प्यारे वाचक मित्रों
सालों पहले लिखी इस जबरदस्त गुजराती कथा का तर्जुमा पेश कर रहा हूँ। आशा है की मेरी अन्य कहानियों की तरह इस कहानी को भी आप सबका उतना ही स्नेह प्राप्त होगा।
प्रस्तुत है “शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)
५५ साल की शीला, रात को १० बजे रसोईघर की जूठन फेंकने के लिए बाहर निकली… थोड़ी देर पहले ही बारिश रुकी थी। चारों तरफ पानी के पोखर भरे हुए थे… भीनी मिट्टी की मदमस्त खुशबू से ठंडा वातावरण बेहद कामुक बना देने वाला था। दूर कोने मे एक कुत्तिया… अपनी पुत्ती खुद ही चाट रही थी… शीला देखती रह गई..!! वह सोचने लगी की काश..!! हम औरतें भी यह काम अगर खुद कर पाती तो कितना अच्छा होता… मेरी तरह लंड के बिना तड़पती, न जाने कितनी औरतों को, इस मदमस्त बारिश के मौसम में, तड़पना न पड़ता…
वह घर पर लौटी… और दरवाजा बंद किया… और बिस्तर पर लेट गई।
उसका पति दो साल के लिए, कंपनी के काम से विदेश गया था… और तब से शीला की हालत खराब हो गई थी। वैसे तो पचपन साल की उम्र मे औरतों को चुदाई की इतनी भूख नही होती… पर एकलौती बेटी की शादी हो जाने के बाद… दोनों पति पत्नी अकेले से पड़ गए थे.. पैसा तो काफी था… और उसका पति मदन, ५८ साल की उम्र मे भी.. काफी शौकीन मिजाज था.. रोज रात को वह शीला को नंगी करके अलग अलग आसनों मे भरपूर चोदता.. शीला की उम्र ५५ साल की थी… मेनोपोज़ भी हो चुका था.. फिर भी साली… कूद कूद कर लंड लेती.. शीला का पति मदन, ऐसे अलग अलग प्रयोग करता की शीला पागल हो जाती… उनके घर पर ब्लू-फिल्म की डीवीडी का ढेर पड़ा था.. शीला ने वह सब देख रखी थी.. उसे अपनी चुत चटवाने की बेहद इच्छा हो रही थी… और मदन की नामौजूदगी ने उसकी हालत और खराब कर दी थी।
ऊपर से उस कुत्तीया को अपनी पुत्ती चाटते देख… उसके पूरे बदन मे आग सी लग गई…
अपने नाइट ड्रेस के गाउन से… उसने अपने ४० इंच के साइज़ के दोनों बड़े बड़े गोरे बबले बाहर निकाले.. और अपनी हथेलियों से निप्पलों को मसलने लगी.. आहहहह..!! अभी मदन यहाँ होता तो… अभी मुझ पर टूट पड़ा होता… और अपने हाथ से मेरी चुत सहला रहा होता.. अभी तो उसे आने मे और चार महीने बाकी है.. पिछले २० महीनों से… शीला के भूखे भोसड़े को किसी पुरुष के स्पर्श की जरूरत थी.. पर हाय ये समाज और इज्जत के जूठे ढकोसले..!! जिनके डर के कारण वह अपनी प्यास बुझाने का कोई और जुगाड़ नही कर पा रही थी।
“ओह मदन… तू जल्दी आजा… अब बर्दाश्त नही होता मुझसे…!!” शीला के दिल से एक दबी हुई टीस निकली… और उसे मदन का मदमस्त लोडा याद आ गया.. आज कुछ करना पड़ेगा इस भोसड़े की आग का…
शीला उठकर खड़ी हुई और किचन मे गई… फ्रिज खोलकर उसने एक मोटा ताज़ा बैंगन निकाला.. और उसे ही मदन का लंड समझकर अपनी चुत पर घिसने लगी… बैंगन मदन के लंड से तो पतला था… पर मस्त लंबा था… शीला ने बैंगन को डंठल से पकड़ा और अपने होंठों पर रगड़ने लगी… आँखें बंद कर उसने मदन के सख्त लंड को याद किया और पूरा बैंगन मुंह मे डालकर चूसने लगी… जैसे अपने पति का लंड चूस रही हो… अपनी लार से पूरा बैंगन गीला कर दिया.. और अपने भोसड़े मे घुसा दिया… आहहहहहहह… तड़पती हुई चुत को थोड़ा अच्छा लगा…
आज शीला.. वासना से पागल हो चली थी… वह पूरी नंगी होकर किचन के पीछे बने छोटे से बगीचे मे आ गई… रात के अंधेरे मे अपने बंगले के बगीचे मे अपनी नंगी चुत मे बैंगन घुसेड़कर, स्तनों को मरोड़ते मसलते हुए घूमने लगी.. छिटपुट बारिश शुरू हुई और शीला खुश हो गई.. खड़े खड़े उसने बैंगन से मूठ मारते हुए भीगने का आनंद लिया… मदन के लंड की गैरमौजूदगी में बैंगन से अपने भोंसड़े को ठंडा करने का प्रयत्न करती शीला की नंगी जवानी पर बारिश का पानी… उसके मदमस्त स्तनों से होते हुए… उसकी चुत पर टपक रहा था। विकराल आग को भी ठंडा करने का माद्दा रखने वाले बारिश के पानी ने, शीला की आग को बुझाने के बजाए और भड़का दिया। वास्तविक आग पानी से बुझ जाती है पर वासना की आग तो ओर प्रज्वलित हो जाती है। शीला बागीचे के गीले घास में लेटी हुई थी। बेकाबू हो चुकी हवस को मामूली बैंगन से बुझाने की निरर्थक कोशिश कर रही थी वह। उसे जरूरत थी.. एक मदमस्त मोटे लंबे लंड की… जो उसके फड़फड़ाते हुए भोसड़े को बेहद अंदर तक… बच्चेदानी के मुख तक धक्के लगाकर, गरम गरम वीर्य से सराबोर कर दे। पक-पक पुच-पुच की आवाज के साथ शीला बैंगन को अपनी चुत के अंदर बाहर कर रही थी। आखिर लंड का काम बैंगन ने कर दिया। शीला की वासना की आग बुझ गई.. तड़पती हुई चुत शांत हो गई… और वह झड़कर वही खुले बगीचे में नंगी सो गई… रात के तीन बजे के करीब उसकी आँख खुली और वह उठकर घर के अंदर आई। अपने भोसड़े से उसने पिचका हुआ बैंगन बाहर निकाला.. गीले कपड़े से चुत को पोंछा और फिर नंगी ही सो गई।
सुबह जब वह नींद से जागी तब डोरबेल बज रही थी “दूध वाला रसिक होगा” शीला ने सोचा, इतनी सुबह, ६ बजे और कौन हो सकता है!! शीला ने उठकर दरवाजा खोला… बाहर तेज बारिश हो रही थी। दूधवाला रसिक पूरा भीगा हुआ था.. शीला उसे देखते ही रह गई… कामदेव के अवतार जैसा, बलिष्ठ शरीर, मजबूत कदकाठी, चौड़े कंधे और पेड़ के तने जैसी मोटी जांघें… बड़ी बड़ी मुछों वाला ३५ साल का रसिक.. शीला को देखकर बोला “कैसी हो भाभीजी?”
गाउन के अंदर बिना ब्रा के बोबलों को देखते हुए रसिक एक पल के लिए जैसे भूल ही गया की वह किस काम के लिए आया था!! उसके भीगे हुए पतले कॉटन के पतलून में से उसका लंड उभरने लगा जो शीला की पारखी नजर से छिप नही सका।
“अरे रसिक, तुम तो पूरे भीग चुके हो… यहीं खड़े रहो, में पोंछने के लिए रुमाल लेकर आती हूँ.. अच्छे से जिस्म पोंछ लो वरना झुकाम हो जाएगा” कहकर अपने कूल्हे मटकाती हुई शीला रुमाल लेने चली गई।
“अरे भाभी, रुमाल नही चाहिए,… बस एक बार अपनी बाहों में जकड़ लो मुझे… पूरा जिस्म गरम हो जाएगा” अपने लंड को ठीक करते हुए रसिक ने मन में सोचा.. बहेनचोद साली इस भाभी के एक बोबले में ५-५ लीटर दूध भरा होगा… इतने बड़े है… मेरी भेस से ज्यादा तो इस शीला भाभी के थन बड़े है… एक बार दुहने को मिल जाए तो मज़ा ही आ जाए…
रसिक घर के अंदर ड्रॉइंगरूम में आ गया और डोरक्लोज़र लगा दरवाजा अपने आप बंद हो गया।
शीला ने आकर रसिक को रुमाल दिया। रसिक अपने कमीज के बटन खोलकर रुमाल से अपनी चौड़ी छाती को पोंछने लगा। शीला अपनी हथेलियाँ मसलते उसे देख रही थी। उसके मदमस्त चुचे गाउन के ऊपर से उभरकर दिख रहे थे। उन्हे देखकर रसिक का लंड पतलून में ही लंबा होता जा रहा था। रसिक के सख्त लंड की साइज़ देखकर… शीला की पुच्ची बेकाबू होने लगी। उसने रसिक को बातों में उलझाना शुरू किया ताकि वह ओर वक्त तक उसके लंड को तांक सके।
“इतनी सुबह जागकर घर घर दूध देने जाता है… थक जाता होगा.. है ना!!” शीला ने कहा
“थक तो जाता हूँ, पर क्या करूँ, काम है करना तो पड़ता ही है… आप जैसे कुछ अच्छे लोग को ही हमारी कदर है.. बाकी सब तो.. खैर जाने दो” रसिक ने कहा। रसिक की नजर शीला के बोबलों पर चिपकी हुई थी.. यह शीला भी जानती थी.. उसकी नजर रसिक के खूँटे जैसे लंड पर थी।
शीला ने पिछले २० महीनों से.. तड़प तड़प कर… मूठ मारकर अपनी इज्जत को संभाले रखा था.. पर आज रसिक के लंड को देखकर वह उत्तेजित हथनी की तरह गुर्राने लगी थी…
“तुझे ठंड लग रही है शायद… रुक में चाय बनाकर लाती हूँ” शीला ने कहा
“अरे रहने दीजिए भाभी, में आपकी चाय पीने रुका तो बाकी सारे घरों की चाय नही बनेगी.. अभी काफी घरों में दूध देने जाना है” रसिक ने कहा
फिर रसिक ने पूछा “भाभी, एक बात पूछूँ? आप दो साल से अकेले रह रही हो.. भैया तो है नही.. आपको डर नही लगता?” यह कहते हुए उस चूतिये ने अपने लंड पर हाथ फेर दिया
रसिक के कहने का मतलब समझ न पाए उतनी भोली तो थी नही शीला!!
“अकेले अकेले डर तो बहोत लगता है रसिक… पर मेरे लिए अपना घर-बार छोड़कर रोज रात को साथ सोने आएगा!!” उदास होकर शीला ने कहा
“चलिए भाभी, में अब चलता हूँ… देर हो गई… आप मेरे मोबाइल में अपना नंबर लिख दीजिए.. कभी अगर दूध देने में देर हो तो आप को फोन कर बता सकूँ”
तिरछी नजर से रसिक के लंड को घूरते हुए शीला ने चुपचाप रसिक के मोबाइल में अपना नंबर स्टोर कर दिया।
“आपके पास तो मेरा नंबर है ही.. कभी बिना काम के भी फोन करते रहना… मुझे अच्छा लगेगा” रसिक ने कहा
शीला को पता चल गया की वह उसे दाने डाल रहा था
“चलता हूँ भाभी” रसिक मुड़कर दरवाजा खोलते हुए बोला
उसके जाते ही दरवाजा बंद हो गया। शीला दरवाजे से लिपट पड़ी, और अपने स्तनों को दरवाजे पर रगड़ने लगी। जिस रुमाल से रसिक ने अपनी छाती पोंछी थी उसमे से आती मर्दाना गंध को सूंघकर उस रुमाल को अपने भोसड़े पर रगड़ते हुए शीला सिसकने लगी।
कवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतल और मेघदूत में जैसे वर्णन किया है बिल्कुल उसी प्रकार.. शीला इस बारिश के मौसम में कामातुर हो गई थी। दूध गरम करने के लिए वो किचन में आई और फिर उसने फ्रिज में से एक मोटा गाजर निकाला। दूध को गरम करने गेस पर चढ़ाया.. और फिर अपने तड़पते भोसड़े में गाजर घुसेड़कर अंदर बाहर करने लगी।
रूम के अंदर बहोत गर्मी हो रही थी.. शीला ने एक खिड़की खोल दी.. खिड़की से आती ठंडी हवा उसके बदन को शीतलता प्रदान कर रही थी और गाजर उसकी चुत को ठंडा कर रहा था। खिड़की में से उसने बाहर सड़क की ओर देखा… सामने ही एक कुत्तीया के पीछे १०-१२ कुत्ते, उसे चोदने की फिराक में पागल होकर आगे पीछे दौड़ रहे थे।
शीला मन में ही सोचने लगी “बहनचोद.. पूरी दुनिया चुत के पीछे भागती है… और यहाँ में एक लंड को तरस रही हूँ”
सांड के लंड जैसा मोटा गाजर उसने पूरा अंदर तक घुसा दिया… उसके मम्मे ऐसे दर्द कर रहे थे जैसे उनमे दूध भर गया हो.. भारी भारी से लगते थे। उस वक्त शीला इतनी गरम हो गई की उसका मन कर रहा था की गैस के लाइटर को अपनी पुच्ची में डालकर स्पार्क करें…
शीला ने अपने सख्त गोभी जैसे मम्मे गाउन के बाहर निकाले… और किचन के प्लेटफ़ॉर्म पर उन्हे रगड़ने लगी.. रसिक की बालों वाली छाती उसकी नजर से हट ही नही रही थी। आखिर दूध की पतीली और शीला के भोसड़े में एक साथ उबाल आया। फरक सिर्फ इतना था की दूध गरम हो गया था और शीला की चुत ठंडी हो गई थी।
रोजमर्रा के कामों से निपटकर, शीला गुलाबी साड़ी में सजधज कर सब्जी लेने के लिए बाजार की ओर निकली। टाइट ब्लाउस में उसके बड़े बड़े स्तन, हर कदम के साथ उछलते थे। आते जाते लोग उन मादक चूचियों को देखकर अपना लंड ठीक करने लग जाते.. उसके मदमस्त कूल्हे, राजपुरी आम जैसे बबले.. और थिरकती चाल…
एक जवान सब्जी वाले के सामने उकड़ूँ बैठकर वह सब्जी देखने लगी। शीला के पैरों की गोरी गोरी पिंडियाँ देखकर सब्जीवाला स्तब्ध रह गया। घुटनों के दबाव के कारण शीला की बड़ी चूचियाँ ब्लाउस से उभरकर बाहर झाँकने लगी थी..
शीला का यह बेनमून हुस्न देखकर सब्जीवाला कुछ पलों के लिए, अपने आप को और अपने धंधे तक को भूल गया।
शीला के दो बबलों को बीच बनी खाई को देखकर सब्जीवाले का छिपकली जैसा लंड एक पल में शक्करकंद जैसा बन गया और एक मिनट बाद मोटी ककड़ी जैसा!!!
“मुली का क्या भाव है?” शीला ने पूछा
“एक किलो के ४० रूपीए”
“ठीक है.. मोटी मोटी मुली निकालकर दे मुझे… एक किलो” शीला ने कहा
“मोटी मुली क्यों? पतली वाली ज्यादा स्वादिष्ट होती है” सब्जीवाले ने ज्ञान दिया
“तुझे जितना कहा गया उतना कर… मुझे मोटी और लंबी मुली ही चाहिए” शीला ने कहा
“क्यों? खाना भी है या किसी ओर काम के लिए चाहिए?”
शीला ने जवाब नही दिया तो सब्जीवाले को ओर जोश चढ़ा
“मुली से तो जलन होगी… आप गाजर ले लो”
“नही चाहिए मुझे गाजर… ये ले पैसे” शीला ने थोड़े गुस्से के साथ उसे १०० का नोट दिया
बाकी खुले पैसे वापिस लौटाते वक्त उस सब्जीवाले ने शीला की कोमल हथेलियों पर हाथ फेर लिया और बोला “और क्या सेवा कर सकता हूँ भाभीजी?”
उसकी ओर गुस्से से घूरते हुए शीला वहाँ से चल दी। उसकी बात वह भलीभाँति समझ सकती थी। पर क्यों बेकार में ऐसे लोगों से उलझे… ऐसा सोचकर वह किराने की दुकान के ओर गई।
बाकी सामान खरीदकर वह रिक्शा में घर आने को निकली। रिक्शा वाला हरामी भी मिरर को शीला के स्तनों पर सेट कर देखते देखते… और मन ही मन में चूसते चूसते… ऑटो चला रहा था।
एक तरफ घर पर पति की गैरहाजरी, दूसरी तरफ बाहर के लोगों की हलकट नजरें.. तीसरी तरफ भोसड़े में हो रही खुजली तो चौथी तरफ समाज का डर… परेशान हो गई थी शीला!!
घर आकर वह लाश की तरह बिस्तर पर गिरी.. उसकी छाती से साड़ी का पल्लू सरक गया… यौवन के दो शिखरों जैसे उत्तुंग स्तन.. शीला की हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे। लेटे लेटे वह सोच रही थी “बहनचोद, इन माँस के गोलों में भला कुदरत ने ऐसा क्या जादू किया है की जो भी देखता है बस देखता ही रह जाता है!!” फिर वह सोचने लगी की वैसे तो मर्द के लंड में भी ऐसा कौनसा चाँद लगा होता है, जो औरतें देखते ही पानी पानी हो जाती है!!
शीला को अपने पति मदन के लंड की याद आ गई… ८ इंच का… मोटे गाजर जैसा… ओहहह… ईशशश… शीला ने इतनी गहरी सांस ली की उसकी चूचियों के दबाव से ब्लाउस का हुक ही टूट गया।
कुदरत ने मर्दों को लंड देकर, महिलाओं को उनका ग़ुलाम बना दिया… पूरा जीवन… उस लंड के धक्के खा खाकर अपने पति और परिवार को संभालती है.. पूरा दिन घर का काम कर थक के चूर हो चुकी स्त्री को जब उसका पति, मजबूत लंड से धमाधम चोदता है तो स्त्री के जनम जनम की थकान उतर जाती है… और दूसरे दिन की महेनत के लिए तैयार हो जाती है।
शीला ने ब्लाउस के बाकी के हुक भी खोल दिए… अपने मम्मों के बीच की कातिल चिकनी खाई को देखकर उसे याद आ गया की कैसे मदन उसके दो बबलों के बीच में लंड घुसाकर स्तन-चुदाई करता था। शीला से अब रहा नही गया… घाघरा ऊपर कर उसने अपनी भोस पर हाथ फेरा… रस से भीग चुकी थी उसकी चुत… अभी अगर कोई मिल जाए तो… एक ही झटके में पूरा लंड अंदर उतर जाए… इतना गीला था उसका भोसड़ा.. चुत के दोनों होंठ फूलकर कचौड़ी जैसे बन चुके थे।
शीला ने चुत के होंठों पर छोटी सी चिमटी काटी… दर्द तो हुआ पर मज़ा भी आया… इसी दर्द में तो स्वर्गिक आनंद छुपा था.. वह उन पंखुड़ियों को और मसलने लगी.. जितना मसलती उतनी ही उसकी आग और भड़कने लगी… “ऊईईई माँ… ” शीला के मुंह से कराह निकल गई… हाय.. कहीं से अगर एक लंड का बंदोबस्त हो जाए तो कितना अच्छा होगा… एक सख्त लंड की चाह में वह तड़पने लगी.. थैली से उसने एक मस्त मोटी मुली निकाली और उस मुली से अपनी चुत को थपथपाया… एक हाथ से भगोष्ठ के संग खेलते हुए दूसरे हाथ में पकड़ी हुई मुली को वह अपने छेद पर रगड़ रही थी। भोसड़े की गर्मी और बर्दाश्त न होने पर, उसने अपनी गांड की नीचे तकिया सटाया और उस गधे के लंड जैसी मुली को अपनी चुत के अंदर घुसा दिया।
लगभग १० इंच लंबी मुली चुत के अंदर जा चुकी थी। अब वह पूरे जोश के साथ मुली को अपने योनिमार्ग में रगड़ने लगी.. ५ मिनट के भीषण मुली-मैथुन के बाद शीला का भोसड़ा ठंडा हुआ… शीला की छाती तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी। सांसें नॉर्मल होने के बाद उसने मुली बहार निकाली। उसके चुत रस से पूरी मुली सन चुकी थी.. उस प्यारी सी मुली को शीला ने अपनी छाती से लगा लिया… बड़ा मज़ा दिया था उस मुली ने! मुली की मोटाई ने आज तृप्त कर दिया शीला को!!
मुली पर लगे चिपचिपे चुत-रस को वह चाटने लगी.. थोड़ा सा रस लेकर अपनी निप्पल पर भी लगाया… और मुली को चाट चाट कर साफ कर दिया।
अब धीरे धीरे उसकी चुत में जलन होने शुरू हो गई.. शीला ने चूतड़ों के नीचे सटे तकिये को निकाल लिया और दोनों जांघें रगड़ती हुई तड़पने लगी… “मर गई!!! बाप रे!! बहुत जल रहा है अंदर…” जलन बढ़ती ही गई… उस मुली का तीखापन पूरी चुत में फैल चुका था.. वह तुरंत उठी और भागकर किचन में गई.. फ्रिज में से दूध की मलाई निकालकर अपनी चुत में अंदर तक मल दी शीला ने.. !! ठंडी ठंडी दूध की मलाई से उसकी चुत को थोड़ा सा आराम मिला.. और जलन धीरे धीरे कम होने लगी.. शीला अब दोबारा कभी मुली को अपनी चुत के इर्द गिर्द भी भटकने नही देगी… जान ही निकल गई आज तो!!
शाम तक चुत में हल्की हल्की जलन होती ही रही… बहनचोद… लंड नही मिल रहा तभी इन गाजर मूलियों का सहारा लेना पड़ रहा है..!! मादरचोद मदन… हरामी.. अपना लंड यहाँ छोड़कर गया होता तो अच्छा होता… शीला परेशान हो गई थी.. अब इस उम्र में कीसे पटाए??
शाम के पाँच बज रहे थे… धोबी का लड़का कपड़े देने आया था.. उसे देखकर शीला का दिल किया की उसे पटाकर ठुकवा ले.. पर उसका सुककड़ शरीर देखकर शीला की सारी इच्छाएं मर गई। जाते जाते वह पापड़तोड़ पहलवान भी शीला के बबलों को घूर रहा था। शीला भी भूखी नागिन की तरह उसे देख रही थी… फिर उसने सोचा की यह २० साल का लौंडा भला कैसे बुझा पाएगी मेरी चुत की प्यास!!!
शीला को चाहिए था एक मजबूत मर्द.. ऐसा मर्द जिसके बोझ तले शीला पूरी दब जाए… जो बिना थके शीला के भोसड़े की सर्विस कर सके… पर ऐसा मर्द कहाँ मिलेगा.. यह शीला को पता नही था
दिन तो जैसे तैसे गुजर जाता था… पर रात निकालनी बड़ी मुश्किल थी। इतने बड़े मकान में वह अकेली… पूरी रात करवटें बदल बदल कर बिताती थी।
५५ वर्ष की अधेड़ उम्र की शीला की कामेच्छा अति तीव्र थी। ऊपर से उसके पति मदन ने उसे ऐसे ऐसे अनोखे आसनों में चोदा था की अब उसे सीधे साधे सेक्स में मज़ा ही नही आता था। रोज रात को वह मादरजात नंगी होकर.. अलग अलग स्टाइल में मूठ मारकर सोने की कोशिश करती। पर जो मज़ा असली लोडे में है.. वह अगर गाजर, ककड़ी या शक्करकंद में होता तो लड़कियां शादी ही क्यों करती!!!
स्त्री का जन्म तभी सफल होता है जब मस्त लंड उसकी चुत में जाकर भरसक चुदाई करता है। मूठ मारना तो मिसकॉल लगाने जैसा है.. कोशिश तो होती है पर सही संपर्क नही होता…
सुबह ५ बजे, फिरसे डोरबेल बजी और शीला की आँख खुल गई। खुले स्तनों को गाउन के अंदर ठूंस कर, एक बटन बंद कर वह दूध लेने के लिए बाहर आई। दरवाजा खोलते ही उसका मूड खराब हो गया। आज रसिक की पत्नी दूध देने आई थी।
“क्यों री, आज धूध देने तू आ गई? तेरा मरद नही आया?” शीला ने पूछते तो पूछ लिया फिर उसे एहसास हुआ की इसका दूसरा अर्थ भी निकल सकता था। गनीमत थी की वह गंवार औरत को ज्यादा सूज नही थी वरना जरूर पूछती की आपको दूध से मतलब है या मेरे मरद से!!!
“वो तो पास के गाँव गया है.. नई भेस खरीदने.. ग्राहक बढ़ते जा रहे है और दूध कम पड़ रहा है… साले जानवर भी चालक बन गए है… जितना खाते है उस हिसाब से दूध नही देते है.. ” दूधवाले की पत्नी ने कहा
शीला हंस पड़ी “क्या नाम है तेरा?”
“मेरा नाम रूखी है” उसने जवाब दिया
शीला ने सर से लेकर पैर तक रूखी का निरीक्षण किया… आहाहाहा इन गांवठी औरतों का रूप गजब का होता है..!! शहर की पतली लौंडियो का इसके रूप के आगे कोई मुकाबला ही नही है… ज़ीरो फिगर पाने के चक्कर में.. आजकल की लड़कियों के आम सुखकर गुटलियों जैसे बन जाते है। और नखरे फिर भी दुनिया भर के रहते है। असली रूप तो इस रूखी का था.. उसके बबले शीला से बड़े और भारी थे.. असली फेटवाला दूध पी पी कर रूखी पूर्णतः तंदूरस्त दिख रही थी। उसकी छाती पर लपेटी छोटी सी चुनरी उन बड़े स्तनों को ढंकने में असमर्थ थी। गेंहुआ रंग, ६ फिट का कद, चौड़े कंधे, लचकती कमर और घेरदार घाघरे के पीछे मदमस्त मोटी मोटी जांघें.. झुककर जब वह दूध निकालने गई तब उसकी चोली से आधे से ज्यादा चूचियाँ बाहर निकल गई..
शीला उस दूधवाली के स्तनों को देखती ही रह गई.. वह खुद भी एक स्त्री थी… इसलिए स्तन देखकर उत्तेजित होने का कोई प्रश्न नही था.. पर फिर भी इस गाँव की गोरी की सुंदरता शीला के मन को भा गई। ध्यान से देखने पर शीला ने देखा की रूखी की चोली की कटोरियों पर सूखा हुआ दूध लगा हुआ था.. शीला समज गई.. की उसके स्तनों में दूध आता है.. उसने थोड़े समय पहले ही बच्चे को जनम दिया होगा!! दूध के भराव के कारण उसके स्तन पत्थर जैसे सख्त हो गए थे… उन्हे देखते ही शीला को छूने का दिल किया. वैसे भी शीला १ नंबर की चुदैल तो थी ही..!!
लंड के लिए तरसती शीला.. रूखी का भरपूर जोबन देखकर सिहर गई.. उसका मन इस सौन्दर्य का रस लेने के लिए आतुर हो गया.. और योजना बनाने लगा..
कहते है ना… की प्रसव से उठी हुई और बारिश में भीगी हुई स्त्री के आगे तो इंद्रलोक की अप्सरा भी पानी कम चाय लगती है..!!
“रूखी.. मुझे तुझसे एक बात करनी है.. पर शर्म आ रही है… कैसे कहूँ?” शीला ने पत्ते बिछाना शुरू किया
“इसमें शर्माना क्या? बताइए ना भाभी” रूखी ने कहा
“तू अंदर आजा… बैठ के बात करते है.. “
“भाभी, अब सिर्फ दो चार घरों में ही दूध पहुंचना बाकी है.. वो निपटाकर आती हूँ फिर बैठती हूँ.. थकान भी उतार जाएगी और थोड़ी देर बातें भी हो जाएगी”
“हाँ.. हाँ.. तू दूध देकर आ फिर बात करते है… पर जल्दी आना” शीला ने कहा
“अभी खतम कर आई.. आप तब तक चाय बनाकर रखिए” रूखी यह कहती हुई निकल गई
चाय बनाते बनाते शीला सोच रही थी.. की अगर रूखी के साथ थोड़े संबंध बढ़ाए जाए तो उसके बहाने रसिक का आना जाना भी शुरू हो जाएगा… और फेर उससे ठुकवाने का बंदोबस्त भी हो पाएगा… एक बार हाथ में आए फिर रसिक को गरम करना शीला का बाये हाथ का खेल था.. एक चुची खोलकर दिखाते ही रसिक का लंड सलाम ठोकेगा..
रसिक के लंड का विचार आते ही शीला की जांघों के बीच उसकी मुनिया फिर से गीली होने लगी… खुजली शुरू हो गई.. किचन के प्लेटफ़ॉर्म के कोने से अपनी चुत दबाकर वह बोली “थोड़े समय के लिए शांत हो जा तू.. तेरे लिए लंड का इंतेजाम कर ही रही हूँ.. कुछ न कुछ जुगाड़ तो करना ही पड़ेगा” रूखी को सीढी बनाकर रसिक के लंड तक पहुंचना ही पड़ेगा!!
क्या करूँ… क्या करूँ.. वह सोच रही थी… रूखी अभी आती ही होगी
उसका शैतानी दिमाग काम पर लग गया.. एक विचार मन में आते ही वह खुश हो गई… “हाँ बिल्कुल ऐसा ही करूंगी” मन ही मन में बात करते हुए शीला ने एक प्लेट में थोड़ा सा दूध निकाला और अलमारी के नीचे रख आई.. अब इंतज़ार था रूखी के आने का!!
थोड़ी ही देर में रूखी आ गई… शीला ने उसे अंदर बुलाया और मुख्य दरवाजा बंद कर दिया।
“कहिए भाभी, क्या काम था?” रूखी ने पूछा
५-५ लीटर के कनस्तर जैसी भारी चूचियों को शीला देखती ही रही..
शीला ने संभालकर धीरे धीरे बाजी बिछाई
“रूखी, बात दरअसल ऐसी है की आँगन में रहती बिल्ली ने ३ बच्चे दिए है… बड़े ही प्यारे है.. छोटे छोटे… अब कल रात किसी कमीने ने गाड़ी की पहिये तले उस बिल्ली को कुचल दिया” शीला ने कहा
“हाय दइयाँ.. बेचारी… उसके बच्चे अनाथ हो गए.. ” भारी सांस लेकर रूखी ने कहा
“अब में उस बिल्ली के बच्चों के लिए दूध रखती हूँ… पार वह पी ही नही रहे… भेस का दूध उन्हे कैसे हजम होगा? अभी दो दिन की उम्र है बेचारों की.. “
“माँ के दूध के मुकाबले और सारे दूध बेकार है भाभी.. बोतल का दूध पियेंगे तो मर जाएंगे बेचारे” रूखी ने करुणासभर आवाज में कहा
“इसीलिए आज भगवान ने तुझे भेज दिया… अब मुझे चिंता नही है.. वह बच्चे बच जाएंगे” शीला ने कहा
“वो कैसे?” रूखी को समझ नही आया
“देख रूखी… तेरी छाती से दूध आता है… अगर तो रोज अपना थोड़ा थोड़ा दूध निकालकर देगी… तो वह बिचारे बच जाएंगे.. नही तो १-२ दीं में ही मर जाएंगे… और पाप तुझे लगेगा..” शीला की योजना जबरदस्त थी
“अरे, उसमें कौन सी बड़ी बात है!! मुझे तो इतना दूध आता है की मेरे लल्ला का पेट भर जाने के बाद भी बच जाता है”
To Be Continue….