जवान देसी बेटी की चुदाई कहानी

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मेरी बेटी अनुराधा अब जवान हो चुकी थी. एक बार में एक लड़का और लड़की क्लास रूम में चुदाई करते हुए पाये गए थे. तबसे सभी टीचर थोडा डरने लगे थे. जब अनुराधा का बर्थडे पड़ा तो उसने मुझे अपने घर पर बुलाया. फिर २ महीने बाद मेरा बर्थडे पड़ा तो मैं अनुराधा को बुलाया.उस दिन मैं तो उस पर मर मिटा जा रहा था. गुलाब का फूल लग रही थी अनुराधा. जहाँ मैं साढ़े ५ फिट का था वहीँ वो ५ फिट १ इंच की थी. अभी अभी नई नई जवान हुई थी. मम्मे भी अब बड़े होकर पक गए थे. अब वो भोगने और चोदने खाने लायक सामान हो गयी थी. हो सकता है आप लोग कहे की पंकज मिश्र कितना चोदू आदमी है, अपनी मैडम की लड़की की ऐसा कह रहा है. पर इसके जवाब में मैं तो कहूँगा की जब लंड खड़ा होता है और फन मारता है तब माँ की माल लगती है.

लंड को तो बस वही ५ इंच गहरा छेद चाहिए होता है. खड़ा लंड तो तब ही बस शांत हो सकता है. सिर्फ बाते पेलने से तो लंड शांत नही होता. इसको तो बस १ छेद चाहिए होता है चोदन के लिए. फिर कैसी मिस और कैसी टीचर.जब अनुराधा आ गयी तब ही मैं केक काटा. इसमें कोई दोराय नही की मैं उससे प्यार करने लगा था. मैं आज सोच भी लिया था की आज अनुराधा को प्रोपोस मार दूँगा. अनुराधा का बदन भरा हुआ था, उसी से मैं उसके मस्त भरे बदन का अंदाजा लगा सकता था. जैसा फैशन टीवी पर दिखाते है की लडकियां पतली पतली बांस के खंबे की तरह सिकडी पहलवान होती है, अनुराधा उस तरह की बिलकुल नही थी. बिलकुल देसी मछली थी. आह उसके चोदने को मैं कबसे बेक़रार था. कितने सपने देखे थे उसके लिए मैंने. पर साधना मिस से मैं बहुत डरता था, मेरी बड़ी फटती थी उनसे. क्यूंकि बचपन से वो और उनकी डंडी ही मैंने देखि थी. सारे लड़के भी बहुत डरते थे उसने.

बर्थडे का केक कट गया तो सब मेहमान फिर से अपनी अपनी मंडली में खो गए. मैंने अनुराधा को अपने बगीचे में ले आया. एक गुलाब का फूल तोडा और उसको दे दिया.अनुराधा !! आई लव यू!! मैंने कहा वो बिलकुल से झेप गयी. कुछ देर तक तो कोई जवाब ना दिया. मैं तो टेंशन में आ गया. क्यूंकि मैं उसे सिर्फ चोदना खाना ही नही चाहता था, पर प्यार भी बहुत करता था. इसलिए मैं थोडा इमोसनल भी था. कुछ देर बाद अनुराधा हँसी और हाँ में उसने सिर हिला दिया. दोस्तों, मैं इतना खुश हुआ की लगा मैंने दुनिया जीत ली है. लगा मैं बिल गेटस बन गया हूँ और दुनिया का सबसे आमिर आदमी हूँ. मैं अनुराधा को अपने कमरे में ले आया.वो भी अपनी मर्जी से आई थी. मेरे घर में हर तरह पार्टी चल रही थी. हनी सिंह के गाने बज रहें थे. मेहमान ही मेहमान थे. मेरे कमरे में मेरी मौसी की लडकियां बैठी थी, मैं उसको बाहर निकला.

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अनुराधा मेरे साथ अंडर आ गयी. वो भी जान गयी थी की हम दोनों कुछ ना कुछ करेंगे. अंदर आते ही मैंने अनु [प्यार से मैं उसको कभी कभी अनु भी कह देता था] को सीने से लगा लिया. हम दोनों लिप लोक होकर किस करने लगे. अनुराधा बड़ी ही मासूम थी, जरा भी चंट नही थी. बड़ी सीधी लड़की थी तभी मुझे उससे इश्क हुआ था. मैंने अनुराधा को बाँहों में भर लिया, उसके होठों पर गर्म गरम चुम्बन लेने लगा. पहली बार किसी के होंठ पी रहा था. बड़ी बात होती है ये.अनु के होठ पीते पीते हम दोनों गरम हो गए. मैंने अनु की आँखों में बस झाका और मुझे जवाब मिल गया. यही तो प्यार में होता है, बात करने की जरुरत ही नही होती. सारी बातें बस आँखों आँखों में ही हो जाती है. वो भी चुदने को अपने मन से तैयार थी. अनु ने पिंक रंग की कुर्ती पहन रखी थी. बिलकुल घर का देसी लाग लग रही. मैंने उसके पुरे बदन को बाहों में भर लिया और हर जगह सहलाने लगा. उसकी, कंधे, पीठ पर मेरा हाथ गया. फिर उसकी कमर पर मेरा हाथ गया. और फिर उसके हिप्स पर मेरा हाथ गया. भरे भरे गोल गोल हिप्स को छूते ही मेरे दिल ने कहा रोज रोज अनुराधा तो तुमको मिलेगी नही पंकज. मौके का फायदा उठाओ और इस कच्ची कली को चोद लो. वरना कल किसने देखा है. कहीं साधना मिस किसी और स्कूल में पढाने चली गयी तो.

बस मैंने अनुराधा को अपने बेड पर घसीट लिया. वो भी चुदासी थी और कोई नु नुकर उसने नही किया. मैं भी उसके बगल लेट गया. चुदाई की सुरवात चुम्मा चाटी से हुई. काफी देर तक तो चिपका चिपकी चली. आँखों के इशारे में चुदाई का संकेत हो गया. मैंने खुद अनुराधा की गुलाबी कुरती को उतार दिया. जैसे जैसे उसके बदन से एक एक कपड़ा निकलता गया अनु[ अनुराधा] के भव्य रुपए के दर्शन होते गए. अंत में वो अपने आलसी प्राकृतिक रूप में आ गयी. वो अपने असली भव्य रुप में आ गयी. वो वस्त्रविहीन हो गयी. मैं भी कपड़े निकाल दिए. अनु के रूप को मैं निहारता रह गया. छरहरा इकहरा बदन आज कल की छोकरियों के बिलकुल विपरीत जो फास्ट फ़ूड खा खाके मोटी और भद्दी हो जाती है. मेरे सामने उसका नया नया यौवन से परिपूर्ण बदन खुला हुआ था. अनुराधा के चेहरे पर नूर ही नूर झलक रहा था, उसकी मासूमियत की खूबसूरती. उसके कुंवारे होठ जिसको अभी तक किसी लड़के ने नही पिया था.

उसके उभरे चिकने चुच्चे जिसके चूचकों पर १० रुँपये के सिक्के की साइज़ के काले घेरे थे. जिसको अभी तक किसी से नही चखा था. बार बार मैं अनुराधा के चेहरे को चूमने लगा. मन तो हुआ की इसकी मासूमियत को नष्ट ना करू. इसको ना चोदू. ऐसे ही काम चला लूँ, पर इस महापापी लंड का क्या करता. इसको तो ४ इंच का छेद चाहिए ही ना. ये मेरी बात ना सुनता. इसलिए मैं चुदाई की दिशा में बढ़ गया. सबसे पहले अनु [अनुराधा] के दोनों गुलाबी कुंवारे होंठों को पी कर उनकी सारी लाली चुरा ली. जैसे मधुमखी फूल पर बैठ कर उसका सारा नूर सारा पराग चुरा लेती है. मेरे हाथ लगातार उसके चुच्चों पर लगातार गश्त लगा रहें थे जैसी पुलिस रात में पुरे शहर में गश्त लगाती. अनु के इस भव्य रूप के मैंने आज पहली बार दीदार किया था. स्कूल ड्रेस में तो वो मुझे हमेशा बहन जी टाइप की लगी थी पर आज ऐसे उसके खुले नग्न रूप में वो मुझे आदर्श प्रेयसी लग रही थी.मैंने पूरी तरह से उसको अपने में भर लिया. उसके सिर को मैंने प्यार से पकड़ लिया और उसके सिक्के जैसे काले घेरों को पीने लगा.

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अनुराधा के नंगे बदन की खुसबू मेरे नथुने में चली गयी. मैं अनु को पूरी तरह से अच्छे से भोगना चोदना चाहता था. कहीं कोई कोर कसर नही छोड़ना चाहता था. मैं उसको खुद में लपेट लिया था, रुमाल की तरह वो मुझे सिमट सिकुड गयी थी. साधना मिस से उसके लिए सोने की चैन बनवाई थी. नई नई सोने की चेन उसके गले में बहुत जच रही थी. एक बार तो लगा की मैं उसके साथ गोवा या कोई पर्यटन स्थल पर आया हूँ और हनीमून मना रहा हूँ. उसकी बगलों में बड़ी बारीक़ हल्के हल्के बाल थे. अभी अनु [अनुराधा] पूरी तरह से बालिग भी नही हुई थी और मैं उसको भोगने जा रहा था. उसने अपने लचीले पतले हाथों से मुझे जकड रखा था.

अनुराधा के बदन में बड़ी नवीनता थी. चिकना बदन था जिसको अभी तक किसी से नही चोदा था. मैं उसके दोनों दूध पीने में डूबा था. इसके साथ ही दूसरे खाली दूध को हाथ में लेकर होर्न की तरह दबा देता था. अनु चिहुक उठती थी. उसके रूप और खूबसूरती पर मैं आसक्त था. बाहर मेरे जन्मदिन पर मेरे दुसरे दोस्त और रिश्तेदार और उसके खून चूसूं बच्चे हनी सिंह के गानों पर डांस कर रहें थे. मैं इधर अपनी साधना मिस की लड़की के साथ महा चुदाई की महा पाठशाला लगा रहा था. लहकते, मचलते उसके जिस्म को लेकर मैं कहीं दूसरी दुनिया में खो गया था. अब नीचे की तरह बढ़ रहा था, उसका मखमली पेट, उसकी नाभि को मैंने चूम लिया. अनु खिलखिलाकर हंस पड़ी. नाभि से पेडू से होकर हल्की हल्की बारों की बड़ी महीन बारिक लाइन थी जो उसकी बुर तक जाती थी. चीटियों की तरह मैं एक एक बाल को चूमता चूमता मैं अनु के पेडू पर आ गया. फिर बुर पर आ पंहुचा जैसे अंग्रेज सोने की तलाश करते करते भारत आ पहुचे थे.

बेटी की बुर पर हल्की हल्की झांटे थी. उसकी चूत की तरह उसकी झांटे भी अभी कुंवारी थी. मैंने अपना सिर उसकी झांटों के बादल में डाल दिया और कहीं खो गया. मैंने अपना मुह उसकी झांटों में छिपा लिया जैसे जब मासूम छोटा बच्चा अपनी माँ से रूठ जाता है तो घर में कहीं किसी कोने में छिप जाता है. हम दोनों प्रेमी प्रेमिका का चुदाई का बड़ा मन भी था, समय भी था , मौका भी था और दस्तूर भी था. अब तो चुदाई होनी लाजमी थी. हम दोनों एक दूसरे में पति पत्नी की तरह समा गए थे. अनुराधा को आज इस तरह पाकर मैं खुद को बिल गेट्स जितना अमीर समझ रहा था. मैंने झांटों को बीच से अपनी उँगलियों से हटाया तो चूत मिल गयी. मैं पीने लगा. हल्का नमकीन स्वाद मेरे मुह में आया. अनु के चेहरे की भाव भंगिमांए बदने लगी. मैं लपर लपर करके उसकी चूत पीने लगा.

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अंततः मैंने अपना लंड बेटी की भोसड़े पर रख दिया और धक्का मारा. कई दफा लंड इधर उधर भाग गया. मैंने उसकी दोनों जाँघों को पकड़ा, लंड को रिसेट किया और अंडर पेला. उसकी कुंवारी पवित्र सील टूट गयी. मैं अनु को चोदने लगा. उसके सायद बिठाये वो निजी पल सायद बड़े खास थे मेरे लिए. कुछ देर बाद वो चूत का छेद खुल गया. मैं सहजता से अपनी जानेमन को लेने लगा. वो मुझसे लिपट गयी थी , जैसी मुझे अपना पति, अपना दिलबर मान चुकी थी. मैं उसे घपाघप पेल रहा था. कभी उसे दर्द होता कभी नही, पर नए नए चूदाई का सुख तो मेरी अनु उठा रही थी. उसकी नाजनीन पलकें कभी गिरती, कभी उठती, कभी उसकी भौहे फैलती, कभी सिकुड़ती. मैं भवरे की तरह, किसी मधुमख्खी की तरह अनु का सारा नूर , उसका सारा पाराग लूट रहा था. फिर कुछ पलों बाद मैंने अपना अमृत अनु की आत्मा में छोड़ दिया. हम दोनों प्रेमी प्रेमिका आज एक हो गए. हम दो जिस्म थे, पर आज एक जान हो गए.

हम दो शरीर थे, पर आज चुदाई के बाद हम एक आत्मा हो गए. मैं भी इधर पूरा हो गया, अनु भी उधर आज चुदकर सम्पूर्ण नारी हो गयी. समय से पहले ही उसे चोदकर मैंने उसके यौवन की कलि को फूल बना दिया. फिर हम दोनों ने अपने अपने कपड़े पहन लिए और बाहर आ गए. अभी भी पार्टी चल रही थी. हनी सिंह का ‘ आंटी पुलिस बुला ले गी, फिर पार्टी यूँ ही चलेगी’ ये गाना अभी भी बज रहा था. मेरी और अनु की पार्टी को पूरी हो चुकी थी. दोस्तों, जिस बात का डर था वही हुआ, साधना मिस के पति को कहीं सरकारी नौकरी मिल गयी और वो हमारा स्कूल छोड़ के चली गयी. मेरा प्यार मेरी मुहब्बत अनुराधा भी उसके साथ चली गयी. मैं बहुत रोया, कई दिन मैंने खाना नही खाया. पर मैं मजबूर था. आखिर में क्या करता. मेरी मुहब्बत अनु चली तो गयी पर उसका प्यार आज भी मेरे दिल में जिन्दा है और हमेशा जिन्दा रहेगा.कैसी लगी हम डॉनो बाप बेटी की सेक्स स्टोरी , अच्छा लगी तो शेयर करना , अगर कोई मेरी बेटी की चुदाई करना चाहते हैं तो उसे अब जोड़ना चुदाई की प्यासी लड़की.

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