इस कहानी पिछला भाग १ या पढ़े…..
सुबह 6 बजे के आस पास मेरी नींद खुली तो मैंने देखा कि सभ्या चाची (कल्लू की मां) आंगन में झाड़ू लगा रही है, सभ्या चाची सुबह घर पर झाड़ू और बर्तन करने के लिए आती थी उन्होंने एक ढीली ब्लाउज और पुरानी साड़ी पहनी हुई थी और मैं केवल धोती में चारपाई पर लेटा हुआ था, मैंने देखा कि सभ्या चाची झाड़ू लगाते हुए मेरी धोती की तरफ बार बार देख रही थी, तभी मैंने ध्यान दिया कि मेरी धोती में तम्बू बना हुआ है, सुबह का वक्त था इसलिए मेरा लन्ड धोती में अपनी औकात में खड़ा था, सभ्या चाची झुक कर झाड़ू लगा रही थी मेरी नजर जैसे ही उनकी बड़ी बड़ी चूचियों पर पड़ी तो मेरा लन्ड धोती में फड़कने लगा, थोड़ी देर बाद सभ्या चाची कमरे में झाड़ू लगाने चली गई तो मैं चारपाई से उठकर घर के पिछवाड़े में मूतने चला गया।
फिर मैं घर के पिछवाड़े में ही कसरत करने लगा, बचपन से मेरी आदत थी की सुबह–सुबह मैं देसी दंड मार लिया करता था, कुछ देर बाद सभ्या चाची कमरे से झाड़ू लगाकर बाहर निकली और आंगन के नल से बाल्टी में पानी भरकर पोछा लगाने लगी, मैंने आंगन में सभ्या चाची की तरफ ध्यान दिया तो मेरे तो होश ही उड़ गए, सभ्या चाची अपने घुटनों के बाल बैठके फर्श पर पोछा लगा रही था, मुझे उनकी साड़ी में कैद उनकी भारी गांड नजर आ रही थी, सभ्या चाची ऐसे झुकी हुई थी कि उनकी साड़ी में से उनकी पैंटी साफ़ दिखाई दे रही थी, सभ्या चाची के भारी चूतड़ों को छोटी सी पैंटी में कैद देख मैं पागल होने लगा और फिर से मेरा लन्ड धोती में तनकर खड़ा हो गया था, थोड़ी देर बाद सभ्या चाची कमरे में पोछा लगाने चली गई।
घर के पिछवाड़े में ही गुसलखाना बना था, मैं अपना तौलिया लेकर नहाने चला गया।
कुछ देर बाद मैं नहाकर बाहर निकला तो देखा कि ताईजी आंगन में चारपाई पर बैठकर चाय पी रही थी, सभ्या चाची रसोईघर में बर्तन कर रही थी और शीला भाभी खाना बना रही थी, भीमा भईया ने मुझे देखा तो वह तौलिया लेकर नहाने चल दिए, इधर पीहू दीदी अभी तक अपने कमरे में घोड़े बेचकर सो रही थी, फिर मैंने अपने कमरे में आकर कपड़े पहने और थोड़ी बहुत पढ़ाई करने के लिए कुर्सी पर बैठ गया।
करीब एक घंटे के बाद भीमा भईया और शीला भाभी भोजन करके बाइक से बाजार के लिए निकल चुके थे, बाजार में उनके कपड़े और कॉस्मेटिक्स की दुकान है। कुछ देर बाद मैंने भोजन किया और साइकिल से कोचिंग के लिए निकल गया, आज कोचिंग बंद थी मुझे तो ताईजी पर नजर रखनी थी इसलिए मैं कोचिंग का बहाना देकर घर से बाहर निकला था, मैने अपनी साइकिल को ताईजी के गन्ने के खेत में छुपा दिया और घर से थोड़ी दूर एक बड़े से बरगद के पेड़ के पीछे आकर छुप गया। थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि मेरे दोस्त राज की बहन रजनी ताईजी के घर में गई है, कुछ देर के बाद मैंने देखा कि रजनी दीदी और पीहू दीदी एक साथ घर से बाहर निकली और पता नही किसलिए प्रधान जी के हवेली की तरफ चली गई, कुछ समय बाद सभ्या चाची एक गठरी में कपड़े लेकर घर से बाहर आई और गांव की नदी के किनारे चली गई।
अब 10 बज चुके थे लेकिन ताईजी अभी तक घर में ही थी, कुछ देर बाद ताईजी घर से बाहर आई और घर के फाटक पर कुंडी मारकर अपने आम के बगीचों की तरफ जाने लगी। मैं चुपके से बरगद के पेड़ के पीछे से बाहर निकला और धीरे धीरे ताईजी के पीछे चलने लगा, मैं बहुत दूर था इसलिए ताईजी मुझे देख नही सकती थी और मुझे भी इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं ताईजी मेरी आंखों से ओझल न हो जाए और ठीक ऐसा ही हुआ, कुछ दूर के बाद ताईजी मेरी आंखों से ओझल हो गई, मैंने आम के बगीचों में ताईजी को बहुत ढूंढा लेकिन मुझे ताईजी कहीं पर भी नजर नहीं आ रही थी। मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन मैंने हिम्मत नही हारी थी, मैंने ऐसी ही आधा घंटा तक ताईजी को आम के बगीचे में ढूंढता रहा और फिर थक कर एक पेड़ के नीचे बैठ गया, तभी मुझे ध्यान आया कि आम के बगीचे के पीछे एक पंपहाउस है वहां तो मैंने देखा ही नहीं।
फिर मैं थोड़ा जोश में उठकर खड़ा हुआ और थोड़ी देर चलने के बाद मुझे पंपहाउस नजर आ गया।
मैं अभी पंपहाउस से थोड़ा दूर ही था कि मुझे किसी की सिसकियां सुनाई पड़ी, आवाज ताईजी की ही थी कल जैसे आह्ह्ह्ह्हह उह्ह्ह्ह कर रही थी , मैं समझ गया कि अंदर खेल चालू है, मैं पंपहाउस के पास पहुंचा तो ताईजी की सिसकियां और तेज होने लगी, कल तो ताईजी को डर था कि कोई आ न जाए इसलिए धीरे आवाज कर रही थी पर आज उन्हें यकीन था कि यहां कोई आने वाला नही है इसलिए वह बिना किसी डर के सिसकियां भर रही हैं, पंपहाउस का दरवाजा लकड़ी से बना था और अंदर से लॉक था।
मैंने keyhole से देखा कि ताईजी बिलकुल नग्न अवस्था में गद्दे पर कल्लू के ऊपर बैठी है और कल्लू का लन्ड अपनी चूत में लेकर ऊपर नीचे हो रही है, पंपहाउस में झोपड़ी जितना अंधेरा तो नहीं था लेकिन keyhole से ठीक से कुछ नजर नहीं आ रहा था, ताईजी की चूचियां सच में बहुत बड़ी बड़ी थी और इस उम्र में भी उनकी चूचियां लटकी नही थी लेकिन थोड़ा नीचे की तरफ हो गई थी पर इतनी बड़ी बड़ी चूचियां थी तो नीचे झुकना तो जायज था।
ताईजी ऊपर नीचे हो रही थी और कल्लू का लन्ड ताईजी की चूत में अंदर बाहर हो रहा था लेकिन कल के मुकाबले आज कल्लू का लन्ड थोड़ा मोटा लग रहा था और उसके लन्ड की लंबाई छोटी लग रही थी, कल्लू का लन्ड भूरे रंग लग रहा था जबकि कल तक उसका लन्ड काला था। मैंने सोचा कि कल उसका लन्ड काला इसलिए लग रहा होगा क्योंकि झोपड़ी में अंधेरा था लेकिन उसका लन्ड आज मोटा कैसे हो गया और लंबाई में छोटा। अब मैं समझ गया कि यह कल्लू नही है, आखिर कौन हो सकता है, तभी मुझे नजर आया कि पंपहाउस में दो नहीं चार लोग हैं।
मैंने देखा कि कोई ताईजी से कुछ दूर खड़ा हुआ है और अपने लन्ड को किसी औरत के मुंह में डालकर अंदर बाहर कर रहा है, मैंने उसके लन्ड को ध्यान से देखा तो पता चला कि वह कोई और नही बल्कि कल्लू ही है लेकिन अब वह औरत कौन है जो कल्लू का लन्ड चूस रही है और ताईजी किसके लन्ड के ऊपर इतना उछल–उछल कर चुद रही है,,,, मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि आखिर मेरे साथ हो क्या रहा है। इधर ताईजी बहुत तेजी से अपनी गांड को उस आदमी के मोटे भूरे लन्ड पर पटक रही थी और उधर उस औरत ने कल्लू के लंबे काले लन्ड को अपने गले तक उतार लिया था। ताईजी नग्न अवस्था में थी जबकि वह औरत हरे रंग की सलवार कमीज में थी लेकिन उसकी सलवार घुटनों तक सरकी हुई थी और कमीज़ उसके स्तन के ऊपर तक चढ़ी हुई थी, बड़ी गोरी चिट्ठी औरत थी, उसकी चूचियां भी बड़ी बड़ी थीं लेकिन ताईजी के जितनी बड़ी नही थीं, उसके चेहरे पर बाल बिखरे हुए थे इसलिए मुझे उसका चेहरा नज़र नही आ रहा था। इधर ताईजी उस आदमी के ऊपर झुक गई थी और वह आदमी ताईजी की गांड को थामकर उनकी चूत में अपने लन्ड के ताबड़तोड़ धक्के जड़ रहा था लेकिन वह आदमी थोड़ी भी आवाज नहीं कर रहा था मुझे सच में ताईजी किसी बाजार की रण्डी लग रही थी।
कुछ देर बाद उधर कल्लू नीचे गद्दे पर लेट गया और वह औरत अपने कपड़े उतारकर कल्लू के ऊपर बैठ गई, इधर ताईजी अपने घुटनों के बल घोड़ी बन गई और वह आदमी अपने घुटनों के बल ताईजी के पीछे खड़ा हो गया। कल्लू ने अपना लन्ड उस औरत की गुलाबी चूत में पेल दिया और उस आदमी ने अपना लन्ड ताइजी की गांड के भूरे छेद में ठूंस दिया। अचानक मैंने पंपहाउस में आ रही रोशनी पर ध्यान दिया जो पंपहाउस के पीछे वाली खिड़की से आ रही थी, मैंने सोचा वहां चलकर देखता हूं अब मैं धीरे से पंपहाउस के पीछे आ गया लेकिन वहां खिड़की तो थी पर ऊंचाई पर थी मैंने वहां चार ईट लगाई और उसके ऊपर चढ़ गया, मेरी किस्मत भी मेरे साथ थी क्योंकि पंपहाउस की खिड़की बंद नहीं थी जैसे ही मैंने खिड़की से पर्दा हटाकर अंदर देखा तो मेरे दिल ने जैसे धड़कना ही बंद कर दिया।
वह आदमी जो ताईजी को घोड़ी बनाकर उनकी गांड पेल रहा था वो और कोई नही बल्कि प्रधान जी की हवेली का चौकीदार हरिया था और वह औरत जो कल्लू के ऊपर उछल–उछल कर उसके लन्ड पर अपनी गांड पटक रही थी वह मेरे पड़ोस में रहने वाली शहनाज़ बेगम थी, मैं उन्हें खाला कहता हूं। मेरा दिल किया कि पंपहाउस अंदर घुसकर इस खेल में शामिल हो जाऊं या गांव वालों को यहां लेकर आऊं और इनकी करतूतों की धज्जियां उड़ा दूं लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी और मुझे अंदाजा भी नहीं था कि अगर मैने कुछ किया तो उसका परिणाम क्या होगा। ताईजी की सिसकियां तेज होने लगी “आह्ह्ह्ह् हरिया मेरे राजा थोड़ा तेज कर मैं झड़ने वाली हूं उह्ह्ह्ह्हह” और ताईजी की बड़ी बड़ी चूचियों को दबोचकर हरिया कसकर अपने लन्ड के धक्के उनकी चौड़ी गांड में मारने लगा। खाला की भी सिसकियां तेज होने लगी “आह्ह्हह्ह कल्लू मेरी जान ऐसे ही चोदो उह्ह्ह्हह ऐसे ही रोज मुझे चोदा कर उह्ह्ह्ह् मेरा पानी निकलने वाला है” कल्लू ने शहनाज़ की गोरी चर्बीदार गांड को दबोच लिया और नीचे से कसकर अपने लन्ड को उनकी फूली हुई चूत में जड़ने लगा।
कुछ देर में शहनाज़ झड़ गई और कल्लू ने भी अपना वीर्य शहनाज़ की चूत में भर दिया और थोड़ी देर बाद हरिया के लन्ड ने भी ताईजी की गांड को अपने रस से भर दिया और ताईजी की चूत ने भी फुवारा छोड़ दिया, मैंने सोचा कि अब यहां रुकने का कोई फायदा नहीं है इसलिए वहां से मैं सरक लिया। फिर ताईजी के गन्ने के खेत से अपनी साइकिल उठाई और अपने दोस्त राज के घर चल दिया क्योंकि घर तो मैं जा नहीं सकता था, राज के पिता शम्भू काका की बाजार में दूध की दुकान है, उन्होंने हाल ही में पक्का मकान बनवाया था इसलिए वह थोड़ा कर्जे में चल रहे थे, रजनी दीदी तो सारा दिन गांव में घूमते रहती थी या अपने बाप के सब्जियों के खेत में थोड़ा बहुत काम कर लिया करती है। घर पर केवल राज की मां रागिनी ही होती थी जो सब्जियों के खेत के काम के साथ साथ घर के भी सभी काम किया करती थी।
थोड़ी देर में मैं साइकिल से राज के घर पहुंच गया, मैंने देखा कि रागिनी काकी अपने घर के आंगन में मसाला कूट रही हैं, उन्होंने जैसे ही मुझे देखा तो मुझे अंदर आने के लिए कहा,
“राज कहां है काकी?”
रागिनी काकी छोटी सी ओखली में मोटा सा मूसल लेकर मसाला कूट रही थी।
“वो तो अभी नहा रहा है, तू बैठ ना मैं तेरे लिए कुछ लेकर आती हूं”
“नहीं काकी मेरा पेट भरा हुआ है, ताईजी ने चार आलू के परांठे ठुसवाए हैं आप अपना काम कीजिए”
मेरी बात सुनकर रागिनी काकी मुस्कुराई और बोली “लस्सी ही पी ले, मैंने बनकर रखी हुई है”
“ठीक है ले आओ”
रागिनी काकी रसोईघर में मेरे लिए ठंडी लस्सी ले आई और वापस से मसाला कूटने लगी। मैं लस्सी पीते हुए रागिनी काकी को देख रहा था उनका ब्लाउज पसीने से गीला हो चुका था जिससे उनकी बड़ी बड़ी चूचियों की घुंडियां ब्लाउज के ऊपर दिखाई दे रही थी मैं उनकी चूचियों को घूरे जा रहा था अचानक मैंने ध्यान दिया कि रागिनी काकी ने मुझे उन्हें घूरते हुए पकड़ लिया है।
Chudai Story | Hindi Sex Story | Hindi Sex Stories | Desi Sex Kahani | Kamukta
“बलराम और लस्सी चाहिए क्या?” रागिनी काकी मसाला कूटते हुए बोली।
“बड़ी स्वादिष्ट लस्सी बनाई है काकी, अब तो आपकी लस्सी रोज पीने आऊंगा”
मेरी बात में थोड़ी डबल मीनिंग थी रागिनी काकी मेरी बात सुनकर थोड़ा शर्मा गई लेकिन बोली कुछ नहीं।
“काकी आप क्या कर रही हो?”
“दिखाई नहीं दे रहा क्या मसाला कूट रही हूं” रागिनी काकी थोड़ा तुनकते हुए बोली
“लेकिन काकी क्या आपको नहीं लगता कि ओखली के हिसाब से मूसल कुछ ज्यादा ही मोटा है”
“मोटा है तभी तो ओखली में रगड़ रगड़ कर घुस रहा है और मसाला कितना बारीक कुट रहा है”
“ऐसा न हो कि इतने तगड़े मूसल को ये छोटी ओखली संभाल न पाए और टूट जाए, ये मूसल तो बड़ी ओखली के लिए बना है क्यों काकी मैं ठीक बोल रहा हूं ना”
“बेटा ओखली छोटी हो या बड़ी लेकिन मूसल मोटा होना चाहिए तभी कूटने में मजा आता है”
“लेकिन काकी आपसे ये तगड़ा मूसल ठीक से उठ भी नहीं पा रहा है , लाओ मैं आपकी मदद कर देता हूं।
“हां बेटा मेरी मदद कर दे, देख मेरी ओखली में कितना मसाला है”
मैने जैसे ही रागिनी काकी की मदद करने के लिए पहुंचा वैसे ही राज अपने घर के पिछवाड़े से नहाकर अंदर आ गया।
“अरे बलराम तू कब आया?”
“मुझे आए बस थोड़ी देर हुई है”
मुझे पहली बार राज पर बहुत गुस्सा आ रहा था, मैंने इतना अच्छा माहौल बनाया था सत्यानाश हो गया, रागिनी काकी भी मस्त डबल मीनिंग बात कर रही थी उनके चेहरे पर भी थोड़ा बहुत अफसोस था।
फिर मैं और राज उसके कमरे में आ गए, राज तौलिया लपेटा हुआ था, मैने ध्यान दिया कि उसके तौलिए के अंदर तम्बू बना हुआ है।
“क्या बात है राज नहाते वक्त किसके सपने देख रहा था?” मै राज के लन्ड की तरफ आंखों से इशारा करते हुए बोला
“साले तू बड़ा चालू है” राज झल्लाते हुए बोला
“मैंने क्या किया जो तू ऐसे बोल रहा है”
“मैं तेरी और मां की बातें सुन रहा था, मूसल ओखली लस्सी मैं कोई बच्चा नहीं हूं”
अब मैं क्या बोलूं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, थोड़ी देर के लिए मैं चुप रहा तो राज बोला “अब ज्यादा भोला मत बन, कोई बात नहीं।”
“सॉरी भाई आगे से ऐसा नहीं करूंगा”
“मैंने ऐसा भी तो नहीं कहा”
राज की बात सुनकर मैं आश्चर्यचकित हो गया “तेरा मतलब क्या है?”
“यार मुझे तो उल्टा बहुत मजा आया, तेरी और मां की बातें सुनकर मेरा लन्ड खड़ा हो गया था”
“सच में”
“हां भाई, एक बात कहूं तू किसी को बताएगा तो नहीं”
“क्या बात है? नहीं बताऊंगा”
“यार मुझे मां बहुत पसंद है”
“मतलब?”
“मैं मां से बहुत प्यार करता हूं और उन्हें चोदना चाहता हूं”
राज के मुंह से यह बात सुनकर मुझे तो जैसे हार्ट अटैक ही आ गया मुझे समझ में नही आ रहा था की आखिर मेरे साथ हो क्या रहा है।
“तू पागल तो नहीं हो गया है”
“यार मेरी मां बहुत प्यासी है, मेरा बाप कर्जे में डूब चुका है दिन में बाजार के कोठे पर पड़ा रहता है और रात में शराब पीके आता है और मां से लड़ाई झगड़े करता है, रजनी दीदी भी पता नहीं कहां से पैसे लेकर आती हैं जिससे थोड़ा बहुत घर का गुजारा चल जाता है, अब बता तू मेरी जगह होता तो क्या करता?”
“मुझे इसके ऊपर थोड़ा विचार करना पड़ेगा, मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा।”
“आज मुझे एक उम्मीद नजर आई है प्लीज बलराम क्या तू मेरी मदद करेगा”
“दोस्ती के लिए जान हाजिर है तू बता क्या करना है लेकिन पहले तू मेरे सवाल का जवाब दे क्या तू सच में अपनी मां को चोदना चाहता है?”
“हां भाई, मैं अपनी मां से बहुत प्यार करता हूं और उसका दुख नहीं देख सकता, पता नहीं कितनी बार मैंने अपनी मां को चूत में उंगली करते देखा है और इतना ही नहीं मैंने कई बार उन्हें अपनी चूत बैंगन भी डालते हुए देखा है, तू जानता नहीं है भाई अगर मां बहक गई तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा”
“क्या तू कभी अपनी मां के साथ कुछ करने की कोशिश किया है?”
“भाई, मैने बहुत बार कोशिश की है पर कभी सफल नहीं हुआ, अगर कुछ करने की कोशिश करता हूं तो मां मुझे डांटकर भगा देती है लेकिन आज जब मैने तुझे और मां को बातें करते हुए देखा तो मुझे एक उम्मीद की किरण नजर आई”
“लेकिन राज तेरी सगी मां तुझसे कैसे चुदेगी?”
“चुदेगी लेकिन तुझे मेरा साथ देना पड़ेगा”
“मैं तैयार हूं लेकिन कुछ सोचा है तू कि कैसे करेगा”
“कल रविवार है इस बारे में कल शाम को हम नदी किनारे पुल पर मिलकर बात करते हैं।”
“तो ठीक है अब मैं घर चलता हूं” कहकर मैं साइकिल से अपने घर की तरफ चल दिया