पर वह कुछ बोली नहीं.. वो तो बस थोड़ा सा दहीं मांगने आई थी.. लेकर चली गई
अब शीला ने संजय को अपनी गिरफ्त में लिया.. बिना किसी संदर्भ के ही उसने बात शुरू कर दी
शीला “गुनहगार कितना भी होशियार क्यों न हो.. वह घटनास्थल पर कोई न कोई सुराख जरूर छोड़ जाता है”
संजय चोंक गया.. लेकिन वो भी शातिर था
संजय: “मम्मी जी, किसी भी गुनहगार को ऐसा नहीं लगता की वो गुनाह कर रहा है.. किसी के पास कोई चीज नहीं होती और वो कहीं से ले लेता है तो कायदे के हिसाब से उसे चोरी कहते है और उस व्यक्ति गुनहगार घोषित कर दिया जाता है.. लेकिन उस व्यक्ति के नजरिए से देखें तो वो बस उसकी जरूरत थी.. ठीक कहा ना मैंने !!!”
शीला: “बात तो आपकी सही है दामदजी.. पर इसका मतलब ये तो नहीं की दूसरों की थाली में हाथ डालकर खा ले?”
संजय: “अरे मम्मी जी, जिसकी थाली में से खाए अगर उसको खिलाने में मज़ा आ रहा हो तो फिर क्या दिक्कत है?”
शीला: “मतलब? कहना क्या चाहते हो?”
संजय: “कुछ नहीं.. बस ऐसे ही.. मैं तो जमाने के बारे में बात कर रहा था.. डॉन्ट माइंड.. !!”
शीला: “हम्म.. संजय कुमार, आपसे एक बात पूछूँ तो बुरा तो नहीं मानोगे?”
संजय: “हाँ पूछिए”
शीला: “आज रात ८ से ९ के बीच आप कहाँ थे?”
संजय ने जवाब देने के बजाए जेब से सिगरेट का पैकेट निकालकर एक सिगरेट जलाई और हवा में धुआँ छोड़ दिया.. शीला को इस सिगरेट की गंध जानी पहचानी सी मालूम हुई..
संजय: “मैं बस यही था.. बाजार में.. क्यों क्या हुआ?”
शीला: “नहीं बस.. मैं तो ऐसे ही पूछ रही थी.. ” शीला ने बात को वहीं काट दिया.. उसने देखा की संजय तीरछी नज़रों से उसके ब्लाउस में छिपे स्तनों को देख रहा था
शीला मन ही मन सोचने लगी.. “थोड़ी देर पहले तो मसल चुका है.. फिर भी क्या देख रहा है?? एक नंबर का भड़वा है साला.. दामाद होकर अपनी सास को गंदी नज़रों से देखता है”
एक आश्चर्य की बात ये हुई की सिगरेट के धुएं की गंध से शीला को एक विचित्र सी अनुभूति होने लगी.. जो उसे अच्छी लग रही थी.. पता नहीं क्यों पर उसे सिगरेट की गंध बेहद उत्तेजित कर देती थी.. उसे अपना मर्द सिगरेट फूंकते हुए उसे चोदे ऐसा बहोत पसंद था.. वैसे मदन ने उसकी ये इच्छा भी पूरी की थी.. लेकिन एक बार करने से खतम हो जाए वह इच्छा ही कैसी !! ये भूख है ही ऐसी.. जितना उसको संतुष्ट करो उतना ही ओर भड़कती है..
अपने आप पर कंट्रोल करते हुए शीला ने संजय को दुकान के बाहर खड़ा रखा और खुद अंदर जाकर अपना ब्लाउस लेकर आई.. शीला को ब्लाउस लेकर वापिस आता देख संजय ने चौक मार दिया
संजय: “अजीब है न मम्मी जी!! औरतों को एक दर्जी सेट हो गया फिर बार बार उसी के पास जाती है.. कहती है की उनका फिटिंग अच्छा है.. अरे भाई.. ब्लाउस थोड़ा सा लूस हो या टाइट.. क्या फरक पड़ता है!!! पर नहीं.. औरते दस दस बार ट्रायल लेती है.. वैशाली तो थोड़ा सा भी फिटिंग इधर उधर होने पर अपने दर्जी को झाड देती है.. “
स्तनों को संभालने वाले वस्त्र के बारे में अपने दामाद से चर्चा करना शीला को उचित नहीं लगा.. पर संजय के कहने का मतलब क्या था वो शीला समझ गई..
शीला: “ऐसा है दामदजी, एक बार किसी का फिटिंग सेट हो गया फिर वोही पसंद आता है.. बाकी दूसरों से करवाने में मज़ा ही नहीं आता.. ” शीला ने भी चौके के सामने सिक्सर लगा दी
शीला को डबल मीनिंग बातें करते देख संजय जोश में आ गया
संजय: “मम्मी जी, मुझे फ्री माइंड वाले लोग बहोत पसंद है.. उनके साथ मेरी अच्छी जमती है.. ज्यादा सीधे और दकियानूसी लोगों को देखकर मुझे बड़ा गुस्सा आता है.. मैं तो वैशाली से कभी नहीं पूछता की कहाँ जा रही हो.. किससे बात कर रही हो.. वो अपनी मर्जी की मालिक है और मैं अपनी मर्जी का.. हम दोनों एक दूसरे की लाइफ में टांग नहीं अड़ाते”
शीला ध्यानपूर्वक सुनती रही.. मन में सोचती रही.. “तूने वैशाली को आजादी दी तो साथ में अपने माँ-बाप की जिम्मेदारी भी तो थोप दी.. पूरा दिन वो वैशाली के सर पर मधुमक्खी की तरह मंडराते रहते है.. तो वह बेचारी उस आजादी का क्या अचार डालेगी? तुम तो घर से निकलते ही आजाद पंछी बन जाते हो.. जो करना है बेझिझक कर सकते हो.. स्त्री को ऐसी पराधीनता भरी स्वतंत्रता देने का क्या अर्थ? हाथ काटकर फिर पतवार थमा देते हो तो वो बेचारी नाव कैसे चलाएगी?..” शीला को गुस्सा आ गया
दोनों चलते चलते शीला के घर की तरफ आ रहे थे.. रास्ते पर केनाल की छोटी सी दीवार पर बैठते हुए संजय ने कहा
संजय: “बहोत गर्मी लग रही है.. थोड़ी देर यहाँ खुली हवा में बैठते है”
बिना कुछ कहे संजय की बगल में बैठ गई शीला.. थोड़ी देर यूं ही बैठे रहने के बाद संजय ने कहा “मम्मी जी आइसक्रीम खाते है.. वैसे भी अभी खाना तैयार नहीं हुआ होगा.. घर जाकर क्या करेंगे?”
शीला: “हाँ चलिए.. खाते है आइसक्रीम” शीला समझ गई की संजय उसके साथ अकेले में ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहता है.. शीला भी इसलिए मान गई क्योंकि वह थोड़ा और वक्त जांच करना चाहती थी.. अभी तक वो ठीक से तय नहीं कर पाई थी की उसे पीछे से चोदकर भाग जाना वाला आदमी संजय ही था या कोई ओर??
“आप बैठिए.. मैं सामने की दुकान से आइसक्रीम लेकर आता हूँ” संजय आसक्रीम लेने गया पर मोबाइल वहाँ दीवार पर ही छोड़ गया.. शीला बैठी थी तभी मेसेज का टोन बजाय.. अपने आप को लाख रोकने के बावजूद शीला ने फोन उठाकर मेसेज पढ़ लिया.. वह मेसेज जिस नंबर से आया था वो चेतना के नाम से स्टोर किया था.. शीला ने नंबर चेक किया तो वह वाकई उसकी सहेली चेतना का ही था.. मेसेज पढ़कर शीला की आँखें फट गई
मेसेज में लिखा था..
“डिअर संजय.. तेरे साथ गेस्टहाउस में बिताया समय भूले नहीं भुलाता.. तेरे जैसा मर्द आज तक मेरे बिस्तर पर नहीं आया.. कल मैं अकेली हूँ.. तू शाम के पाँच बजे मेरे घर पर आ जाना.. खूब मजे करेंगे.. बाय”
माय गॉड.. चेतना को मैंने संजय की जानकारी हासिल करने का काम सौंपा था तो ये रंडी उसी के साथ चालू हो गई.. शीला ने मेसेज डिलीट कर दिया.. सामने से आइसक्रीम के दो कोन हाथ में लिए आते संजय को देखकर उसने मोबाइल रख दिया.. लेकिन मोबाइल की डिस्प्ले की लाइट ऑन देखकर संजय को लगा की किसी का फोन आया होगा.. शीला ने अपने चेहरे के हाव भाव बिल्कुल ऐसे ही रखे जैसे उसे कुछ पता ही नहीं था..
आइसक्रीम का कोन चाटती हुई औरत हमेशा आकर्षक लगती है.. शीला को कोन चूसते हुए संजय देखता रहा.. वह ऐसे चूस रही थी जैसे लंड चूस रही हो
संजय: “कैसा लगा मम्मी जी?”
शीला: “हम्म.. अच्छा है” शीला का दिमाग पहले से घुमा हुआ था ऊपर से चेतना का मेसेज पढ़कर और खराब हो गया.. दोनों पहली बार मिले और चुदाई भी कर ली?? कुछ घंटों पहले हुई घटना को याद करते शीला सोचने लगी.. हो सकता है की संजय ने चेतना के साथ भी जबरदस्ती की हो !! नहीं नहीं.. तो फिर चेतना ऐसा मेसेज क्यों करती?? जो भी हुआ था वह चेतना की मर्जी से ही हुआ था.. कल उस चेतना को रिमांड पर लेती हूँ.. कल पाँच बजे मिलने वाले है चेतना और संजय.. तभी मैं चेतना के घर पहुँच जाऊँगी.. तो सब पता चल जाएगा.. पर अब तक ये पता नहीं चला की बागीचे में उसे संजय ने ही चोदा था या किसी ओर ने??
घर आकर संजय ने चेक किया तो कॉल रजिस्टर में चेतना का नाम दिख रहा था पर इनबॉक्स में उसका कोई मेसेज क्यों नहीं दिख रहा था !!!!
शीला और संजय डाइनिंग टेबल पर बैठ गए और वैशाली उन्हे गरम गरम रोटियाँ परोसने लगी.. सासुमाँ के उरोजों को बीच दिख रही लकीर पर बार बार संजय की नजर पड़ जाती थी.. शीला इस नजर को काफी सालों से जानती थी.. वैसे जब से वह जवान हुई तब से उसे मर्दों की इस नजर की आदत सी हो चुकी थी.. अठारह की उम्मर में ही उसके स्तन संतरों से बड़े हो चुके थे.. भीड़ में.. बाजार में.. सब्जी मंडी में.. लोग जान बूझकर उससे टकरा जाते थे वह कोई संयोग नहीं था.. जैसे पतंगा शमा की ओर आकर्षित हो जाता है वैसे ही संजय की नजर बार बार शीला के ब्लाउस के आरपार देखती रहती.. शीला अभी भी असमंजस में थी.. अंधेरे में उसका गेम बजाने वाला वो कौन था??
अचानक शीला को महसूस हुआ की संजय का पैर उसके पैर को छु रहा है.. उसने हल्की नजर से देखा और यकीन हो गया की संजय का पैर ही था.. शीला का शक धीरे धीरे यकीन में बदलता जा रहा था..
संजय: “सब्जी बड़ी अच्छी बनी है.. है ना मम्मी जी?”
शीला: “हाँ.. मेरी वैशाली खाना तो बहोत बढ़िया बनाती है” सारा क्रेडिट उसने वैशाली को दे दिया
संजय: “मुझे भी एक बार आपकी चखनी है.. मतलब.. आप के हाथ की बनी सब्जी.. “
शीला के जिस्म से करंट पास हो गया.. “आपकी चखनी है कहने का क्या मतलब ??”
शीला: “संजय कुमार, वैशाली थोड़े दिनों के लिए अपनी सहेलियों के साथ घूमने जाए तो आपको कोई हर्ज तो नहीं है ना ?? मायके आई है तो थोड़ा घूम फिर भी ले.. ससुराल जाकर वो बेचारी वापिस पिंजरे में बंद हो जाएगी”
संजय: “ऐसी बात भी नहीं है मम्मी जी, मैं उसे घूमने ले जाता हूँ.. पूछिए वैशाली से.. पर फिर भी अगर वो जाना चाहती है तो मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है”
शीला और संजय की बातों से अनजान वैशाली.. किचन में पीयूष और हिम्मत को याद कर रही थी.. संजय के लिए उसके मन में इतनी नफरत बन गई थी की वह उसका चेहरा भी देखना नहीं चाहती थी.. इसका ये मतलब भी नहीं था की वैशाली को गुलछर्रे उड़ाने थे.. पर इतने साल के वैवाहिक जीवन में संजय ने उसे इतने धोखे दिए थे की वह माफ करते करते थक चुकी थी.. आखिर उसने ऐसे ही अपना जीवन व्यतीत करने का मन बना लिया था.. कभी शिकायत भी नहीं करती थी.. वो कहते है ना “दर्द का हद से गुजर जाना.. दवा हो जाना.. ” वैसा ही हुआ था वैशाली के साथ.. अब नो तो किसी बात की खुशी थी न ही किसी बात का गम
ऐसी स्थिति में पीयूष और हिम्मत के साथ बिताए कुछ पल.. वैशाली के जीने की वजह बन गए थे.. वरना वैशाली और संजय के बीच इतनी कड़वाहट आ गई थी की वैशाली को उसे दिखते ही घिन आ जाती.. संजय के साथ बैठना ना पड़े इसीलिए वो किचन से बाहर नहीं आ रही थी
संजय की हरकत का शीला ने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया.. अब संजय अपने पैर के अंगूठे को शीला के पैर से रगड़ने लगा.. शीला कितनी भी हवसखोर क्यों न हो.. उसने अपनी बेटी के पति को कभी उस नजर से नहीं देखा था.. उसने अपना पैर दूर हटा लिया.. संजय उसके सामने देखकर शातिर तरीके से हंसने लगा.. ए
संजय: “क्यों मज़ा नहीं आया, मम्मी जी ?? मेरे कहने का मतलब है की सब्जी में मज़ा नहीं आया आपको?”
संजय का इशारा क्या था वो शीला समझ रही थी.. लेकिन बिना कुछ उत्तर दिए वह खाना खाती रही.. अपने दामाद की इस हरकत पर उसे बड़ा गुस्सा आया.. पर अगर वह कुछ बोलती तो संजय को बात का बतंगड़ बनाने का मौका मिल जाता.. इसलिए वह बिना कुछ कहे खाना खाती रही..
खाना खतम कर शीला बाहर बरामदे में बैठ गई.. संजय भी आकर उसके बगल में बैठ गया.. तभी वहाँ पीयूष आया.. रात के दस बज रहे थे.. पीयूष के पीछे पीछे कविता, मौसम और फाल्गुनी भी आए.. पूरा घर भर गया.. इन सब के आने से शीला को बहोत अच्छा लगा.. इन सब की मौजूदगी में संजय कुछ भी उल्टा सीधा नहीं कर पाएगा.. दूसरी तरफ संजय अफसोस कर रहा था.. हाथ में आया हुआ गोल्डन चांस चला गया..
To Be Continue….