मेरा नाम सुचित्रा है, मै 38 वर्ष कि एक घरेलु महिला हूँ.
घर में मेरे पति है जो बहुत सौम्य है और मुझे प्रेम करते है और साथ में हमारी एक 12 साल कि एक बेटी है.
हम लोग मुम्बई के मलाड इलाके में में रहते है. मेरे पति जिनका नाम सुधीर है करीब 40 साल के है और एक बैंक में मैनेजर पद पर कम करते है.
सुधीर स्वभाव से बिलकुल भी दकयानूसी नहीं है,
अन्य मधामवर्गीय मर्दो कि तरह उन्हें मेरे पुरुष मित्रो और कॉलेज के ज़माने के दोस्तों से बात करने पर कोई इतराज़ नहीं है.
मै रोज अपनी बेटी को ऑटो रिक्शा से स्कूल छोड़ती हूँ
फिर सब्जी और बाज़ार का काम करते हुए दुपहर तक घर वापस आ जाती हूँ.
एक दिन मैंने अपनी बिटिया को स्कूल छोड़ा और लौटने में मुझे ऑटो रिक्शा नहीं मिला और जो मिल भी रहे थे वो बड़े अनाप शनाप किराया बता रहे थे.
20 मिनट इंतज़ार के बाद भी जब मुझे कोई कायदे का रिक्शे वाला नहीं मिला तब मैंने बस पकड़ने कि सोची जिसका स्टोपेज मेरे घर के पास ही था.
थोड़ी देर में बस आ गयी और जब बस देखि तो भीड़ देख कर एक बार मैंने न चढ़ने का फैसला किया लेकिन कोई और चारा न देख कर मै उस पर चढ़ गयी. मुझे बस पर चलने कि कोई आदत नहीं थी और मेरे दोनों हाथ में घर का सामान था,
मै घुस तो गयी लेकिन अब कोई और चारा भी नहीं था. मै सामान को दोनों हाथो में साधे हुए उस भरी बस में किसी तरह बीच में खड़ी रही. मेरे सामने एक बुजर्ग आदमी खड़े थे और मेरे पीछे एक कॉलेज जाने वाला लड़का खड़ा था. उस हिचकोले खाती बस में मै उन दोनों के बीच फसी थी और किसी तरह मै अपने को सम्भाले हुई थी.
थोड़ी देर बस चलने के बाद मुझे महसूस हुआ कि मेरे पिछवाड़े पर कुछ लग रहा है, मैंने पीछे मुड़कर देखा और खड़े हुए लड़के को भौ चढ़ा कर देखा. उस लड़के ने कंधे उचका दिए जैसे बता रहा हो कि जान भुझ कर उससे नहीं हुआ है.
बस कि भीड़ देखते हुए , मुझे भी यही लगा कि उसने जान भुझ कर नहीं किया होगा, आखिर मै एक 38 साल कि औरत थी और कोई 20-21 साल का मेरे लड़के ऐसा, लड़का तो इतनी उम्रदराज के साथ नहीं करेगा. थोड़ी देर बाद मुझे फिर लगा कि मेरे चुतर में कुछ रगड़ रहा है. और एक झटका सा लगा जब यह समझ में आया कि वो दबाव उस लड़के का लंड से हो रहा था जो कड़ा होगया था.
उसके रगड़ने से जहाँ मुझे एक दम से गुस्सा आया वाही एक अजीब सी अनुभूति भी हुई , उसके लंड का मेरे चुतर में दबना कही न कही मुझे एक मीठा सा सुख भी दे रहा था. मै बस कि भीड़ में एक तरह से फंसी हुयी थी और हलात को देखते हुए मैंने कोई भी अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी.
मेरे चुप रहने से उस लड़के कि हिम्मत थोड़ी खुल गयी थी. बस के हिचकोले लेने पर वह और मेरे पीछे आकर सट गया, उसका कड़ा लंड अब मेरे चूतरो में पहले से ज्यादा करीब से रगड़ खाने लगा था. उसका लंड जब मेरे चूतरो में जब पूरी तरह रगड़ा तो मेरे शारीर में एक सनसनी से दौड़ गयी और मेरी साँसे भरी चलने लगी.
मै खुद पर विश्वास नहीं पर पा रही थी कि उस लड़के का अपना लंड मेरे चूतरो में रगड़ना मुझे अंदर से सुख दे रहा है. उस अनजाने सुख कि तलब इस तरह मेरे अंदर घर कर गयी थी कि मुझे यह एहसास ही नहीं हुआ कि मै उसके लंड को और अपने पीछे महसूस करने के लिए मैंने अपने शारीर को और पीछे की तरफ धकेल दिया था. उस लड़के ने इस बात का एहसास कर लिया था कि मुझे उसके लंड का स्पर्श अच्छा लग रहा है और उसने अपना लंड और कस के मेरे चूतरो पर रगड़ने लगा, यहाँ तक कि मेरे दोनों चूतरो के फांक के बीच भी उसमे धसने लगा था.
मेरी साँसे बहुत भारी चलने लगी थी, मेरी आँखे भी अधमुँदी हो गयी थी और मै पुरे एहसास का मौन लुत्फ़ लेने लगी. मैंने अपनी कमर को थोडा इस तरह से कर लिया कि उसका लंड मेरे चूतरो के बीच कि दरार को भी महसूस कर सके. मेरे इस तरह से अपने शरीर को करने से उस लड़के ने मेरा स्वागत ही समझा और उसने पहली बार मेरे चूतरो को छुआ.
अपने हाथो से मेरे चुतर सहलाते हुए उसने उन पर चुटकी काट ली. उसकी इस हरकत से मेरे पैर एक दम से कमजोर हो गये और मेरी चूत गीली हो गयी.
बस स्टॉप जैसे ही मैनेजमेंट कॉलेज के पास आकर रुकने लगी उस लड़के ने अपने आप को मेरे पीछे से अलग कर लिया और जब मेरे बगल से आगे कि तरफ जाने लगा तब उसने एक शरारती मुस्कान देते हुए मेरी तरफ कनखियों से देखा, लेकिन मैंने अपनी जल्दी से आँखे घुमा ली. वोह लड़का वही उतर गया और मै अपनी साँसों को सँभालते हुए अपने स्टॉप का इंतज़ार करने लगी जो की थोड़े ही आगे था.
मेरे स्टॉप आने पर मै तेजी से बस से उतर गयी और तेज कदमो से अपने घर कि ओर भागी.
मै जैसे तैसे घर पहुची और दरवाज़ा खोल कर अंदर चली गई, मैंने सिक्यूरिटी को फ़ोन कर के कहा कि मेरी नौकरानी को थोडा देर से आने का सन्देश दे दे. उसके बाद मै सारा सामान ड्रॉइंग रूम में छोड़ कर अपने बेडरूम में चली गयी और अपने को अपनी ड्रेसिंग टेबल में लगे शीशे में निहारने लगी. मैंने बहुत दिनों के बाद अपने आप को इस तरह निहारा था और महसूस किया कि 38 साल कि उम्र के बाद भी मेरा शरीर ख़राब नहीं हुआ था, थोडा सा वजन जरुर बढ़ा हुआ था लेकिन मै अपने आपको एक आकर्षक महिला के रूप में देख रही थी.
मै आज बस में हुई घटना, उस लड़के कि हरकत को याद करने लगी और एक यह सोच के गर्म होने लगी कि मुझसे आधे उम्र का लड़का मेरी ऐसी अधेड़ औरत पर आकर्षित हो गया था.
मैंने अपने सरे कपडे वही खड़े खड़े शीशे के सामने उतार दिए और अपने चूतरो के उन हिस्सो को छूने लगी जहाँ उस बांके छोरे के लंड ने उसको सहलाया था. दूसरे हाथ से मै अपनी चूचियों को पकड़ के सहलाने लगी और मेरी उंगलियां उनकी घुंडियों से खेलने लगी जो मेरे हर सपर्श से और तनी और बड़ी होती जा रही थी.
मै अपने ही सपर्श से बेहद उत्तेजित हो रही थी. मेरा दूसरा हाथ चूतरो से हट कर सामने चूत पर आगया, जो लड़के कि हरकत से पहले से ही गीली थी और उसको सहलाने लगी, मेरी ऊँगली क्लिट को आहिस्ता आहिस्ता रगड़ने लगी. मेरी आँखे अब बन्द होगयी और मै वासना कि उतेजना में हचकोले खाने लगी थी. उस लंड कि याद करते करते मेरे शरीर में एक झनझनाहट हुयी और मुझे ओर्गास्म हो गया. वह बड़ा तेज ओर्गास्म था मेरी चूत ने पानी बाहर फेक दिया था. मै एक दम से अपने को निढाल महसूस करते हुए वैसे ही अपने बिस्तर पर गिर गयी.
मेरी साँसे अब भी भारी चल रही थी औरमै हैरान थी कि मुझे इतनी जल्दी ओर्गास्म हो गया, जब कि मुझे १५/२० मिनट लग जाते थे.
मै उसी हालत में ही सो गयी लेकिन बस में हुयी घटना मेरे दिमाग से नहीं उतार पा रही थी. वास्तव में उस घटना ने मुझे हिला दिया था और मुझे वह सब अंदर से अच्छा लगा था.
हर औरत मर्दो कि आँखों में आकर्षित लगना चाहती है और खास तौर पर जब वो अधेड़ उम्र कि हो जाती है. मै समझती हूँ उसके कई कारण होते है, एक तो ढलती उम्र उसको अपनी जवानी के ख़तम होने का एहसास देती है , दूसरा उस उम्र में पति अपने काम और करिएर में व्यस्त होता है कि वोह अपनी पत्नी पर ध्यान ही नहीं दे पाता है और इन सबका असर सेक्स पर पड़ता है.
मुझे उन दिनों कि अच्छी तरह याद है जब मेरी नयी शादी हुयी थी, मेरे पति मुझे हर रात चोदते थे, मुझे बिल्कुल अपनी रानी बनाकर रक्खा हुआ था. हर बात का ख्याल रखते थे. अब समय के साथ साथ हमारे अंदर कि काम इच्छा ख़तम होने लगी थी, और जो मेरे अंदर थी वो शायद उनकी नज़र से ओझल हो गयी थी और उन्होंने मेरे अंदर कि औरत को महसूस करना भी बंद कर दिया था.
हमारी चुदाई अब बहुत कम हो गयी थी,
कभी कभी वो मुझे बाँहों में लेते और एक काम कि तरह, मेरी टंगे फैलाकर मेरी चूत में लंड डाल कर चोदते और झड़ने के बाद चादर ओढ़ कर सो जाते थे. कितनी ही बार मै बिना ओर्गास्म के ही रह जाती और तड़पती रहती थी लेकिन फिर मैं मेस्ट्रोबेशन का सहारा लेने लगी और मै अपनी उल्झन को उस से शांत करने लगी.
मुझे तो अब यह भी याद नहीं की कब हमलोगो ने आखरी बार मिशनरी के अलावा किसी और तरीके से चुदाई की थी.
अगले दिन मैंने अपनी बेटी को स्कूल में छोड़ा और लौटने के लिए ऑटो रिक्शॉ को जैसे रोकने के लिए बढ़ी तभी मुझे बस आती दिखी और मेरे कदम अपने आप बस स्टैंड कि तरफ बढ़ लिए. मेरे हर बढ़ते कदम पर अपने से ही सवाल था कि सुचित्रा क्या कर रही है?
जब मै स्टैंड पर पहुची तो वह मुझे कल वाला लड़का खड़ा दिखा, मेरा दिल मेरे मुँह को आ गया, दिल बेहद तेजी से धड़कने लगा और मैंने अपनी नज़र उससे हटा ली और आती हुई बस को देखने लगी. बस में भीड़ थी मै कुछ रुक कर उसपर चढ़ गयी, मैंने यह देख लिया था कि वह लड़का तब तक नहीं चढ़ा जब तक मै बस में नहीं चढ़ गयी, मेरे चढ़ते ही वह भी बस में मेरे पीछे चढ़ गया.
एक अजीब सी संतुष्टि मिली जब लड़का मेरा इंतज़ार में बस में चढ़ने से रुका रहा.
मै बीच में ही खड़ी होगयी थी और लड़का भी ठीक मेरे पीछे आकर खड़ा होगया.
उसको मै अपने पीछे खड़ा महसूस कर रही थी और तुरंत ही मैंने उसके हाथ को अपने चूतरो पर महसूस किया, वह मेरे चूतरो को अपनी हथेली से सहला रहा था.
आज वह लड़का बहुत आत्मविश्वास में लग रहा था उसके छूने का ढंग में पूरा अधिकार था.
उसके हाथ रास्ते भर मेरे चूतड़ों को सहलाते रहे,
दबाते रहे और बीच बीच में उसकी उँगलियाँ मेरे चूतडो कि दरार को भी महसूस करते रहे. मै सब कुछ सांस रोके होने देरही थी. मै उसकी हर हरकत से अंदर ही अंदर उतेजित होती जाती थी.
बड़ी मुश्किल से मै अपनी साँसों पर काबू कर पा रही थी.
उसके स्टॉप पर वह लड़का मुझ से रगड़ता हुया आगे निकला और उतर गया.
उस दिन के बाद से यह रोजाना कि बात हो गयी, मै रोजाना अब बस ही पकड़ने लगी. पहले मै ही चढ़ती थी और वह लड़का , चाहे कितनी ही भीड़ हो मेरे बाद ही चढ़ता और धक्का मुक्की करता हुआ मेरे पीछे आकर खड़ा होजाता और मेरे चूतडों को मसलता था.
मै हमेशा ही शलवार कमीज़ पहना करती थी लेकिन एक दिन मैंने साडी पहनने का फैसला किया जिसको देख कर मेरी बेटी भी बड़ी चौकी क्यों कि मै हमेशा उसको शलवार कमीज़ में ही छोड़ने जाती थी.मैंने उसको समझाया कि मेरी साड़ियां रक्खे रक्खे ख़राब होरही थी इसलिए अब मैंने अब साडी ज्यादा पहनने का फैसला किया है.
मैंने जन भुझ कर साडी का फैसला लिया था, मै उस लड़के को अपनी नंगी कमर का एहसास देना चाहती थी, मै उसे वहा अपने को छुआना चाहती थी. जैसा मैंने सोंचा था वैसे ही उस लड़के में किया, उस दिन उसके हाथ मेरे चूतरो को सहलाने के बजाये मेरे ब्लाउस और साडी के बीच में कमर पर रेंगने लगे. उसके मेरे नंगे अंग पर हाथ रखते ही मुझ मे करंट सा दौड़ गया और मेरी चूत एक दम से गीली होगयी.
बस में सब अपनी अपनी दुनिया में इतना व्यस्त थे कि किसी को यह ख्याल भी नही था कि बस में वह लड़का क्या कर रहा था और मै उसे आज़ादी देरही थी. बस ने एक जगह कस के ब्रेक लगाया तो लड़का मेरे ऊपर पीछे से झूल गया और बड़े आत्मविश्वास से पीछे से हाथ डाल कर साडी के पल्लू के नीचे से मेरी चूंची पर हाथ रख दिया. मेरा दिल धक् कर गया और पकड़े जाने के डर से मै उससे आगे खिसक के आगयी.
वह बात को समझ गया और उसने अपने हाथ मेरे चूतरो पर रख दिए और जब तक उसका स्टॉप नहीं आया वह मेरे चूतरो को दबाता रहा और मेरी नंगी कमर को हथेली से सहलाता रहा. उसके स्टॉप आने पर हमेशा कि तरह वह मुझसे रगड़ता हुआ आगे जाकर उतरने लगा
लेकिन इसी दौरान उसने मेरे हाथ को नीचे थपथपाया और एक छोटी सी कागज़ कि चिट मेरी हथेली में डाल दी.
मैंने उस चिट को अपनी मुठ्ठी में कस के दबा लिया और यह जानते हुए भी उस चिट में क्या होगा मै उसे पढ़ने कि हिम्मत न कर सकी .
मै भौचक्की और एक अनजाने डर से डरी होयी थी.
बस में मै उसके छूने का मज़ा तो ले रही थी लेकिन मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसी कोई हरकत करेगा.
मैंने उस चिट को अपने पर्स में डाल दिया.
घर में, मै पुरे समय उस लड़के के बारे में ही सोचती रही, उसका छूना, उसका मुझे दबाना उसका मेरी चूची पर हाथ रखना, सब कुछ मुझे अंदर से जलाता रहा.
उस रात मेरे पति जब बिस्तर पर आये. तो मैंने अपना हाथ बढ़ा कर उनसे लिपट गयी.
उन्होंने चौकते हुए मुझे देखा और मुस्कराते हुए मुझे बाँहों में जकड लिया.
उनके हाथ मेरी नाईटी को खिसकते हुए मेरी चून्चियों पर पहुच गए और उसे दबाने लगे, उस वक्त मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वह लड़का मेरी चून्चियों को दबा रहा है.
जब वह मेरी नाईटी ऊपर कर रहे थे तो मैंने अपने आप ही उसको पूरी तरह से अपने से अलग कर दिया और बहुत दिनों बाद मै नंगी उनसे चिपट गयी.
मै बहुत ही गर्म थी. मैंने आँख बंद कर रक्खी थी और मुझे उनकी हर हरकत में उस लड़के का होने का एहसास होरहा था. उन्होंने जैसे ही मेरी टंगे फैला कर मेरी चूत में अपना लंड डाला वो फचाक से मेरी चूत में घूस गया.
उनको मेरी चूत का गीलेपन का एहसास होगया था,
वह मुझे चोद रहे थे और कह रहे थे “सुचित्रा , आज तो बिलकुल ही तुम गर्मायी हुई लग रही हो, इतनी जल्दी चूत ने पानी छोड़ रक्खा” है?”
उनका हर धक्का मुझे उस लड़के के लंड का धक्का लग रहा था और मै तेजी से कमर उठा उठा कर उनके लंड से चुद रही थी. मैंने उनसे कस के धक्के मारने को कहा और वह भी गरमा कर तेजी से मुझे चोदने लगे.
वह थोड़ी देर में झड़ भी गये, लेकिन मै बहुत दिनों बाद चुदाई के दौरान झड़ी थी.
मुझे चोदने के बाद वह अपने हिस्से पर जाकर सो गये, लेकिन खूब चुदने कि बाद भी मेरे आँखों मै नींद नहीं थी.
मुझे तो सिर्फ उस लड़के कि शकल सामने घूमती नज़र आरही थी. एक बरगी उठ कर अपने पर्स से उस चिट को निकल कर देखने कि इच्छा भी हुयी, लेकिन मै अपने से बार बार पूछ रही थी, “सुचित्रा उस चिट में लड़के ने अपना नंबर दिया है.
क्या तू उसे कॉल करेगी”?
लेकिन मेरी अंतरात्मा ने मुझे रोक दिया, “यह सही नहीं है, एक सीमा के बाद बात बिगड़ सकती है”.
अगले दिन रोजाना कि तरह मैं बस स्टैंड पहुची ,
लेकिन वहाँ वह लड़का नहीं दिख रहा था
थोड़ी देर में बस आयी और चली गयी लेकिन वह नहीं आया और मैं उसके इंतज़ार में में खड़ी रही. दूसरी बस भी आकर चली गयी लेकिन मैं बस पर नहीं बैठी,
मैंने ऑटो रिक्शा किया और घर चल दी.
मुझे बिना उस लड़के के बस में चढ़ने कि कोई इच्छा नहीं थी.
मैं रास्ते भर परेशान रही कि आज क्या होगया ?,
आज वह क्यों नहीं आया? उसका न होना ऐसा लग रहा था जैसे मेरी ज़िन्दगी से कुछ चला गया हो. उस लड़के के साथ बस का सफ़र मेरी रोजाना कि ज़िन्दगी में इस तरह शामिल हो चूका था कि उसके आज न होने से सब कुछ खाली खाली लग रहा था और परेशान भी हो रही थी कि क्या हुआ उसको.
मेरी इतनी बैचैनी बढ़ गयी कि मैंने अपना पर्स खोल के उस चिट को ढून्ढ निकला जो उस लड़के ने मुझे दी थी.
उस पर मोबाइल नंबर लिखा था. एक बार मन आया कि उसको कॉल करू और पता करू कि क्यों नहीं आया , लेकिन हिम्मत नहीं हुयी.
घर आकर मैं सुस्त सी कमरे में लेट गयी.
ध्यान बटाने के लिए मैंने टी वी चालू कर दिया लेकिन मेरा दिमाग उस लड़के में ही लगा हुआ था. इसी उलझन में मैंने अपना मोबाइल हाथ में ले लिया और उस लड़के का नंबर मिला दिया. काल जाती देख मेरी हिम्मत जवाब दे गयी और मैंने झट से मोबाइल काट दिया
मेरे हाथ कॉप रहे थे, मैंने मोबाइल सामने बिस्तर पर फेक दिया.
मेरे मोबाइल फेकते ही मेरा मोबाइल बज उठा,
मैंने उसको उठा कर देखा तो काल उसी लड़के की थी, उसने काल बैक कि थी.
मैंने काल बजने दी, अजीब दुविधा में थी. सोचती रही कि क्या करू कि क्या न करू तब तक मेरा मोबाइल अपने आप बजना बंद हो गया.
मोबाइल मेरे हाथ में ही था कि उसने दोबारा काल किया, इस बार मैंने धड़कते दिल से कॉल उठा ली. मैंने मोबाइल कान पर लगा लिया और उधर से ‘हाय’ कि आवाज़ आयी, आवाज़ बड़ी खुश्की भरी थी. मैं चुप रही.फिर उसने कहा,’ मैं जानता हूँ कि यह काल अपने की है’.
मैंने रुक कर पुछा,’कौन है’?
उसने हलके हॅसते हुये कहा,’ आपको मालूम है की मैं कौन हूँ.’
उसकी आवाज़ में शरारत थी. अब तक मैंने अपनी बदहवासी पर काबू कर लिया था, मैंने सपाट और तलक लहजे में कहा,’ क्या चाहिए मुझ से? मैं एक औरत हूँ और तुमसे बहुत बड़ी. कोई गर्लफ्रेंड नहीं है क्या’?
उसने तपाक से कहा,’
आप मेरी गर्लफ्रेंड हो ऑंटी जी.’
मैंने भी तुरंत उसे डपटते कहा,’ मुझे आंटी वांटी मत कहो’.
उस पर उसने कहा,’ आप, अपने आप को बड़ी समझती हो इसलिए आपको आदर में मैंने आपको आंटी कहा.’
लड़का तेज था, तपाक से जवाब दे रहा था, मैंने उसको छेड़ते हुए कहा,
‘तुमको आदर यही दिखाना था, बस में आदर नहीं दिखा सकते थे ‘?
‘आप जो है और मुझे जो लगती है मैं उसका आदर करता हूँ, आपकी उम्र का नहीं’.
‘मैं क्या हूँ? मैं क्या लगती हूँ?’
‘आप में एक सेक्स अपील है. जो मुझे और किसी औरत में नहीं दिखाई देता’.
मैंने शरारत भरे अंदाज़ में उससे कहा, ‘तुम मेरी सेक्स अपील के बारे में क्या जानते हो? तुमने तो सिर्फ मेरे बम्स को ही नोचा है’?
‘आपकी गदराई चूतरो को छु कर ही मुझे बाकि सबका अंदाज़ा लगा गया है’. इसके साथ ही मुझे चूमने की आवाज़ सुनायी दी.
मैंने पूछा, ‘ यह क्या है’?
उसने कहा, ‘ किस था मेरी नयी गर्लफ्रेंड के लिए.’
मैंने हॅसते हुए कहा, ‘ तुम मुझे अपनी गर्लफ्रेंड कह रहे हो!
मैं एक शादी शुदा १३ साल की बच्ची की माँ हूँ!’
उस पर उसने बेफिक्री से कहा,’ छोड़िये इन बातो को , आप मेरी दिलरुबा हो’.
मैंने बात टालते हुये उससे पुछा, ‘आज तुम क्यों नहीं आये’?
उसने सवाल मुझ पर ही दाग दिया ‘आपने मुझे मिस किया’?
मैंने तेजी से जवाब दिया,’नहीं! पागल हो क्या?’
उधर से उसने तंज लेते हुये कहा, ‘ अच्छा? फिर मुझे काल क्यों किया’?
मैंने भी कह दिया, ‘तुमने नंबर दिया था इसलिए काल मैंने किया था’.
मेरे जवाब पर उसने बड़े आहिस्ता से कहा,’ मैं आज यह जानने के लिए नहीं आया की आप मुझे मिस करती हो या नहीं.
मेरा ख्याल सही था,
मेरी दिलरुबा मुझे मिस करती है.’ यह कह कर वो बच्चो की तरह हॅसने लगा.
मैंने बात टालते हुये उससे पुछा, ‘आज तुम क्यों नहीं आये’?
उसने सवाल मुझ पर ही दाग दिया ‘आपने मुझे मिस किया’?
मैंने तेजी से जवाब दिया,’नहीं! पागल हो क्या?’
उधर से उसने तंज लेते हुये कहा, ‘ अच्छा? फिर मुझे काल क्यों किया’?
मैंने भी कह दिया, ‘तुमने नंबर दिया था इसलिए काल मैंने किया था’.
मेरे जवाब पर उसने बड़े आहिस्ता से कहा,’
मैं आज यह जानने के लिए नहीं आया की आप मुझे मिस करती हो या नहीं. मेरा ख्याल सही था, मेरी दिलरुबा मुझे मिस करती है.’ यह कह कर वो बच्चो की तरह हॅसने लगा.
मैं बात कर रही थी और बात किस तरफ जा रही है मुझे कोई भी ख्याल नहीं था, मैं बस उससे बात कर के मस्ती लेने लगी थी. हमारी आगे को बात चीत कुछ इस तरह से हुयी.
मैं: ‘तुम क्या करना चाहते हो’?
वोह: ‘मैं मिलना चाहता हूँ और आपको बाँहों में लेना चाहता हूँ’.
मैं: ‘ तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हो? तुमको तो मुझे ज्यादा सेक्सी और जवान लड़की मिल जायेगी’.
वोह: ‘मुझे लड़किया अच्छी नहीं लगती मुझे मैच्योर औरते पसंद है’.
मैं: ‘कितनी मैच्योर औरतो को अब तक जानते हो’?
वोह: ‘ किसी भी को नहीं , केवल फंतासी में महसूस किया है. आज तक मैं इतने करीब से किसी को भी नहीं जाना है , जितना मैंने आपको जाना है और किया है’
मैं: ‘सुनो, मैं तुमसे नहीं मिलूंगी, समझे?
मेरी खुशहाल शादीशुदा ज़िन्दगी है और उसको मैं तुम्हारे लिए ख़राब नहीं करूंगी’.
वोह: ‘ठीक है. मैं आपके हाँ का इंतज़ार करूंगा’.
मैं: ‘कोई बात नहीं, तुम कल आ रहे हो’?
वोह: ‘कहाँ? तुम्हारे घर’?
मैं: ‘ नहीं बेवकूफ! बस पर’.
वोह: ‘ बिलकुल! चूतडों की मालिश के लिए तैयार रहना’.
हम दोनों ही इस बात पर हॅसने लगे.
वोह: ‘ सुनो कल पैंटी मत पहनना’.
मैं: ‘क्या’!!!
वोह: ‘ ओह हो!
कल साडी के अंदर पैंटी मत पहनना’!
मैं: ‘पागल हो क्या’!
यह कह कर मैंने मोबाइल काट दिया.
जब मैंने मोबाइल बिस्तर पर फेका तब तक मैं इतनी गीली हो चुकी थी की अनायास मेरा हाथ चूत पर चला गया और उसी हालत में मेरी उसकी हुयी बात को याद करते हुये मैं मास्टरबेट करने लगी.
मेरी उंगलियां मेरी गीली चूत के अंदर बहार हो रही थी और मैं अपनी क्लिट को भी बेरहमी से रगड़ रही थी.
मैं लड़के की हिम्मत के बारे में सोंच रही थी, जो मुझसे 17 साल छोटा था लेकिन बड़े अधिकार से मुझ से बिना पैंटी के साडी पहनने के लिए कह रहा था ताकि वोह भरी बस में खुले आम मेरे चूतडो से और मस्ती ले सके.
सेक्स की इस असीम चाहत से मैं रोमांचित हो उठी और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया.
मैं बिस्तर पर पड़े पड़े उसी के बारे में और उससे हुयी बातो के बारे में सोचती रही.
मैंने उसका नंबर अपने मोबाइल में, एक लड़की के नाम सेव कर लिया.
तब मुझे ध्यान आया की अभी तक न मैंने अपना नाम उसे बताया था न उसने ही अपना नाम मुझे बताया था.
अगले दिन जब मैं अपनी बेटी को छोड़ने के लिए तैयार हुयी तब मुझे कल वाली उसकी बात ध्यान में आयी. मैंने शीशे में अपने आपको घूरा और मैंने अपनी साडी पेटीकोट उठा कर एक झटके में पैंटी उतार दी. मैं जब बाहर निकली तो बिना पैंटी के मुझे बड़ा अजीब लग रहा था. लग रहा था मेरी चूत भरे बाज़ार नंगी होगयी है और मेरी झांघो के बीच वोह रगड़ी जा रही है.
मैं अंदर ही अंदर बहुत उतेजित भी थी और सोंच भी रही थी, हे भगवान!
मैं यह क्या कर रही हूँ!
वह भी एक २० साल के प्रेमी के लिए!
मैं जब बस स्टॉप पर पहुँची वह लड़का वहाँ पहले से ही खड़ा था. उसने जीन्स और टी शर्ट पहने हुयी थी, हमारी आँखे मिली और हमने नज़र घुमा ली, जैसे हम दोनों एक दुसरे को नहीं जानते .
हमेशा की तरह मैं हैंडल पकड़ कर खड़ी होगयी और वोह लड़का धक्का देता हुआ ठीक मेरे पीछे आकर खड़ा होगया.
उसने फ़ौरन मेरी कमर के नीचे हाथ रख कर मेरी पैंटी को महसूस करने की कोशिश की. जब उसको इसका एहसास हो गया की आज मैंने उसके कहने पर पैंटी नहीं पहनी है तब उसने मेरे चूतरो को थप थपा दिया, जैसे वोह मुझे धन्यवाद दे रहा हो.
बिना पैंटी के जब उसके हाथ मेरे चूतरो के ऊपर पड़े मैं बिना दांत भीचे नहीं रह पायी. आज पहली बार उसके उद्वेलित हाथो की गर्मी मेरे चूतरो पर सिर्फ साडी के ऊपर से महसूस कर रही थी.
मैंने थोड़े पैर और फैला दिया और जैस मुझे उम्मीद थी उसका कड़ा लंड मेरे चूतरो की दरार से रगड़ खाने लगा.
आज वह अपना लंड वही रगड़ रहा था और मेरे चूतडों को मसल भी रहा था,
मैं बिलकुल अलग दुनिया में पहुँच गयी थी,
उस भीड़ भरी बस में मैं वासना के उस सागर का सुख ले रही थी जो मेरी शादी के १८ साल बाद भी अभी तक मुझसे महरूम था. पुरे रास्ते उसका लंड मेरे चूतरो पर रगड़ता रहा और मेरी चूत भी आज कुछ ज्यादा गीली हो गयी थी.
आज मैं पैंटी नहीं पहने थी , मेरी चूत का पानी बहकर मेरी जांघो पर आगया था. जब उसका स्टॉप आया वोह उतरने के लिए आगे आया और जाते जाते धीरे से मुझे ‘थैंक्स , कॉल मी’ कहते हुये आगे बढ़ गया.
मैं मूर्ति की तरह वैसे ही वैसे खड़ी रही.
मैं जैसे तैसे घर पहुँची और घुसते ही रुमाल से मैंने अपनी बहती हुयी चूत को पोंछा और उसको मोबाइल लगा दिया.
कहानी पार्ट 2 मे जारी रहेगी …